तकरीबन 15 साल की सुमन डाक्टर के सामने बैठी थी. डाक्टर ने उस से पूछा, ‘‘क्या तुम शादीशुदा हो?’’

सुमन ने सवालिया नजरों से अपनी मां की तरफ देखा. तबीयत खराब होने से भला शादी का क्या कनैक्शन? उस ने ‘नहीं’ में सिर हिलाया.

डाक्टर ने सुमन को बाहर भेज कर मां से धीमी आवाज में कुछ पूछा. इस से आसपास बैठे दूसरे मरीजों में खुसुरफुसुर होने लगी.

दरअसल, पिछले 2 महीने से सुमन की माहवारी मिस हो रही थी. उस ने यह बात अपनी मां को बताई और घबराई मां उसे ले कर डाक्टर के पास आ पहुंची.

छोटे से कसबे की रहने वाली सुमन इस बात से बिलकुल बेखबर थी कि वहां मौजूद बाकी लोग उसे कैसी नजरों से देख रहे थे. उस के जेहन में बारबार यही सवाल उठ रहा था कि डाक्टर ने ऐसा क्यों पूछा कि शादी हुई है या नहीं?

लड़कियों से ऐसे सवाल सिर्फ गांवों या छोटे शहरों में ही नहीं पूछे जाते हैं, बल्कि बड़े शहरों का भी यही हाल है.

‘‘मैं एक सिंगल लड़की हूं. पिछले दिनों मेरे पीरियड्स मिस हो गए और मैं डाक्टर के पास गई. मैं यह उम्मीद ले कर गई थी कि डाक्टर मेरी परेशानी का हल बताएंगी, मु झे दवाएं देंगी, मेरी मदद करेंगी, लेकिन हुआ उलटा.

‘‘उन्होंने मुझ से अजीब से सवाल किए. जैसे कि क्या मेरी शादी हो गई है? क्या मेरा बौयफ्रैंड है? क्या मैं सैक्स करती हूं? क्या मेरे मातापिता को इस बारे में मालूम है? मैं डाक्टर के इस रवैए से हैरान थी.’’

यह वाकिआ सीमा के साथ हुआ. वह इस से बेहद खफा है और चाहती है कि डाक्टर कुंआरी या सिंगल लड़कियों से ऐसे सवाल न पूछें और न ही उन्हें ‘नैतिकता’ का पाठ पढ़ाएं.

सैक्सुअल हैल्थ से जुड़ी परेशानी  पर डाक्टर अकसर ही शादी से जुड़े  सवाल करती हैं. कायदे से यह पूछा जाना चाहिए कि क्या आप सैक्सुअली ऐक्टिव हैं?

गाइनोकोलौजिस्ट डाक्टर विमला जयपुर के वात्सल्य हैल्थ सैंटर में मरीजों को देखती हैं. उन के यहां शहरी के साथसाथ जयपुर के गांवदेहात के इलाकों से भी मरीज आते हैं.

डाक्टर विमला का मानना है कि डाक्टरों के लिए मरीज की सैक्स लाइफ और सैक्सुअल ऐक्टिविटी के बारे में जानना जरूरी होता है.

वे यह भी मानती हैं कि मरीज शादीशुदा है या नहीं, वह सैक्सुअली कितनी ऐक्टिव है, ऐसी बातों से डाक्टर का बहुत ज्यादा मतलब नहीं होना चाहिए.

उन्होंने आगे बताया, ‘‘मैं अपने यहां आने वाली लड़कियों को सेफ सैक्स की सलाह देती हूं. एक बालिग लड़की ‘सही’ और ‘गलत’ का फैसला खुद ले सकती है. लड़कियों की माहवारी मिस हो जाना ही सैक्सुअल हैल्थ से जुड़ा मसला नहीं है. इस के अलावा भी कई दिक्कतें हो सकती हैं, जैसे अंग के इंफैक्शन से फैलने वाली बीमारियां.’’

डाक्टरों का ऐसा बरताव निजी क्लिनिकों और छोटे अस्पतालों तक सिमटा हुआ नहीं है, बल्कि बड़े अस्पतालों में भी लड़कियों को इस तरह के सवालों का सामना करना पड़ता है.

23 साल की सोनम बताती है कि डाक्टर यह मान कर चलते हैं कि कोई सैक्स तभी करता है, जब उस की शादी हो जाती है.

जयपुर में रहने वाली 25 साल की सोनम अपने अनुभव सा झा करते हुए कहती है, ‘‘वेजाइनल इंफैक्शन होने पर मैं एक गाइनोकोलौजिस्ट के पास गई. मैं ने उन से पूछा कि कहीं यह एसटीडी तो नहीं है?’’

उस की बात सुन कर डाक्टर ने कहा, ‘‘अगर तुम शादीशुदा नहीं हो, तो एसटीडी का सवाल ही नहीं उठता.’’

सोनम कहती है कि डाक्टर यह मान कर चलते हैं कि कोई सैक्स तभी करता है, जब उस की शादी हो जाती है. मु झे उन के बरताव पर बहुत गुस्सा आया और मैं ने इस बारे में अपना गुस्सा जाहिर करते हुए सोशल मीडिया पर एक पोस्ट भी लिख डाली.

जयपुर के कांवटिया हौस्पिटल में तैनात डाक्टर आरके चिरानियां ने काफी समय तक ऐसे मामलों को हैंडल किया है. वे कहते हैं, ‘‘गाइडलाइंस की बात करें तो छोटीमोटी दिक्कतों के लिए हमें मरीज के अलावा किसी और से बात करने की जरूरत नहीं होती. लेकिन बात अगर बच्चा ठहरने तक पहुंच जाए, तो लड़की के पार्टनर या किसी करीबी को बताना जरूरी हो जाता है.

‘‘कई बार गांवों की ऐसी लड़कियां मेरे पास आती थीं, जिन्हें पता ही नहीं होता था कि वे पेट से हैं. उन्हें बस इतना पता होता था कि उन के पेट में दर्द हो रहा है. ऐसे में उन के मातापिता से बात करना मजबूरी हो जाती थी.’’

डाक्टर आरके चिरानियां इस के पीछे तर्क देते हैं कि किसी को बिना बताए बच्चा गिराना खतरनाक होता है. इस में मौत का डर भी होता है.

‘मर्दाना कमजोरी का शर्तिया इलाज’, ‘सैक्स रोगी मिलें’, ‘जवानी में भूल की है तो न पछताएं’ जैसे इश्तिहार गांवकसबों और बड़े शहरों में जगहजगह दीवारों पर देखने को मिल जाते हैं. लेकिन जहां बात लड़कियों  की आती है, तो हर तरफ चुप्पी छा जाती है या फिर इशारों में बातें होने लगती हैं.

हमारे डाक्टर भी उसी समाज से आते हैं, जहां से हम. मैडिकल साइंस और विज्ञान उन्हें इस काबिल तो बनाता है कि वे बीमारी पहचान सकें, इलाज कर सकें, लेकिन शायद वे यह सम झने में नाकाम होते हैं कि उन का काम यहीं तक है, फैसले सुनाने या मोरल साइंस पर लैक्चर देने का नहीं.

अब यह सवाल उठता है कि क्या हम ऐसे समाज की कल्पना कर सकते हैं, जहां लड़कियां बेझिझक हो कर अपनी सैक्स से जुड़ी तकलीफों के बारे में बात कर पाएं? कम से कम वे डाक्टरों से अपनी तकलीफ खुल कर बता पाएं?

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