प्रसिद्ध धार्मिक नगरी चित्रकूट का एसपीएस यानी सदगुरु पब्लिक स्कूल अपने आप में एक ब्रांड है. अंग्रेजी माध्यम के इस स्कूल में

मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश दोनों राज्यों के बच्चे पढ़ते हैं, चित्रकूट (मध्य प्रदेश) से महज 6 किलोमीटर दूर स्थित है, कर्बी जिले (उत्तर प्रदेश) के सैकड़ों बच्चे यहां रोजाना पढ़ने के लिए बस से आते हैं.

इन्हीं सैकड़ों बच्चों में से श्रेयांश रावत और प्रियांश रावत की पहचान कुछ अलग हट कर थी. क्योंकि ये दोनों जुड़वां भाई भी थे और हमशक्ल भी. दोनों को पहचानने में कोई भी धोखा खा जाता था. 5-5 साल के ये मासूम अभी एलकेजी में पढ़ रहे थे. जुड़वां होने के अलावा एक और दिलचस्प बात यह भी थी कि रावत परिवार के ये दोनों ही नहीं बल्कि 11 बच्चे एसपीएस में पढ़ रहे थे. इन में से 2 श्रेयांश और प्रियांश के सगे बड़े भाई देवांश और शिवांश भी थे.

इन चारों भाइयों के पिता ब्रजेश रावत चित्रकूट के जाने माने तेल व्यापारी हैं. आयुर्वेदिक तेलों का कारोबार करने वाले ब्रजेश रावत ईमानदार, कर्मठ और मिलनसार व्यक्ति हैं. तेल के अपने पुश्तैनी कारोबार को उन्होंने अपनी मेहनत के दम पर ऊंचाइयों पर पहुंचाया है. इसी वजह से कर्बी से ले कर चित्रकूट तक उन की अपनी एक अलग पहचान है.

अपने कारोबार में मशगूल रहने वाले ब्रजेश रावत हर लिहाज से सुखी और संपन्न कहे जा सकते हैं. कर्बी के रामघाट में उन का बड़ा मकान है, जिस में पूरा रावत परिवार संयुक्त रूप से रहता है. उन के घर में हर वक्तचहलपहल रहती है जिस की बड़ी वजह वे 11 बच्चे भी हैं जो एसपीएस में पढ़ते थे.

ईश्वर में अपार श्रद्धा रखने वाले ब्रजेश रावत ने कभी सपने में भी उम्मीद नहीं की होगी कि कभी उन के साथ भी ऐसी कोई अनहोनी होगी जो जिंदगी भर उन्हें सालती रहेगी और जिन श्रेयांश और प्रियांश की मासूम किलकारियां और शरारतों से उन का घर आबाद रहता है, उन की यादें उम्र भर उन्हें काटने को दौड़ती रहेंगी.

रोजाना की तरह 12 फरवरी को भी दोपहर में लगभग 12 बजे एसपीएस की बसें लाइन से लग गई थीं. बच्चे अपनी बसों का नंबर पढ़ते हुए उन में सवार हो रहे थे. छोटी कक्षाओं के बच्चों में स्कूल की छुट्टी के बाद घर जाने की खुशी ठीक वैसी ही होती है जैसी जेल से लंबी सजा काट कर रिहा हुए कैदियों की होती है.

क्लास से लाइन में लग कर बाहर आए प्रियांश और श्रेयांश भी अपनी बस में सवार हो गए, जिस में ड्राइवर और कंडक्टर के अलावा एक केयरटेकर भी थी. जब बस के सभी बच्चे आ कर अपनीअपनी सीटों पर बैठ गए तो गेट बंद होने के बाद ड्राइवर ने बस स्टार्ट कर दी. इस बस का नंबर था एमपी19-0973.

स्कूल कैंपस से बस अभी 500 मीटर का फासला भी तय नहीं कर पाई थी कि न जाने कहां से एक लाल रंग की बाइक आई और बस के सामने रुक गई.

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ड्राइवर ने अचकचा कर बस धीमी की लेकिन जब तक वह माजरा समझ पाता तब तक बाइक पर सवार दोनों युवक नीचे उतर आए. उन में से एक के हाथ में पिस्टल थी. दोनों युवकों ने चेहरा भगवा कपड़े से ढक रखा था. फिल्मी स्टाइल में ही बस के गेट तक आए बदमाशों ने डरावनी चेतावनी दी और श्रेयांश और प्रियांश को नीचे उतार लिया.

