वह झोंपड़पट्टी का इलाका था. उस इलाके में बेतरतीब कच्चेपक्के मकान बने हुए थे. किसी तरह गुजरबसर कर जीने वाले लोग वहां रहते थे. नुक्कड़ पर एक छोटी सी चाय की दुकान थी. वह चाय की दुकान रन्बी की थी. वह इसी झोंपड़पट्टी की रहने वाली थी. रन्बी बेहद खूबसूरत थी. रूपरंग की गोरी थी. आंखें बड़ी और कजरारी थीं. वह सलवारसमीज पहनती थी, जिस से उस की खूबसूरती में चार चांद लग जाते थे, जिसे देख कर किसी का भी दिल मचल जाता था.

इस इलाके का माहौल अच्छा नहीं था. शराब पी कर लोग गालीगलौज करते थे. आपस में मारपीट हो जाती थी. बावजूद इस के रन्बी बिना डरेसहमे चाय की दुकान चलाती थी. रन्बी चाय बनाने में मशगूल थी. इक्कादुक्का लोग चाय पी कर चले गए थे, तभी सोहन उस की दुकान पर आया. सोहन झोंपड़पट्टी में ही रहता था. वह पाकेटमारी व झपटमारी करता था. रेलवे स्टेशन के आसपास के भीड़भाड़ वाले इलाके में वह शिकार करता था. वह शिकारी की तरह अपने शिकार पर टूट पड़ता था.

सोहन रन्बी का प्रेमी था. रन्बी और सोहन एकदूसरे को प्यार करते थे. ‘‘कैसी हो रन्बी? अच्छी चाय पिलाना,’’ सोहन ने कहा. रन्बी ने चाय का गिलास उस की तरफ बढ़ा दिया. सोहन के बाल लंबे थे. वह नीली जींस और लाल चैक की शर्ट में जंच रहा था.

‘‘क्यों सोहन, आज ज्यादा माल मिल गया क्या? किस की जेब काटी है?’’ रन्बी ने हंस कर कहा. ‘‘प्लेटफार्म पर एक बाबू की जेब काटी थी. 2,000 रुपए मिले थे. मैं ने उसी रुपए के यह पैंटशर्ट खरीदा है,’’ सोहन ने कहा. ‘‘तभी तो तू आज हीरो लग रहा है,’’ रन्बी ने आंख मारी. अभी चाय की दुकान पर कोई ग्राहक नहीं था. रन्बी उस के नजदीक जा कर बैठ गई.

सोहन चाय की चुसकी लेते हुए रन्बी को देखे जा रहा था. ‘‘रन्बी, जब तक तुझे नहीं देखता हूं, तो मुझे चैन नहीं मिलता है,’’ सोहन ने रन्बी को बांहों में भर कर चूम लिया. ‘‘कोई देख लेगा तो…’’ रन्बी तड़प कर बोली. ‘‘रन्बी, हम दोनों के सिवा यहां कोई नहीं है,’’ सोहन ने कहा. रन्बी और सोहन दुकान के पीछे बनी झोंपड़ी में चले गए, जहां पहले से ही खाट बिछी हुई थी. दोनों उस खाट पर लेट गए. सोहन रन्बी के बदन से खेलने लगा. वह उस के उभारों को सहलाने लगा. रन्बी उस का साथ देने लगी. जब मर्दऔरत एकसाथ हो, तो आग लगने में कितनी देर लगती है. यह हाल यहां भी हुआ.

भरी दोपहरी में दोनों ने सैक्स का खेल शुरू कर दिया. लेकिन साथ ही चाय की दुकान पर ग्राहक के आने का डर भी उन्हें सता रहा था, इसलिए सोहन ने गाड़ी तेज कर दी थी. दोनों को मंजिल तक पहुंचने की जल्दबाजी थी. आखिर कुछ देर बाद दोनों मंजिल तक पहुंच गए. रन्बी और सोहन के चेहरे पर संतुष्टि के भाव थे. जिस्म की आग जब बुझ गई, तब रन्बी सोहन को समझाने लगी, ‘‘सोहन, तुझे पाकेटमारी के धंधे मैं देखना नहीं चाहती. तू पाकेटमारी छोड़ दे. कोई दूसरा काम कर ले. कुछ नहीं तो मेरी दुकान में ही मदद कर दिया कर. मैं बहुत खुश होऊंगी.’’

