आज डीएम साहब की मीटिंग में अनीता की समीर से मुलाकात हुई. उस का तबादला यहीं नोएडा में हो गया है. डीएसपी हो गया है वह. अनीता नार्कोटिक्स विभाग में अफसर है. वह डीएम, कमिश्नर आदि के साथ मीटिंग्स में अकसर शामिल होती है. आज समीर मिला, डीएसपी समीर. खूब जंच रहा था. पुलिस अकादमी में ट्रेनिंग के दौरान वह उस से पहली बार मिली थी. समीर उस से सीनियर था और ट्रेनिंग कंप्लीट कर के उसे पोस्टिंग पहले मिली जबकि अनीता को बाद में.

संयोग से अनीता की पहली पोस्टिंग नोएडा में ही हुई. प्रशासनिक बैठकों के दौरान अकसर ही समीर के साथ उस की मुलाकातें होने लगीं. समीर का व्यक्तित्व आकर्षक था, अच्छे ओहदे पर था. पत्नी भी प्रशासनिक सेवाओं में हो, ऐसा वह चाहता था. अनीता को भी समीर पसंद ही था, बस, अपनी बात कहने में उसे जो हिचकिचाहट थी वह स्वयं समीर ने उसे प्रपोज़ कर के पूरी कर दी थी. दोनों के परिवारवालों को भला क्या आपत्ति हो सकती थी. हाथ कंगन को आरसी क्या. चट मंगनी पट ब्याह हो गया.

“जैसा मैं चाहता था वैसा ही हुआ. मुझे तुम जैसी लड़की ही पत्नी के रूप में चाहिए थी,” समीर कह रहा था.

“कैसे?” हर्षित मन से अनीता ने पूछा. नई शादी, मनपसंद जीवनसाथी…उस का मन खुशियों की तरंगों में डूबा हुआ था.

“अरे, तुम नार्कोटिक्स जैसे कमाऊ विभाग में हो और मैं प्रशासनिक अफसर. दोनों मिल कर ख़ूब कमाएंगे,” समीर तपाक से यह बोला, तो अनीता के मन की खुशी बुझ सी गई.

अनीता का विभाग ‘नार्कोटिक्स’ घूसखोर और पैसा कमाने की चाहत रखने वालों के लिए ‘सोने का अंडा देने वाली मुर्गी’ के समान था. युवा पीढ़ी की नशे की लत के कारण चरस, गांजा, अफीम, हेरोइन जैसे नशीले द्रव्यों की तस्करी को बढ़ावा मिलता था और तस्करों को संरक्षण देने के एवज़ में नार्कोटिक्स विभाग के अधिकारियों की लाखों की कमाई. पर अनीता का लक्ष्य कभी ऐसा नहीं रहा. उलटे, वह तो देश की युवा पीढ़ी को बरबाद कर रहे इस नशे के व्यापार पर रोक लगा कर अपना कर्तव्यपालन करना चाहती थी. परंतु समीर की पैसे की हवस से उसे निराशा सी महसूस हुई. भीतर से लगा जैसे जीवनसाथी के चयन में कोई ग़लती तो नहीं हो गई. ‘अपनीअपनी सोच है, समीर अपना काम करेगा मैं अपना’ यह सोच कर उस ने सिर झटक दिया. दोनों अपनेअपने काम में व्यस्त और जिंदगी चलने लगी.

एक दिन समीर रात में देर तक घर नहीं आया. अनीता ने फ़ोन किया तो ज़वाब मिला कि ‘कुछ अर्जेंट काम आ गया है, देर से घर आऊंगा.’ रात के 10, फिर 12 और फिर 2 बज गए. 2 बजे के बाद समीर घर आया नशे की हालत में लड़खड़ाते हुए. अनीता को धक्का लगा. एक डीएसपी रैंक का अफसर और उस का पति इस तरह नशे में लड़खड़ाते हुए घर आ रहा था. उसे बड़ी शर्म आई. अनीता के मुंह से निकल ही गया, “तुम इतनी शराब पीते हो, मुझे तो कभी पता नहीं चला.”

“तो क्या, अब शराब भी तुझ से पूछ कर पिऊंगा?”

“स्साली, एक तो कुछ कमातीधमाती नहीं है, ऊपर से बातें और बनाती है.” समीर का यह रूप देख कर अनीता के पावों तले जमीन खिसक गई. वह तो उसे मारने पर उतारू हुआ जा रहा था. नशे में लड़खड़ाता ही वह सो गया. घृणा और अपमान से दुखी अनीता एक पल भी न सो सकी.

