एक नहीं अनेक बातों और सदंर्भों से यह स्पष्ट है कि सेक्स की प्रक्रिया में शरीर से ज्यादा प्रभावी भावनाओं की भूमिका होती है. क्योंकि सेक्स भले शरीर के जरिये संभव होता हो, लेकिन उस शरीर को इसके लिए तैयार मन करता है, भावनाएं करती हैं. इसलिए इस प्रक्रिया में शरीर से ज्यादा मन और भावनाओं की सक्रियता की जरूरत होती है. जब हम किसी बात को लेकर इंफीरियर्टी काॅम्प्लेक्स में होते हैं यानी हीनताबोध का शिकार होते हैं, तो भले मजदूरी कर लें, भले बोझा उठा लें, भले गाड़ी चला लें, लेकिन सेक्स नहीं कर सकते. क्योंकि सेक्स में सिर्फ मांसपेशियों की ताकत से काम नहीं चलता. इसके लिए मन में एक खास किस्म की भावनात्मक लहर का होना जरूरी है और भावनात्मक लहर मैकेनिकल नहीं होती. उसका कोई मैकेनिज्म नहीं है कि हर बार उसे एक ही तरीके से दोहरा दिया जाए.

मन की लहर एक ऐसी स्वतंत्र और मौलिक प्रक्रिया है जो भावनाओं के प्रवाह में ही पैदा होती है. यह प्रवाह तकनीकी रूप से पैदा तो नहीं की जा सकती, पर तकनीकी रूप से इसे कई सामाजिक और मानसिक बाधाएं रोक जरूर देती हैं. जब हममें डर, भय, अपराधबोध और निम्न होने की भावना होती है, तो हमारे अंदर पैदा होने वाली खुशी की तरंगे नहीं पैदा होतीं. ऐसे में हम गुस्से की तमाम चीजें तो कर सकते हैं, लेकिन खुशी और प्यार नहीं जता सकते. इसीलिए हम सेक्स भी नहीं कर सकते. क्योंकि सेक्स करना अंततः मन का खुशियों और भावनाओं से भरा होना होता है. नकारात्मक भावनाएं खुशियों को छीन लेती हैं और मन में पैदा होने वाली लहर से हमें वंचित कर देती हैं. इसलिए शरीर तरंगित नहीं होता और सेक्स के लिए तैयार नहीं होता.

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क्योंकि सेक्स में जिन सक्रिय और उत्तेजित इंद्रियों अथवा अंगों की मुख्य भूमिका होती है, उन्हें सक्रिय और उत्तेजित होने के लिए मन में एक लहर और खुशी देने वाले उन्माद पैदा होना जरूरी है. हीनभावना एक नकारात्मकता है, इसलिए यह हममें भावनात्मक अंतरंगता खत्म करती है, जिससे हममें शारीरिक स्फूर्ति या इंद्रियोचित स्फूर्ति नहीं बनती. नतीजतन हम डिप्रेशन में, हीनभावनाओं के शिकार होने पर या ऐसे ही दूसरे तनाव के क्षणों में सेक्स के लिए सक्षम नहीं होते. कुदरत ने इस मामले में डीलडौल को या बहुत ताकतवर को यह विशिष्टता नहीं बख्शी है कि वह किसी भी मानसिक और शारीरिक स्थिति में सेक्स कर सके. अच्छे से अच्छे पहलवान, बड़े से बड़े एथलीट के दिमाग में भी अगर यह बात बैठ जाए कि वह सही परफोर्मेंस नहीं कर पायेगा, तो फिर चाहे कुछ भी हो जाए, वह सेक्स नहीं कर सकता. सेक्स वास्तव में भावनाओं की ड्राइव है और इसमें जरा सा भी किसी भावना को ठेस लग जाए, जरा सी हिचक आ जाए, संशय या द्वंद पैदा हो जाए तो फिर कुछ नहीं हो सकता.

