लेखक- लाजपत राय ठाकुर

सिर उठा कर देखा तो लीना जा चुकी थी लेकिन बेडरूम से उस के गाने की आवाज आ रही थी, ‘बालमवा नादान…समझाए न समझे मन की बतियां…’

हमारे माथे पर पसीने की बूंदें फूट पड़ी थीं और दिल भी जोरजोर से धड़क रहा था. पिछले कुछ दिनों से लीना इस तरह की खबरों से हमें लगातार दहला रही थी.

यह सिलसिला तब से शुरू हुआ जब से हमें दीवाली के बोनस की रकम मिली थी. यद्यपि हम ने लीना को बोनस मिलने की हवा तक न लगने दी थी पर उस को जाने कहां से दीवाली का बोनस मिलने की भनक लग गई. और उस ने जेवर व कपड़ों की नित नई फरमाइश करनी शुरू कर दी. हम ने भी हाथ तंग होने का रोना रोेते हुए लीना की फरमाइशों को एक कान से सुन दूसरे से उड़ाना शुरू किया तो उसी दिन से लीना ने समाचारपत्रों से ऐसी खबरें ढूंढ़ कर हमारे सामने रखनी शुरू कर दीं.

पहले दिन की खबर थी कि किसी पतिव्रता ने सब्जी में कोई जहरीला कीड़ा उबाल कर पति को खिलाया और उस का ऊपर का टिकट कटा दिया. कारण, पति ने पत्नी की पसंद की अंगूठी की फरमाइश को अंगूठा दिखा दिया था.

उसी दिन शाम को जब हम आफिस से घर पहुंचे तो बडे़ जोरों की भूख लगी थी उस पर रसोई से आती सब्जी की खुशबू ने मेरी भूख और भी बढ़ा दी थी.

लीना ने मुसकराहट के साथ हमारा स्वागत किया तो हमारे मुंह से निकला, ‘‘लीनाजी, आज बडे़ जोरों की भूख लगी है, आप जल्दी खाना लगा दें. मैं अभी हाथमुंह धो कर आता हूं.’’

‘‘अभी लगाती हूं,’’ लीना ने मुसकरा कर कहा, ‘‘वह मेरी अंगूठी?’’

‘‘भई, क्या बताऊं. बोनस न मिलने के कारण आजकल आफिस के सारे साथी कड़के हैं,’’ कह कर हम हाथमुंह धो खाने की मेज पर आ कर बैठ गए.

मेज पर रखी थाली में एक कटोरी मटरपनीर की सब्जी थी, दूसरी में मूंग की धुली हुई दाल थी. एक प्लेट में पापड़ और दूसरी में गाजर का अचार था. सलाद एक बड़ी प्लेट में सजा हुआ था. थाली में एक तरफ देसी घी से चुपड़ी चपाती रखी थी. लीना दूसरी गरम चपाती लाने को रसोई में गई थी.

ये भी पढ़ें- फ्लौपी

हम ने पहला कौर मुंह में रखा और सलाद की तरफ हाथ बढ़ाया ही था कि नजर पनीर की सब्जी की कटोरी पर जा कर अटक गई. देखा कि कोई कांटेदार चीज उभर कर डूब गई. ‘जहरीला कीड़ा,’ हमारे दिमाग में एकदम से उभरा और इसी के साथ मुंह से रोटी का टुकड़ा फिसल कर खाने की मेज पर आ गिरा.

कहीं लीना ने ‘कनखजूरा’ सब्जी में उबाल कर तो हमें नहीं परोस दिया? हम ने एकदम से अपना हलक पकड़ लिया ताकि कनखजूरे का जहर हलक से नीचे न उतर पाए.

‘‘क्या हुआ?’’ लीना चपाती प्लेट में रखते हुए पास में खड़ी हो कर बोली, ‘‘आप भी खाने के लिए कितने बेसब्र हैं, बिना फूंक मारे बच्चों की तरह गरम ग्रास मुंह में रख लिया.’’

‘‘सब्जी में…कनखजूरे का छौंक लगा है,’’ हम ने मटरपनीर की कटोरी की तरफ इशारा किया.

‘‘हाय राम, ‘‘कहां है भला?’’

‘‘ऊंह, बड़ी भोली बनती हो. लो, अपनी आंखों से देखो,’’ हम ने दोबारा कटोरी की ओर इशारा किया.

लीना ने सब्जी की कटोरी में चम्मच डाला और कुछ निकालते हुए बोली, ‘‘वाकई बहुत जहरीला कनखजूरा है,’’ और इसी के साथ उन के होंठों पर मुसकराहट खिल गई.

