Social Story in Hindi: सूरज को पुलिस महकमे में आए हुए ज्यादा समय नहीं हुआ था. उस ने एक महीने पहले ही थाने का चार्ज लिया था.एक दिन की बात है. सूरज तैयार हो रहा था. आज वह बहुत ही जल्दी में था, क्योंकि मंत्रीजी आ रहे थे. उसे ठीक 11 बजे सर्किट हाउस पहुंचना था. वहीं मंत्रीजी जिले के सभी अफसरों की बैठक लेने वाले थे. सूरज बाथरूम से बाहर आया और यूनिफौर्म पहन कर आदमकद आईने के सामने जा खड़ा हुआ. उसे याद आया कि उस ने कभी अपने बड़े साले के कंधे पर हाथ रख कर कहा था, ‘त्रिभुवन, मुझे आधेअधूरे काम से सख्त नफरत है. मैं जो भी पसंद करता हूं, वह पूरा और परफैक्ट होना चाहिए, इसीलिए मैं उसी आईने में खुद को देखना पसंद करता हूं, जो आदमकद हो और मैं उसी शख्स को ही सब से ज्यादा पसंद करना चाहूंगा, जो आदमकद हो.’

त्रिभुवन समझदार था. उस ने दहेज के फर्नीचर में सूरज को एक खूबसूरत आदमकद आईना ही दिया, जिस के सामने वह तैयार हो कर खड़ा हुआ था.

तभी डाइनिंग टेबल पर नौकर ने नाश्ता लगा दिया. सूरज नाश्ता कर ही रहा था कि उस की पत्नी एक गिलास ताजा बादाम दूध ले कर आ गई. उस ने नाश्ते के बाद दूध पी कर गिलास टेबल पर रखा और टेबल पर रखे पर्स को उठाया, उस में रखे नोट गिने. पर्स में केवल 4 सौ रुपए थे.

सूरज ने पत्नी से पूछा, ‘‘क्या पर्स में से कुछ रुपए निकाले थे?’’

‘‘हां, सुबह 7 सौ रुपए दिए हैं दूध वाले को.’’

‘‘इस में हजार रुपए और कम हैं?’’ सूरज ने मन ही मन हिसाब लगाते हुए पूछा.

पत्नी ने सूरज के सवाल के जवाब में एक नया सवाल उछाल दिया, ‘‘हजार रुपए… अरे, क्या मेरा कोई खर्च नहीं है. मैं ने अपने खर्च के लिए निकाल लिए हैं… कहां तक आप से मांगती रहूं…’’

‘‘ठीक है…’’ यह कह कर सूरज ने पर्स जेब में रखा और चाबी उठा कर अपनी मोटरसाइकिल पर शहर से कुछ दूरी पर बने हुए पुराने सर्किट हाउस की ओर चल पड़ा.

शहर के बीचोंबीच खुली विदेशी शराब की दुकान पर जब सूरज की नजर गई, तो अनायास ही उस का मन खुश हो गया. उस ने सोचा, ‘बहुत होशियार समझता था अपनेआप को यह ठेकेदार. मैं ने इसे थाने बुलाया तो आया ही नहीं. अपने मैनेजर के हाथ से 5 हजार रुपए भेज दिए.

‘मैं ने 5 हजार रुपए लौटाते हुए खबर भिजवाई कि 10 हजार रुपए से कम में बात नहीं बनेगी और अगर मेरी बात पसंद नहीं है, तो नियमानुसार दुकान ठीक सुबह 10 बजे खुल कर रात 8 बजे बंद हो जानी चाहिए. और किसी भी हालत में पीछे के दरवाजे से शराब नहीं बेची जा सकेगी.

‘वह नहीं माना. 3 दिन पहले मैं ने रात को 8 बजे खुद जा कर दुकान बंद कराई और ठेकेदार को कह आया कि रोज रात को 8 बजे थाने से एक सिपाही आ कर तुम्हारी दुकान की चाबी ले जाया करेगा और सुबह 10 बजे तुम थाने से चाबी मंगवा लिया करो.’

तब से रोज यही हो रहा था. दुकान 8 बजे बंद होती थी और सुबह 10 बजे के बाद ही खुलती थी

अब सूरज को पहाड़ी पर बने सर्किट हाउस की ऊंची इमारत दिखाई देने लगी थी. वह सर्किट हाउस पहुंच गया. अभी मंत्रीजी नहीं आए थे.

कुछ पलों बाद ही मंत्रीजी की कई कारों का काफिला सर्किट हाउस में दाखिल हुआ.

मंत्रीजी और उन की पत्नी एक कार से उतरे और सीधे वीआईपी कमरा नंबर 4 में जा पहुंचे, जो पहले से ही उन के लिए बुक था. दूसरी कारों से भी कई लोग उतरे. वे कौनकौन थे, भीड़ में उन को पहचानना मुश्किल था.

