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लेखिका- मधुलता पारे
अगले दिन डोरबैल बजी. कल्पना मन ही मन बड़ी खुश हुई कि रामवती ने वक्त की कीमत तो सम झी, पर जब दरवाजा खोला तो रामवती की जगह एक दुबलीपतली सांवले रंग की चमकदार आंखों वाली लड़की खड़ी थी. सलोना, पर आकर्षक चेहरा. बाल खूबसूरती से बंधे हुए.
‘‘आंटीजी, मु झे मम्मी ने काम करने के लिए भेजा है. शाम को तो मम्मी ही आएंगी.’’
‘‘तुम रामवती की बेटी नमामि हो? वह क्यों नहीं आई?’’ कल्पना को अपना सवाल ही बेतुका लगा, पर जबान थी कि फिसल गई.
नमामि का जवाब भी वही था, ‘‘मम्मी सोनू का डब्बा बना रही हैं.’’
नमामि बड़े सलीके से सधे हुए हाथों से काम करती जा रही थी. सुबह के
9 बजे तक उस ने काम पूरा कर लिया था. इस के बाद वह चली गई.
कल्पना तो कुछ ही देर में उस की कायल हो गई. उस की एक चिंता दूर हो गई कि उसे काम नहीं करना पड़ेगा. आराम से औफिस जा सकेगी. सोनू ने नमामि को चुन कर कोई भूल नहीं की.
कल्पना समय से औफिस के लिए निकल गई. नमामि का शांत और आकर्षक चेहरा उस के जेहन में रहरह कर आ रहा था. बस में बैठने के बाद भी वह उसी चेहरे में खोई थी कि अचानक कल्पना की सोच में कुछ दृश्य आने लगे.
ब्याह कर आई कल्पना बहुत से नातेरिश्तेदारों के बीच बैठी थी. अचानक बड़ी दीदी की आवाज ने चुप्पी तोड़ी, ‘राजेश के लिए तो बहुत सी गोरी लड़कियों के रिश्ते आए थे, पर बाबूजी को तो कल्पना ही पसंद आई. सांवली है, पर क्या किया जा सकता है.’
बड़ी दीदी के शब्दों से कल्पना निराशा से भर गई थी. बाद में भी बड़ी दीदी उसे अकसर ताने मारती रहती थीं, पर बाबूजी, मांजी और राजेश ने उस के रंग को ले कर कभी कोई सवाल नहीं किया था, बल्कि मांजी का साथ ही हमेशा उस की ढाल बना रहा था. बरसों बीते गए. कल्पना अपनी गृहस्थी में रम गई है.
श्रेया के जन्म के बाद नौकरी व घर में तालमेल बनाए रखने में कल्पना के अनुशासित स्वभाव की बड़ी अहमियत रही. अब कल्पना की जिंदगी भी
2 शहरों के बीच कभी इधर तो कभी उधर डोल रही थी.
अचानक मांजी की तबीयत खराब होने के चलते कल्पना को छुट्टी लेनी पड़ी. 15 दिनों के बाद जब कल्पना वापस आई तो सब से पहले रामवती याद आई. पड़ोसन से पूछा तो पता चला कि रामवती ने आजकल काम करना छोड़ दिया है. नमामि के बारे में भी उसे कोई जानकारी नहीं थी.
थकहार कर कल्पना ने खुद ही काम करने की ठानी. 2 घंटे में काम खत्म करने के बाद हाथ में चाय का कप ले कर बैठी तो सारी परेशानियां जैसे धुआंधुआं हो गईं. उस ने तय किया कि अब महरी के झमेले में नहीं पड़ेगी. काम ही कितना है, खुद ही निबटा लेगी.
‘‘कल्पतरू मैडम हैं क्या?’’ दरवाजे पर किसी की आवाज आई. जा कर देखा तो मिताली थी. उस के औफिस की साथी, जो उस के ही महल्ले में 10-12 घर छोड़ कर रहती थी.
‘‘अभी 2 घंटे पहले ही आई हूं. लो, चाय पी लो,’’ कहते हुए कल्पना मिताली के लिए किचन से चाय बना कर ले आई. दोनों बातों में खो गईं.
मिताली के जाने के बाद कल्पना के दिमाग में फिर पुराने दिनों की रेल चलने लगी. पापा ने कितने चाव से कल्पतरू नाम रखा था, पर वह कल्पतरू से कब कल्पना बन गई, उसे पता ही नहीं चला. कल्पतरू नाम केवल स्कूलकालेज और औफिस के रजिस्टर तक ही सीमित रहा. ससुराल में भी सब उसे कल्पना ही बुलाते हैं.
अचानक बड़ी दीदी उस के खयालों में खड़ी हो गईं, जो शुरुआत में तो उस की नौकरी के भी खिलाफ थीं, पर बाबूजी के सामने उन्हें चुप रहना पड़ा था. धीरेधीरे कल्पना के बरताव से उन की सोच बदलती गई. नौकरी के साथ घर को भी उस ने इतनी अच्छी तरह संभाल लिया था कि नौकरीपेशा औरतों को ले कर सब लोगों में जो शंका थी, वह दूर हो गई, खासकर दीदी में भी उस ने यह बदलाव महसूस किया.