कोई कुछ समझ या कर पाता इस के पहले ही दोनों ने श्रेयांश और प्रियांश को बाइक पर बीच में बैठाया और आंधीतूफान की तरह जैसे आए थे, वैसे ही उड़नछू हो गए. कहां गए यह कोई उन्हें ढंग से भी नहीं देख पाया.

यह जरूर है कि हर किसी को समझ आ गया कि दिन दहाड़े स्कूल बस में से दोनों का अपहरण हो गया है और अपहरणकर्ताओं का टारगेट श्रेयांश और प्रियांश ही थे, क्योंकि अगर किसी को भी उठाना होता तो बच्चे आगे की सीटों पर भी बैठे थे. लेकिन बदमाशों ने पीछे की सीट पर बैठे दोनों भाइयों को ही उठाया था यानी अपहरण की यह वारदात पूर्वनियोजित थी.

बाइक के नजरों से दूर होते ही कंडक्टर ड्राइवर और केयरटेकर सहित बच्चों का डर खत्म हुआ तो खासी हलचल मच गई. देखते ही देखते यह बात चित्रकूट की तंग और संकरी गलियों से होती हुई देश भर में फैल गई कि 2 जुड़वां भाईयों का दिनदहाड़े अपहरण हो गया.

अपहरण के बाद मिनटों में वारदात की खबर पुलिस और ब्रजेश रावत तक पहुंच गई. ब्रजेश भागेभागे स्कूल आए, लेकिन वहां उन के जिगर के ये दोनों जुड़वां टुकड़े नहीं थे. थी तो ऊपर बताई गई दास्तां जो हर किसी ने अपने शब्दों मे बयां की, जिस का सार यह था कि एक बाइक पर 2 नकाबपोश बदमाश आए. उन्होंने बाइक अड़ा कर बस रोकी, पिस्टल लहरा कर धमकाया और श्रेयांश व प्रियांश को बीच में बैठा कर उड़नछू हो गए.

मौके पर आई पुलिस के हाथ नया कुछ नहीं लगा, सिवाय उन सीसीटीवी फुटेज के जो स्कूल के कैमरों में कैद हो गई थी. इन फुटेज को देखने के बाद पुलिस वालों ने अंदाजा लगाया कि अपहरणकर्ताओं की उम्र 25-26 साल के लगभग है और उन की हरकतें देख लगता है कि वे पेशेवर हैं. पूछताछ में यह बात भी सामने आई कि 2 संदिग्ध युवक कुछ दिनों से स्कूल की रैकी कर रहे थे. चूंकि स्कूल में अभिभावकों और दूसरे लोगों की आवाजाही लगी रहती है इसलिए किसी ने उन से कुछ पूछा या कहा नहीं था.

सीसीटीवी फुटेज में दोनों के चेहरे नहीं दिखे क्योंकि उन्होंने भगवा कपड़ा बांध रखा था लेकिन यह जरूर पता चला कि एक बदमाश काली और दूसरा सफेद रंग की टी शर्ट पहने हुए था. यह आशंका भी जताई गई कि दोनों बदमाश बच्चों को ले कर अनुसुइया आश्रम की तरफ भागे हैं और बीच में उन की बाइक रजौरा के पास गिरी भी थी.

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चंद घंटों में ही मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में इस हादसे पर खासा बवाल मचा तो पुलिस भी एक्शन में आ गई. सतना के एसपी संतोष सिंह गौर ने कहा कि उत्तर प्रदेश पुलिस की मदद से बच्चों की सुरक्षित वापसी की कोशिशें की जा रही हैं.

अब तक यह भी कहा जाने लगा था कि बदमाश बच्चों को ले कर बीहड़ों में कूद गए होंगे और जल्द ही ब्रजेश रावत से फिरौती मांगेंगे. आशंका यह भी जताई गई कि इस वारदात के पीछे साढ़े 5 लाख के ईनामी बबुली कोल गिरोह का हाथ हो सकता है.

