कास्टिंग काउच के लिए दोषी भले ही पुरुष समाज हो लेकिन इस कृत्य में कहीं न कहीं महिलाओं की मूक सहमति भी छिपी होती है. ऐसे में समाज में एक सियाह सच बन चुके कासटिंग काउच पर रोक लगाना कैसे संभव है भला.

कास्टिंग काउच आज की दुनिया का एक सियाह सच है. फिर चाहे वह फिल्मी दुनिया, टीवी इंडस्ट्री या मौडलिंग क्षेत्र हो या फिर नौकरी या शिक्षा का क्षेत्र,  सभी क्षेत्रों में कास्टिंग काउच होता है.यह सभी जानते हैं. लेकिन कोई इस के बारे में बात नहीं करना चाहता. बहुत कम लोग ऐसे हैं जो इस मामले को सब के सामने उजागर करने की हिम्मत जुटाते हैं. यही नहीं, आजकल हर तरफ एक जाल बिछा है, युवक हों या युवती, दोनों को ही कभी न कभी किसी रूप में सामना करना पड़ता है. हो सकता है युवकों को इसका कम सामना करना पड़े. युवती से तो पहली शर्त यही होती है कि अकेले में आ कर मिलो.

मेरी एक सहेली, सीमा (परिवर्तित नाम) लेखिका है. उसके अनुसार लेखन की दुनिया भी इससे अछूती नहीं. सीमा ने जो भी बताया, बहुत चौंकाने वाला था.

सीमा और उसी के शहर के एक दैनिक अखबार के संपादक के बीच की वार्ता से आपको रूबरू करवाते हैं :

संपादक : सुप्रभात.

सीमा : नमस्ते सर.

संपादक : आपकी मेल मिली.

सीमा : धन्यवाद.

संपादक : क्या करती हो?

सीमा : लेखिका हूं.

संपादक : लेखन से गुजारा हो जाता है और क्या करती हो?

सीमा : नहीं, हाउसवाइफ हूं.

संपादक : अपनी रचना और 2 फोटो भेजो, यहीं इनबौक्स में.

सीमा : मेल से नहीं?

संपादक : तुम्हारी खुली नहीं. मैं ने तो बहुत कोशिश की. इसीलिए इनबौक्स में ही आओ. वैसे तुम बहुत अच्छी हो. संपर्क बनाए रखो. बताओ, अच्छी हो या नहीं?

सीमा : पता नहीं.

सीमा को यह वार्तालाप अजीब लगा. उसने कुछ दिनों तक कोई कविता नहीं भेजी. फिर एक दिन उसी संपादक महोदय का मैसेज आया.

संपादक : मन सागर तन गागर, मिले कैसे प्रेम बागर. हमने कहा था फोन करना, क्यों नहीं किया? समय निकाल कर फोन करो. अकेलापन रहने नहीं देता. पर सीमा ने फोन नहीं किया. फिर एक मैसेज आया.

संपादक : जीवन बेनूर हो गया है, हर सपना चूर हो गया है. उज्ज्वल भविष्य की उम्मीद खाक, ईमानदार पत्रकारिता का जो गुरूर हो गया है.

सीमा ने गुस्से में कौल किया तो उस की आवाज सुनते ही महाशय बोले,’’ अरे जान, तुम कहां थीं? तुम्हारी आवाज सुनते ही तनमन झूम गया.

सीमा ने कहा,  आपकी हिम्मत कैसे हुई इस तरह बात करने की?

‘‘क्या हुआ तुम्हें प्रिये? कविता नहीं छपवानी क्या?’’

नहीं, सीमा ने साफ मना कर दिया. लालच दिया संपादक ने.

संपादक ने फिर भी पीछा नहीं छोड़ा, ‘‘पैसा नहीं कमाना चाहती क्या?’’

‘‘इस तरह से बिलकुल नहीं, आपने शायद मुझे गलत समझा,’’ सीमा ने हिम्मत दिखाई.

अब संपादक गिड़गिड़ाया, अरे नहीं, मैंने गलत नहीं समझा. मैं तो बस इतना कह रहा हूं.एक दिन अकेले में आ कर मिलो. एक कप साथ में बैठ कर कौफी पी लें. थोड़ी सी बातें कर लें. एकदूसरे को जान लें.

