मध्यप्रदेश में भाजपा के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपने धार्मिक आडंबरों के बहाने कभी नर्मदा यात्रा, तो कभी आदि शंकराचार्य की पादुका पूजन करके भगवा ब्रिगेड की कमान संभालते रहे हैं. यही बजह है कि अब उनके कोविड 19 से प्रभावित होने पर उनके भक्तों द्वारा भी हवन ,पूजन,पाठ का सिलसिला शुरू कर दिया गया है.
देश की भोली भाली जनता को भावनाओं में बहलाकर कभी हिन्दू मुस्लिम रंग देकर, तो कभी कश्मीर में धारा 370 और अयोध्या में राम मंदिर बनाने की दुहाई देने वाले भगवा ब्रिगेड के लोग असली मुद्दों से लोगों का ध्यान हटाना बखूबी जानते हैं.
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जब कोरोना ने भारत में कदम रखा ,तो मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार को गिराने के चक्कर में इसकी परवाह किसी ने नहीं की.22 मार्च को कोरोना वायरस की चैन तोड़ने के लिए प्रधानमंत्री ने जनता कर्फू का ऐलान कर जनता को यह दकियानूसी संदेश दिया कि अपने घरों की बालकनी में खड़े होकर ताली और थाली पीटने से कोरोना भाग जायेगा. इतने ढोंग करने के बाद भी जब कोरोना का संक्रमण नहीं थमा ,तो घरो की लाईट बुझा कर दिया जलाने का टोटका भी कर डाला. भगवा ब्रिगेड ने तर्क दिया कि दिये की लौ से कोविड19 समाप्त हो जाएगा. मुख्यमंत्री के कोरोना से प्रभावित होने के बाद भोपाल की सांसद साध्वी प्रज्ञा ठाकुर हनुमान चालीसा के पाठ से वायरस भगाने की सलाह भक्तो को देती नजर आईं. कोरोना वायरस यदि किसी धर्म,जाति, संप्रदाय में आस्था रखने वाला होता,तो इन टोने टोटकों से कभी का भाग गया होता.
कोरोना जैसी वैश्विक महामारी से बचने के लिए दी गई डब्लूएचओ की गाइडलाइंस और डाक्टरी सलाह मानने की बजाय सरकार में बैठे जनता के चुने हुए प्रतिनिधि रोज नये नये जुमले उछालते रहे हैं , जबकि यह एक यैसी संक्रामक बीमारी है जो नेताओं के जुमलों से दूर होने वाली नहीं है.
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी रोज टीवी चैनलों पर किसी पंडे पुजारी की तरह कोरोना से सावधान रहने के प्रवचन तो देते रहे , लेकिन खुद उन पर अमल करना भूल गए.इसी बजह से वे 25 जुलाई को आई रिपोर्ट में कोविड 19 पाज़ीटिव पाये गए हैं. हालांकि यह अप्रत्याशित खबर नहीं है. मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री जिस तरह कोरोना के बचाव की गाइडलाइंस को दरकिनार कर रोज कई विधायकों और मंत्रियों से मिलते रहे हैं.
मंत्री अरविंद भदौरिया , भाजपा अध्यक्ष बीडी शर्मा के साथ मुख्यमंत्री 21 जुलाई को प्रदेश के राज्यपाल लालजी टंडन को श्रृद्धांजलि देने लखनऊ गये थे. 21 से 24 जुलाई तक मुख्यमंत्री प्रदेश के 33 मंत्रियों से वन टू वन चर्चा में शामिल रहे .जिस तरह से मुख्यमंत्री और उनके करीबियों द्वारा गाइड लाइन का खुला उल्लंघन किया जा रहा था,उससे यह पहले ही तय हो गया था कि कोरोना के संक्रमण को सीएम हाउस तक पहुंचने में देर नहीं लगेगी. अब हालात ये हैं कि दर्जनों विधायक और मंत्री भी कोरोना की चपेट में आ चुके हैं.
