चीन के बीसियों शहर बुलेट ट्रेन जैसी तेज गति से चलने वाली रेलों से जुड़ चुके हैं जबकि भारत में पहली बुलेट ट्रेन, जो अहमदाबाद और मुंबई के बीच चलनी है, खतरे में है. मोदी सरकार ने सपने तो दिखाए पर अब पगपग पर बाधाएं आ रही हैं.
बुलेट ट्रेन के लिए नई पटरियां नए मार्ग पर बिछाई जानी हैं. किसान इस नए रेलमार्ग के लिए अपनी जमीन आसानी से देने को तैयार नहीं हैं. अदालतों में मामले जाने लगे हैं. हो सकता है किसानों से जमीन लेने में ही दसियों साल लग जाएं.
योजना के क्रियान्वयन में जितनी देरी होगी, उतना खर्च बढ़ता जाएगा, क्योंकि महंगाई की दर बढ़ती ही जा रही है. हालांकि बहुत सा पैसा जापान को सस्ते ब्याज पर देना है पर शेष पैसा देश में महंगे ब्याज पर लेना पड़ेगा. सरकार का खजाना अब खाली सा है और रेल मंत्रालय से साफ कह दिया गया है कि वह बुलेट ट्रेन के लिए बाजारभाव पर बैंकों या बौंडों से पैसा उगाहे.
ये दिक्कतें तकनीकी नहीं, मानसिक हैं. अहमदाबादमुंबई रेलमार्ग में गनीमत है कि न पहाड़ हैं और न समुद्र. चीन ने तो कई पहाड़ों को भेदा है. जापान ने सघन बस्तियों के बीच बुलेट ट्रेन चलाई है. यहां मामला असल में यह है कि सिवा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के, किसी और की इस में रुचि नहीं है.
आम लोगों को मालूम है कि बुलेट ट्रेन का प्लेटफौर्म भी अलग होगा, रास्ता भी अलग. किराया कई गुना ज्यादा होगा. आम आदमी को फर्क नहीं पड़ता अगर दोचार घंटे का समय कम भी लगा. यहां तो लोग एक पाखंड के लिए लाइन में लग कर 10 घंटे इंतजार करने को तैयार रहते हैं. यहां लोगों के पास समय ही समय है.
बुलेट ट्रेनों की वहां जरूरत है जहां लोगों को अपने और दूसरों के वक्त की कीमत मालूम हो. जहां देश की तीनचौथाई जनता निठल्लीनिकम्मी हो वहां तो बुलेट भी चींटी की चाल चलेगी. अपने यहां की हवाई सेवाओं को ही देख लें. हर एयरपोर्ट पर समय की बरबादी की जाती है. एयरलाइन कहती है कि डेढ़ घंटे पहले पहुंचो ताकि 45 मिनट की यात्रा कर सको. ज्यादातर एयरपोर्टों पर हर काम धीरेधीरे होता है. शहर से एयरपोर्ट जाने के रास्तों पर अतिक्रमण के कारण ट्रैफिक जाम रहता है.
बुलेट ट्रेन तकनीकी कारणों से नहीं, दूसरे कारणों से न तीव्र गति से बनेगी, न ही तीव्र गति से चलेगी, यह तय है.