सोहन रन्बी की बातें सुन रहा था, लेकिन इस का असर उस पर नहीं हो रहा था. ‘‘शाम को आऊंगा,’’ कह कर सोहन झोंपड़पट्टी की पतली गलियों के रास्ते निकल गया. यह रेलवे स्टेशन के पास का इलाका था. लोगों की भीड़ थी. वहीं रोड किनारे सोहन खड़ा था. वह अपना शिकार खोज रहा था, तभी एक औरत, जिस ने गले में सोने की मोटी चेन पहन रखी थी, अकेले कहीं जा रही थी. सोहन चौकन्ना हो गया. वह उस के पीछेपीछे चलने लगा. पलक झपकते ही सोहन उस औरत के गले की चेन झपट कर भाग गया. वह औरत चीखनेचिल्लाने लगी, ‘‘पकड़ोपकड़ो, चोरचोर. मेरी चेन लूट कर भाग रहा है.’’

सोहन स्टेशन के भीड़भाड़ वाले इलाके में चेन झपट कर भाग गया था. 2-3 दिन बाद सोहन सुनार की दुकान पर गया. लूटी हुईर् चेन के बदले एक नईर् सोने की चेन बनवा ली. यह नई सोने की चेन वह रन्बी को देना चाहता था. ‘इस चेन को मैं रन्बी को दूंगा. इसे पहन कर वह बहुत खुश होगी,’ सोहन मन ही मन सोच रहा था. सोहन रन्बी की चाय की दुकान पर गया. ‘‘यह ले नई सोने की चेन. तेरे लिए बनवाई है. पहन कर देख. तुझे पसंद आएगी,’’

सोहन ने कहा. रन्बी ने चाय की केतली टेबल पर रख दी. वह चेन को उलटपुलट कर देखने लगी. वाकई बहुत खूबसूरत थी वह सोने की चेन. ‘‘सोहन, क्या तुम मेरे लिए यह चेन लाए हो? मेरे लिए सोने की चेन मजाक जैसा है. इसे पहन कर मैं इतरा नहीं सकती,’’ रन्बी ने कहा. ‘‘लेकिन, क्यों?’’ सोहन ने पूछा.

‘‘मैं तुम्हें समझाना चाहती हूं कि अब पाकेटमारी, छीनाझपटी छोड़ दो, तभी यह तोहफा मुझे मंजूर होगा,’’ रन्बी ने कहा. ‘‘बकवास बंद कर. मौजमस्ती के लिए यह धंधा करता हूं. जब छोड़ना होगा, छोड़ दूंगा,’’ सोहन ने झल्ला कर कहा. रन्बी की बातों से सोहन रूठ गया. वह बिलकुल खामोश हो गया. ‘‘अरे सोहन, तू तो नाराज हो गया,’’ रन्बी उस के गले में बांहें डाल कर मनाने लगी. सोहन का दिल रखने के लिए उस ने सोने की वह चेन पहन ली. ‘‘अब तो खुश हो न? बोल, खुश हो न?’’ रन्बी ने कहा. ‘‘कभीकभी तेरी ऐसी नौटंकी हो जाती है,’’ सोहन ठहाका लगा कर हंसने लगा. रन्बी भी हंसने लगी.

रन्बी ने हंसतेहंसते सोहन के कान में कहा, ‘‘आज रात मेरा इंतजार करना. मैं तेरी झोंपड़ी में आऊंगी.’’ तभी थाने का हवलदार रन्बी की चाय की दुकान पर आया. सोहन हवलदार से नजरें बचा कर चाय की दुकान से बाहर निकल गया. ‘‘रन्बी, चाय देना,’’ आते ही हवलदार ने चाय की फरमाइश की. उस ने एक गरमागरम चाय की प्याली हवलदार को दी. चाय पीतेपीते हवलदार की नजर रन्बी के गले में लटकी चमचमाती सोने की चेन पर पड़ी.

‘‘अरे रन्बी, यह चेन कहां से लाई हो?’’ हवलदार ने शक जताते हुए कहा. ‘‘खरीदी है, हुजूर,’’ रन्बी ने मुसकरा कर कहा. ‘‘लगता है, चाय की दुकान में तेरी अच्छी आमदनी हो जाती है,’’ हवलदार की निगाह रन्बी के चेहरे पर टिकी थी.

रन्बी कुछ न बोली. वह चुप ही रही. हवलदार अकसर चाय पीने उस की दुकान पर आता था. यह रन्बी के लिए तो मामूली बात थी. आधी रात को चांदनी छिटकी हुई थी. झोंपड़पट्टी में सन्नाटा था. लोग सो रहे थे, लेकिन सोहन अपनी झोंपड़ी में जाग रहा था. वह रन्बी का इंतजार कर रहा था. थोड़ी ही देर में रन्बी आ गई थी. वह चांदनी रात में किसी परी की तरह लग रही थी. ‘‘किसी ने देखा तो नहीं?’’ सोहन ने पूछा. ‘‘नहीं, बस दबे पैर चली आई हूं,’’

रन्बी ने कहा. सोहन रन्बी को बांहों में भर कर चूमने लगा. उस ने रन्बी के कपड़े उतार दिए. रन्बी अंधेरे में चमकतीदमकती संगमरमर की मूरत दिख रही थी. उस के दोनों उभार सोहन पर कहर बरपा रहे थे. सोहन रन्बी पर झपट पड़ा. रन्बी ने भी सोहन को अपनी बांहों में जोर से जकड़ लिया. फिर दोनों ने जिस्म की प्यास ऐसे बुझाई, जैसे सालों के प्यासे हों. जब प्यास बुझ गई तब रन्बी घर चली गई. सोहन गहरी नींद में सो गया.

