लेखक- रामचरन हर्षाना

बड़े शहरों में ऐसा बहुत कम होता है कि कोई आसपास रह रहे लोगों पर अपनी निगाहें जमाए रखे और कोई क्या कर रहा है, कहां जा रहा है, किस से मिल रहा है, यह सब एक खुफिया जासूस की तरह अपनी पैनी नजरों से देखता रहे.

21वीं सदी की ऐसी दौड़धूप से भरी जिंदगी में भला किसे ऐसा वक्त मिलता होगा? फिर ऐसी हरकत करने से कोई फायदा भी तो नहीं है. ख्वाहमख्वाह समय की बरबादी और दिमाग को परेशान करना. बड़े शहरों के बुद्धिमान लोग ऐसा कभी नहीं करेंगे, लेकिन वहां सभी बुद्धिमान ही रहते हों, ऐसा तो कभी नहीं होगा. वहां कुछ अक्ल के कच्चे और सनकी लोग आज भी मौजूद हैं.

इस कहानी का हीरो भी कुछ ऐसी ही सनक से भरा हुआ था. उस का बिहारी दास नाम था. फिर उसे काम भी अपनी पसंद का ही मिला था. उसे एक कुरियर कंपनी में डिलीवरी बौय की नौकरी मिल गई थी, जिस वजह से उसे इधरउधर भटकने का मौका मिलता था. यह काम वह बड़े जोश से करता था. फिर रोजाना 100-150 लिफाफे 2-3 घंटे में ही उन के पते पर पहुंचा कर वह अपना काम पूरा कर डालता था. इस के बाद सारा दिन उसे कुछ नहीं करना होता था.

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तब वह भला क्या करता? बारीबारी से एक पान की दुकान और ट्रैवल एजेंसी की दुकान पर बैठ कर अपना टाइमपास करता रहता था. उस का घर दसमंजिला बिल्डिंग के एक फ्लैट में तीसरी मंजिल पर था. उस बिल्डिंग में रह रहे सभी लोगों को वह करीबकरीब जानता था. हां, यह बात अलग थी कि सभी से वह गहरी पहचान नहीं बना पाया था.

उसी बिल्डिंग में एक अधेड़ उम्र के शख्स तिवारीजी रहते थे, जो किसी बैंक में काम करते थे और अकेले रहते थे. बिहारी दास ने अपनी कुछ घंटों की मुलाकात में यह जान लिया था कि उन की पत्नी की उन से बनती नहीं थी और दोनों अलग रह रहे थे.

वैसे तो वे अकेले ही रहते थे, मगर उन के घर पर एक खूबसूरत लड़की को बिहारी दास ने कई बार आतेजाते देखा था. फिर जब उन से पूछा गया कि वह कौन है, तब उन्होंने कुछ अनमने भाव से कह दिया था कि वह उन की भतीजी है.

मगर, बिहारी दास की पैनी नजर ने उन के झूठ को पहचान लिया था. बाद में तिवारीजी ने बिहारी दास से बात करना छोड़ दिया था, लेकिन बिहारी दास ने ठान लिया था कि वह तिवारीजी का भांड़ा जरूर फोड़ कर रहेगा.

जैसा कि बड़े शहरों में होना लाजिमी है, बिहारी दास की बिल्डिंग में हलकेफुलके गैरकानूनी काम भी होते थे, जिन के बारे में उसे सब पता था. 10वीं मंजिल पर एक मसाज पार्लर चल रहा था, जहां लड़केलड़कियों की भीड़ लगी रहती थी. वहां मसाज के बहाने कुछ और ही चल रहा था.

हालांकि कुछ महीने पहले बिहारी दास ने फोन कर के वहां पुलिस भी बुला ली थी, जिस ने अचानक छापा मार कर मसाज पार्लर के मालिक सज्जन सिंह के साथ पैसों का गुपचुप लेनदेन किया और वहां से चल दी थी.

सज्जन सिंह को कतई पता नहीं चला कि आखिर पुलिस को सूचना किस ने दी थी. बिहारी दास मन ही मन खुश हो रहा था.

जैसा कि बिहारी दास का स्वभाव था, वह हमेशा ध्यान रखता कि बिल्डिंग के फ्लैट में कौन आजा रहा है, कौन सा फ्लैट खाली हुआ और किस ने खरीदा या कौन नया किराएदार आया है या आई है और किराएदार क्या करते हैं. यह सब वह अपनेआप चालाकी से जान लेता था.

