लेखक- रामकिशोर दयाराम पंवार
केंद्र की सरकार ने सर्वशिक्षा अभियान को बढ़ावा देने के लिए साल 2006-07 में कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय योजना के निर्देशन में देशभर में 750 आवासीय स्कूलों को खोलना शुरू किया था. इन विद्यालयों में कम से कम 75 फीसदी सीटें अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति, पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यक वर्गों की बालिकाओं के लिए आरक्षित हैं. अन्य में 25 फीसदी सीटें गरीबी रेखा के नीचे गुजरबसर करने वाले परिवार की बालिकाओं के लिए आरक्षित की गई हैं.
‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ योजना को हकीकत में बदलने के लिए कस्तूरबा गांधी बालिका आवासीय विद्यालय में अब 12वीं तक की पढ़ाई होती है. इस में केंद्र सरकार 75 फीसदी और राज्य सरकार 25 फीसदी राशि का योगदान कर रही है.
मध्य प्रदेश के 47 जिलों के तकरीबन 207 विकास खंडों में 100, 150, 200 सीट वाले बालिका छात्रावासों को चलाया जा रहा है. इन सभी छात्रावासों में सहायक राज्य शिक्षा मिशन द्वारा वार्डन, लेखपाल की जिला स्तर पर नियुक्ति की गई, जो जिला स्तरीय नियुक्ति समिति द्वारा की जानी है, पर प्रदेश में कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद 3 साल से ज्यादा कार्यकाल पूरा कर लेने वाली वार्डनों को हटा कर उन की जगह समाचारपत्रों में विज्ञापन जारी कर नई नियुक्ति के आवेदन मंगा कर उन का योग्यता के आधार पर चयन किया जाना था, लेकिन मध्य प्रदेश के अकेले बैतूल जिले में 4 कस्तूरबा गांधी बालिका छात्रावासों की वार्डनों की नियुक्ति के लिए की गई विधायकों की सिफारिश गोरखधंधे का रूप ले गई.
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