2014 के चायवाले ने 2019 में खुद को चौकीदार घोषित कर दिया है. वजह है लोकसभा चुनाव. पिछली बार तो वह खुद ही चायवाला बना, बाकी सबको बनाने की कोशिश नहीं की, मगर इस बार तो वह न सिर्फ खुद चौकीदार बन गया, बल्कि पूरे देश को चौकीदार बनाने की मुहिम में लग गया है, मगर चौकीदार किसका बनना है, मालिक कौन है, चौकीदारी किस चीज की करनी है, किससे करनी है, यह बातें साफ नहीं बता रहा है.

हरदोई के बसरी गांव का किसान मुछई कह रहा है हमारे पास क्या धरा है जो हमें चौकीदार रखना पड़े? बित्ते भर का खेत है, कभी कुछ उग जाता है, कभी खाली पड़ा रहता है. उसके लिए चौकीदार रखें तो क्यों रखें और रख भी लें तो उसे पगार कहां से दें? खुद खाने के लाले पड़े हैं, बच्चे भूखे मर रहे हैं, बीवी बिना इलाज मर गयी. हम तो उन 15 लाख रुपयों की बाट ही जोहते रहे गये जो साहेब ने भेजने को कहा था. 15 लाख आते तो जिन्दगी में अच्छे दिन आते. अब मुछई को कौन समझाये कि 15 लाख और अच्छे दिन की बात तो बस सपनों के सौदागर का झुनझुना था, अब उसी झुनझुने से चौकीदार...चौकीदार... का शोर निकल रहा है.

सोशल मीडिया पर ‘मैं भी चौकीदार’ के लिए सिर-फुटव्वल शुरू हो चुकी है. सुषमा स्वराज, राजनाथ सिंह, अमित शाह, निर्मला सीतारमण जैसे धुरंधरों समेत पूरी मोदी-कैबिनेट चौकीदार बन गयी है. पांच साल तक चोरों की फौज तैयार करते रहे, जनता का पैसा देश से बाहर भेजते रहे और अब चौकीदार बन गये. कोई पूछे कि अब किस बात की चौकीदारी भाई! माल तो सारा मोदी, माल्या, चौकसी ले उड़े!
राहुल बाबा बिना लाग-लपेट के खरी बात कहते हैं कि- ‘चौकीदार चोर है’. उनकी बात में दम है. भाजपा नेत्री पंकजा मुंडे ने जब मारे उत्साह के साहेब के ट्वीट पर ट्वीट किया कि- ‘मैं भी चौकीदार’ तो एक मीडियाकर्मी ने तुरंत पूछ लिया- ‘तो चिक्की कौन खाया?’ अब पंकजा मुंडे चुप हैं. 206 करोड़ रुपये की चिक्की जो आदिवासी बच्चों के लिए खरीदी गयी थी, आखिर कहां गयी, इसका जवाब चौकीदारनी के पास नहीं है.

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