अपनी इस हरकत के चलते बिहारी दास अकसर घर से बाहर रहता था और किसी अमीर कारोबारी की तरह देरी से घर लौटता था.

बिहारी दास की पत्नी राधिका ने उस से एतराज भी जताया था, ‘‘आखिर क्या करते रहते हो सारा दिन? रात को जल्दी क्यों नहीं लौटते?’’

‘‘शहर में अगर टिकना हो तो हमेशा चौकन्ना रहना पड़ता है,’’ बिहारी दास फख्र से बताता था.

बिहारी दास की पत्नी राधिका खूबसूरत थी, मगर उसे शायद इस का एहसास न था. उस की नजर हमेशा बाहर आजा रही लड़कियों पर टिकी रहती. कई बार तो सड़क के किनारे चलतेचलते अपने मोबाइल फोन पर बात कर रही किसी लड़की की बातों को वह पास से गुजरते हुए सुनने की कोशिश करता. वह प्यार से बात कर रही है या नाराज हो कर, यह पकड़ने की कोशिश करता.

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कई बार तो बिहारी दास लड़की से कुछ ही दूरी पर खड़ा रह जाता और जब तक वह बातें पूरी न कर लेती, वह वहीं खड़ा रहता. फिर अगर लड़की गुस्से में अपना मोबाइल फोन बंद कर लेती तो वह मन ही मन हंस पड़ता, ‘बेचारी… अपने यार से खफा है.’

तिवारीजी पर अब बिहारी दास अपनी पैनी आंखें गड़ाए हुए था. बिल्डिंग में जैसे ही वह उस लड़की को देखता, उस के पीछे चल देता और देखता कि वह तिवारीजी के घर ही गई है या नहीं. फिर वह बिल्डिंग के सामने पान की दुकान पर बैठ कर उस लड़की के बाहर निकलने का इंतजार करता रहता. जब वह चली जाती, तब वह तिवारीजी के घर किसी बहाने पहुंच जाता.

‘‘आप के पास क्या 2,000 रुपए के खुले हैं?’’

जब तिवारीजी उसे खुले पैसे दे देते, तो वह बातचीत शुरू कर देता था.

‘‘वह मिस जो आप के यहां आई थी, उस की स्कूटी स्टार्ट नहीं हो रही थी. तुरंत सुखबीर गैराज वाले को बुला लिया और उस ने ठीक करा दी. क्या वह बहुत दूर रहती है?’’

‘‘हां, रहती तो दूर है, मगर शहर में दूर क्या और नजदीक क्या? स्कूटी तो हर किसी के लिए जरूरी है,’’ तिवारीजी ने कुछ नाराजगी से बोला. इस पर बिहारी दास खिसिया कर रह गया.

एक दिन शाम को दीपक की पान की दुकान पर बैठे बिहारी दास ने उसी लड़की को किसी लड़के के साथ बिल्डिंग से निकलते हुए देखा.

‘‘अरे, इस के साथ यह लड़का कौन हैं…’’ बिहारी दास के मुंह से अचानक ही यह सवाल निकल पड़ा.

‘‘ये तो रोज ही साथसाथ निकलते हैं…’’ पान वाले दीपक ने उन की ओर देखते हुए कहा, ‘‘मैं इन्हें हरदम इसी वक्त देखता हूं.’’

‘‘यह तो तिवारीजी की भतीजी है,’’ बिहारी दास ने उन्हीं दोनों पर नजर जमाए हुए शक जाहिर किया, ‘‘कहीं तिवारीजी कोई खेल तो नहीं खेल रहे?’’

बिहारी दास ने मन में ठान लिया कि वह तिवारीजी की भतीजी की सचाई का पता लगा कर ही रहेगा.

‘‘देख दीपक…’’ बिहारी दास ने गंभीरता से कहा, ‘‘आइंदा तू जब भी इन दोनों को यहां आते या निकलते देखे, तो फौरन मुझे बता देना. मेरा फोन नंबर है न तेरे पास?’’

दीपक ने सहयोग देने के लिए हामी भरी.

अगले ही दिन रात को अपने दोस्तों के साथ जब बिहारी दास एक रैस्टोरैंट में खाना खा रहा था कि तभी दीपक का फोन आ गया.