सोहन प्लेटफार्म पर शिकार की तलाश में खड़ा था, तभी एक ट्रेन धड़धड़ाती हुई प्लेटफार्म पर आ कर रुकी. लोग बोगियों से उतरने लगे थे. एकाएक प्लेटफार्म पर भीड़ बढ़ गई थी. सोहन चौकन्ना हो गया, तभी उस की नजर एक नौजवान पर पड़ी, जो अटैची हाथ में लिए मोबाइल से बातें कर रहा था. सोहन का शिकार सामने था.

वह नौजवान की अटैची झपट कर भागने लगा. नौजवान सोहन के पीछे ‘चोरचोर’ कह कर पकड़ने के लिए दौड़ने लगा. सोहन प्लेटफार्म से नीचे कूद कर पटरियों पर दौड़ने लगा. उस के हाथ में अटैची थी. ‘पकड़ोपकड़ो, चोरचोर’ की आवाजें आ रही थीं. लोगों की भीड़ उस के पीछे थी.

सोहन पटरी पर लड़खड़ा कर गिर गया. बस, फिर क्या था. उस नौजवान ने सोहन को पकड़ लिया. भीड़ ने भी सोहन को घेर लिया. ‘‘यही मेरी अटैची ले कर भाग रहा था. मारो इसे,’’ वह नौजवान चीख कर बोला. वह नौजवान सोहन पर ताबड़तोड़ मुक्के बरसाने लगा. भीड़ उस नौजवान का साथ देने लगी. सोहन चीखताचिल्लाता रहा, ‘‘मुझे छोड़ दो, मुझे छोड़ दो.’’ लेकिन किसी को उस पर दया नहीं आ रही थी.

लोग लातघूंसों से उस पर चोट कर रहे थे. ‘‘मर गया, अब मत मारो,’’ वह पिटाई से चिल्ला रहा था. जिस नौजवान की अटैची थी, उस ने एक बड़ा सा पत्थर उठा कर सोहन के सिर पर दे मारा. उस की चीख निकल गई. सिर से खून का फव्वारा फूट पड़ा. वह बेहोश हो कर पटरी पर गिर गया. थोड़ी देर में पुलिस आ गई.

पुलिस सोहन को उठा कर थाने ले गई. दूसरे दिन झोंपड़पट्टी में पुलिस आई थी, पूछताछ कर चली गई. रन्बी को यह खबर मिली कि सोहन को रेलवे स्टेशन पर लोगों ने बहुत मारा है. वह किसी मुसाफिर की अटैची छीन कर भाग रहा था. वह लोगों की मार से अधमरा हो गया है. पुलिस ने उसे अस्पताल में भरती करा दिया है. इस खबर से रन्बी बेहद उदास हो गई. अपनी चाय की दुकान बंद कर वह जल्द अस्पताल पहुंच गई.

अस्पताल में सोहन की हालत अच्छी नहीं थी. वह जिंदगी और मौत के बीच झूल रहा था. ‘‘सोहन, आंखें खोलो. देखो, तुम्हारी रन्बी आई है,’’ रन्बी ने कहा. सोहन ने किसी तरह आंखें खोलीं, ‘‘रन्बी, मुझे यहां से ले चलो. लोग मुझे मार डालेंगे,’’ सोहन बेहोशी की हालत में छटपटाते हुए बोला.

रन्बी उस का हाथ अपने हाथ में ले कर बोली, ‘‘सोहन, तुम ठीक हो जाओगे, तब मेरे साथ चलना.’’ लेकिन सोहन की आंखें पथरा गईं. वह मर चुका था. रन्बी रोने लगी, ‘‘सोहन, मैं ने तुझे बहुत समझाया था. तू पाकेटमारी छोड़ दे, लेकिन तू नहीं समझा.

‘‘हम लोग जगह बदल लेंगे, ताकि लोगों को तेरे मांबाप का पता ही नहीं रहे. कभी किसी ने पता कर लिया, तो तब की तब देखेंगे. दोनों चायनाश्ते की दुकान चलाएंगे…’’ वह बड़बड़ाती जा रही थी.

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