कुछ देर बाद एसपी साहब ने इशारे से सूरज को नजदीक बुलाया, ‘‘सुनो…’’

वह एसपी साहब के नजदीक पहुंचा और बोला, ‘‘जी सर.’’

‘‘जाइए, मंत्रीजी बुला रहे हैं.’’

‘‘मुझे… मुझे बुला रहे हैं?’’ सूरज ने हड़बड़ा कर पूछा.

‘‘हां, आप को ही बुला रहे हैं. ‘‘देखना, कोई बवाल न हो. कुछ किया तो नहीं है न?’’

‘‘नहीं सर, ऐसा तो कुछ भी नहीं हुआ है,’’ यह कर सूरज मंत्रीजी के कमरे की ओर भागा.

कमरे में मंत्रीजी के अलावा वही शराब ठेकेदार बैठा था. सूरज ने सोचा, ‘आज मैं गया काम से. न जाने क्या सच और कितना झूठ कहा होगा इस ने मेरे बारे में.’

सूरज ने मंत्रीजी को नमस्ते किया और कहा, ‘‘जयहिंद सर.’’

‘‘जयहिंद… ‘‘क्या नाम है तुम्हारा?’’

‘‘जी, सूरज.’’

‘‘सूरज, क्या आप अभी नएनए आए हैं इस महकमे में?’’

‘‘जी हां सर, यह मेरी पहली ही पोस्टिंग है,’’ सूरज ने मंत्रीजी को बताया.

‘‘देखिए सूरज, ये रामप्रसाद हैं. तुम्हारे थाने के तहत इन की एक छोटी सी शराब की दुकान है. ये बहुत पुराने ठेकेदार हैं. सुना है, इन को आप से कुछ शिकायत है. यह शिकायत आपस में दूर कर लें, तो ज्यादा अच्छा होगा. आपस में मिल कर रहो और आगे से मेरे पास कोई शिकायत नहीं आनी चाहिए.’’

‘‘जी सर, अब कोई शिकायत नहीं आएगी,’’ सूरज बोला.

एक लंबी चुप्पी के बाद सूरज ने कहा, ‘‘सर, क्या मैं जा सकता हूं?’’

‘‘हां, अब तुम जा सकते हो.’’

‘‘जयहिंद,’’ कह कर सूरज कमरे से बाहर आ गया.

सूरज ने कमरे से बाहर आते ही उस के पीछेपीछे वह शराब का ठेकेदार भी आ गया और उस ने सूरज की ओर एक लिफाफा बढ़ाया.

सूरज ने लिफाफे को अपनी जेब में रखा और पूछा, ‘‘कितने हैं?’’

‘‘पूरे 10 हजार हैं.’’

‘‘ठीक है, अब चाबी भेजने की जरूरत नहीं है, लेकिन हर महीने की 5 तारीख तक रुपए पहुंचा दिया करो.’’

उस ने रजामंदी से सिर हिलाया और फिर मंत्रीजी के कमरे में जा पहुंचा.

‘‘क्यों, मामला निबट गया?’’ मंत्रीजी ने पूछा.

‘‘जी हां.’’

‘‘कुछ दिया क्या?’’

‘‘जी हां, कुल 10 हजार रुपए का एक लिफाफा दिया है.’’

‘‘यह तुम ने ठीक किया, क्योंकि मैं तो अभी चला जाऊंगा, तुम्हें इसी के रहना इलाके में है. पुलिस और कारोबारियों के संबंध आपस में मधुर रहने चाहिए.’’

फिर मंत्रीजी कुछ सोचने लगे और अचानक बोले, ‘‘अच्छा ठीक है, अब तुम जाओ. कोई परेशानी की बात हो, तो मुझे फोन कर देना.’’

यह कह कर मंत्रीजी कमरे से लगे हुए एक दूसरे कमरे में चले गए.

मंत्रीजी को आते देख कर नाश्ते की टेबल से उन की पत्नी उठने लगीं, तो मंत्रीजी ने हंसते हुए कहा, ‘‘पहले नाश्ता कर लो, फिर बात करते हैं.’’

पत्नी ने बात अनसुनी करते हुए कहा, ‘‘अगर आप कहें, तो बाजार चली जाऊं. अभी साढ़े 10 बजे हैं, जल्दी ही लौट आऊंगी.’’

‘‘हांहां, चली जाओ. मैं एक थानेदार को साथ में भेज देता हूं. देखो, ज्यादा खरीदारी मत करना. शायद, उस के पास 10 हजार रुपए ही होंगे,’’ कह कर मंत्रीजी मुसकराए.

‘‘जी, मैं समझ गई.’’

