औरतें हों या मर्द, आमतौर पर शरीर के किसी भी भाग में कोई तकलीफ होने पर वे अपने परिचितों से चर्चा जरूर करते हैं और डाक्टर के पास अपना इलाज कराने के लिए पहुंच जाते हैं, पर अगर शरीर के गुप्तांगों में कोई तकलीफ होती है तो उसे वे न तो किसी परिचित को बताते हैं और न ही जल्दी डाक्टर को दिखाते हैं.

गुदा में होने वाली बवासीर, फिशर, भगंदर जैसी बीमारियों को ले कर भी इसी तरह की हिचक देखने में आती है.

नागपुर के डाक्टर प्रवीण जयप्रकाश गुप्ता के मुताबिक, गुदा संबंधी बीमारियों की वजह मुख्य रूप से ज्यादा तेल वाला मिर्चमसालेदार भोजन ही है. बच्चे को जन्म देते समय औरतों के ज्यादा जोर लगाने से भी इस बीमारी के होने का डर रहता है.

बवासीर

बवासीर के शुरुआती लक्षणों में गुदा के आसपास खुजली रहना व शौच करते समय बहुत तेज दर्द होना है. इस के अलावा शौच से निबटने के बाद मलद्वार से खून बहना, सफेद तरल चीज आना, मस्सों का बाहर आना भी बवासीर के लक्षण हो सकते हैं.

आजकल बवासीर की समस्या आम हो गई है. यह बीमारी कई वजहों से हो सकती है, लेकिन अहम वजह खानपान में गड़बड़ी है, जिस के चलते कब्ज होती है. कब्ज के चलते ही मलद्वार पर जोर लगाना पड़ता है और फिर यह समस्या शुरू होती है.

बवासीर में गुदा के निचले और अंदरूनी हिस्से की नसों में सूजन आ जाती है. इस की वजह से जगहजगह मस्से उभर आते हैं. ये मस्से कभी बाहर आ जाते हैं तो कभी अंदर ही रहते हैं. शौच करते वक्त जब इन नसों पर दबाव पड़ता है तो तेज दर्द होता है.

यह बीमारी एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में भी हो सकती है. उम्र बढ़ने के साथसाथ यह समस्या भी बढ़ती जाती है.

यह है इलाज

डाक्टरों के मुताबिक, शुरुआती दौर में बवासीर का इलाज दवाओं से ही किया जा सकता है. मस्से छोटे होते हैं, इसलिए दवाओं से ही उन्हें खत्म किया जा सकता है.

गंभीर रूप ले लेने के बाद वे दवाओं से ठीक नहीं हो पाते हैं. गंभीर अवस्था में डाक्टर पहले इस बीमारी को इंजैक्शन से ठीक करने की कोशिश करते हैं. इसे एंडोस्कोपिक स्क्लरोथैरेपी भी कहते हैं.

इंजैक्शन के असर के चलते मस्से सूख जाते हैं. एक महीने बाद दोबारा इंजैक्शन लगाया जाता है. बचे हुए मस्से दूसरे इंजैक्शन से कंट्रोल में आ जाते हैं.

एक बार इंजैक्शन लगाने में तकरीबन 2,000 से 3,000 रुपए का खर्च आता है. जब मस्से बहुत ज्यादा बढ़ जाते हैं, तो हेमरौयडेक्टमी से ही उन्हें पूरी तरह से हटाया जाता है.

इस सर्जरी के दौरान मरीज को एनेस्थीसिया दे कर बेहोश किया जाता है. बाद में सर्जरी के दौरान गुदा के अंदरूनी और बाहरी मस्सों को काट कर शरीर से अलग कर दिया जाता है.

सर्जरी होने के बाद 2-3 दिनों तक मरीज को अस्पताल में ही रखा जाता है. ठीक होने में भी हफ्तेभर का समय लग जाता है.

आजकल लेजर तकनीक से बवासीर का इलाज आसान हो गया है. लेजर किरणों के द्वारा मस्सों को हटा दिया जाता है और मरीज को उसी दिन अस्पताल से छुट्टी दे दी जाती है.