पुलिस ने संदिग्ध लोगों को पकड़ कर उन से पूछताछ शुरू कर दी थी, लेकिन हाथ कुछ नहीं लग रहा था. चित्रकूट को छूती मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की सीमाओं को सीज कर दिया गया. कर्बी के एसपी मनोज कुमार भी घटनास्थल पर पहुंच गए थे. पुलिस टीमों ने हर जगह बच्चों और बदमाशों को तलाशना शुरू कर दिया.

ब्रजेश रावत ने बारबार यह बात दोहराई कि उन का किसी से भी व्यक्तिगत या पारिवारिक विवाद नहीं है और न ही अब तक यानि घटना वाले दिन तक उन से किसी ने फिरौती मांगी है. घंटों के सघन अभियान के बाद भी प्रियांश और श्रेयांश का कोई सुराग नहीं लग रहा था. मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने डीजीपी वी.के. सिंह को तलब किया था. इसलिए पुलिस ने मुस्तैदी दिखाते अपने महकमे के उन सभी अधिकारियों को चित्रकूट बुलवा भेजा, जो कभी भी एंटी डकैत गतिविधियों का हिस्सा रहे थे.

ये तजुर्बेकार अधिकारी नौसिखिए अपराधियों के सामने किस तरह गच्चा खा रहे थे. यह खुलासा बाद में 13 फरवरी को हुआ. उसी दिन आईजी ने मोर्चा संभालते हुए एसआईटी गठित कर डाली, जिस के तहत दोनों राज्यों की पुलिस के लगभग 500 जवान विंध्य के बीहड़ों में बच्चों को तलाशते रहे. अपराधियों का सुराग देने पर डेढ़ लाख रुपए के ईनाम का ऐलान भी किया गया लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात रहा.

इसी बीच उम्मीद के मुताबिक अपहरणकर्त्ताओं ने रावत परिवार से संपर्क कर के मासूमों की रिहाई के एवज में 2 करोड़ रुपए मांगे. 19 फरवरी को रावत परिवार ने उन्हें 20 लाख रुपए दिए भी, लेकिन इस के बाद भी उन्होंने बच्चों को रिहा नहीं किया.

अब तक सार्वजनिक रूप से पुलिस की कार्यप्रणाली और लापरवाही की आलोचना होने लगी थी. चित्रकूट में तो आक्रोश था ही, कर्बी और सतना में भी लोगों ने सड़कों पर विरोध प्रदर्शन किए. अब भाजपाई और कांग्रेसी भी राजनीति पर उतर आए थे, जिस से लगा कि इन नेताओं को बच्चों की सलामती और जिंदगी से प्यारी अपनी आरोपप्रत्यारोप की परंपरागत राजनीति है.

श्रेयांश और प्रियांश कहां और किस हाल में हैं इस का अंदाजा कोई नहीं लगा पा रहा था. सदमे में डूबे रावत परिवार के सदस्य बच्चों की खैरियत को लेकर चिंतित थे. हर किसी का रोरो कर बुरा हाल था खासतौर से ब्रजेश रावत की पत्नी बबीता रावत का जो बच्चों की जुदाई के गम में होश खो बैठी थी.

पुलिस भागादौड़ी करती रही, दावे करती रही लेकिन 20 लाख रुपए देने के बाद भी बच्चे वापस नहीं लौटे तो रावत परिवार किसी अनहोनी की आशंका से कांपने लगा.

आशंका गलत नहीं निकली. 24 फरवरी को पुलिस ने उत्तर प्रदेश के बांदा जिले के बबेरू के पास यमुना नदी से प्रियांश और श्रेयांश की लाशें बरामद कीं. इन दोनों मासूमों के शव जंजीर से बंधे हुए थे.

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आस और उम्मीदें तो पहले ही टूट चुकी थीं, जिन पर मोहर लगने के बाद 12 फरवरी से ज्यादा हाहाकार मचा. अब हर कोई यह जानने को बेताब था कि अपहरणकर्ता कौन थे, कैसे पकड़े गए और इन्होंने कैसे हैवानियत दिखाते हुए फिरौती की रकम लेने के बाद भी मासूमों पर कोई रहम नहीं किया. प्रदेश भर में पुलिसिया प्रणाली के खिलाफ फिर जम कर हल्ला मचा, धरनेप्रदर्शन हुए और उम्मीद के मुताबिक फिर सियासत गरमाई.

