साल 1985 के बाद से ही बिहार विधानसभा के हर चुनाव में भाजपा बंगलादेशी घुसपैठियों का मामला उठाती रही है. इस के बूते भाजपा को सीमांचल इलाके में कामयाबी भी मिली है.

एनआरसी यानी नैशनल रजिस्टर औफ सिटीजन लिस्ट जारी होने के बाद भाजपाई अब बिहार में भी इसे लागू करने की आवाज बुलंद करने लगे हैं, जबकि उन का सहयोगी दल जनता दल (यूनाइटेड) एनआरसी के विरोध में  झंडा उठाए हुए है.

भाजपा नेताओं का दावा है कि बिहार के सीमांचल इलाकों में मुसलिम आबादी तेजी से बढ़ी है और इस की अहम वजह बंगलादेशी घुसपैठिए ही हैं. कटिहार और पूर्णिया में 40 फीसदी और किशनगंज में 50 फीसदी तक मुसलिम आबादी हो गई है.

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जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक, 1971 में अररिया में मुसलिम आबादी 36.52 फीसदी थी, जो साल 2011 में बढ़ कर 42.94 फीसदी हो गई. 1971 में कटिहार में 36.58 मुसलिम थे, जो साल 2011 में बढ़ कर 44.46 फीसदी हो गए. 1971 में पूर्णिया में 31.93 फीसदी ही मुसलिम आबादी थी जो साल 2011 में 38.46 फीसदी तक जा पहुंची.

इस तरह से 40 सालों के दौरान अररिया में 6.4 फीसदी, कटिहार में 7.88 फीसदी और पूर्णिया में 6.53 फीसदी की दर से मुसलिम आबादी बढ़ी है.

साल 1991 में हुई जनगणना में देश में 82.77 फीसदी हिंदू और 11.02 फीसदी मुसलिम थे. साल 2011 की जनगणना के मुताबिक, 79.97 फीसदी हिंदू और 14.22 फीसदी मुसलिम हो गए. इस दौरान मुसलिम आबादी 3.02 फीसदी बढ़ गई और उसी अनुपात में हिंदू आबादी घट गई.

1 सितंबर, 2019 को असम में एनआरसी लिस्ट जारी की गई. 3 करोड़, 11 लाख, 21 हजार, 4 लोगों को लिस्ट में शामिल किया गया. 19 लाख, 6 हजार, 657 लोगों को लिस्ट में जगह नहीं मिली. भाजपा नेता और मंत्री हिमंत बिस्वा ने लिस्ट को आधाअधूरा करार दिया है.

बिहार जद (यू) ने भी सरकार के इस कदम की आलोचना की है. इतना ही नहीं, बिहार में इसे लागू करने का पुरजोर विरोध कर रही है.

भाजपा के राज्यसभा सांसद राकेश सिन्हा ने सब से पहले बिहार में एनआरसी की मांग उठाते हुए कहा कि बिहार के सीमांचल इलाकों में आबादी का बैलेंस बिगड़ा है. इन इलाकों में बड़ी तादाद में बंगलादेशी जमीन, रोजगार और कारोबार पर कब्जा जमा चुके हैं.

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भाजपा नेता और केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह कहते हैं कि बिहार में एनआरसी की जरूरत है. राज्य से घुसपैठियों को बाहर करना जरूरी है. पूर्णिया, कटिहार, किशनगंज, अररिया जैसे सीमांचल इलाकों में बड़े पैमाने पर घुसपैठिए हैं. सुप्रीम कोर्ट की हिदायत पर एनआरसी बनाई गई थी. वहीं दूसरी ओर जद (यू) ने भाजपा की एनआरसी की मांग को खारिज करते हुए कहा है कि असल में तैयार की गई एनआरसी पर खुद वहां की भाजपा सरकार ने नाराजगी जताई है.

जद (यू) के राष्ट्रीय महासचिव केसी त्यागी कहते हैं कि असम में एनआरसी पूरी तरह से दुरुस्त और सही नहीं है. विदेश मंत्रालय भी साफ कर चुका है कि एनआरसी लिस्ट से बाहर रहने वालों को बाहर नहीं निकाला जाएगा.

