लौकडाउन के चलते देश के बड़े शहरों से अपने गांव लौट रहे मजदूरों में सब से ज्यादा मुसीबतें  महिला मजदूरों को झेलना पड़ी हैं. दुधमुंहे बच्चों को अपनी छाती से चिपकाए चुभती धूप में महिलाएं यही आस लिए पैदल चल रही हैं कि जल्द अपने घर पहुंच सकें. सरकारों की बद‌इंतजामी और अनदेखी से इन महिला मजदूरों का दर्द तब और बढ़ जाता है जब उन्हें स्वास्थ्य सुविधाएं तक नहीं मिलती हैं.

14 म‌ई, 2020 को मध्य प्रदेश में गर्भवती मजदूर महिलाओं के प्रसव की घटनाओं ने तो सरकारी योजनाओं की पोल खोल कर रख दी. गुजरात से बस में आई बड़वानी जिले की सुस्तीखेड़ा गांव की महिला मजदूर को प्रसव पीड़ा होने पर एंबुलैंस और जननी सुरक्षा ऐक्सप्रैस वाहन का इंतजाम तक न हो सका. तहसील के एसडीएम की दरियादिली ने अपने वाहन से महिला को अस्पताल तो भेज दिया, पर दर्द से कराहती महिला को समय पर डाक्टर न मिलने से प्रसव वाहन में ही हो गया.

इसी तरह राजगढ़ जिले के ब्यावरा में मुंबई से उत्तर प्रदेश जा रही एक 30 साल की गर्भवती महिला कौशल्या ने ट्रक में ही बच्चे को जन्म दे दिया. उत्तर प्रदेश के संत कबीर नगर जिला बस्ती के मनोज कुमार मुंबई से पैदल तो निकल पड़े, लेकिन रास्ते में गर्भवती पत्नी की हालत देख कर ट्रक में किराया दे कर चले तो मध्य प्रदेश के ब्यावरा में दर्द बढ़ा तो ट्रक में ही महिला की डिलीवरी हो गई. जैसेतैसे मनोज पत्नी को बच्चे समेत अस्पताल  ले कर पहुंचे, लेकिन अस्पताल में कोई खास इंतजाम न होने से उन्हें  राजगढ़ के जिला अस्पताल रैफर किया गया.

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