पूरे घटनाक्रम में सुकून देने वाली इकलौती बात यह थी कि हत्यारे पकड़े गए थे, जिन की तादाद 6 थी.

हत्यारों को पकड़ने में पुलिस की भूमिका कोई खास नहीं थी, क्योंकि वे इत्तफाकन धरे गए थे. 24 फरवरी को फिर एक बार सनसनी मची और इतनी मची कि पुलिस वालों और सरकार को जवाब देना मुश्किल हो गया.

श्रेयांश और प्रियांश के शव इस दिन उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में यमुना नदी के बबेरू घाट पर मिले थे. दोनों शव के हाथ पैर बंधे हुए थे.

हैवानों ने इन मासूमों की कैसे जान ली होगी, इस के पहले यह जानना जरूरी है कि हत्यारे थे कौन और इतने शातिराना ढंग से उन्होंने कैसे इस वारदात को अंजाम दिया था. जब एक एक कर 6 हत्यारे पकड़े गए तो दिल को दहला देने वाली कहानी कुछ इस तरह सामने आई, जिस ने साबित भी कर दिया कि लोग बेवजह पुलिस को नहीं कोस रहे थे.

इस वारदात का मास्टरमाइंड पदम शुक्ला निकला, जिस के पिता रामकरण शुक्ला, पुरोहित और सद्गुरु सेवा संघ ट्रस्ट में संस्कृत के प्राचार्य हैं. पदम शुक्ला का छोटा भाई विष्णुकांत शुक्ला भाजपा और बजरंग दल से जुड़ा है. जानकीकुंड में रहने वाला शुक्ला परिवार भी चित्रकूट में किसी पहचान का मोहताज नहीं है, लेकिन इस की वजह इन के कुकर्म ज्यादा हैं.

अपहरण और हत्या का दूसरा अहम किरदार रामकेश यादव है जो मूलरूप से बिहार का रहने वाला है और पढ़ाई पूरी करने के बाद चित्रकूट में किराए का मकान ले कर रहता था. रामकेश रावत परिवार के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने जाता था.

उस का रावत परिवार में वही मान सम्मान था जो आमतौर पर ट्यूटर्स का होता है, रामकेश के दिल में अपराध का बीज यहीं से अंकुरित हुआ और इस से पेड़ बना पदम शुक्ला के दिमाग में.

इसमें कोई शक नहीं कि ब्रजेश रावत के पास पैसों की कमी नहीं थी, जिस का गुरुर उन्हें कभी नहीं रहा. संभ्रांत और संस्कारित रावत परिवार का वैभव रामकेश ने देखा तो इस रामनगरी में एक और रावण आकार लेने लगा.

पैसों की तंगी तो रामकेश को भी नहीं थी लेकिन रावत परिवार की दौलत देख उसके दिल में खयाल आया था कि अगर श्रेयांश और प्रियांश को अगुवा कर लिया जाए तो फिरौती में इतनी रकम तो मिल ही जाएगी कि फिर जिंदगी ऐशोआराम से कटेगी.

पाप का पौधा कितनी जल्दी वृक्ष बन जाता है, यह इस हत्याकांड से भी उजागर होता है. रामकेश ने जब यह आइडिया पदम से साझा किया तो उस की बांछें खिल उठीं.

फिर क्या था देखते ही देखते योजना बन गई और उस का पूर्वाभ्यास भी होने लगा. अपनी नापाक मुहिम को सहूलियत से पूरा करने के लिए इन दोनों ने अपने जैसे 4 और राक्षसों को साथ मिला लिया.

रातों रात मालामाल हो जाने के लालच के चलते इस नवगठित गिरोह में बहलपुर का रहने वाला विक्रमजीत, हमीरपुर का अपूर्व उर्फ पिंटू उर्फ पिंटा यादव, बांदा का लक्की सिंह तोमर और राजू द्विवेदी भी शामिल हो गए.

22 से 24 साल की उम्र के ये सभी अपराधी अभी पढ़ रहे थे. पदम आईटी सब्जेक्ट से इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा था. लकी तोमर उस का सहपाठी था. राजू द्विवेदी एग्रीकल्चर फैकल्टी के एग्रोनामी विषय से एमएससी कर रहा था और पिंटू यादव उस का सहपाठी था. ये पांचों ग्रामोदय विश्वविद्यालय के छात्र थे.

