अगर मेयर बन जाते, विधायक बन जाते या फिर सांसद बन जाते तो सारे दु:ख मिट जाते.जीवन तर जाता.मगर किस्मत में शायद दु:खी रहना ही बदा है.

सुबह सवेरे सामना हो गया. चेहरे पर दुख के बादल उमड़ घुमड़ रहे थे. हमें देखा तो चेहरा और भी सुकुड़ गया बोले, भैया, रोहरानंद! मेरा देश गर्त में जा रहा है ?

रोहरानंद को सहानुभूति उमड़ी-” क्यों भैय्या! क्या हो गया, सब कुछ तो ठीक-ठाक नजर आता है।आखिर क्या हो गया ?”

दु:खी आत्मा मानो तड़फ उठी-” क्या हो गया ? क्या तुम्हें कुछ भी गलत  दृष्टिगोचर नहीं हो रहा ??”

रोहरानंद ने कहा -” ऐसा तो चलता रहता है और ऐसा ही चलता रहेगा .हम जैसे आम आदमी को भला क्या विशिष्ट दृष्टिगोचर होने लगेगा.”

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दु:खी आत्मा ने दु:खी स्वर में कहा- “अगरचे, हम महापौर होते, सांसद होते तो, यह सब कतई नहीं होता जो शहर में इन दिनों हो रहा है.”

रोहरानंद – “क्या अनर्थकारी हुआ है जरा हम भी सुने.”

दु:खी आत्मा- “अगरचे हम महापौर बनते तो शहर का कायाकल्प हो गया होता. विधायक बनते, विधानसभा क्षेत्र का चेहरा बदल देते और अगर सांसद बनते तो संसदीय क्षेत्र का कायाकल्प हो जाता.”

रोहरानंद –  “आप दूसरों को भी  समय  दीजिए, अभी समय ही कितना व्यतीत हुआ है.”

दुखी आत्मा -” एक एक दिन बहुत होता है ,इतना समय क्या कम है.हमें तो एक बार बना दीजिए 4 दिन मे सब ठीक कर कर देंगे.”

रोहरानंद -” अच्छा, 4 दिन क्या 100 दिन  में क्या कुछ चमत्कार कर दिखाते .”

दुखी आत्मा – “देखो!सच तो यह है कि सबसे पहले मैं स्वयं अपना दु:ख दूर करता. चुनाव में एक करोड़ रुपए बहा डाला, उसकी रिकवरी करता.”

रोहरानंद – “अर्थात स्वयं लाल होते, फिर जनता को लाल करते…

दु:खी आत्मा -” भैय्या! क्या बताएं तुम अपने आदमी हो  तुमसे क्या छिपाना. इन दो वर्षों में ही मैं स्वयं सुखी हो ही जाता अपने खासुल खास समर्थकों को भी सुखी कर डालता.तुम्हें भी मालामाल कर डालता.”

रोहरानंद- ( हंसते हुए )” तो फिर आपको महापौर पर विधायक पर बाण छोड़ने का क्या अधिकार है. शहर की किस्मत अच्छी है जो तुम न महापौर हुए. ना विधायक बने.”

दु:खी आत्मा – “नहीं, नहीं ,यह नगर का दुर्भाग्य है भाई . मैं ना दु:खी रहता, न किसी को दु:खी रहने देता.मैं स्वयं तो दोनों हाथों से रुपए समेटता, अपने समर्थकों को भी निहाल कर देता.”

रोहरानंद- “मुझे तो आपकी बात पर राई भर भी एतबार नहीं है, हां अगर जीत जाते तो खुद मालामाल अवश्य हो जाते.”

दु:खी आत्मा -” नहीं, नहीं , मुझ पर विश्वास करो. मैं भ्रष्टाचार करता और जी भर कर करता और सभी नगरवासियों को अपना पिछलग्गू बनाकर दिखा देता.”

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रोहरानंद -” भैय्या! जनता समर्थक यूं ही नहीं बनती, उसके लिए नगर का विकास करना पड़ता है. काम करना पड़ता है. महापौर का दायित्व है नगर की साफ-सफाई,सड़कों की मरम्मत सौन्दरीकरण,जल पानी इत्यादि का ध्यान रखें. जनता तब पिछलग्गू होती है.”

दुखी आत्मा -” जनता यह सब नहीं देखती, जनता सिर्फ मुस्कुराता चेहरा देखती है.तब मैं सदा मुस्कुराता रहता. जनता मुस्कुराता देख स्वयं  मुस्कुराती…”

रोहरानंद – “मगर, तुम्हें देखकर तो कोई भी नहीं कह सकता कि तुमने जिंदगी में कभी मुस्कुराया भी होगा. जब  देखो तुम्हारा मुंह लटका रहता है.

दुखी आत्मा -” ( आर्त स्वर में ) मैं पहले ऐसा नहीं था.”

रोहरानंद – “तुम्हें देख कर लगता है तुम जन्मजात दुखी हो.

दुखी आत्मा -” नहीं, नहीं, ऐसा नहीं है . पहले मैं भी एक मस्तमौला और खुशगवार मौसम की भांति खुशनुमा इसां था .”

रोहरानंद -” अच्छा, तो यह पराजित होने के पश्चात के हालात हैं…”

दुखी आत्मा- “( गहरी नि:श्वास छोड़कर ) हां, मैं मेयर चुनाव हारने के बाद से ऐसा हो गया हूं.”

रोहरानंद- “भैय्या! अब मुझे तुमसे बड़ी सहानुभूति है.”

दुखी आत्मा – “ऐसा है तो मेरा साथ दो…”

रोहरानंद -“मैं आम आदमी हूं. मैं भला क्या साथ दूं.”

दुखी आत्मा -“मुझे तुमसे कुछ नहीं चाहिए, बस एक चीज… सिर्फ एक चीज…

रोहरानंद – “अच्छा चलो, बताओ.”

दु:खी आत्मा -” सिर्फ इतना करो भैय्या! तूम भी मेरी तरह दु:खी हो जाओ .चेहरा लटका लो. चेहरे पर पीड़ा उभार लो .कोई भी देखें तो समझ जाए कि तुम भी दुखी आत्मा हो.”

रोरहरानंद – “( आश्चर्य से ) मगर इससे क्या होगा ?”

दु:खी आत्मा – “मेरी आत्मा को सुकून मिलेगा. मैं एक-एक करके शहर को अपने साथ ऐसे ही दु:खी कर अपना बहुमत बनाऊंगा .और एक दिन मेरे साथ इतने लोग हो जाएंगे की महापौर की कुर्सी हिलने लगेगी.”

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रोहरानंद – “वाह! क्या तरकीब निकाली है. मगर मैं तो धर्म संकट में फंस गया.”

दु:खी आत्मा – “देखो! तुम अपनी जुबां से फिर नहीं सकते, तुमने मेरा साथ देने का वादा किया है.”

रोहरानंद – “मगर, यह तो षड्यंत्र कर रहे हो, मैं भला क्यों साथ दूं. मैं तो आम आदमी हूं. मेरा तुमसे लेना दो न देना एक. अर्थात मुझे क्या लाभ ?”

दु:खी आत्मा – “जिस दिन में बहुमत में आऊंगा, यानी महापौर बनूंगा तुम्हें खुश कर दूंगा.”

रोहरानंद – “मगर, मैं तो आज भी खुश हूं और कल भी था. और मैं जानता हूं तुम कल भी दुखी थे, आज भी हो,और कल भी रहोगे.”

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