‘दासजी, जल्दी आइए. वह लड़की किसी के साथ अभीअभी बिल्डिंग के अंदर गई है.’

चूंकि बिहारी दास खाना अधूरा छोड़ कर नहीं निकल सकता था, इसलिए उसे अपने घर वापस आतेआते एकाध घंटा बीत गया. वह जल्दी ही लिफ्ट से सीधा 5वीं मंजिल पहुंच गया, जहां तिवारीजी का फ्लैट था. वह किसी बहाने तिवारीजी के फ्लैट में घुस कर उस की भतीजी और उस लड़के को रंगे हाथ पकड़ना चाहता था.

बिहारी दास जल्दीजल्दी फर्लांग भरते हुए फ्लैट के दरवाजे पर पहुंचा और उस ने सीधे ही डोरबैल बजाई.

कुछ देर बाद दरवाजा खुला और वह लड़की, जिसे तिवारीजी अपनी भतीजी कह रहे थे, बिहारी दास के सामने खड़ी थी.

‘‘जी, आप को किस से मिलना है?’’

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बिहारी दास को देख कर वह लड़की हैरान थी.

‘‘जी, मैं… तिवारीजी का पड़ोसी हूं. उन से मिलना था,’’ बिहारी दास कुछ सहम कर बोला, फिर उस ने अंदर झांक कर देख लिया. वह लड़का सोफे पर लेटे हुए टीवी देख रहा था.

‘‘आप… आप दास बाबू तो नहीं?’’ वह लड़की घूर कर बिहारी दास के चेहरे को देख रही थी, ‘‘तिवारी अंकल आप का जिक्र करते रहते हैं. आप तीसरी मंजिल पर रहते हैं न?’’

‘‘जी, बिलकुल,’’ बिहारी दास को एक झटका सा लगा, ‘क्या तिवारी ने इसे सबकुछ बता दिया है?’ वह सोचने लगा.

‘‘आप की बीवी का नाम राधिका है न?’’ कह कर वह लड़की मुसकरा दी, ‘‘अंकल आप के यहां ही गए हैं. कहते हैं, राधिका चाय अच्छी बनाती हैं. मैं पी कर आता हूं.

‘‘मैं रोजाना शाम को उन के लिए खाना बनाने अपने मंगेतर के साथ आती हूं. वे अभी आप ही के यहां गए होंगे. आप अंदर आइए न,’’ वह लड़की बड़ी मीठी आवाज में बोल कर उसे अंदर आने की गुजारिश करने लगी.

लेकिन, बिहारी दास को बिजली सा झटका लगा, ‘तिवारीजी और मेरे घर… वह भी मेरी गैरहाजिरी में…’

एक ही पल में बिहारी दास पर मानो पहाड़ सा टूट पड़ा. वह उलटे पैर वहां से निकल कर सीधा लिफ्ट से उतर कर अपने फ्लैट की तरफ दौड़ा. उस के दिमाग को अनेकानेक शक ने घेर लिया. उसे लगा कि अपना खेल खत्म होने जा रहा है. उस का पड़ोसी तिवारी उस से कहीं गुना ज्यादा चालाक निकला.

वह हरगिज भरोसे के लायक शख्स नहीं था, फिर बिहारी दास की बीवी राधिका तो बेचारी भोली थी. कहीं कोई अनहोनी तो नहीं हो गई.

बिहारी दास के पैर रास्ते में ही भारीपन महसूस करने लगे. अब वह धीरेधीरे सहम कर अपने फ्लैट के दरवाजे तक पहुंचा ही था कि तुरंत दरवाजा खुला और तिवारीजी हंसते हुए बाहर निकले.

‘‘अरे, दासजी आप… आप तो हमेशा रात को देरी से लौटते हैं. आज जल्दी लौट आए,’’ फिर तीर सा पैना व्यंग्य कसते हुए तिवारीजी बोले, ‘‘राधिका भाभीजी चाय बढि़या बनाती हैं. अब तो हमें उस की आदत सी हो गई है.’’

तिवारीजी चल पड़े, मगर बिहारी दास को लगा मानो उस के पैर तले जमीन सरकने लगी थी. अपने घर में घुसते ही वह बैठक में रखे सोफे पर ढेर हो गया.

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