कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने संसद में अविश्वास प्रस्ताव पर नरेंद्र मोदी को कुछ उद्योगपतियों से ज्यादा मिलने और उन्हें फायदा पहुंचाने की बात खासे जोर से कही. अपने 90 मिनट के उत्तर में नरेंद्र मोदी ने इस बात का स्पष्टीकरण न दे कर कांग्रेस के इतिहास और उस के नेताओं के व्यक्तित्व की चर्चा कर के मामले को टाल दिया.
लखनऊ में उन्होंने सफाई दी कि अगर नीयत साफ हो तो उद्योगपतियों से मिलने में क्या हर्ज है, क्योंकि वे देश के प्रमुख लोग हैं.
यह सही बात है. उद्योगपति ही देश की रगों में वह खून देते हैं जिस से अर्थव्यवस्था चलती है और अगर उन की समस्याएं सुनी व समझी न जाएं तो कोई देश ढंग से नहीं चल सकता.
नरेंद्र मोदी की सरकार से शिकायत यह है कि वे उद्योगपतियों से मिलते हैं तो केवल उन्हें भाषण पिलाने के लिए. वे प्रवाचक की तरह उपदेश देते हैं. वे उन से समस्याएं सुनने को तैयार नहीं हैं क्योंकि धर्म प्रचारकों की तरह उन्हें विश्वास है कि उन के पास ज्ञान और बुद्धि का अपार खजाना है.
नरेंद्र मोदी ने अपनी सफाई देने की जगह धर्म प्रचारकों की तरह कांग्रेसियों पर पलटवार किया कि वे भी तो ऐसा ही करते हैं, उद्योगपतियों के बरामदों में चहलकदमी करते हैं. यह धर्म प्रचारकों का मुख्य तरीका है अपने विरोधियों को चुप कराने का. आप महिलाओं पर हिंदू धर्म में होने वाले भेदभाव की बात
जैसे ही करेंगे, तो जवाब मिलेगा कि मुसलमानों में तुरंत 3 तलाक, 4 पत्नियां रखने, बुरका के विषय भी तो हैं.
अपने दोषों से मुकरने के लिए दूसरों के दोषों को दिखाना ठीक नहीं है. लोग अपने नेताओं से ऐसा व्यवहार चाहते हैं जो शांति, व्यवस्थाबराबरी, आर्थिक उन्नति दे.