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पापा अकसर कहते थे, ‘बिटिया ने तो सब की सोच का कायाकल्प कर के अपना नाम सच साबित कर दिया.’
एक दिन कल्पना औफिस से लौट रही थी कि रास्ते में रामवती मिल गई.
‘‘कैसी हो रामवती? नमामि कैसी है?’’ कल्पना ने पूछा.
‘‘क्या बताऊं… उस लड़की ने तो मेरी नाक कटवा दी.’’
कल्पना ने सवालिया निगाहों से उस की ओर देखा, तो वह रास्ते में ही शुरू हो गई,
‘‘बीबीजी, अब वह कह रही है कि शादी नहीं करेगी और अगर जबरदस्ती की तो कुछ खा कर मर जाएगी.’’
‘‘पर, सोनू से तो उस की सगाई हो गई है न और वह तो तुम्हारे घर में ही रहता है.’’
‘‘अब नहीं रहता. जिस दिन उसे पता चला कि नमामि उस से प्यार नहीं करती, वह उसी दिन अपने घर चला गया.’’
कल्पना अपने ही सवाल में उल झते हुए घर पहुंच गई.
एक रविवार को कल्पना जाड़े की धूप का मजा ले रही थी. इस बार राजेश आ गए थे. कुछ सामान लाने वे बाजार गए थे. अचानक उस की नजर रास्ते से गुजरती रामवती की दूसरी बेटी शिवानी पर पड़ी. कभीकभी नमामि के साथ वह भी उस का हाथ बंटाने आ जाती थी. इसी वजह से कल्पना उसे जानती थी.
कल्पना ने हाथ के इशारे से शिवानी को बुलाया और बिना कोई भूमिका बांधे सीधा सवाल कर दिया, ‘‘नमामि क्यों सोनू से शादी नहीं करना चाहती?’’
‘‘आंटीजी, एक दिन सोनू ने उस के चेहरे की ओर देखते हुए कहा था कि मैं ही हूं, जो तुम जैसी काली लड़की से शादी के लिए तैयार हो गया हूं. मेरे लिए तो एक से बढ़ कर एक लड़कियों की लाइन लगी थी?’’
शिवानी के जाने के बाद कल्पना ने अपने खराब नल की शिकायत हार्डवेयर दुकान वाले गज्जू भैया से की और शाम तक किसी प्लंबर को भेजने के लिए कहा.
शाम को घर की डोरबैल बजी. देखा तो बाहर 2 लड़के खड़े थे.
‘‘हमें गज्जू भैया ने भेजा है,’’ उन में से एक छोटा लग रहा था, ने कहा, ‘‘आप का नल ठीक करना है?’’
अनजान लोगों को देख कल्पना के मन में शक हुआ.
‘‘मैं जरा पता कर के बताती हूं,’’ इतना कह कर कल्पना ने हाईवेयर की दुकान में फोन लगाया. वहां से दुकान के मालिक ने बताया कि उस ने ही उन्हें भेजा है. वे दोनों भाई उसी की दुकान में काम करते हैं.
कल्पना ने उन्हें अंदर बुलाया. एक थोड़ा चंचल था, साथ ही बातों में
भी तेज था. दूसरा थोड़ा गंभीर लग रहा था. गोराचिट्टा, सुंदर और नीली आंखों वाला.
‘‘कहां तक पढ़े हो?’’ कल्पना ने यों ही पूछा.
‘‘हम ने तो अपने पिताजी से यह काम सीखा है. घर में थोड़ी मदद हो जाए इसलिए करते हैं. बड़ा वाला
5 साल से काम कर रहा है. उस की शादी भी हो गई?है.’’
थोड़ी देर में उस ने नल बदल दिया. सामान की परची दिखा कर पैसे ले लिए. बात आईगई हो गई.
एक दिन कल्पना औफिस से आ कर बैठी ही थी कि रामवती आ गई. वह बड़ी खुश दिख रही थी.
‘‘अरे रामवती, बड़ी खुश दिख रही हो, क्या बात है? नमामि कैसी है?’’ कल्पना ने पूछा.
‘‘अरे बीबीजी, मैं ने तो पिछले महीने उस का ब्याह कर दिया है.’’
‘‘कहां और किस से?’’ कल्पना ने पूछा.
‘‘अरे बीबीजी, आप के यहां नल ठीक कर आया था न, वही मेरा दामाद मनोज. नमामि का दूल्हा.’’
‘‘पर, तुम्हें कैसे पता कि वह मेरे घर आया था?’’
‘‘अरे बीबीजी, उस ने बताया था. आप के महल्ले में ही तो दुकान है उस की. हम लोग अकसर आप की बात करते रहते हैं.
‘‘पर, इतनी जल्दी तुम्हें इतना सुंदर लड़का कैसे मिल गया?’’
उसे तो नमामि ने ही पसंद किया. सोनू को जवाब जो देना था,’’ रामवती ने कहा.
रामवती की बातें सुन कर कल्पना को आज शांति का अहसास हुआ. उस सांवले रंग की दुबलीपतली लड़की ने पूरे समाज को जवाब दे दिया था.