पुलिस विभाग का एक वरिष्ठ अफसर, उस का पति उस से भ्रष्टाचार कर पैसा कमाने को कहता है और मना करने पर शराब पी कर उस से दुर्व्यवहार भी शुरू कर रहा है. अनीता की समीर की इस हिमाकत पर बड़ा गुस्सा आया. उस के भीतर का अफसर जाग उठा. मन किया जगा कर 2 झापड़ दे इस आदमी के. उपपुलिस निरीक्षक जैसे जिम्मेदार पद पर रह कर वह अपने कर्तव्यों से भाग रहा था और भ्रष्टाचार की राह पकड़ रहा था. अनीता दुखी हो कर रह गई. उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था क्या करे.

सुबह सो कर उठा समीर, तो उस का नशा उतरा हुआ था. रात का वाकेआ याद आया, तो समझ गया कि अब अनीता को मनाना पड़ेगा. बेचारा, रोना सा मुंह बना कर धीरे से अनीता के पास पहुंच उस के दोनों हाथ पकड़ लिए, “मुझे माफ़ कर दो अनीता. कल रात साथियों के साथ पार्टी हो गई थी. उन्हीं लोगों ने पिला दी. आगे से कभी ऐसा न होगा, तुम्हारी कसम.”

अनीता कुछ न कह सकी पर इस आदमी पर से उस का विश्वास उठने लगा था. उस की आंखों में सचाई की झलक न हो कर धूर्तता और कांइयापन झलकता था. शांति बनाए रखने के लिए कुछ सोच कर अनीता चुप रह गई.

उन की शादीशुदा जिंदगी ज़बरदस्ती की गाड़ी सी चल रही थी. समीर तनिक न बदला, बल्कि और बेशर्म होता गया. चला जाता तो दोदो दिन घर न आता. पूछने पर डिपार्टमैंट के काम से दौरे पर जाना बता देता. कभी कह देता कि बदमाशों पर दबिश डालनी है, उन की ही खोज़ख़बर इकट्ठी की जा रही है. रातों को घर न आना तो अब उस का अकसर का काम बन गया था. पूछने पर काट खाने को दौड़ता, हाथ भी उठा देता.

अनीता की पदप्रतिष्ठा का कोई मोल नहीं है उसे. अनीता को समझ नहीं आता कि इस आदमी को पहचानने में उस से इतनी बड़ी भूल कैसे हो गई. रोनेधोने से कोई फ़ायदा नहीं था. उसे पता करना था कि आख़िर समीर किस के साथ रहता है और किस लालच में फंसा है. एक ज़िम्मेदार अफसर का ऐसा गैरजिम्मेदार आचरण आख़िर उस के कर्तव्य के प्रति भी लापरवाही थी और इस की सजा भी किसी दिन उस को ही मिलनी थी. अनीता ने जी कड़ा कर कुछ निश्चय कर लिया था.

आज समीर का मूड कुछ ठीक लग रहा था. वह अपने कार्यालय जाने को तैयार हो रहा था. “आज हमारे विभाग को दवा विक्रेताओं पर रेड डालनी है, मैं बहुत व्यस्त रहूंगी. तुम कब तक घर आ जाओगे?” अनीता ने यों ही बात शुरू करने को पूछा. “मैं कभी आऊं, तुम्हें क्या? तुम अपना काम करो और मेरे काम में टांग मत अड़ाया करो. वैसे भी, तुम्हें कौन सा कुछ कमानाधमाना है,” उस ने व्यंग्य से मुंह बनाते हुए कहा.

अनीता ने सोचा फुज़ूल में ही इस से बात की. वैसे भी, घर के मेन हिस्से की चाबी तो दोनों के पास थी ही, और नोकरचाकर भी तो थे घर में. समीर को मिला सरकारी बंगला काफ़ी बड़ा था. ख़ानसामा, माली, चपरासी तो हमेशा रहते ही थे और सरकारी बंगलों में चोरीचकारी का भी कोई डर नहीं था. वास्तविकता तो यह थी कि अनीता इस बहाने समीर से बात शुरू करना चाहती थी, पर उस अड़ियल आदमी ने तो उस के मुंह का स्वाद ही ख़राब कर दिया. आख़िर वह भी एक पीसीएस अफसर थी और अपने स्वाभिमान को यों तारतार होते देखना उसे गवारा न था. अब वह समीर को एक पत्नी की नज़र से नहीं, बल्कि एक इंवैस्टिगेटिंग अफसर की नज़र से देख रही थी.

“नमस्कार मैनेजर साहब,” अनीता ने मुसकराकर मैनेजर से नमस्कार किया.

“नमस्कार अनीता जी, आज आप कैसे?” मैनेजर ने थोड़ा विस्मय प्रकट किया जो स्वाभाविक ही था क्योंकि बैंक अकाउंट और लौकर को हमेशा समीर ही देखता था.

