स्वर्ग और नरक हिंदू धर्म की बहुत पुरानी अवधारणा है. हिंदू धर्म शास्त्रों में कुछ इस तरह का काल्पनिक चित्रण किया गया है कि हर हिंदू स्वर्ग पहुंचने के बारे में सोचता है, वह भी जीतेजी नहीं मरने के बाद. धर्म के कथित ठेकेदार, पंडित, पुजारी इस बात का समर्थन करते आए हैं कि पंडित तो सीधे स्वर्ग में ही जा कर विराजते हैं और बेचारे दलित नरक में जा कर पकौड़ा बनाते हैं. आइए, इस स्वर्ग व नरक की यात्रा करें और खुद देखें कि सचाई क्या है.
मैं घोर नरक में जाना चाहता हूं तो यह जरूरी है कि इस के लिए मुझे कोई जघन्य पाप करना होगा. क्योंकि शास्त्रों के अनुसार जितना बड़ा पाप उसी के अनुसार नरक में स्थान मिलता है. मान लीजिए कि मैं ने किसी की हत्या कर दी. क्या यह अपराध नरक जाने के लिए पर्याप्त है? शायद नहीं, तो मान लीजिए कि मैं ने किसी का बलात्कार कर दिया. अभी भी मेरा अपराध अगर पर्याप्त न हो तो मैं किसी मंदिर में जा कर किसी देवता की मूर्ति को लात मार कर उस का अपमान कर आया. अब यह तो पंडितों के अनुसार घोर पाप हुआ न. अब तो मेरा नरक में जाना तय है.
फर्ज कीजिए कि आज मैं मर गया. आप मेरा क्या करेंगे? यही न कि जलाएंगे.
अब चिता सज गई है. मेरा मृत शरीर चिता पर पड़ा है और बेटे द्वारा चिता में आग लगा दी गई है.
यहां सवाल उठता है कि क्या जलेगा? सब से पहले मेरी चमड़ी फिर मांस व खून और उस के बाद हड््डियां बिखर जाएंगी. आप उन हड््डियों को भी नदी में प्रवाहित कर देंगे.
अब बची है सिर्फ आत्मा. शास्त्रों के अनुसार यम के दूत आए और मेरी आत्मा को रस्सी के फंदे में बांध कर नरक की तरफ चल दिए. नरक में आग जल रही है और कड़ाहे चढ़े हुए हैं. कड़ाहों में पड़ा तेल खौल रहा है. जिस में मेरी आत्मा को तल कर पकौड़ा बनाया जाएगा और माननीय यमराज उस से नाश्ता करेंगे. संभव यह भी है कि मेरी आत्मा को सीधे आग में जलाया जाए, लेकिन कृष्ण तो कहते हैं कि आत्मा को न तो दुख होता है न सुख. आत्मा को न तो काटा जा सकता है और न ही जलाया जा सकता है. यह तो अजरअमर है. इसीलिए इस आत्मा को कोई दुख या सुख होता ही नहीं है.
हां, दुख या सुख की अनुभूति जिस शरीर को होती है वह तो पहले ही जल चुका है. अब आत्मा को चाहे कड़ाही में तलिए या आग में जलाइए, उसे क्या फर्क पड़ता है.
मैं तो सोचता हूं कि बेचारे यमराज और उन के दूत नाहक ही अपना समय बरबाद कर रहे हैं, मेरी आत्मा तो जघन्य पाप करने के बाद भी चैन से बैठी है. आत्मा तो बेचारी हंस भी नहीं सकती, क्योंकि हंसने के लिए भी शरीर चाहिए. शरीर तो पहले ही मिट गया. चुपचाप बैठ कर यमराज और उस के दूतों की बेवकूफी देखने के अलावा यह आत्मा और क्या कर सकती है.
नरक की छोडि़ए, स्वर्ग की बात करते हैं. स्वर्ग में आनंद ही आनंद है, लेकिन यह आनंद महसूस कौन करेगा? आनंद महसूस करने वाला शरीर तो जमीन पर छूट गया. अब आत्मा बेचारी क्या आनंद महसूस करे. ऊपर से मुसीबत यह कि उर्वशी और मेनका मेरी आत्मा के सामने नृत्य कर रही हैं.
उर्वशी और मेनका ने पूरे कपड़े पहन रखे हैं या टेलीविजन धारावाहिकों की तरह आधे कपड़े पहन रखे हैं, इस का तो कोई मतलब ही नहीं रह गया. न भी पहने हों तो भी कोई फर्क नहीं पड़ता. बेचारी आत्मा क्या कर लेगी. यही उर्वशी और मेनका अगर पृथ्वी पर नाचतीं तो आनंद ही कुछ और होता.
क्या आप को नहीं लगता कि स्वर्ग और नरक की कल्पना किसी बेवकूफ ने की होगी, और अगर शास्त्रों में इस का वर्णन है तो वह शास्त्र भी किसी बेवकूफ ने ही लिखे होंगे.
हिंदुओं के स्वर्ग और नरक की तरह मुसलमानों के यहां जन्नत की व्यवस्था है, बल्कि उन की जन्नत तो हिंदुओं के स्वर्गनरक से एक कदम आगे है. वहां हूरें (अप्सराएं) हैं और साथ ही दूध और शहद की नदियां भी बह रही हैं. जितना चाहो, छक कर पिओ लेकिन पिए कौन? जिस शरीर को पीना है वह तो बेचारा नीचे कब्र में दफन है और कीड़ेमकोड़ों के साथ कबड्डी खेल रहा है.
आत्मा बेचारी तो दूध पीने से रही और जब जन्नत में बैठ कर अप्सराओं का नाच ही देखना है, वह भी कम कपड़ों में तो पृथ्वी पर ही देख लेने में क्या बुराई है. पृथ्वी पर तो कुछ उपयोग भी हो जाता, और कुछ नहीं तो नयनों को ही कुछ सुकून मिल जाता. लेकिन नहीं साहब, पृथ्वी पर आप यह सब करें तो पाप और स्वर्ग या जन्नत में यह सब करने की खुली छूट.
वाह रे मेरे स्वर्ग और नरक. वाह रे मेरे पापपुण्य. वाह रे मेरे जन्नतदोजख. उस पर हमारे पंडित और मौलवी स्वर्गनरक और जन्नतदोजख का जबरदस्त समर्थन करते हैं और धार्मिक पुस्तकों की दुहाई देते रहते हैं. इतने बेवकूफ लोग पंडित कैसे बन गए?
सचाई कुछ और है. पंडित या मौलवी बेवकूफ बिलकुल नहीं हैं. वे बहुत शातिर दिमाग हैं. स्वर्गनरक या जन्नतदोजख की सारी अवधारणा शोषण के लिए बनाई गई है. लोगों को इन काल्पनिक जगहों का भय दिखाते रहो, पैसे ऐंठते रहो और अपनी दुकानदारी कायम रखो. हजारों सालों से वे यही कर रहे हैं और हजारों सालों तक उन्हें यही करना है.
स्वर्ग हो या नरक, जन्नत हो या दोजख, ये तो उन के धंधे के मूल आधार हैं. यह आप को देखना है कि आप स्वर्गनरक के नाम पर इस्तेमाल होते हैं या नहीं, आप बेवकूफ बनते हैं या अक्लमंद. अगर बेवकूफ हैं और वही बने रहना चाहते हैं तो पंडितों व मौलवियों के शोषण जाल से कभी भी बाहर न आ पाएंगे.