एक बड़े महानगर से दूसरे महानगर में स्थानांतरण होने के बाद मैं अपने कमरे में सामान जमा रही थी कि दरवाजे की घंटी बजी.

‘‘कौन है?’’ यह सवाल पूछते हुए मैं ने दरवाजा खोला तो सामने एक अल्ट्रा माडर्न महिला खड़ी थी. मुझे देख कर उस ने मुसकरा कर कहा, ‘‘गुड आफ्टर नून.’’

‘‘कहिए?’’ मैं ने दरवाजे पर खड़ेखड़े ही उस से पूछा.

‘‘मेरा नाम बसंती है. मैं यहां ठेकेदारी का काम करती हूं,’’ उस ने मुझे बताया. लेकिन ठेकेदार से मेरा क्या रिश्ता…यहां क्यों आई है? ऐसे कई सवाल मेरे दिमाग में आ रहे थे. मैं कुछ पूछती उस के पहले ही उस ने कहना जारी रखते हुए बताया, ‘‘आप को किसी काम वाली महिला की जरूरत हो तो मैं उसे भेज सकती हूं.’’

मैं ने सोचा चलो, अच्छा हुआ, बिना खोजे मुझे घर बैठे काम वाली मिल रही है.

मैं ने कहा, ‘‘जरूरत तो है…’’ पर मेरा वाक्य पूरा भी नहीं हुआ था कि वह कहने लगी, ‘‘बर्तन साफ करने के लिए, झाडू़ पोंछा करने के लिए, खाना बनाने के लिए, बच्चे संभालने के लिए…आप का जैसा काम होगा वैसी ही उस की पगार रहेगी.’’

मैं कुछ कहती उस से पहले ही उस ने फिर बोलना शुरू किया, ‘‘उस की पगार पर मेरा 2 प्रतिशत कमीशन रहेगा.’’

‘‘तुम्हारा कमीशन क्यों?’’ मैं ने पूछा.

‘‘हमारा रजिस्टे्रेशन है न मैडम, जिस काम वाली को हम आप के पास भेज रहे हैं उस के द्वारा कभी कोई नुकसान होगा या कोई घटनादुर्घटना होगी तो उस की जिम्मेदारी हमारी होगी,’’ उस ने मुझे 2 प्रतिशत कमीशन का स्पष्टीकरण देते हुए बताया.

‘‘यहां तो काम…’’

‘‘बर्तन मांजने का होगा, आप यही कह रही हैं न,’’ उस ने मेरी बात सुने बिना पहले ही कह दिया, ‘‘मैडम, कितने लोगों के बर्तन साफ करने होंगे, बता दीजिए ताकि ऐसी काम वाली को मैं भेज सकूं.’’

‘‘तुम ने अपना नाम बसंती बताया था न?’’

‘‘जी, मैडम.’’

‘‘तो सुनो बसंती, मेरे घर पर बर्तन मांजने, पोंछने वाली मशीन है.’’

‘‘सौरी मैडम, कपड़े साफ करने होंगे? तो कितने लोगों के कपड़े होंगे? मुझे पता चले तो मैं वैसी ही काम वाली जल्दी से आप के लिए ले कर आऊं.’’

‘‘बसंती, तुम गजब करती हो. मुझे मेरी बात तो पूरी करने दो,’’ मैं ने कहा.

‘‘कहिए, मैडमजी.’’

‘‘मेरे घर पर वाशिंग मशीन है.’’

‘‘फिर आप को झाड़ ूपोंछा करने वाली बाई चाहिए…है न?’’

‘‘बिलकुल नहीं.’’

उस ने यह सुना तो उसे बहुत आश्चर्य हुआ. कहने लगी, ‘‘कपड़े धोने वाली नहीं, बर्तन मांजने वाली नहीं,

झाड़ू पोंछे वाली नहीं, तो फिर मैडमजी…’’

‘‘क्योंकि मेरे घर पर वेक्यूम क्लीनर है, बसंती.’’

‘‘फिर खाना बनाने के लिए?’’ उस ने हताशा से अंतिम आशा का तीर छोड़ते हुए पूछा.

‘‘नो, बसंती. खाना बनाने के लिए भी नहीं, क्योंकि मैं पैक फूड लेती हूं और आटा गूंथने से ले कर रोटी बनाने की मेरे पास मशीन है,’’ मैं ने विजयी मुसकान के साथ कहा.

उस के चेहरे पर परेशानी झलकने लगी थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर इस नए घर से उसे 2 प्रतिशत की आमदनी होने वाली थी उस का क्या होगा.

उस ने हताशा भरे स्वर में कहा, ‘‘मैडमजी, मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है कि जब सबकुछ की मशीन आप के पास है तो आखिर आप को काम वाली महिला क्यों चाहिए? उस का तो कोई उपयोग है ही नहीं.’’

मुझे भी हंसी आ गई थी. मुझे हंसता देख कर उस की उत्सुकता और बढ़ गई. उस ने बडे़ आदर के साथ पूछा, ‘‘मैडमजी, बताएं तो फिर वह यहां क्या काम करेगी?’’

कुछ देर चुप रही मैं. उस ने अंतिम उत्तर खोज कर फिर कहा, ‘‘समझ गई.’’

‘‘क्या समझीं?’’

‘‘घर की रखवाली के लिए चाहिए?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘बच्चों की देखरेख के लिए?’’

‘‘नो, बसंती. मैं ने अभी शादी भी नहीं की है.’’

‘‘तो मैडमजी, फिर आप ही बता दें, आप को काम वाली क्यों चाहिए?’’

अब मैं ने उसे बताना उचित समझा. मैं ने कहा, ‘‘बसंती, पिछले दिनों मैं दिल्ली में थी और आज नौकरी के चक्कर में बंगलौर में हूं. मुझे अच्छी पगार मिलती है. मेरा दिन सुबह 5 बजे से शुरू होता है और रात को 11 बजे तक चलता रहता है. मेरी सहेली कंप्यूटर है. मेरे रिश्तेदार सर्वे, डाटा, प्रोजेक्ट रिपोर्ट हैं. सब सिर्फ काम ही काम है. मेरे घर में सब मशीनें हैं. मुझे एक महिला की जरूरत है जो मेरे खाली समय में मुझ से बातचीत कर सके. मुझे इस बात का एहसास कराती रहे कि मैं भी इनसान हूं. मैं भी जिंदा हूं. मैं मशीन नहीं… समाज का अंग हूं.’’

मैं ने उसे विस्तार से अपनी पीड़ा बताई. मेरी बात सुन कर वह ठगी सी रह गई. उस ने आगे बढ़ कर मुझ से कहा, ‘‘मैडमजी, आप को ऐसी काम करने वाली महिला मैं भी नहीं दिला पाऊंगी,’’ कह कर वह कमरे से निकल गई.

मुझे लगा कि सब को अपनेअपने एकांत का वनवास खुद ही भोगना होता है. मैं फिर अपने कमरे का सामान जमाने में लग गई.

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