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जब गिरोह बन गया तो इन शातिरों ने अपहरण की योजना बनाई. इस बाबत इन के बीच दरजनों मीटिंगें हुईं जिन में संभावित खतरों पर विचार कर उन से बचने के उपाय खोजे गए. पदम का घर घटनास्थल से पैदल दूरी पर है, वह उस इलाके के चप्पेचप्पे से वाकिफ था.

12 फरवरी को श्रेयांश और प्रियांश का अपहरण करने के बाद ये लोग कहीं ज्यादा दूर नहीं भागे थे, जैसा कि हर कोई अंदाजा लगा रहा था. बबुली कौल गिरोह का नाम भी इन्होंने जानबूझ कर अपहरण के वक्त लिया था जिस के चलते पुलिस ने मान लिया था कि हो न हो इस कांड में इसी गिरोह का हाथ है.

श्रेयांश और प्रियांश को इन्होंने 3 दिन चित्रकूट के ही एक मकान में रखा जो लक्की सिंह से किराए पर लिया गया था. आमतौर पर ऐसे हादसों में होता यह है कि अपराधी घटनास्थल से दूर जा कर फिरौती मांगते हैं, जिस से किसी की भी, खासतौर से पुलिस की निगाह में न आएं. जिस मकान में दोनों मासूमों को रखा गया था वह एसपीएस के नजदीक ही है. इस चालाकी की तरफ पुलिस का ध्यान ही नहीं गया.

जिस बाइक से अपहरण किया गया था उस पर कोई नंबर प्लेट नहीं थी, बल्कि नंबर प्लेट पर रामराज्य लिखा हुआ था. बाइक पर भाजपा का झंडा लगा होने के कारण पुलिस वाले उसे रोकने की हिमाकत नहीं कर पाए थे.

चूंकि पदम का भाई बजरंग दल का संयोजक था, इसलिए पुलिस वालों ने रामराज्य को ही बाइक का नंबर मान लिया था. चित्रकूट और बांदा का हर एक पुलिसकर्मी पदम के भाई विष्णुकांत और उस की बाइक तक को पहचानता है, जिस के छोटे बड़े भाजपा नेताओं से अच्छे संबंध हैं. कई बड़े नेताओं के साथ खिंचाए फोटो उस ने फेसबुक पर श्ेयर भी कर रखे हैं.

वारदात के तीसरे दिन ही इन्होंने ब्रजेश रावत से फिरौती के 2 करोड़ रुपए मांगे थे लेकिन सौदा 20 लाख रुपए में पट गया था जो ब्रजेश रावत ने इन्हें दे भी दिए थे. जब चित्रकूट में बच्चों को रखना इन्हें जोखिम का काम लगने लगा तो उन्हें वे रोहित द्विवेदी गांव बबेरू ले गए. उस ने ही श्रेयांस और प्रियांश के यहां रहने का इंतजाम किया था. रोहित का पिता ब्रह्मदत्त द्विवेदी सिक्योरिटी गार्ड है.

सौदा तय हो जाने के बाद ब्रजेश रावत को उम्मीद थी कि आरोपी बच्चों को छोड़ देंगे. इधर चित्रकूट सतना और बांदा सहित पूरे मध्य प्रदेश में लोग सड़कों पर आ कर पुलिसिया लापरवाही के खिलाफ धरने प्रदर्शन दे रहे थे, जिस से कुछ और हुआ न हुआ हो लेकिन

इन छहों पर बाहरी दबाव बनने लगा था.

20 लाख रुपए देने से ब्रजेश रावत को इकलौता सुकून इस बात का मिला था कि आरोपियों ने 19 फरवरी को उन से फोन पर बच्चों की बात करा दी थी. बेटों की आवाज सुन कर उन्हें आस बंधी थी कि वे सलामत हैं और आरोपी अगर वादे पर खरे उतरे तो बेटे जल्द घर होंगे और उन की किलकारियों से घर फिर गूंजेगा.

