नतीजा यह हुआ कि उस की पत्नी भी नौसिखिया नीमहकीम के हाथों मारी गई और बच्चा भी. अगर कहीं यह काम करने वाला राजेंद्र शुक्ला की जगह रहमान होता तो अब तक उत्तर प्रदेश में कोहराम मच चुका होता पर अब यह कोने में रह जाने वाली खबर बन कर रह गई. एक औरत मर गई, एक बच्चा मर गया, एक मर्द बरसों अकेला रह जाएगा. राजेंद्र शुक्ला 10-20 दिन जेल में रह कर बाहर आ जाएगा क्योंकि वह देशभक्तों में से है, टुकड़ेटुकड़े गैंग का या खालिस्तानीपाकिस्तानी नहीं.
देश को असल में जरूरत है डाक्टरों की, अस्पतालों की, नर्सिंगहोमों की पर बन रहे हैं भगवा पंडितपुजारी, मंदिर और आश्रम. गांवगांव का दौरा कर लो. सब से बड़ी चीज जो बनी दिखेगी वह अस्पताल तो नहीं होगा, मंदिर होगा. स्कूल जरूर होंगे क्योंकि आजादी के बाद सरकारों ने चप्पेचप्पे पर स्कूल खोले मगर उन में घुस गए ऐसे टीचर जो पाठ पढ़ाते हैं कि भजन करो, योग करो, ठीक रहोगे. यह गलती थी. पढ़ाना था रोजमर्रा की तकनीक, हिसाब रखना, लिखना, सेहत का ध्यान रखना, अपने हकों के बारे में कैसे जागें बताना, यह सब न कर के पहले ही प्रार्थना में कह दिया जाता है कि हमें तो पूजापाठ पर भरोसा है.
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बच्चों को शुरू से नीमहकीमों के पैरों में बैठने की आदत डाल दी जाती है चाहे ये नीमहकीम राजनीति के हों या सेहत और इलाज के. जो मैडिकल कालेज खुल रहे हैं उन में भी मंदिर बन रहे हैं. मैडिकल के छात्रों को भी सिखा दिया जाता है कि मरीज को कह दो कि दवा तो ले पर दुआ भी करे यानी अगर गलत दवा दी, कुछ नहीं हुआ या खराब हुआ तो चूक दुआ में थी. डाक्टर साफ बच गया. कौन डाक्टर ऐसे शौर्टकट नहीं अपनाएगा.
और ऊपर से अगर सफेद कोट पहन लिया जाए तो किसी को भी डाक्टर मान लिया जाता है जैसे हर भगवा कपड़े वाले को शांत, ईमानदार, भगवान का पक्का एजेंट मान लिया जाता है. सफेद कोट वाले भी और भगवा कुरते वाले भी पैसा पूरा लेते हैं पर करते न के बराबर हैं. इस राजाराम और उस की बीवी पूनम के साथ कुछ ऐसा ही हुआ. वे सफेद कोट के झांसे में आ गए और शायद और कहां जाते. शायद वही सब से पास एकलौता अस्पताल या नर्सिंगहोम था. मंदिर थोड़े ही जाना था जो हर नुक्कड़ पर मिल जाएंगे.
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यह अभी जनता की समझ में नहीं आएगा कि मंदिरोंमसजिदों की जरूरत नहीं, अस्पतालों की जरूरत है. कोविड-19 ने बता दिया है कि सेहत कितनी जरूरी है. कब कैसी बीमारियां आ सकती हैं जो मंदिरों के दरवाजे भी बंद करवा सकती हैं, पता नहीं. सरकार तो चेतेगी नहीं. उस का तो लक्ष्य ही दूसरा है. यह काम तो जनता को खुद करना होगा. सरपंच, मेयर का काम अपने इलाकों में अस्पताल बनवाने के लिए चंदा जमा करना होना चाहिए. यह सब से ज्यादा जरूरी है.