देश दुनिया में एचआईवी एड्स अर्थात यौन रोग की संक्रामकता शुरू से चिंता का विषय रही है. सच तो यह है कि यह आदिकाल से समाज की चिंता का विषय रहा है. एक तरफ इस मसले पर खुलकर लोग संवाद नहीं करना चाहते, दूसरी तरफ इससे मुंह छुपाकर आप बच भी नहीं सकते. अगर समझदारी से काम लिया जाए तो सिर्फ और सिर्फ संवाद और सीधा एक्शन ही हमें इस समस्या से निजात दिला सकता है. यह एक बड़ी सच्चाई है कि अभी तक दुनिया में 39 मिलियन लोग एचआईवी एड्स बीमारी के शिकार हो चुके हैं. तीन दशकों से निरंतर रिसर्च के बावजूद सारी दुनिया में इस बीमारी का इलाज अभी तक खोजा नहीं जा सका है और यह माना जाता है कि जागरूकता ही एड्स का इलाज है.

अमेरिकन स्वास्थ्य विभाग ने 29 अप्रैल 1984 को एड्स के वायरस की घोषणा की और दुनिया के सामने एड्स इंफेक्शन से होने वाली मृत्यु के शोध परिणाम सामने आए. यहां यह भी उल्लेखनीय है कि एचआईवी का पहला प्रकरण 1981 में दुनिया के सामने आया था. धीरे-धीरे ही सही अब एचआईवी समस्या पर काम प्रारंभ हो चुका है.इसका सबसे बड़ा श्रेय दिया जाए तो संयुक्त राष्ट्र संघ के निर्देश और रुपए की फंडिंग ही इसका सबब है.

एक सच्चाई यह भी है कि हमारा देश एक पिछड़ी सोच के साथ आज भी आगे बढ़ रहा है. जिसमें अगर यह पहल ना हो तो हम शुतुरमुर्ग की तरह एचआईवी मसले पर, अपना सर रेत में ढक खुश होने को तैयार हैं की सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा है. कभी छोटी सी पहल होती है और फिर सब कुछ शांत हो जाता है. एचआईवी के मसले पर भी यही हो रहा है. तलाब में जैसे पत्थर मारकर लहरें पैदा कर दी जाती है और कुछ समय बाद लहरें शांत हो जाती है, एचआईवी यौन रोगों के संदर्भ में भी हमारा देश इन्हीं सच्चाई से दो-चार हो रहा है. जरूरत है सेक्स रोग एचआईवी पर क्रांतिकारी पहल की. आइए आज हम इस पर विचार करें मगर जरा रुकिए और देखिए हमारे देश के महत्वपूर्ण पर्यटन पूर्ण राज्य, गोवा की सरकार क्या करने जा रही है.

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गोवा सरकार की एक पहल अनुकरणीय हो सकती है

गोवा के स्वास्थ मंत्री विश्वजीत राणे ने कहा है कि गोवा सरकार विवाह के पंजीकरण से पहले जोड़ों के लिए एचआईवी परीक्षण अनिवार्य करने की योजना लागू करने जा रही है. उन्होंने कहा गोवा सरकार इसके लिए एक कानून लाने पर विचार कर रही है. इस योजना के अंतर्गत गोवा में विवाह के पंजीकरण से पहले कपल (युवक-युवतियों) के लिए एचआईवी परीक्षण अनिवार्य होगा. विश्वजीत राणे ने कहा गोवा का कानून विभाग तटीय राज्य में शादी से पहले इस टेस्ट को अनिवार्य बनाने के प्रस्ताव पर काम कर रहा है. विभाग द्वारा इस प्रस्ताव को मंजूरी दिए जाने के बाद, हम आगामी मानसून सत्र के दौरान इसे राज्य विधानसभा में पेश कर सकते हैं. अब अच्छा हो कि यह पहल अन्य राज्य भी परीक्षण पश्चात अपने अपने राज्यों में लागू कर दें. निश्चित रूप से इसका सकारात्मक लाभ समाज को मिल सकता है.