आरोपियों ने बच्चों के साथ कोई खास बुरा बर्ताव नहीं किया था लेकिन उन्हें सुलाने के लिए जरूर नींद की गोलियां खिलाई थीं. बच्चों को व्यस्त रखने के लिए वे उन्हें मोबाइल पर वीडियो गेम खेलने देते थे. अब तक सब कुछ उन की योजना के मुताबिक हो रहा था और इन्होंने फिरौती में मिले 20 लाख रुपयों का बंटवारा भी कर लिया था, जिस का सब से बड़ा हिस्सा पदम शुक्ला को मिला था. एक आरोपी ने तो पैसे मिलते ही बाइक लेने का अपना सपना भी पूरा कर लिया था.

पुलिस अभी भी हवा में हाथपैर मार रही थी. इस मामले की एक हैरत वाली बात यह थी कि ब्रजेश शुक्ला का सेल फोन सर्विलांस पर रखा था लेकिन आरोपियों की पहचान उन के पास आ रहे फोन काल्स से नहीं हो पा रही थी. फिरौती के पैसे भी ब्रजेश रावत ने उत्तर प्रदेश पुलिस के जरिए दिए थे, जिस की भनक मध्य प्रदेश पुलिस को नहीं लगी थी.

नवगठित इस गैंग के सदस्य कितने शातिर थे इस का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि रामकेश पहले की तरह ही रावत परिवार के दूसरे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने के लिए जाता रहा था.

इसी बहाने वह घर के सदस्यों से प्रियांश और श्रेयांश के बारे में पूछ कर ताजा अपडेट हासिल कर लेता था और साथियों को बता देता था. उस की हकीकत से बेखबर रावत परिवार उस की खातिरदारी पहले की तरह करता रहा था.

होहल्ले के चलते इन छहों को अब पकड़े जाने का डर सताने लगा था और ब्रजेश रावत की जेब से और पैसा निकालने की उम्मीदें भी खत्म हो चली थीं. इसलिए इन्होंने शायद बच्चों को छोड़ने का फैसला कर लिया था.

जब फैसला हो गया तो बच्चों को छोड़ने का मन बना चुके आरोपियों को यह खटका लगा कि कहीं ऐसा न हो कि बच्चे जा कर उन की पहचान उजागर कर दें. इन लोगों ने अब तक जिस जुर्म को छिपा रखा था, बच्चों के छोड़ने पर वह खुल सकता था. इसलिए दोनों के कत्ल का इरादा बन गया.

लेकिन इस से पहले मन में आ गए डर को दूर करने की गरज से इन लोगों ने श्रेयांश और प्रियांश से पूछा कि छूट कर वे पुलिस को उन की पहचान यानी नाम वगैरह तो नहीं बता देंगे.

मासूमियत की यह इंतहा ही थी कि दोनों बच्चों ने ईमानदारी से जवाब दे दिया कि वे उन्हें  पहचान लेंगे. यह जवाब सुनना था कि हथकडि़यां इन की आंखों के आगे झूलती नजर आने लगीं. जिस से अब तक के किए धरे पर तो पानी फिरता ही साथ ही हाथ आए 20 लाख रुपयों का लुत्फ भी जाता रहता.

अपना जुर्म छिपाने के लिए इन्होंने दोनों मासूमों के हाथपैर जंजीर से बांधे, फिर उन्हें क्लोरोफार्म सुंघा कर बेहोश किया. इस के बाद पत्थर बांध कर उन्हें यमुना नदी के उगासी घाट पर पानी में फेंक दिया. यह 21 फरवरी की बात है.

साथ पैदा हुए साथ पले बढ़े और पढ़ेलिखे जुड़वां श्रेयांश और प्रियांश की लाशें भी साथसाथ 3 दिन पानी में तैरती रहीं और वे मरे भी साथ में. दोनों के शरीर पर वही स्कूल यूनिफार्म थी जो उन्होंने 12 फरवरी को स्कूल जाते वक्त पहनी थी.

लाशें बरामद हुईं तो इन मासूमों की हत्या को ले कर ऐसा बवाल मचा कि पूरा बुंदेलखंड इलाका त्राहित्राहि कर उठा. राजनेताओं ने भी चित्रकूट में बहती मंदाकिनी नदी में खूब हाथ धोए. भाजपाई और कांग्रेसी बच्चों की मौतों पर अफसोस जताते एकदूसरे को कोसते रहे.

पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मुख्यमंत्री कमलनाथ को निशाने पर रखा तो कांग्रेसी भी यह कहने से नहीं चूके कि यह सब भाजपाइयों का कियाधरा है.