“जी, उन्हें प्रशासनिक कार्यों के कारण फ़ुरसत नहीं मिल पाती है, मैं भी व्यस्त रहती हूं. पर आज मेरे पास समय था, इसलिए मैं आ गई. दरअसल, मुझे अपना लौकर खोलना था.”

मैनेजर वरिष्ठ व्यक्ति थे. बैंक अकाउंट और लौकर जौइंट थे, तो अनीता का अधिकार था अपना लौकर देखना. मैनेजर साहब ने रजिस्टर मंगा अनीता के दस्तखत औऱ समय की एंट्री करा उसे लौकररूम में भेज दिया. बैंक कर्मचारी बैंक की चाबी से अनीता की चाबी मिलवा कर लौकर ओपन कर अनीता को लौकररूम में छोड़ कर चला गया ताकि अनीता इत्मीनान से अकेले लौकर में अपना सामान चैक कर सके.

इस से पहले अनीता समीर के साथ बैंक तभी आई थी जब लौकर खुलवाया था. थोड़ी सी अपनी ज्वेलरी उस ने लौकर में रख छोड़ी थी. उस के बाद वह नहीं आई थी. आज किसी तरह से लौकर की चाबी समीर की अलमारी से ले कर वह यहां आई थी. उस का दिल धड़क रहा था. कांपते हाथों से उस ने लौकर का दरवाजा खोला.

अनीता की आंखें खुली की खुली रह गईं. लौकर में 2 अत्याधुनिक रिवौल्वर और रुपया भरा हुआ था. समीर ने ही ज़िद कर के बड़ा लौकर लिया था. अनीता ने अभी उसे वैसा का वैसा बंद कर दिया. नोट कितने थे, यह तुरंत गिनना संभव न था. सो, उस ने इस समय चुप रहना ही ठीक समझा.

अभी उसे अपने और समीर के जौइंट अकाउंट की भी छानबीन करनी थी. अनीता ने ख़ुद को रुपएपैसे के हिसाब से इतना अलग कर रखा था कि समीर जो भी घालमेल कर रहा था, उसे कुछ पता ही नहीं था. पढ़ीलिखी हो कर भी वह इतनी लापरवाह कैसे हो सकती है, उसे अपने इस अनजानेपन पर बड़ा गुस्सा आया. समीर पर अत्यधिक विश्वास का ही नतीज़ा था कि आज उसे यह दिन देखना पड़ रहा था. उस के नाम से समीर अपना भ्रष्टाचार का धंधा चला रहा था और उसे कुछ मालूम ही न था. उस से ज़्यादा होशियार, जागरूक और सयानी तो कम पढ़ीलिखी घरेलू औरतें होती हैं. खैर, अब आगे क्या करना है, वह सोचने लगी. फिर से बैंक जा कर अपने खाते की डिटेल्स लेनी होगी.

अनीता समय पर घर पहुंच गई थी. समीर हमेशा की तरह देररात में घर आया. अनीता ने अपनी तरफ़ से समीर को तनिक भी आभास न होने दिया कि वह क्या देखसमझ चुकी है. उसे बहुत सावधानी से फूंकफूंक कर कदम रखने थे, समीर जैसे शातिर आदमी की पूरी सचाई जो जाननी थी.

सवेरे समीर उठा, तो उस का मूड तो ठीक था पर अनीता से तो जैसे उसे कोई अनुरक्ति ही न थी.

“कब तक आओगे लौट कर?”

“प्रशासनिक अधिकारी हूं, हज़ारों काम होते हैं. कोई खाली तो घूमता नहीं रहता. जब काम निबट जाएगा, आ जाऊंगा.” हमेशा की तरह उलटे व कड़वे बोल. वैसे, अनीता को भी अब उस से बोलने में कोई रुचि न थी. वह तो माहौल को सामान्य दिखाने के लिए औपचारिक सवाल कर रही थी ताकि समीर को कोई शक न हो.

समीर के निकलते ही अनीता भी तैयार हो कर निकल ली. बैंक होते हुए अपने कार्यालय जाने की सोचा उस ने. आख़िर उसे अपनी नौकरी भी तो देखनी थी. खाली समीर की जांचपड़ताल में ही तो नहीं लगी रह सकती थी वह. जिन 2 बैंकों में उस के खाते थे, उन में एक तो सामान्य था जिस में कि उस की तनख्वाह आती थी. उस खाते में सब सही था. एक और अकाउंट था अनीता का जिसे वह बहुत कम इस्तेमाल करती थी. वर्षों पहले अपनी सेविंग्स जोड़ने को खुलवाया था जो कि उसी बैंक में था जिस में लौकर था. अनीता ने उस खाते को भी देखने का निर्णय लिया. घर से पासबुक ले कर चली थी जिस में लगभग सालभर से कोई एंट्री नहीं करवाई थी. बैंक पहुंच कर एंट्री मशीन में डाल कर जब लेनदेन का हिसाब देखा तो उस के होश उड़ गए. खाते में करोड़ों का लेनदेन था.

