देशभर में नागरिकता कानून में बदलाव से अफरातफरी मची हुई है. जिस वाहवाही की उम्मीद भाजपा सरकार और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कर रहा था वह उसे नहीं मिली. यह बदलाव मोटेतौर पर पाकिस्तान, बंगलादेश व अफगानिस्तान से आने वाले हिंदुओं को जल्दी भारतीय नागरिकता देने के लिए बना है. इन देशों में से बंगलादेश से तो हिंदू आते रहे हैं, पर पाकिस्तान व अफगानिस्तान से नाम के हिंदू ही आते हैं.
भाजपा और भगवा जमात की सोच यह है कि पाकिस्तान का नाम ले कर कभी भी इस देश के लोगों को बहकाया जा सकता है. पिछली मई में हुए चुनावों में भाजपा ने पाकिस्तान को ही निशाने पर ले कर बात की थी. बहुत पहले जब इंदिरा गांधी का सिंहासन डोल रहा था तब भी उन्होंने विदेशी हाथ का शिगूफा छेड़ा था और जिस का मतलब रूस या अमेरिका से नहीं था, पाकिस्तान से था. भाजपा कांग्रेस की कारगुजारियों की एकएक बात बारीकी से बहसों में दोहराती है पर वह विदेशी हाथ की बात नहीं करती, क्योंकि आज भाजपा यही कर रही है.
इस बदले कानून में पाकिस्तान का नाम इसलिए लिया गया है कि भारत का हिंदू वोटर भुलावे में रहे कि पाकिस्तान में तो हिंदुओं के साथ बहुत बुरा हो रहा है और वे डर कर भाग रहे हैं. बदले में वे अगर भारतीय मुसलमान को सताएं तो यह सही ही होगा.
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इस प्रकार का बदले का रिवाज सदियों से चल रहा है. दूर कहीं एक धर्म या जाति के लोग कुछ करें तो उन का बदला कहीं और निर्दोषों से लेना आदमी की आदत है. पुलिस ऐसे मामलों में कुछ नहीं करती, यह तो सब जानते हैं. इस नए कानून से एक हथियार हरेक आम हिंदू को मिल जाएगा कि वह किसी भी मुसलिम से पूछताछ करने लगे चाहे उस के पास कोई अधिकार है या नहीं.
बजाय मिल कर देश को बनाने के अब बिगाड़ने का काम शुरू हो गया है. देश की माली हालत खराब है. मंदी छाई हुई है. बिक्री घट रही है. बेरोजगारी बढ़ रही है. प्याज तक के दाम आसमान पर हैं, पर भाजपा सरकार को कश्मीर के अनुच्छेद 370, तीन तलाक, नागरिकता बिल, राम मंदिर, नमामि गंगे, चारधाम, पटेल की मूर्ति, रामसीता की मूर्ति की पड़ी है.
देश में अगर कुछ हो रहा है तो पुलिस का काम हो रहा है. कश्मीर हो, उत्तरपूर्व हो, असम हो, हैदराबाद में रेप हो, उन्नाव में लड़कियों को जलाना हो, पुलिस ही पुलिस दिखती है. लगता है 2014 और 2019 में हम ने देश को बनाने के लिए नहीं देश में पुलिस राज बनाने के लिए सरकारें चुनी थीं.
नागरिकता कानून में बदलाव आम आदमी को देगा कुछ नहीं, पर बेबात का संकट पैदा कर देगा. लंगड़े देश की बैसाखी भी तोड़ दी जाएगी. इस में सब से ज्यादा बुरा उन किसानों, कारखानों के मजदूरों, हुनरमंद लोगों, औरतों, जवानों का होगा जिन का कल काला होता नजर आ रहा है.
अगर कुछ चमचमा रहा है तो मंदिर और पूजापाठ का धंधा जिस में पहले केवल ऊंची जातियों के लोग जाते थे, अब पिछड़े भी धकेले जा रहे हैं और वे कामधंधे छोड़ कर अलख जगाने में लग गए हैं.
मौत के मकान
दिल्ली में 45 लोगों की संकरी गलियों में बने गोदाम में आग लगने से हुई मौतों पर भाजपा और आम आदमी पार्टी एकदूसरे और गोदाम मालिकों पर चाहे जितनी तूतूमैंमैं कर लें, सच बात तो यह है कि दिल्ली जैसे शहर में मजदूरों के पास रहने की जगह तक नहीं है और उन्हें संकरी गलियों में एकदूसरे से सटे बने मकानों में जो गोदामों की तरह इस्तेमाल होते हैं, काम भी करना होता है और वहीं रहना होता है. उन की जिंदगी उन चूजों की तरह होती है जिन्हें आटोरिकशा, ट्रकों पर लाद कर पौल्ट्री फार्म से मंडियों तक ले जाया जाता है और फिर काट कर खा लिया जाता है.
ये 45 लोग खुशी से उस गोदाम में नहीं रह रहे थे जहां पुरानी वायरिंग थी, सामान भरा था, छोटी खिड़कियां थीं, गुसलखाने नहीं थे, शौच का आधाअधूरा इंतजाम था. वे गुलाम भी नहीं थे. वे आजाद थे और कहीं भी जा कर रह सकते थे, पर उन्हें वहीं रहना पसंद आया, क्योंकि छत भी मिली, रोजाना रोजगार भी मिला.
देश की 60-70 फीसदी आबादी ऐसे ही रह रही है. यह वह आबादी है जो अछूत नहीं मानी जाती. ये लोग पिछड़ी जातियों के हैं पर आज 70 साल की आजादी और 150 साल की तकनीक के बावजूद जंगलों में रहने की तरह रह रहे हैं. अब जंगल शहरी हो गए हैं, उतने ही खतरनाक.
उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड से आए ये मजदूर 500-600 रुपए की दिहाड़ी में इतना ही कमा पाते हैं कि अपना पेट भर सकें, कुछ पैसे घर भेज सकें. ये अपना मकान अलग ले कर नहीं रह सकते, आनेजाने का खर्च नहीं उठा सकते. देशभर में फैली भयंकर बेकारी, गरीबी, अनपढ़ता उन की इस हालत के लिए जिम्मेदार है, न भाजपा की नगरनिगम, न अरविंद केजरीवाल की दिल्ली सरकार, न पिछली सरकारें और न ही गोदाम मालिक.
इन गोदामनुमा फैक्टरियों में स्कूल बैग बनते हैं, कपड़े सिले जाते हैं, बाइडिंग होती है और यहीं कारीगर सो जाते हैं, क्योंकि वे कहीं और नहीं जा सकते.
यह देश के कर्णधारों की गलती है, अमीर और गरीब के बीच की बढ़ती खाई का नतीजा है. पूरे देश ने किस्मत और पूजापाठ पर भरोसा करना शुरू कर दिया है, मेहनत पर नहीं. देश में गरीबों को, पिछड़ों को, दलितों को पिछले जन्मों के पापों का फल भोगना माना जा रहा है. घंटेघडि़याल बजाए जा रहे हैं, मंदिर बनाए जा रहे हैं, फैक्टरियां नहीं, मजदूरों के घर नहीं. इसलिए जो हुआ होना ही था, होता रहेगा, क्योंकि देश की हालत दिन ब दिन बिगड़ रही है, सुधर नहीं रही.
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