भगंदर

जब किसी आदमी को यह बीमारी हो जाती है तो उस के गुदाद्वार के पास सूजन हो कर फोड़ा बन जाता है. यह फोड़ा कुछ दिनों में फूट जाता है और छेद बन जाता है. उस में से मवाद व खराब खून निकलने लगता है.

यह फोड़ा कभीकभी बहुत चौड़ा व गहरा होता है. इस फोड़े के चलते मरीज को गुदाद्वार के पास बहुत तेज दर्द होता है.

जबलपुर के गुदा रोग विशेषज्ञ डाक्टर मुकेश श्रीवास्तव के मुताबिक, इस बीमारी का प्रमुख लक्षण गुदा में तेज दर्द होता है, जो बैठने पर बढ़ जाता है. गुदा के पास खुजली व सूजन होती है. चमड़ी लाल हो कर फट सकती है और वहां से मवाद या खून रिसता है और मल त्याग के समय तेज दर्द होता है.

इस बीमारी का एकमात्र इलाज सर्जरी है. सर्जरी के जरीए भीतरी रास्ते से ले कर बाहरी रास्ते तक की भगंदर को निकाल दिया जाता है. इस सर्जरी के बाद रिकवरी होने में 6 हफ्ते से ले कर 3 महीने तक का समय लग सकता है.

वीडियो असिस्टैड एनल फिस्टुला ट्रीटमैंट सुरक्षित और दर्दरहित इलाज है. इस में मरीज को एक दिन में ही अस्पताल से छुट्टी मिल जाती है. इस सर्जरी में माइक्रो एंडोस्कोप का इस्तेमाल किया जाता है.

फिशर

गुदा संबंधी बीमारियों में एक नाम फिशर भी है. फिशर में गुदा के आसपास क्रैक जैसी हालत बन जाती है. ये क्रैक छोटे और बड़े दोनों तरह के होते हैं. कई बार इन से भी खून आता है. अकसर मरीज फिशर से ग्रस्त होने के बाद भी खुद को बवासीर से ग्रस्त समझता है. लेकिन फिशर और बवासीर अलगअलग बीमारियां हैं. बवासीर में गुदा के अंदर और बाहरी नसों में सूजन आ जाती है, जबकि फिशर में ऐसा नहीं होता है.

खानपान का रखें ध्यान

डाक्टर बीएल चौहान बताते हैं कि गुदा संबंधी बीमारियों से बचाव व इलाज में खानपान का ध्यान रखा जाना बेहद जरूरी है. सलाद से भरपूर भोजन करना चाहिए जो कब्ज दूर कर सके. खाने में फाइबर से भरपूर चीजों का इस्तेमाल करें. इस से पेट सही रहता है और कब्ज दूर होती है.

इस के लिए भोजन में साबुत अनाज और हरी पत्तेदार सब्जियों को शामिल करें. ताजा फल और हरी सब्जियों में सब से ज्यादा मात्रा में एंटीऔक्सिडैंट पाया जाता है, इसलिए इन को खाने में नियमित रूप से शामिल करें.

भोजन में एंटीऔक्सिडैंट से भरपूर चीजों को शामिल करने से खून के दौरे में सुधार आता है. इस से मलद्वार के आसपास के टिशू में मजबूती आती है. इस के लिए नीबू, नारंगी वगैरह को भोजन में शामिल करें. अच्छे पाचन और कब्ज दूर करने के लिए दिनभर में कम से कम 12 लिटर पानी पीने की सलाह डाक्टरों द्वारा दी जाती है, क्योंकि कम पानी पीने से आंत की दीवारें पानी खींच लेती हैं. इस के चलते मल कड़ा हो जाता है.

मरीज ढीलेढाले अंदरूनी कपड़ों का इस्तेमाल करे. इस से बवासीर पर रगड़ नहीं लगेगी. शौच के दौरान जोर न लगाएं और गुदाद्वार के आसपास खुजली करने से बचें. इस से संक्रमण फैलने का खतरा बना रहता है.

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