‘‘दांत मत निकालो…मुझे जल्दी से डाक्टर के पास ले चलो.’’

‘‘आप अपनी आंखें टेस्ट करवाइए,’’ लीना ने सब्जी से भरा चम्मच हमारे सामने कर दिया, ‘‘आप को यह प्याज का ऊपर वाला हिस्सा कनखजूरा नजर आता है?’’

चम्मच में सचमुच प्याज की जड़ों वाला टुकड़ा था.

‘‘लगता है जल्दी में यह भी तड़के में चला गया,’’ लीना ने प्याज का वह हिस्सा प्लेट में रख दिया.

‘‘मैं अभी सब्जी की दूसरी कटोरी लाती हूं.’’

‘‘रहने दो. भूख खत्म हो गई.’’

इस के कुछ दिन बाद नेल पालिश के घेरे में सजी एक और खबर थी कि किसी सुघड़ सुहागन ने बिना ग्रिल वाली खिड़की में खडे़ अपने ‘सुहाग’ को पीछे से ऐसी लात जमाई कि पति ने तीसरी मंजिल से सड़क पर गिरने के बाद पानी तक नहीं मांगा.

बेचारे पति का कुसूर सिर्फ इतना था कि उस ने पत्नी की पसंद की साड़ी ला कर नहीं दी थी.

आधी रात को लीना ने हमारा कंधा हिला कर हमें जगाया और कहा, ‘‘ सामने वाली खिड़की में जा कर देखना. बाहर से धमाकों की आवाज आ रही है.’’

लीना ने सामने वाली खिड़की की ओर उंगली उठाई. उस खिड़की के ऊपरी आधे भाग में सलाखें नहीं थीं.

बिना ग्रिल की खिड़की की तरफ देखते ही हमारा माथा ठनका. सुबह की सजीसजाई खबर आंखों के सामने नाचने लगी और साथ ही लीना की साडि़यों की फरमाइश कानों में गूंज उठी. तो क्या वह खिड़की में से लात जमा कर हमें नीचे सड़क पर पहुंचा कर अपनी साडि़यों की फरमाइश का बदला लेना चाहती है? यह सोच कर ही हम कांप उठे.

‘‘लीना डार्लिंग, मुझे बड़ी जोरों की नींद आ रही है.’’

‘‘आप को क्या सिर के बल खडे़ होना है? उठिए, मेरा हाथ थामिए,’’ लीना ने हाथ फैला दिया.

लीना का हाथ कस कर थामे हम आधी ग्रिल वाली खिड़की के पास खडे़ हो गए. हमें भरोसा था कि हमारा हाथ पकडे़ लीना हमें पीछे से ऐसी लात न जमा पाएगी कि हम सड़क पर पहुंच पानी की फरमाइश भी न कर सकें और अगर लीना ने हाथ छुड़ाने की कोशिश की तो हम खबरदार हो जाएंगे और खिड़की से एक तरफ हट कर अपना बचाव करेंगे.

ये भी पढ़ें- महावर की लीला

दूर कहीं रंगबिरंगी रोशनियां आकाश की ओर उठ रही थीं और धमाके हो रहे थे.

‘‘ऊंह, ख्वाहमख्वाह नींद खराब कर दी. आतिशबाजी हो रही है. शायद किसी की शवयात्रा है,’’ हम ने लीना का हाथ छोड़ दिया.

‘‘शवयात्रा,’’ लीना चौंक पड़ी.

‘‘मेरा मतलब, किसी की बरात है.’’ सुबह का सफेद साड़ी…शवयात्रा वाला समाचार हमारे दिमाग में चकरा रहा था. हम ने जल्दी से भूल को सुधारा.

बाकी की रात लीना डबल बेड के एक ओर पड़ी खर्राटे भरती रही और हम बरात में फटने वाले पटाखों के धमाकों का लेखाजोखा करते रहे.

कुछ दिनों से लीना अपनी छोटी बहन की शादी में जाने और वहां पर शगुन देने के लिए काफी भारी भरकम रकम का तकाजा करती आ रही थी. हम ने लीना को बोनस का कुछ हिस्सा, उधार उठा कर लाने के नाम पर देने की बात कही थी. मगर इतनी छोटी रकम बहन की शादी में खर्च करना उस की शान के खिलाफ था और इस से उसे हमारे खानदान की नाक कटती महसूस होती थी.