आगे पाठ पीछे सपाट भी सच्चाई है

यहां यह भी बताना समीचीन होगा कि देश के कुछ प्रगतिशील राज्य यथा गोवा, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, केरल जो देश को दिशा देते हैं ऐसे ही कानूनों को अमलीजामा पहनाकर देश को दिशा दे सकते हैं. मगर होता यह है कि सुनार की तरह एचआईवी मसले पर हम ठुक ठुक… ठुक ठुक… करते रहते हैं. जैसे गोवा में यह पहल हुई है मगर इसके पूर्व 2016 मे कांग्रेसी सरकार ने भी कुछ ऐसा ही ऐलान किया था. मगर वह कब बटटे खाते में चले गयी किसी ने ध्यान ही नहीं दिया. स्मरण करे तो देखेंगे की साल 2016 में तत्कालीन कांग्रेस के नेतृत्व वाली राज्य सरकार ने इसी तरह का कानून लाने का प्रस्ताव रखा था, जिसे काफी विरोध सहना पड़ा था. मगर अब गोवा के समंदर में जाने कितना पानी बह चुका है और नहीं परिस्थितियां पैदा हो चुकी है अब गोवा में इसी मानसूत्र सत्र मे जो 15 जुलाई से शुरु हो रहा है मे
स्वास्थ्य मंत्री विश्वजीत राणे चाहते हैं कि इस कानून के साथ ही शादी से पहले थैलीसिमिया का टेस्ट भी अनिवार्य किया जाए .ताकि इस बीमारी से पीड़ित माता-पिता के बच्चे इस बीमारी से ग्रसित न हों. उन्होंने बताया है कि वे इन दोनों कानून को एक साथ लागू करवाने के पक्ष में हैं. यह संभव भी है क्योंकि गोवा एक प्रगतिशील राज्य है.

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एचआईवी पर कुछ बेतुके कारनामे हम करते रहते हैं

यौन रोग, एचआईवी पर छत्तीसगढ़ मध्य प्रदेश में करोड़ों का फंड केंद्र सरकार से स्वास्थ विभाग तक पहुंचता है. मगर यह कहां चला जाता है, कोई नहीं जानता. सिर्फ 1 दिसंबर को अंतरराष्ट्रीय एड्स दिवस पर कार्यक्रम का दिखावा कर शासकीय संस्थान, विशेषकर स्वास्थ्य विभाग फिर साल भर कुंभकरणी निद्रा में चला जाता है. ऐसे ऐसे कार्यक्रम इनके पास हैं जिन्हें सुन देखकर हंसी आती है जैसे हाईवे पर, ढाबों मे कंडोम निशुल्क वितरण. यह खबर सुर्खियों तो प्राप्त कर लेती है, मगर इसकी सच्चाई क्या है आप स्वयं अनुमान लगा सकते हैं. इसी तरह एक अन्य ढकोसला है हाईवे पर ट्रक चालकों के एचआईवी परीक्षण. ऐसे कारनामे स्वास्थ विभाग करता रहता है. जिसका जमीन पर कोई अस्तित्व नहीं होता, इसका मकसद सिर्फ विदेशी मदद में आए पैसे की बंदरबांट के अलावा कुछ भी तो नहीं होता.

सांसद, विधायकों का भी एचआईवी परीक्षण हो

यहां हम एक महती पहल की अपेक्षा भारत सरकार से करना चाहते हैं. सैक्स मसले के विशेषज्ञ सनंददास दीवान लंबे समय से सरकार से यह मांग करते रहे हैं कि लोकसभा, विधानसभा चुनाव के दरमियान नामांकन के समय ही एचआईवी परीक्षण को अनिवार्य कर दिया जाना चाहिए.

उन्होंने इस संदर्भ में भारत सरकार को एवं निर्वाचन आयोग को भी पत्र लिखा है.इनकी अभिनव सोच है कि सांसद विधायक हमारे देश के जनप्रतिनिधि हैं, अगर यह एचआईवी परीक्षण करवाते हैं तो आम जनता में इसका सकारात्मक प्रभाव निश्चित रूप से जाएगा. फिर आगे यह नेता मंत्री ,सांसद , विधायक जनता जनार्दन रूबरू रहते हैं और अगर कोई घातक बीमारी से ग्रसित होते हैं तो यह सार्वजनिक भी हो जाएगा और कुल मिलाकर समाज को इसका बेहतरीन प्रतिसाद मिलेगा. यह सच है कि हमारा देश आज भी सेक्स, एचआईवी आदि मसलों पर बहुत पिछड़ी सोच रखता है परिणाम स्वरूप इस बीमारी से ग्रस्त होने वालों की संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही है ऐसे में यह क्रांतिकारी पहल देश के लिए सर्व-हितकारी होगी.

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