गरीबों को लगा था कि उन का पक्का मकान बनाने का सपना पूरा हो जाएगा. पर सरकार का एक कार्यकाल खत्म होतेहोते योजना की कछुआ चाल, नेताओं और अफसरों द्वारा किए गए भ्रष्टाचार ने साबित कर दिया कि साल 2022 तक देश के सभी गरीबों को पक्का मकान देने का मोदी सरकार का वादा पूरा होने वाला नहीं है.

देश में गरीबों को मकान देने के लिए पहले ‘इंदिरा आवास योजना’ चलती थी, जिस का साल 2015 में नाम बदल कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘प्रधानमंत्री आवास योजना’ रख दिया था और ऐलान किया था कि साल 2022 तक सभी के सिर पर छत होगी. इस के लिए यह भी योजना बनी थी कि सरकारी विभागों से घर बना कर देने के बजाय खुद जरूरतमंद के खाते में पैसे जमा कराया जाए.

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‘प्रधानमंत्री आवास योजना’ के तहत गांवदेहात के इलाकों में एक लाख, 60 हजार की रकम और शहरी इलाकों में 2 लाख, 40 हजार की रकम सीधे जरूरतमंद के बैंक खाते में जमा करने का काम किया गया था. इस रकम से एक कमरा, एक रसोई, एक स्टोररूम का नक्शा भी दिया गया था.

पर हुआ यह कि जिन लोगों के पास पहले से मकान थे, उन्हें रकम मिल गई और जो लोग बिना छत के प्लास्टिक की पन्नी तान कर अपना आशियाना बना कर रह रहे थे, उन्हें पक्का मकान देने के बजाय झुनझुना पकड़ा दिया गया.

ग्राम पंचायतों के सरपंच, सचिव और नगरपालिकाओं की अध्यक्ष, सीएमओ की मिलीभगत से जरूरतमंदों से 10,000 से 20,000 रुपए ले कर योजना की रकम की बंदरबांट कुछ इस तरह हुई कि बिना नक्शे और बिना सुपरविजन के योजना की रकम खर्च कर ली गई.

‘प्रधानमंत्री आवास योजना’ के तहत साल 2022 तक देश में सभी लोगों को छत देने की बात कही जा रही है. इस के लिए लक्ष्य और उस के पूरा होने के आंकड़े भी पेश किए जा रहे हैं, लेकिन हकीकत देख कर आप दंग रह जाएंगे.

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मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले की नगरपरिषद साईंखेड़ा के वार्ड नंबर 14 के लाभार्थी हरिगोपाल श्रीवास्तव की दास्तान ‘प्रधानमंत्री आवास योजना’ की असलियत को उजागर करती है.

हरिगोपाल श्रीवास्तव को मई, 2018 में पक्का घर बनाने के लिए पहली किस्त के रूप में एक लाख की रकम मिली थी. उन्होंने अपने कच्चा मकान तोड़ कर जून महीने में ही पक्का मकान बनाने का काम शुरू कर दिया था. एक महीने में एक लाख रुपए खर्च कर छत तक का काम पूरा हो गया था, लेकिन दूसरी किस्त की रकम उन्हें नहीं दी गई.

हरिगोपाल श्रीवास्तव के परिवार के लोग पूरी बरसात, ठंड और भीषण गरमी में प्लास्टिक की पन्नी तान कर अपना गुजारा कर रहे हैं, लेकिन एक साल के बाद भी उन्हें दूसरी किस्त की रकम नहीं मिली है.

हरिगोपाल श्रीवास्तव ने कई बार इस की शिकायत सरकारी अफसरों के साथसाथ चुने हुए जनप्रतिनिधियों से की, मगर कोई समाधान नहीं निकला. परेशान हो कर जब उन्होंने एसडीएम, गाडरवारा को अनशन पर बैठने की अर्जी दी, तो उन्हें इस की भी इजाजत नहीं दी गई.

नगरपरिषद के अधिकारी विधानसभा और लोकसभा चुनाव की आचार संहिता का बहाना बना कर इसी तरह अनेक लोगों को दूसरी किस्त की रकम देने में आनाकानी कर रहे हैं. वोट का सौदा करने वाली सरकार के नुमाइंदे भी अब चुप्पी साध कर बैठे हैं.

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खिरका टोला वार्ड नंबर 8 के दीपक कुशवाहा और बासुदेव अहिरवार बताते हैं कि उन्हें भी जून, 2018 में पहली किस्त की रकम मिल चुकी है, पर दूसरी किस्त की रकम के लिए नगरपरिषद के अधिकारी और पार्षद और रुपयों की मांग कर रहे हैं. पीडि़त परिवार के छोटेछोटे बच्चों ने पूरी गरमी खुले आसमान के नीचे बिताई है और अब बरसात का मौसम है. ऐसे में उन की मुश्किलें और ज्यादा बढ़ गई हैं.

जनता की सेवा के लिए चुने गए पार्षद दूसरी किस्त दिलाने के लिए दलाली कर लाभार्थियों से 10,000 से ले कर 20,000 रुपए की रकम खुलेआम मांग रहे हैं. जो लोग पैसे दे देते हैं, उन्हें दूसरी किस्त का पैसा आसानी से मिल जाता है.

