Hindi Story : ‘‘सुनो जरा, आज रमा दीदी के यहां लेडीज संगीत का प्रोग्राम है, इसलिए दोपहर को अस्पताल से जल्दी घर आ जाना. शाम को 5 बजे निकल चलेंगे. यहां से 80 किलोमीटर ही तो दूर है, शाम के 7 बजे तक पहुंच ही जाएंगे.’’
‘‘नहीं सीमा, यह कैसे मुमकिन होगा… शाम को 6 बजे से अपना क्लिनिक भी तो संभालना होगा. कितने मरीज दूसरे शहरों से आते हैं. सभी को परेशानी होगी,’’ डाक्टर श्रीधर ने अपनी परेशानी सीमा को बताई.
‘‘मतलब, आप को लौटतेलौटते तो रात के 9-10 बज जाएंगे और उस के बाद अगर हम जाएंगे भी तो प्रोग्राम खत्म होने के बाद ही पहुंचेंगे,’’ सीमा निराश हो कर बोली.
सीमा को अपनी बड़ी बहन रमा की बेटी की शादी में जाने का बड़ा ही मन था.
‘‘सीमा, तुम सम झने की कोशिश करो न कि एक डाक्टर पर समाज की कितनी बड़ी जिम्मेदारी होती है. वह अपनी जिम्मेदारियों से कैसे मुंह मोड़ सकता है…’’ श्रीधर सीमा को सम झाने के लहजे में बोला.
‘‘उस जिम्मेदारी को निभाने के लिए तो सरकार ने तुम्हें सरकारी अस्पताल में नौकरी दे रखी है. क्लिनिक पर तो तुम ज्यादा पैसा पाने के लिए ही तो जाते हो न?’’ सीमा ने उसी लहजे में जवाब दिया.
‘‘मैं जो कुछ भी कर रहा हूं, तुम्हीं लोगों के लिए तो कर रहा हूं. अभी श्रीशिव 6 साल का ही तो है. कल जब वह बड़ा होगा तो उस की पढ़ाईलिखाई के लिए जिन पैसों की जरूरत होगी, उन का इंतजाम भी तो अभी से करना होगा,’’ श्रीधर अपने समय पर न आ पाने की दलील को सही ठहराने के नजरिए से बोला.
‘‘तो फिर वहां जाने का प्रोग्राम कैंसिल करते हैं,’’ सीमा काफी निराश लहजे में बोली.
‘‘नहीं सीमा, प्रोग्राम कैंसिल करने की जरूरत नहीं है. वैसे भी शादी तो कल ही है, इसलिए कल सुबह 5 बजे हम यहां से निकल चलेंगे और जल्दी ही पहुंच जाएंगे.
‘‘वैसे भी शादीब्याह जैसे कार्यक्रम का मतलब अपने सभी नातेरिश्तेदारों, जानपहचान वालों से मुलाकात करना होता है, खाना, नाचनागाना नहीं.
‘‘शाम को 5 बजे तक मैं वहां से निकल जाऊंगा और फिर अपना क्लिनिक संभाल लूंगा. तुम शादीविदाई की रस्मों तक वहीं रुकना. कार्यक्रम खत्म होते ही मैं ड्राइवर और गाड़ी पहुंचा दूंगा,’’ श्रीधर ने अपनी योजना सम झाई. सीमा ने मन मार कर हां कर दी.
श्रीधर के पिता गांव के एक मिडिल स्कूल में टीचर थे. उसी गांव में उन की थोड़ीबहुत जमीन थी, इसीलिए वे गांव में ही रहते थे. गांव में एक प्राइमरी हैल्थ सैंटर था, जो समय से खुल कर बंद हो जाता था. डाक्टर पास के शहर से रोज आतेजाते थे. इस के अलावा गांव में कोई एंबुलैंस नहीं थी.
श्रीधर के दादाजी की मौत भी समय पर पूरा इलाज न मिलने के चलते हुई थी. इसी वजह से श्रीधर के पिताजी उसे डाक्टर बना कर गांव में लाना चाहते थे, ताकि गांव वालों को समय पर इलाज मिल सके.
मैडिकल की डिगरी मिल जाने के फौरन बाद ही श्रीधर की पहली बहाली एक ब्लौक लैवल के सरकारी अस्पताल में हो गई.
सीमा से शादी के समय वह इसी अस्पताल में थे. सीमा के परिवार वाले दबदबे वाले थे और उन्होंने श्रीधर का ट्रांसफर इस मैट्रो सिटी में करा दिया.
यहीं पर सरकारी नौकरी करतेकरते श्रीधर ने अपना क्लिनिक खोल लिया. आज हालात यह है कि श्रीधर 10,000 रुपए रोज तो कमा ही लेते हैं. यही वजह है कि श्रीधर सरकारी अस्पताल से छुट्टी ले कर शादी में तो जाना चाहते हैं, पर अपना क्लिनिक और प्रैक्टिस छोड़ना नहीं चाहते हैं.
सुबह के 5 बजे अच्छाखासा अंधेरा था. कुछ देर पहले बारिश भी हो चुकी थी. श्रीशिव को आगे बैठना पसंद था इसलिए वह ड्राइवर के साथ आगे बैठ गया. सीमा व श्रीधर पीछे बैठ गए.
सुबह का समय था, इसलिए रोड पर टै्रफिक न के बराबर था. ड्राइवर ने म्यूजिक सिस्टम भी औन कर दिया था. पीछे बैठे श्रीधर व सीमा नींद में ऊंघ रहे थे.