हम ने और ज्यादा उधार न मिलने का रोना रोते हुए लीना को इतनी रकम से ही काम चलाने को कहा था और यह भी बताया था कि हमारे खानदान की नाक बहुत ऊंची है अगर थोड़ीबहुत कट भी गई तो कोई फर्क न पडे़गा. मगर लीना ने ब्याह में जाने का प्रोग्राम कैंसल करने में अपनी शान समझी थी.

आज डिनर पर लीना ने जो समाचार हमें परोसा था वह रोंगटे खडे़ कर देने वाला था. लाल लिपस्टिक से सजाई गई इस खबर में एक पत्नी ने अपने प्रेमी से मिल कर अपने पति के नाम की सुपारी किसी पेशेवर हत्यारे को दी थी और उस ने पति का रामनाम सत्य कर दिया था.

वजह पत्नी की भतीजी की शादी थी और कम अकल पति उसे शादी में जा कर दिल खोल कर शगुन करने में नानुकुर कर रहा था. सो पत्नी ऐसे कगार पर पहुंच गई थी कि मायके में अपमान करवाने के बजाय आत्महत्या कर ले या फिर पति को ऊपर का टिकट थमा दे.

पत्नी ने आत्महत्या के पाप से बचने के लिए अपने प्रेमी से मिल कर पति के लिए स्वर्ग की सीट बुक करा कर पुण्य कमा लिया था.

हम ने इस समाचार को एक आंख से पढ़ कर दूसरी आंख से उड़ा दिया था क्योंकि हम जानते थे कि लीना केवल हमें दहला कर बोनस की पूरी रकम हथियाना चाहती है, हत्या करवाना नहीं.

डबल बेड के गुदगुदे गद्दे पर लीना आंखें बंद किए लेटी थी और साथ ही हम भी पैर पसारे आराम से सो रहे थे.

सोने से पहले हम लीना वाले गद्दे को उठा कर तसल्ली कर चुके थे कि बोनस के नोटों वाला लिफाफा बिलकुल सुरक्षित तो है न. हम ने लक्ष्मी को वहां इसलिए सुरक्षित समझा था क्योंकि हमें यकीन था कि लीना बोनस की रकम की तलाश में पूरे घर में छापामारी करेगी फिर भी उसे यह खयाल न आएगा कि लिफाफा उस के ही बेड पर बिछे गद्दे तले छिपा है.

आधी रात के बाद अचानक हमारी नींद खुल गई. अधखुली आंखों से बल्ब की धुंधली रोशनी में देखा कि लीना ने अपने तकिए में हाथ डाल कर मोबाइल निकाल कर लेटेलेटे कान से लगाया.

‘‘मैं दरवाजे पर खड़ा हूं, दरवाजा खोल दो,’’ लीना के मोबाइल से किसी मर्द की भारी आवाज उभरी…

लीना ने एक बार हमारी ओर देखा तो हम ने झट से आंखें बंद कर लीं और गहरी नींद में होने का नाटक किया. वह बेड से उठ कर दबे पांव दरवाजे की ओर बढ़ी. इस समय लीना ने किस की काल रिसीव की? यह सोच कर हमारे कान खडे़ हो गए.

बाहर वाले दरवाजे की कुंडी खुलने के साथ ही कोई दबे कदम अंदर आया और फिर दरवाजे के हलके से बंद होने की आवाज आई. थोड़ी देर तक लीना और किसी मर्द की फुसफुसाहट आती रही मगर बात हमारे पल्ले न पड़ी.

आने वाला कौन हो सकता है? यह सवाल हमारे जेहन में उभरा. ‘प्रेमी हत्यारा,’ सवाल का जवाब भी साथ ही उभरा था.

ये भी पढ़ें- मेरो मदन गोपाल

तो क्या बोनस के इन रुपयों की खातिर आज के समाचार की तरह लीना भी अपने किसी हत्यारे प्रेमी से मिल कर हमें यमपुरी पहुंचाने की ठान चुकी थी? इतने सालों का वैवाहिक जीवन गुजारने के बाद वह आज बहन की शादी में जाने की रुकावट बनने वाले कांटे को, यानी हमें अपने जीवन से निकाल फेंकेगी?

‘लानत है ऐसी पत्नी पर…और…और थू है हम पर भी,’ हमारी अंतरात्मा की आवाज आई, ‘जो बोनस के कुछ हजार रुपए की खातिर पत्नी को हत्यारिन बनाने पर तुला है, और अगले ही पल हम ने पूरा बोनस लीना के हवाले करने का फैसला कर लिया.