दरअसल हीन भावनाएं हमारे दिल दिमाग में कई तरह से आती हैं, एक कारण तो सामाजिक होता है, जिसमें हमें बचपन से ही ठंूस ठंूसकर दिमाग में भरा जाता है कि ये छोटा है, ये बड़ा, ये ऊंची जात का है, ये नीची जात का है. यह श्रेष्ठ है, यह गैर श्रेष्ठ है. फिर एक कर्मकांडों की भूमिका होती है. छोटी बड़ी उम्र और सामाजिक रिश्तों की भी एक लक्ष्मण रेखा होती है, कई बार वह सही होती है, कई बार वह मन का बहम होती हैं. लेकिन सेक्स के मामले में जो सबसे बड़ी हीनभावना होता है, वो ऐसे दुष्प्रचारों से आयी हुई है, जिन दुष्प्रचारों के जरिये कुछ लोग अपनी रोटी सेंकते हैं. मतलब यौन दुर्बलता, शारीरिक कद, रंग, हैसियत, ये सब दिमाग में भरे गये ऐसी ऐसी हीनभावनाएं हैं, जो हमें सेक्स के मामले में कमजोर बनाती हैं.

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हीनभाव से मुक्ति के लिए आत्मविश्वास की आवश्यकता होती है. अपनी सामथ्र्य को पहचानने तथा अपनी शक्ति का मूल्यांकन करने से भी हीनताबोध से उबरा जा सकता है. ऐसे उपाय न करने से हीनता के भाव आपके पूरे जीवन पर छाये रहेंगे, जो आपकी पूरी सामथ्र्य को खोखला बनाते रहेंगे. हीनताबोध यौन क्रीड़ा को सबसे ज्यादा प्रभावित करता है. क्योंकि हीनताबोध का शिकार व्यक्ति अपने दिल दिमाग में एक तनाव लिये रहता है कि वह सही से सहवास नहीं कर पायेगा. यह चिंता हर समय किसी न किसी रूप मंे दिमाग में हथौड़ा बजाती रहती है, इसलिए वह वास्तव में सहवास नहीं कर पाता, फिर चाहे वह कितना ही सक्षम क्यों न हो.

इस मानसिक विकार को जितनी शीघ्रता से हो, खत्म करना चाहिए. अक्सर यह बोध भ्रामक धारणा से उत्पन्न होता है. ऐसी अवस्था में पुरुष या स्त्री के मन में यह बात बैठ जाती है कि उससे सफल सहवास नहीं हो पायेगा. इस भ्रामक धारण के चलते वह वास्तव में सेक्स में सक्षम नहीं हो पाता. व्यवहारिक दृष्टि से ऐसी धारणाएं इन बातों से आती है. शिश्न को छोटा समझकर हीनभावना से ग्रस्त होना. स्त्री की श्रेष्ठता का ख्याल करना. उसके अच्छे पद तथा उसकी स्थिति को लेकर हीनग्रस्त रहना. परिवार का धनवान अथवा निर्धन होना. अनमेल आर्थिक स्थिति आदि.

ये तमाम धारणाएं सहवास के लिए बेहद नकारात्मक है. एक बात समझ लीजिए कि शिश्न की लंबाई-मोटाई सहवास को कदापि प्रभावित नहीं करती. छोटे शिश्न वाले व्यक्ति को जान लेना चाहिए कि स्त्री की योनि की बनावट ऐसी होती है जिसमें हर प्रकार का शिश्न पूर्ण आनंद देता है. पुरुष को इस गलत धारणा से ध्यान हटाकर सहवास की सही तकनीक के अनुसार रमण करना चाहिए. यदि पुरुष इस धारणा को नहीं त्यागेगा तो उसे सहवास में विफलता ही मिलेगी. वह अपनी सहयोगी स्त्री को पूर्ण संतुष्टि नहीं दे पायेगा. स्त्री संतुष्ट होगी, तो हीनता का भाव अपने आप खत्म हो जायेगा.

स्त्री की श्रेष्ठता का ख्याल रखकर अपने को हीन मान लेना भी गलत है. स्त्री का अधिक पढ़ा-लिखा होना, आर्थिक स्थिति का अच्छा होना अथवा उसका ऊंचा पद भी यौन क्रीड़ा के लिए कोई महत्व की वस्तु नहीं है. अतः उसका पद या कद मैथुन क्रिया में विचारना एकदम नासमझी है. सहवास में दोनों बराबर के स्तर पर आकर आनंद प्राप्त कर सकते हैं. सहवास के मधुर क्षणों को और भी मधुर बनाने के लिए दोनों स्त्री-पुरुष एक धरातल पर आकर इस यौन प्रक्रिया को संपादित करके मानसिक तथा शारीरिक आनंद प्राप्त कर सकते हैं.  जहां तक जाने-अनजाने में किए गये गलत कार्यों से उपजा हीनताबोध या अपराधबोध है, उससे पीड़ित रहकर बेकार ही तनाव मोल लेना है. जो हो चुका, उसे भूलना ही बेहतर होता है.

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