वर्तमान सरकार की नीतियों से सब गङबङ हो गया, अब तो ऐसा ही लगता है. पहले नोटबंदी ने आम लोगों से ले कर गृहिणियों तक को परेशान किया और फिर जीएसटी के मकङजाल में व्यापारी ऐसे उलझे कि उन्हें इस कानून को समझने में वैसा ही लगा जैसे किसी क्रिकेट प्रेमियों को डकवर्डलुइस के नियम को समझने में लगता है.

नोटबंदी ने मारा कोरोना ने रूलाया

एक के बाद एक लागू कानूनों से पहले सरकार ने मौकड्रिल करना जरूरी नहीं समझा. परिणाम यह हुआ कि देश में असमंजस की स्थिति बन गई. नोटबंदी के समय तो आलम यह था कि लोग अपने ही कमाए पैसे मनमुताबिक निकाल नहीं सकते थे.

तब आर्थिक विशेषज्ञों ने भी माना था कि आगे चल कर देश को इस से नुकसान होगा. निवेश कम होंगे तो छोटे और मंझोले व्यापार पर इस का तगङा असर पङेगा. और हुआ भी यही. छोटेछोटे उद्योगधंधे बंद हो गए या बंदी के कगार पर पहुंच गए. बेरोजगारी चरम पर पहुंच गई.

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मगर उधर सरकार कोई ठोस नतीजों पर पहुंचने की बजाय धार्मिक स्थलों, मूर्तियों और स्टैचू बनाने में व्यस्त रही.

परिणाम यह हुआ कि निवेश कम होते गए, किसानों को प्रोत्साहन न मिलने से वे खेती के प्रति भी उदासीन होते गए और रहीसही कसर अब कोरोना ने पूरी कर दी.

कोरोना वायरस के बीच देश में लागू लौकडाउन भी सरकारी उदासीनता की भेंट चढ़ गया और इस से सब से अधिक वही प्रभावित हुए जो देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ कहे जाते हैं.

विश्व बैंक की रिपोर्ट और भारतीय अर्थव्यवस्था

सरकारी उदासीनता और लापरवाही का नतीजा भारत की अर्थव्यवस्था पर तेजी से पङा. हाल के दिनों में छोटेबङे उद्योगधंधे या तो बंद हो गए या बंदी के कगार पर जा पहुंचे. लाखों नौकरियां खत्म हो गईं. और अब तो भारतीय अर्थव्यवस्था को ले कर विश्व बैंक ने जो कहा है वह चिंता बढ़ाने वाली बात है.

विश्व बैंक ने हाल ही में यह कहा है कि कोरोना संकट से दक्षिण एशिया के 8 देशों की वृद्धि दर सब से ज्यादा प्रभावित हो सकती है, जिस में भारत भी एक है.

40 सालों में सब से खराब स्थिति

विश्व बैंक का यह कहना कि भारत और अन्य दक्षिण एशियाई देश 40 सालों में सब से खराब आर्थिक दौर में हैं, तो जाहिर है आगे हालात और भी बदतर दौर में बीतेंगे.

‘दक्षिण एशिया की अर्थव्यवस्था पर ताजा अनुमान : कोविड-19 का प्रभाव’ रिपोर्ट पेश करते हुए विश्व बैंक ने कहा है कि भारत समेत दक्षिण एशियाई देशों में 40 सालों में सब से खराब आर्थिक विकास दर दर्ज की जा सकती है. दक्षिण एशिया के क्षेत्र, जिन में 8 देश शामिल हैं, विश्व बैंक का अनुमान है कि उन की अर्थव्यवस्था 1.8% से लेकर 2.8% की दर से बढ़ेगी जबकि मात्र 6 महीने पहले विश्व बैंक ने 6.3% वृद्धि दर का अनुमान लगाया था.

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भारत के बारे में विश्व बैंक का अनुमान है कि चालू वित्त वर्ष में यहां वृद्धि दर 1.5% से लेकर 2.8% तक रहेगी.

विश्व बैंक की रिपोर्ट में कहा गया कि 2019 के आखिर में जो हरे निशान के संकेत दिख रहे थे उसे वैश्विक संकट के नकारात्मक प्रभावों ने निगल लिया है.

जाहिर है, इस से आने वाले दिनों में हालात बिगङेंगे ही. उधर सरकार के पास इस से निबटने और आर्थिक प्रगति के अवसर को आगे बढ़ाने में भयंकर दिक्कतों का सामने करना पङ सकता है.

मुश्किल में कारोबारी और मजदूर

कोरोना वायरस के फैलाव को रोकने के उपायों के कारण पूरे दक्षिण एशिया में सप्लाई चैन प्रभावित हुई, तो कामगाज ठप्प पङ गए.

सरकार की खामियों की वजहों से लौकडाउन भी पूरी तरह असफल हो गया. देश में फिलहाल 2 लाख से अधिक कोरोना पीङितों की संख्या है और इस का फैलाव भी अब तेजी से होने लगा है.

उधर भारत में तालाबंदी के कारण सवा सौ करोङ लोग घरों में बंद हैं, करोङों लोग बिना काम के हैं और हालात इतने बदतर होते जा रहे कि कुछ बाजारों के खुलने के बावजूद कारोबार चौपट है. इस से बड़े और छोटे कारोबार बेहद प्रभावित हैं.

शहरों में रोजीरोटी मिलनी मुश्किल हो गई तो लाखों प्रवासी मजदूर शहरों से अपने गांवों को लौट चुके हैं और यह पलायन बदस्तूर जारी है.

विश्व बैंक ने किया आगाह

रिपोर्ट में यह आगाह किया गया है कि यह राष्ट्रीय तालाबंदी आगे बढ़ती है तो पूरा क्षेत्र आर्थिक दबाव महसूस करेगा. अल्पकालिक आर्थिक मुश्किलों को कम करने के लिए विश्व बैंक ने क्षेत्र के देशों से बेरोजगार प्रवासी श्रमिकों का समर्थन करने के लिए वित्तीय सहायता देने और व्यापारियों और व्यक्तियों को ऋण राहत देने को कहा है.

मगर भारत में जहां की राजनीति हर कामों पर भारी पङती है, वहां लोगों व व्यापारियों को आसानी से ॠण मिल जाएगा, इस में संदेह ही है. भारतीय बैंक की हालत पहले ही बङेबङे घोटालों की वजह से पतली है. भ्रस्टाचार ऊपर से नीचे तक है और यह भी सरकार की नीतियों को आगे ले जाने में बाधक है.

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उधर, सरकार के पास कोई माकूल रोडमैप भी नहीं है जिन से बहुत जल्दी देश में आर्थिक असमानता को दूर किया जा सके. सरकार के अधिकतर सांसद व मंत्री एसी कमरों में बैठ कर सरकार चलाना चाहते हैं.

जनता सरकार के कामकाज से संतुष्ट नहीं दिखती. पर जैसाकि हमेशा से होता आया है, वही आगे भी होगा. देश को धर्म और जाति पर बांटा जाएगा फिर वोट काटे जाएंगे.

जनता जनार्दन क्या करे, सरकार के पास कहने के लिए तो है ही- प्रभु के श्रीचरणों में रहो, वही बेङापार करेंगे. यानी अब तो सिर्फ चंदन ही घिसते रहो…

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