कल्पना ने घड़ी की तरफ देखा. सुबह के पौने 9 बजे थे. अभी तक रामवती का कोई अतापता नहीं था. रसोईघर में बरतनों का ढेर लगा था. वैसे तो कल्पना इस शहर में अकेली ही रहती थी, पर कल औफिस के साथियों के लिए एक छोटी सी पार्टी रखी थी.