ससुराल स्वर्ग या अभिशाप… ?
मेरा एक सवाल समाज से ,घर और परिवार से क्या एक स्त्री को ससुराल भेजने के लिए ही पैदा किया जाता है ? अपनी बेटी को अचानक से एक अंजान घर में भेज दिया जाता है ,जहां उससे ये कहा जाता है कि अब तुम इस घर की बहू हो इस घर को संभालो तुम्हारी जिम्मेदारी बढ़ गई है. इतना ही नहीं वो स्त्री सारे काम सीख जाती है,उस घर को अपना बना लेती है.लेकिन उस वक्त क्या जब उस देवी समान स्त्री को घरेलू हिंसा का शिकार होना पड़ता है. कभी दहेज के रूप में ये हिंसा उसके सामने आती है तो कभी बेटे को जन्म न दे पाने के कारण ये हिंसा उसके साथ होती है.
एक माता-पिता अपनी बेटी को बड़े अरमानों के साथ ससुराल भेजते हैं और साथ उसकी सुविधा के ध्यान रखते हुए सारे सामान देते हैं और इतना ही नहीं उनकी बेटी को कोई तकलीफ न हो इसके लिए वो दहेज के नाम पर ससुराल वालों को भी कुछ समान देते हैं….लेकिन ये दहेज प्रथा आज समाज और स्त्री के लिए अभिशाप बन गई है क्योंकि यही दहेज जब कम पड़ता है और लड़के वालों की मांगे पूरी नहीं होती है तो उस स्त्री को प्रताड़ित किया जाता है. अक्सर ससुराल वाले चाहते हैं कि मेरी बहू लड़के को जन्म दे..लेकिन अगर लड़की जन्म लेती है तो उस स्त्री को फिर प्रताड़ित किया जाता है. लोग ये क्यों नहीं समझते हैं कि लड़के या लड़की का पैदा होना किसी भी मनुष्य के हाथ में नहीं है.
मैं ये नहीं कहती की हर जगह या हर ससुराल ऐसा होता है लेकिन आज दुनिया के ऐसे बहुत से कोने हैं जहां घरेलू हिंसा जैसी वारदात होती है. आए दिन ये खबर सुनने को मिलती है कि दहेज के लालच में पति ने पत्नि को जिंदा जलाया या मारा, ससुराल वालों से तंग आकर महिला ने की खुदखुशी. 22 जून 2019 में एक खबर आई की गोवा की एक महिला ने अपने ही पति को पीट- पीट कर मार डाला क्योंकि पति पत्नी को प्रताड़ित करता था. ये खबर ये साबित करती है की इसके चलते अपराध भी बढ़ता जा रहा है. 19 मार्च 2019 में खबर आई कि अहमदाबाद में पति ने अपनी पत्नी को सिर्फ इसलिए मारा क्योंकि उसने शैम्पू के लिए पैसे मांगे थे. 22 मई 2019 की एक खबर आईपीएस ने अपनी पत्नी को 5 करोड़ रुपए दहेज के लिए पीटा.
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घरेलू हिंसा के पीड़ितों को कई बार यह पता ही नहीं होता कि वे मदद मांगने किसके पास जा सकती हैं.
- घरेलू हिंसा की शिकार हुई महिला कभी अपने डर से बाहर नहीं आ पाती है.
- मानसिक आघात महिला को भीतर से तोड़कर रख देती है.
- घरेलू हिंसा एक ऐसा दर्द ऐसा जख्म है जो शायद ही कोई महिला भूले.
- मानसिक रोग की स्थिति में महिला पहुंच जाती है.
- घरेलू हिंसा महिला की गरिमा को छिन्न-भिन्न कर देता है.
एक रिपोर्ट से पता चला कि मोरक्को में एक महिला हैं सलमा, 23 साल की सलमा 2 बच्चों की मां और शिक्षा कार्यकर्ता हैं, जो घरेलू हिंसा से पीड़ित थी कभी. उन्होंने जब इसके खिलाफ आवाज उठाई तो सबसे पहले एक रेडियो स्टेशन के जरिए अपनी व्यथा व्यक्त की थी. यह रेडियो स्टेशन मोरक्को में महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए काम करने वाले एक अभियान से जुड़ा है, जिसका नाम है ‘मेक योर स्टोरी हर्ड’. मोरक्को में अभियान चला कर पीड़ित महिलाओं को कानूनी मदद देकर उनके हिंसक पतियों के खिलाफ कार्रवाई करने में मदद की जा रही है. ऐसे ही कई अभियान हैं,जो भारत में भी चलाए जा रहे हैं लेकिन फिर भी घरेलू हिंसा की वारदात बढ़ती ही जा रही है.अकेले अगर भारत की बात करें तो यहां नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के आंकड़े दिखाते हैं कि 15 से 49 प्रतिशत महिलाओं के साथ कभी न कभी शारीरिक हिंसा हुई थी.घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम, 2005 भारत की संसद द्वारा पारित एक अधिनियम है जिसका उद्देश्य घरेलू हिंसा से महिलाओं को बचाना है. लेकिन फिर भी ये अपराध बढ़ते जा रहें हैं. आखिर कब तक?
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सवाल ये है कि भारत सरकार कर क्या रही है? क्या सरकार कोई कड़े कदम नहीं उठाएगी? अगर सरकार ने कुछ नहीं किया तो आने वाले समय में ससुराल सच में महिला के लिए एक घर नहीं बल्कि अभिशाप बन जाएगा….