लीना दरवाजे पर आई और धीरेधीरे डबल बेड की ओर बढ़ी.

‘‘लीनाजी,’’ हम ने कहना शुरू ही किया था कि एक झटके में ही उन्होंने अपना हाथ हमारे मुंह पर रख दिया ताकि हम शोर न मचा पाएं.

‘‘मत मारो मुझे…मेरी हत्या…मत करो,’’ हम ने घुटी हुई आवाज में कहते हुए बेड से उठने की कोशिश की.

‘‘शोर मत मचाओ,’’ लीना सख्त मगर सांप की फुंकार जैसी आवाज में बोली. और उस ने हमारे मुंह को जकड़ कर हमारे उठने की कोशिश को विफल कर दिया.

हमारे बेडरूम के दरवाजे की ओर भागते हुए कदमों की आवाजें आईं.

हम ने लेटेलेटे ही तिरछी नजरों से बेडरूम के दरवाजे की तरफ देखा.

जीरो पावर के बल्ब की नीली रोशनी कमरे में बिखरी थी. हमें बेडरूम के दरवाजे पर कोई लंबातगड़ा आदमी, हाफ पैंट और बनियान पहने खड़ा दिखाई दिया. उस के हाथ में एक फंदा झूल रहा था और यह फंदा एक झटके में हमारा गला घोंट देगा.

‘‘ब…चा…ओ…ब…चा…ओ’’ हत्यारे को सामने पा कर हमारे गले से जोरजोर की चीखें निकल रही थीं.

‘‘क्यों आधी रात में शोर मचा कर महल्ले को जगा रहे हैं,’’ लीना ने अपने दोनों हाथ हमारे मुंह पर रख हमारी आवाज को हलक में घोंटने का यत्न किया.

‘‘मेरी हत्या मत करो…यह लो…यह लो.’’ और हम ने बोनस वाला लिफाफा लीना को पकड़ाते हुए दूसरे हाथ से अपने मुंह को छुड़ाने की आखिरी कोशिश की.

हत्यारा जल्दी से कमरे में आ गया और उस ने फंदे वाले हाथ को ऊपर उठाया. फंदा हमारी आंखों के सामने लहरा गया.

‘हिच’ की आवाज के साथ बेडरूम ट्यूब की रोशनी से भर गया.

हम ने फटी आंखों से सुपारी ले कर हत्या करने वाले उस गुंडे की ओर देखा तो दीवार के पास बिजली के स्विच पर हाथ रखे बलदेव भैया खडे़ थे. उन के दूसरे हाथ में अधखुली टाई लहरा रही थी.

‘‘बलदेव भैया आप?’’ हम बेड पर बैठ गए.

‘‘हां, मैं, लीना ने फोन किया था कि वह किसी कारणवश शादी में न पहुंच पाएगी. हम लोग समझ गए कि लीना शादी में न आने पर मजबूर है. शायद हम ने तुम्हें ठीक से न्योता न दिया था. सो मैं खुद ही उसे लेने चला आया.’’

आधी रात को दरवाजे की घंटी से तुम्हारी नींद खराब न हो इस के लिए मैं ने लीना के मोबाइल पर अपने पहुंचने और दरवाजा खोल देने की बात की.

एक पल को रुक  कर बलदेव भैया ने कहा, ‘‘मनोज, तुम्हें क्या हो गया है? ऐसे क्यों चिल्ला रहे थे कि जैसे कोई तुम्हारी जान ले रहा है. मैं कपडे़ बदलते बदलते भागा चला आया.’’

‘‘शायद सोते में कोई भयानक सपना देखा है…’’ लीना ने बोनस वाले लिफाफे में झांका. उस के चेहरे पर खुशी फूट पड़ी थी.

‘‘हां हां, सोते में डर गया था,’’ हम ने जल्दी से बात बनाई और लीना के हाथ में पकडे़ नोटों वाले लिफाफे को हसरत भरी नजरों से देखा.

अगली सुबह शादी में जाने के लिए अपना सामान पैक करते हुए लीना वही ‘बलमा नादान, समझाए न समझे मन की बतिया’ गा रही थी और हम ड्राइंग रूम में बैठे सोच रहे थे कि हम कितने बडे़ नादान बल्कि मूर्ख, पाजी और जाने क्याक्या हैं.

ये भी पढ़ें- जेनेरेशन गैप

बालम नादान…हो नादान…हां नादान, लीना तान बदलबदल गाए जा रही थी और हम अपना सिर पीट कर तबले पर संगत करना चाह रहे थे.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...