सीमा ने उस संपादक के नंबर को ब्लौक कर दिया. पर मन में डर बना रहा कि कहीं कोई अनहोनी न हो, क्योंकि मेल में उस ने घर का पता भी भेजा था. यही नहीं, इसके अलावा भी कुछ लोगों ने सीमा को लालच दिया कि मंथली बेसिस पर लेख लेंगे लेकिन शर्त वही, ‘एक मुलाकात अकेले में.’

अकेले का मतलब क्या है, आप समझ ही गए होंगे. शुरू-शुरू में उसे बहुत बुरा लगा क्योंकि वह पत्रकारिता की दुनिया को साफसुथरा समझती थी. सीमा के अनुसार, धीरे-धीरे औफर्स इतने कौमन होते जाते हैं कि फिर इन से फर्क पड़ना बंद हो जाता है.

महिला का शोषण हर जगह और हर रूप में हो रहा है. कहीं दहेज तो कहीं शादी और कहीं नौकरी के नाम पर उस का यौनशोषण किया जाता है. कहीं गरीबी तो कहीं स्टेटस के नाम पर वह बिकने को मजबूर है.

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झारखंड में तो औरत की इज्जत बिकना जैसे उस की नियति बनती जा रही है. कुछ ही दिनों पहले एक ऐसा मामला सामने आया है, जिसमें छात्रा दिल्ली के दौलतराम कालेज में पढ़ती है. कालेज के राजनीति शास्त्र के प्रोफैसर कक्षा के दौरान छात्रा के संपर्क में आए और फिर नजदीक आने का बहाना ढूंढ़ने लगे. 17 वर्षीया छात्रा का आरोप है कि प्रोफैसर शुरू से ही उस पर गलत निगाह रखते थे और नजदीक जाने पर किसी न किसी बहाने से उसे गलत तरीके से छूते थे. लिहाजा, वह प्रोफैसर से दूरियां बनाने लगी.एक दिन प्रोफैसर ने छात्रा को कैंटीन के पास रोक लिया और गंदे शब्दों से संबोधित कर उससे छेड़छाड़ की. छात्रा के मुताबिक, प्रोफैसर उसे अकेले मिलने को बुलाते थे और अश्लील व्हाट्सऐप मैसेज भेजते थे. छात्रा का कहना है कि जब उसने छेड़छाड़ की शिकायत करने को कहा तो प्रोफैसर ने उस को फेल करने की धमकी दी. इन बातों से छात्रा मानसिक तौर से काफी परेशान रहने लगी. बाद में दोस्तों की सलाह पर छात्रा ने प्रोफैसर के खिलाफ थाने में शिकायत दर्ज करा दी.

महर्षि दयानंद यूनिवर्सिटी, रोहतक के खेल निदेशक देवेंद्र ढुल के खिलाफ यूजीसी-नैट क्लीयर करवाने का झांसा दे कर यौन शोषण करने के आरोप में केस दर्ज कराया गया था. ढुल पर आरोप लगाने वाली छात्रा ने अपनी शिकायत में लिखा था कि अधिकारी ने उसे नैट परीक्षा में पास कराने व पीएचडी की डिग्री दे कर लैक्चरर की नौकरी दिलवाने के एवज में औफिस के बजाय कहीं बाहर अकेले मिलने को कहा था.

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उत्तर प्रदेश, ग्रेटर नोएडा की गलगोटिया यूनिवर्सिटी की एक छात्रा ने अपने प्रोफैसर पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था. छात्रा के अनुसार, उपस्थिति कम होने की वजह से उसे एग्जाम में बैठने से रोक दिया गया. इसके बाद उस ने ब्रांच के प्रोफैसर से मुलाकात कर एग्जाम में बैठाने की अपील की. प्रोफैसर ने उसे ज्यादा नंबर दिलाने और प्रतिदिन अधिक क्लासेस पढ़ने के लिए कहा. प्रोफैसर ने 3 दिनों तक तो उसे यूनिवर्सिटी में ही पढ़ाया. इसके बाद उससे घर पर आ कर पढ़ने के लिए कहा. घर पर बुलाने के बाद प्रोफैसर उस छात्रा का रोज यौन उत्पीड़न करता रहा.

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साहित्य विभाग के एक युवा असिस्टैंट प्रोफैसर ने एक छात्रा को पढ़ाने के बहाने अपने घर बुला कर उसके साथ कई बार शारीरिक संबंध बनाए और चुप रहने की धमकी भी दी. यही नहीं, इस प्रोफैसर ने अपने रसूख का इस्तेमाल कर उस लड़की को एमए कोर्स में फेल भी करा दिया.