अनीता के व्यक्तित्व की सब से बड़ी खूबी थी कि वह आवेश में नहीं आती थी. वह सोचसमझ कर, ठंडे दिमाग से ही निर्णय लेती थी. अन्यथा नार्कोटिक्स जैसा खतरनाक विभाग, जहां रोज़ाना नशीली दवाइयों, नशीले पदार्थों की तस्करी होती है, न संभाल पाती.

सीधे बैंक मैनेज़र की मिली भगत के बिना उस का पति उस के खाते से ऐसा फ़र्ज़ीवाड़ा न चला रहा होता.

ऐसे में मैनेजेर से मिल कर समीर की पोल खोलने का इरादा बेकार था क्योंकि मैनेजर निश्चित ही समीर की ही मदद करता.

बैंक से औफिस जा कर, फिर शाम को अनीता ज़ल्दी ही घर आ गई.

घर की तलाशी लेते समय अलमारियों को खंगाल डाला. एक दराज़ में समीर की एक डायरी मिली जिस में कुछ लोगों के फ़ोन नंबर थे. अनीता ने ज़ल्दी से वे नंबर अपने पास नोट कर लिए.

रात को समीर के आने के बाद तो कुछ कर नहीं सकती थी, इसलिए समय रहते होशियारी से सब काम करना था.

समीर की डायरी से मिले नंबरों को मिस्ड कौल के बहाने मिला कर देखा तो दोनों नंबर महिलाओं के थे. ‘तो क्या समीर के दूसरी औरतों से भी ताल्लुकात हैं?’ अनीता सोचती रह गई. पर अब उसे कुछ भी अजूबा नहीं लग रहा था. ‘समीर जैसा आदमी किसी भी हद तक गिर सकता था’ इस बात को अब वह अच्छी तरह समझ चुकी थी. बेहद दुखी थी अनीता. जीवन में बहुत बड़ा धोखा खाया था उस ने. दुखी होने और रोने का भी समय नहीं था उस के पास.

नारकोटिक्स विभाग की अफसर अपनी टीम के साथ जांच करने आई है, यह जान कर समीर की महिला दोस्त कुछ घबराई. पर तुरंत ही वह सचेत हो गई. अनीता भी पीछे हटने वाली नहीं थी. पूछताछ के दौरान उस ने लीला नामक उस महिला के मुंह से सचाई उगलवा ही ली. समीर उसे धोखा दे रहा था. अपनी घूस और रिश्वत की कमाई उस के खातों में डलवा कर ख़ुद बचा रहना चाहता था. मौका पड़ने पर वह उसे फंसा भी देता, इस में भी अनीता को तनिक भी संशय न था.

लीला को मुंह बंद रखने की सीख दे कर अनीता ने छोड़ दिया. लीला भी उस के पद और रसूख को समझ गई और चुप रहने में ही उस ने समझदारी समझी. समीर के साथ जो होगा, वह ख़ुद देखेगा. उसे तो ख़ुद को बचाना और सुरक्षित रखने में ही समझदारी लगी.

अब आगे… अनीता के मन की उधेड़बुन का कोई अंत न था…इस धूर्त और शातिर आदमी को कैसे पटखनी दे और ख़ुद भी बची रहे…

अगले दिन से समीर और अनीता की ज़िंदगी में कुछकुछ सामान्य सा लगने लगा था. समीर रात को पी के आता, तो भी अनीता कोई शिकायत न करती. कई बार तो वह समीर का घर पर ड्रिंक बनाने में साथ भी देने लगी थी. अब समीर को उस से कम शिकायत रहने लगी थी. अनीता ने उस की ऐयाशियों से आंखें मूंद ली थीं. उसे कोई शिकायत न थी कि समीर घर के बाहर क्या करता है, किस से मिलता है. उसे क्या करना, बस, घर में शांति बनी रहे. ऐसे ही 6 महीने बीत गए. समीर अकसर पी कर आता. विभाग में उस की छवि ख़राब हो गई थी. अकसर वह औफिस भी पी कर नशे में पहुंच जाता. एक भ्रष्ट और ऐयाश अधिकारी के रूप में अपने विभाग में उस की ख्याति खूब फैल गई थी.

उस का अपने ऊपर काबू न रहा था. औफिस जाना छोड़ दिया था और डिप्रैशन का शिकार हो गया था. दिनरात घर पर पड़ा रहता. अनीता कुछ न कहती. नशा करता तो करने देती. पड़ा रहता तो पड़ा रहने देती.

एक दिन अख़बार में खबर निकली, “डीएसपी समीर कुमार अपने घर में मृत पाए गए. ज़्यादा नशा और अवसाद मौत का कारण.”

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