बिहार के तकरीबन 35 विधानसभा क्षेत्रों में  20 लाख बंगलादेशी हैं. पश्चिम बंगाल के 52 विधानसभा क्षेत्रों में 80 लाख से ज्यादा बंगलादेशी हैं. सरकारें इन घुसपैठियों पर रहमोकरम बरसाती रही हैं, क्योंकि वे सियासी दलों के एकदम पक्के वोटर जो बने हुए हैं.

भाजपा नेता और बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी कहते हैं कि कई राजनीतिक दल एनआरसी को वोट बैंक के तौर पर देखते हैं, लेकिन भाजपा इसे घुसपैठ और आतंकवाद के रूप में देखती है.

गौरतलब है कि असम संधि के तहत कहा गया है कि साल 1966 से 1971 के बीच बंगलादेश से आए लोगों को भारत के नागरिक के तौर पर रजिस्टर किया गया है. साल 1971 के बाद सीमा पार कर भारत आए लोगों को भारत में रहना गैरकानूनी करार दिया गया है. संधि के तहत ऐसे लोगों को उन के मूल देश वापस भेजा जाना है.

बंगलादेशी घुसपैठिए पूर्वोत्तर भारत यानी असम, त्रिपुरा, पश्चिम बंगाल, बिहार और  झारखंड में भारी पैमाने पर भरे हुए हैं. इतना ही नहीं. दिल्ली में भी बंगलादेशी घुसपैठियों ने अपनी जबरदस्त पैठ बना ली है. गैरकानूनी तरीके से घुस कर बंगलादेशी घुसपैठिए भारत की नागरिकता भी ले रहे हैं.

असम में मंगलदोई संसदीय क्षेत्र में हुए उपचुनाव में महज 2 साल के दरमियान 70,000 मुसलिम वोटरों के बढ़ने के बाद देश में पहली बार बंगलादेशी घुसपैठियों का मामला उजागर हुआ था.

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एक अनुमान के तहत, भारत में बंगलादेशी घुसपैठियों की तादाद तकरीबन 3 करोड़ है. घुसपैठियों की वजह से सीमा से सटे इलाके मुसलिम बहुल हो गए हैं.

संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि बंगलादेश की पिछली जनगणना में तकरीबन एक करोड़ बंगलादेशी गायब पाए गए हैं. इस से भारत में बंगलादेशी घुसपैठियों के मामले को मजबूती मिली है.

घुसपैठियों के बहाने भाजपा को हिंदुत्व कार्ड खेलने की छूट मिलती है. बंगलादेशी मान कर लोग किसी भी बंगाली मुसलिम को आसानी से विदेशी कह सकते हैं.

आम लोगों को सरकार ने छूट दे दी है कि वे सड़क पर न्याय कर सकें. आज बंगलादेशी होने के नाम पर हिंदी व बंगाली बोलने वाले मुसलिम गुलाम बन गए हैं. वे न जमीन खरीद सकते हैं, न मकान बना सकते हैं. दलित और पिछड़ों के साथ भी यही सुलूक हो रहा है, चिंता न करें.

यह है एनआरसी

एनआरसी का मतलब है नैशनल रजिस्टर औफ सिटीजन. असम भारत का एकलौता राज्य है, जिस के पास एनआरसी है. यह साल1951 में बना था. इस के तहत 27 मार्च, 1971 को बंगलादेश बनने से पहले जो लोग असम में रह रहे थे, उन्हें ही भारतीय नागरिक की मंजूरी दी गई.

साल 1979 में अखिल असम छात्र संघ ने असम में गैरकानूनी रूप से रह रहे घुसपैठियों के खिलाफ आंदोलन शुरू किया था. 6 साल तक चले आंदोलन के बाद 15 अगस्त, 1985 को हुए असम सम झौते के बाद शांत हुआ था.

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दिसंबर, 2013 में नागरिकों की पहचान का काम शुरू हुआ और उस के बाद 2015 में नागरिकों से आवेदन मांगे गए. 31 दिसंबर, 2018 को असम सरकार ने एनआरसी की पहली लिस्ट जारी की थी.

इस देश में रहना है तो कुंडली तो रखनी ही होगी.

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