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दरअसल, आप किसी भी पद पर हों, उस से फर्क नहीं पड़ता, पर आप एक महिला हैं तो सिर्फ इस कारण आपको कई दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है. ऐसे कई पुरुष मिल जाएंगे जो मिलने पर हाय-हैलो करना नहीं भूलते. पर पीठ-पीछे उनकी निगाहें लड़की होने का अर्थ समझा देती हैं.

यह सच है कि हमारे देश में महिलाएं प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति और मुख्यमंत्री भी रह चुकी हैं, फिर भी वे शोषण का शिकार हैं. यह एक कड़वी सचाई है. बजाय इसके कि हम उन की मानसिक पीड़ा को कम करें, हम महिला शोषण पर लिख कर उन के प्रति सिर्फ सहानुभूति दर्शाति हैं और इतने ही कर के अपने कर्तव्यों का पूरा होना मान लेते हैं.

समाज में महिलाओं की स्थिति

अत्याचार सिर्फ वही नहीं होता जो कानून की दफाओं में दर्ज हो. हमारे देश में महिलाओं की हालत सिर्फ नारों के आसपास ही घूमती रहती है. सशक्तीकरण, आजादी, इज्जत और बराबरी का हक सिर्फ किताबों में धूल फांक रहा है. इनका जमीनी हकीकत से कोई लेनादेना नहीं है.आज की महिला को जो विशेष सम्मान या दर्जा मिला है, वह सिर्फ कैलेंडर और तस्वीरों की शोभा बढ़ाता है. जमीनी हकीकत में तो वह अब भी सिर्फ मांस का लोथड़ा भर है, जो पुरुषों के नोचने-खसोटने भर के लिए है. उसकी अपनी कोई इच्छा नहीं है, अपना कोई वजूद नहीं है. वह तब तक आजाद है जब तक पुरुष चाहे. वह तब तक खुश रह सकती है जब तक कि पुरुष उसमें बाधा न डाले. समाज और समुदायों में इसी ‘मर्दानगी’ को मजबूत किया जाता है. इस से महिलाओं को पुरुषत्व का बोध कराया जाता है और इस चल रही रीति को आगे बढ़ाया जाता है. लिहाजा, मर्द महिला का बलात्कार कर अपनी कुंठा को निकालता है.

दोनों तरफ से सहमति

लखनऊ स्थित एजुकेशनल टीवी सैंटर एसआईई के हेमंत का इस बारे में कहना है, ‘‘यौन उत्पीड़न की घटनाएं हर क्षेत्र में होती हैं.’’ आज से 8-10 साल पहले का वाकया बताते हुए वे कहते हैं, ‘‘उस समय दूरदर्शन पर औडिशन हुआ तो अनाउंसर की पोस्ट के लिए एक युवती का सिलैक्शन हुआ. डायरैक्टर साहब आशिकमिजाज थे, वे उस युवती के पीछे पड़ गए. उसे जब-तब गंदे मैसेज कर देते थे. एक दिन तो हद ही हो गई जब वे शराब पी कर सीधे उसके घर पहुंच गए. युवती के परिवार वालों ने पुलिस में शिकायत दर्ज करा दी. तब वे अपनी इस आदत से बाज आए. उस युवती की गलती यह थी कि आगाह करने के बाद भी उसने उसे अपने घर का नंबर दे दिया.’’

हेमंत का यह भी कहना है, ‘‘कास्टिंग काउच में सिर्फ एक पक्ष की गलती होती है, ऐसा नहीं है. यह दोनों पक्षों से जुड़ा मामला है. यह दोनों तरफ से सहमति के बाद ही संभव होता है. कास्टिंग काउच तभी संभव है, जब दूसरा इंसान भी तैयार होता है.’’

सवाल उठता है कि क्या कास्टिंग काउच आज के समय में बिलकुल नौर्मल बात है? क्या टैलेंट की कोई कद्र नहीं? क्या आगे बढ़ने के लिए घिनौनी शर्तों को मानना पड़ता है? बहरहाल, ऐसी भी बहुत युवतियां हैं जो कास्टिंग काउच के सामने घुटने टेकने के बजाय उसकी असलियत सब के सामने लाने में यकीन रखती हैं जबकि कुछ कामयाबी के लिए इसे एक आसान राह मान कर समझौता कर लेती हैं.

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