अभी तकरीबन 40-50 किलोमीटर ही आए थे कि सड़क की साइड में एक ढाबे के पास खड़ा ट्राला चलने लगा और शायद कंट्रोल न होने के चलते बीच सड़क पर लहराने लगा. तेज रफ्तार से आ रही श्रीधर की कार को रोकना नामुमकिन था. काफी खतरनाक हादसा हुआ था. ट्राला वाला अपना ट्राला ले कर भाग चुका था.
तेज रफ्तार के चलते कार का अगला हिस्सा पूरी तरह टूट गया था. श्रीशिव व ड्राइवर की हालत गंभीर थी और काफी खून निकल रहा था. श्रीधर व सीमा को भी गंभीर चोटें आई थीं, पर वे दोनों होश में थे. चीखनेचिल्लाने की आवाज सुन कर आसपास से काफी लोग मदद के लिए आ गए थे.
सीमा व श्रीधर को तुरंत बाहर निकाल लिया गया. वे दोनों बदहवास हालत में थे. श्रीशिव व ड्राइवर को निकालने की कोशिशें की जा रही थीं, पर डैश बोर्ड के बीच फंसे होने के चलते बहुत दिक्कतें आ रही थीं.
जैसे ही श्रीधर सामान्य हुए, तो उन्होंने पूछताछ शुरू की. पता चला कि यह एक छोटा सा गांव है. तकरीबन सवा सौ घर हैं और सब से नजदीक प्राथमिक स्वास्थ केंद्र यहां से 5 किलोमीटर दूर है. वहां पर भी डाक्टर मिलेगा या नहीं, कह नहीं सकते.
श्रीधर ने तुरंत ही अपने सरकारी अस्पताल में फोन किया और एंबुलैंस भेजने के लिए कहा. फिर भी एंबुलैंस के आ कर वापस जाने में कम से कम डेढ़ घंटा तो लग ही सकता था. अब तक श्रीशिव को कार से बाहर निकाला जा चुका था.
श्रीधर ने उसे चैक किया. श्रीशिव की अभी मंदमंद सांसें चल रही थीं. अगर अभी औक्सिजन दी जाए तो शायद जान बच जाए. श्रीधर अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहे थे. अब तक ड्राइवर को भी निकाला जा चुका था, पर वह अब इस दुनिया में नहीं था.
दूर से आती एंबुलैंस की आवाज से श्रीधर को कुछ उम्मीद बंधी. एंबुलैंस रुकी और जैसे ही स्ट्रैचर निकाला जाने लगा, बेटे श्रीशिव ने अपनी अंतिम सांसें लीं.
‘‘अगर आज गांव में डाक्टर होता, एंबुलैंस होती तो शायद इन दोनों की जानें बच जातीं,’’ भीड़ में से कोई कह रहा था.
‘‘अरे, डाक्टर इस छोटे से गांव में क्यों आएंगे? उन्हें तो मलाई चाहिए, जो सिर्फ शहरों में ही मिलती है,’’ किसी और ने कहा.
‘‘जब डाक्टरी की पढ़ाई करते हैं, तब कसम खाते हैं कि जन सेवा करेंगे, पर डिगरी मिलते ही सब भूल जाते हैं और सिर्फ धन सेवा करते हैं,’’ तीसरे आदमी ने कहा.
इसी तरह की और भी बातें हो रही थीं, जो श्रीधर को साफ सुनाई नहीं दे रही थीं.
श्रीधर को भी वह सब याद आ रहा था कि पिताजी ने किस वजह से उसे मैडिकल की पढ़ाई करने के लिए भेजा था.
दादाजी की मौत की सारी घटना उस की आंखों के सामने घूम गई. आज इतिहास ने खुद को दोहरा दिया. पिछली बार मौत उस के दादा को ले गई थी, इस बार बेटे को.
बेटे श्रीशिव की मौत के क्रियाकर्मों को निबटाने के बाद जब पिताजी वापस गांव जाने लगे तो श्रीधर ने उन से कहा, ‘‘मैं वापस गांव लौटना चाहता हूं. वहां लोगों की सेवा करना चाहता हूं.’’
‘‘पर, वहां तुम्हें इतने पैसे कमाने के मौके नहीं मिलेंगे,’’ पिताजी ने साफ शब्दों में जवाब दिया.
‘‘अब पैसा कमा कर भी क्या करना है. मेरी जानकारी अपने ही गांव के लोगों के काम आ जाए, तो मैं अपनेआप को धन्य सम झूंगा,’’ श्रीधर ने साफसाफ लहजे में जवाब दिया.
‘‘तुम्हारा स्वागत है. अगर तुम्हारे जैसा हर डाक्टर सोच ले तो गांव से बेचारे गरीबों को छोटीछोटी बीमारियों के इलाज के लिए दौड़ कर शहर नहीं आना पड़ेगा. इस से शहर के डाक्टर का भी बोझ कुछ कम होगा और सभी को बेहतर इलाज मिल पाएगा,’’ पिताजी एक सांस में सब बोल गए.
दूसरे दिन औफिस जाते ही श्रीधर ने सब से पहले अपने कई अफसरों को चिट्ठी लिख कर अपने फैसले की सूचना दी और अपने ही गांव के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में ट्रांसफर करने का अनुरोध किया.
सीमा का मन महीनों तक बुझा रहा, पर फिर जब अगले चुनावों में उसे निर्विरोध सरपंच चुन लिया गया तो उस की सब शिकायतें खत्म हो गईं.
आम जनता के निकट आने पर उसे पता चला कि जनता की समस्याएं आखिर वैसी हैं और कितना भी करो कम हैं. उसे खुशी हुई कि वे दोनों कम से कम कोशिश तो कर रहे हैं.