इन की बल्लेबल्ले

‘प्रधानमंत्री आवास योजना’ का फायदा किसी को मिला हो या न मिला हो, पर ग्राम पंचायतों के सरपंच सचिव की दुकानदारी खूब चल निकली है.

सरपंच सचिव ने गरीबों को रकम दिलाने के एवज में पैसे वसूल तो किए ही हैं, साथ ही मिल कर गांवगांव में अपनी ईंट, गिट्टी, लोहा, सीमेंट की दुकानें खोल ली हैं. अगर इन की दुकान से सामान खरीदा तो समय पर किस्त मिल जाती है, नहीं तो सालों दूसरी किस्त की रकम नहीं मिलती है. कई सरपंचों ने नेताओं के इशारों पर गांव की रेत खदानों पर गैरकानूनी कब्जा कर के करोड़ों रुपए की रेत साफ कर दी है. गांवदेहात के इलाकों में 500 रुपए प्रति ट्रौली मिलने वाली रेत आज 2,000 रुपए प्रति ट्रौली मिल रही है.

मध्य प्रदेश में सरपंच सचिव द्वारा किए भ्रष्टाचार का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि नरसिंहपुर जिले की हीरापुर ग्राम पंचायत के सचिव भागचंद कौरव के घर आयकर विभाग द्वारा जून, 2019 में मारे गए छापे के दौरान आमदनी से ज्यादा 2 करोड़ रुपए की जायदाद का खुलासा हुआ है.

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गांवदेहात के लोग बताते हैं कि ‘प्रधानमंत्री आवास योजना’ के आने से घरघर पक्के मकान बनने से गांव की नदियों की रेत बहुत महंगी हो गई है. जिला प्रशासन के अधिकारी ट्रैक्टरट्रौली जब्त कर उन्हें परेशान करते हैं, जबकि रेत से भरे भारीभरकम डंपर रातदिन शहरों के लिए गैरकानूनी रेत सप्लाई कर रहे हैं. योजना का सुपरविजन कर रहे इंजीनियर मकान के वैल्युएशन के नाम पर लोगों से 10,000 रुपए की वसूली कर रहे हैं.

दूसरा पहलू यह भी

‘प्रधानमंत्री आवास योजना’ में अकेले नेता, अधिकारी, कर्मचारी ही गड़बड़झाला नहीं कर रहे हैं, बल्कि जनता भी पीछे नहीं है. सरकार मकान बनाने के लिए गरीबों के खाते में पैसे डाल रही है, लेकिन लोग पैसा ले कर उसे दूसरे कामों में खर्च कर लेते हैं. किसी ने उस पैसे से मोटरसाइकिल खरीद ली है तो कोई दूसरी पत्नी ले आया. मकान के नाम पर कहीं पत्थरों का टीला है तो कहीं झोंपडि़यां. किसी ने पैसे बीमारी पर खर्च कर लिए तो कोई शराब और जुए में उड़ा गया.

बांसखेड़ा गांव के मिहीलाल का घर ऐसा है जिन्हें पहली किस्त नवंबर, 2017 में मिली थी और 10 दिन के अंदर ही सारे पैसे निकाल लिए गए. घर बनाने के नाम पर एक ईंट भी नहीं रखी गई.

अब सरकारी अधिकारी मुकदमा दर्ज कराने की धमकी दे रहे हैं तो उन का कहना है कि पैसे रखे हैं, लेकिन ईंटभट्ठों व रेत खनन पर रोक होने के चलते वे मकान नहीं बना पा रहे हैं.

होशंगाबाद जिले के बारछी गांव के चंदन नौरिया के 3 बेटे हैं. तीनों को अलगअलग ‘प्रधानमंत्री आवास योजना’ का पैसा मिल गया. 2 बेटों के पैसों से मकान बना लिया तो तीसरे बेटे के पैसे में मोटरसाइकिल और दूसरा सामान खरीद लिया, जबकि गांव में कटिंगदाढ़ी बना कर अपनी आजीविका चलाने वाले कमलेश को ‘प्रधानमंत्री आवास योजना’ का पैसा नहीं मिला है. वे खपरैल के कच्चे मकान में अपने बूढ़े मांबाप समेत 7 सदस्यों के परिवार के साथ रह रहे हैं.

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इसी तरह रायसेन जिले के पटना गांव के अरविंद ने अपना पक्का मकान बनाने के लिए पुराने खपरैल के मकान को तोड़ दिया था. यह सोच कर वे किराए के मकान में रहने लगे थे कि 4 महीने बाद अपने मकान में वापस रहने लगेंगे, लेकिन उन्हें भी सालभर बीत जाने के बाद दूसरी किस्त का पैसा नहीं मिला है और उन का पैसा किराए के मकान में खर्च हो रहा है.

लोगों का मानना है कि ‘प्रधानमंत्री आवास योजना’ के जमीनी हकीकत पर सही न उतरने से प्रधानमंत्री की यह योजना कामयाब होती नजर नहीं आ रही है. अगर सरकार एक से नक्शे और डिजाइन के मुताबिक गरीबों को मकान तैयार कर के देती तो उन्हें पक्के मकान भी मिल जाते और सरकारी पैसे की बंदरबांट भी न होती.

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