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25 जुलाई को शिवराज सिंह चौहान भोपाल के प्राइवेट हास्पिटल चिरायु में एडमिट हुए तो सोशल मीडिया पर खूब ट्रोल भी हुए. वजह साफ थी कि प्रदेश में कोरोना से निपटने के लिए स्वास्थ्य सुविधाओं का गुणगान तो करते रहे,मगर खुद के कोरोना पाज़ीटिव होने पर कोई सरकारी अस्पताल उन्हें इलाज के लिए उपयुक्त नहीं लगा.
जमीनी हकीकत यही है कि चार महिने से भी अधिक समय बीतने के बाद पूरे प्रदेश में कोरोना की जंग सुबिधाओं की बजाय भाषणों से लड़ी जा रही है. आज भी कोविड टेस्ट के लिए पर्याप्त संख्या में किट या मशीन और वेंटिलेटर की कमी से अस्पताल जूझ रहे हैं.
डब्लूएचओ की नई एडवायजरी में कोरोना के लक्षण पाये गए व्यक्ति को कम से कम 10 दिन की गहन चिकित्सकीय देखभाल में रखा जाता है. इस पीरियड में कोविड पाज़ीटिव को किसी से मिलने और छूने की इजाजत नहीं होती है. यैसे में सियासी हलकों में यह चर्चा भी जोरों पर थी कि आगामी दिनों तक मध्यप्रदेश के शासन प्रशासन की जिम्मेदारी कौन संभालेगा?वह भी जब प्रदेश में पूर्णकालिक राज्यपाल भी नहीं है.मुख्यमंत्री को कई अहम् दस्तावेजी फैसलों पर दस्तखत करने होते हैं.कई गोपनीय प्रतिवेदनों पर टीप लिखनी होती है,साथ ही कानून व्यवस्था के मामले पर हस्तक्षेप करना होता है.
कार्यवाहक मुख्यमंत्री बनने के सपने टूटे
कोरोना बीमारी से संक्रमित हुए शिवराज सिंह चौहान देश के पहले मुख्यमंत्री हैं,लिहाजा प्रदेश में भाजपा के कुछ नेता कार्यवाहक मुख्यमंत्री बनने के सपने भी देखने लगे थे. सत्ता के खेल के चतुर खिलाड़ी और अपने आपको जनता का मामा कहने वाले शिवराज सिंह चौहान ने पिछले 13 वर्षों के दौरान भी देश से बाहर रहने पर भी किसी भी अपने सहयोगियों को कार्यवाहक मुख्यमंत्री बनाने की मुसीबत मोल नही ली थी. कांग्रेस के हाथों से सत्ता छीनने वाले शिवराज को इस वार मुख्यमंत्री बनने से लेकर , मंत्री मंडल के गठन और विभागों के बंटवारे में भारी अंतर्विरोध और सिंधिया खेमे का दबाव झेलना पड़ा है.
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प्रदेश के एक कद्दावर नेता नरोत्तम मिश्रा, नरेंद्र सिंह तोमर ने भी मुख्यमंत्री बनने लाबिंग की थी. यही कारण है कि शिवराज अपने इसी डर की वजह से ही किसी को कार्यवाहक मुख्यमंत्री नहीं बनाना चाहते.वैसे भी उमा भारती की गद्दी को बाबूलाल गौर को सौंपने के बाद हुए राजनैतिक बदलाव के घटनाक्रम से शिवराज भी वाकिफ हैं,शायद इसी नियति को टालने वे चूकने के मूड में दिखाई नहीं दिखाई दे रहे. तभी तो चिरायु हास्पिटल से भी अपना कामकाज संभाल रहे हैं. उन्होंने अस्पताल से ही आला अधिकारियों के साथ नई शिक्षा नीति की समीक्षा भी कर ली .मौजूदा दौर में मध्यप्रदेश में जिस तरह की राजनीतिक उठा-पटक और विधायकों की अदला-बदली हो रही है,यैसे में सत्ता के लोभी नेताओं से घिरे शिवराज को कोविड 19 से बड़ा खतरा अपनों से ही लग रहा है.इसलिए कोरोना को भूलकर वे मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नजर गड़ाए अपने को फिटफाट साबित करने में लगे हुए हैं.