राजनीतिक बवंडर से परे यह हुआ था कि आईटी से इंजीनियरिंग कर रहे 2 आरोपी बेहतर समझ रहे थे कि अगर वे अपने सेल फोन से ब्रजेश रावत से बात करेंगे तो फौरन धर लिए जाएंगे, इसलिए वे फोन काल के लिए या तो इंटरनेट का सहारा ले रहे थे या फिर बहाने बना कर राहगीरों का फोन इस्तेमाल कर रहे थे जिस से पता नहीं चल रहा था कि अपराधी हैं कौन और कहां से फोन कर रहे हैं.

कहावत पुरानी लेकिन सटीक है कि अपराधी कितना भी चालाक क्यों हो कोई न कोई भूल कर ही देता है ऐसा ही इस मामले में हुआ.

एक राहगीर से फोन मांग कर उन्होंने ब्रजेश रावत को फोन किया था तो उस राहगीर को बातचीत का मसौदा सुन इन पर शक हुआ था. हर किसी की तरह उसे भी श्रेयांश और प्रियांश के अपहरण के बारे में मालूम था.

ये लोग जिस का भी फोन लेते थे उसे यह कहना नहीं भूलते थे कि जिस नंबर पर फोन किया है उसे डिलीट कर देना. लेकिन इस समझदार और भले आदमी ने ऐसा नहीं किया और चुपचाप बिना इन की जानकारी के उन की बाइक का फोटो भी खींच लिया.

तब पुलिस ने इस राहगीर के नंबर पर फोन किया तो उस ने बाइक के फोटो पुलिस को दे दिए. इस बाइक के नंबर की बिना पर छानबीन की गई तो वह रोहित द्विवेदी की निकली. पुलिस ने उस की गरदन दबोच कर सख्ती की तो उस ने श्रेयांश और प्रियांश की हत्या का राज खोल दिया और पुलिस ने एक के बाद एक छहों हत्यारों को गिरफ्तार कर लिया.

हत्यारों की गिरफ्तारी की खबर भी आग की तरह फैली और लोगों ने चित्रकूट में बेकाबू हो कर सदगुरु ट्रस्ट पर पत्थर फेंके, वाहन जलाए, तोड़फोड़ की. इस के बाद पूरे मध्य प्रदेश में इन मासूमों को श्रद्धांजलियां दी गईं और हर किसी ने इन हैवानों के लिए मौत की सजा की मांग की.

श्रेयांश और प्रियांश के शवों का पोस्टमार्टम बांदा में किया गया, जिस के बाद दोनों के शव रावत परिवार को सौंप दिए गए.

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इन पंक्तियों के लिखे जाने तक कई बातें स्पष्ट नहीं हुई थीं, जिन के कोई खास माने भी नहीं वजह आरोपी अपना जुर्म स्वीकार चुके हैं. पिस्टल, बाइक, 17 लाख रुपए के अलावा वह बोलेरो कार भी बरामद की जा चुकी है. जिस में इन दोनों को चित्रकूट से बाहर ले जाया गया था.

चूंकि इस पर भी भाजपा का झंडा लहरा रहा था इसलिए पुलिस वालों ने उसे नहीं रोका. ब्रजेश रावत लगातार शक जताते रहे कि पकड़े गए लड़के तो मोहरे थे असल अपराधी और कोई है इसलिए मामले की सीबीआई जांच होनी चाहिए. छानबीन में यह बात भी सामने आई थी कि आरोपियों के संबंध उत्तर प्रदेश के बाहुबली नेता राजा भैया से थे. सीबीआई जांच होगी या नहीं यह तो नहीं पता, लेकिन मध्य प्रदेश सरकार ने जरूर एक जांच कमेटी गठित कर दी है जो कई बिंदुओं पर जांच कर रही है.

मुमकिन है कुछ हैरान कर देने वाली बातें सामने आएं, लेकिन यह सच है कि चित्रकूट में लाखों की भीड़ जमा रहती है, इसलिए यहां अपराधों की दर बढ़ रही है.

सच यह भी है कि निकम्मे और गुंडे किस्म के युवकों ने शार्टकट से पैसा कमाने के लिए एक हंसतेखेलते घर के जुड़वां चिराग बुझा दिए, जिस की भरपाई कोई जांच पूरी नहीं कर सकती.द्य

 

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