मंत्रीजी पहले वाले कमरे में आए और उन्होंने कमरे में लगी घंटी के स्विच पर हाथ रखा. घंटी की आवाज गूंज उठी.

चपरासी कमरे में आया और बोला, ‘‘जी सर…’’

‘‘सूरज थानेदार को भेजो.’’

यह सुन कर चपरासी कमरे के बाहर चला गया.

कुछ ही पलों बाद सूरज मंत्रीजी के सामने खड़ा था, ‘‘जी सर.’’

‘‘देखो सूरज,  हमारी श्रीमती को कुछ खरीदारी करनी है. ऐसा करो कि तुम मेरा यह एटीएम कार्ड ले जाओ. मैं नंबर बता देता हूं, रास्ते में बैंक से श्रीमतीजी से पूछ कर रुपए निकाल लेना.’’

यह कह कर मंत्रीजी ने अपने कपड़ों की सभी जेबों को देखा, पर एटीएम कार्ड होता, तो मिलता. फिर भी मंत्रीजी एक चालाक कलाकार की तरह बारबार जेबें देखे जा रहे थे.

जब एटीएम कार्ड मिलने में देर होने लगी, तो सूरज ने कहा, ‘‘सर, रहने दीजिए, मैं देख लूंगा.’’

‘‘अच्छा सूरज, तो तुम देख लेना. वैसे भी मीटिंग में पहले ही काफी देर हो चुकी है,’’ यह कह कर मंत्रीजी ने कुछ फाइलें उठाईं और कमरे से बाहर मीटिंग हाल की ओर चल दिए.

मंत्रीजी के कमरे से बाहर जाते ही सूरज ने लिफाफा निकाला और रुपए गिने. पूरे 10 हजार रुपए थे.

‘‘जी मैडम, चलिए,’’ यह कह कर सूरज कमरे से बाहर आया.

ड्राइवर ने पूछा, ‘‘कहां चलना है?’’

पीछे की सीट पर बैठ चुकी मैडम ने सूरज से कहा, ‘‘आप हमें साड़ी के किसी बढ़िया शोरूम में ले चलिए.’’

शहर के सब से बढ़िया साड़ी शोरूम के सामने कार रोकी गई.

दुकान में घुसते ही दुकानदार ने मैडम से कहा, ‘‘क्या दिखाऊं?’’

‘‘कुछ खास नहीं, बनारसी साड़ी दिखाओ,’’ मैडम ने कहा.

‘‘मैडम, आप साड़ियां किस रेंज में देखना पसंद करेंगी?’’

‘‘किसकिस रेंज में हैं?’’ मैडम ने पूछा.

‘‘25 हजार रुपए से ले कर 20 हजार रुपए तक की रेंज में हैं.’’

मैडम ने पलभर सोचा और फिर कहा, ‘‘आप मुझे 5 से 6 हजार रुपए की रेंज में साड़ी दिखाइए.’’

दुकानदार ने साड़ियों का एक बड़ा सा ढेर लगा दिया, जिस में एक से बढ़ कर एक बढ़िया साड़ियां थीं. काफी देर बाद 2 साड़ियों को पसंद कर मैडम ने कहा, ‘‘सूरज, इन दोनों साड़ियों को पैक करवा दीजिए.’’

सूरज के इशारे पर दुकानदार ने दोनों साड़ियों को पैक कर दिया और सूरज ने काउंटर पर जा कर पूछा, ‘‘कितने रुपए का बिल हुआ?’’

‘‘कुल 11 हजार रुपए का.’’

यह सुन कर सूरज ने वही लिफाफा जेब से निकाला, जिसे ठेकेदार ने दिया था और गिन कर पूरे 10 हजार रुपए दुकानदार को देते हुए उस ने कहा, ‘‘कुछ कम तो कीजिए.’’

‘‘आप को देख कर ही हम ने पहले से ही 2 हजार रुपए कम कर दिए हैं,’’ यह कहते हुए दुकानदार ने रुपए गिने और कहा, ‘‘साहब, इस में एक हजार रुपए कम हैं.’’

‘‘कोई बात नहीं है. अगर तुम्हें रुपए ज्यादा कम लग रहे हैं, तो कभी थाने से आ कर ले जाना.’’

सूरज को मालूम था कि न यह कभी थाने आएगा और न ही वह इसे कभी रुपए देगा.

सूरज ने पूछा, ‘‘मैडमजी, कुछ और लेना है क्या?’’

‘‘नहीं सूरज, हमारे शहर में सबकुछ मिलता है. फिर भी अगर कभी इस तरफ आऊंगी, तो आप को ही तकलीफ दूंगी,’’ यह कह कर वे दुकान से बाहर निकल कर कार की ओर बढ़ गईं. सूरज ने राहत की सांस ली.

रात मंत्रीजी को विदा कर सूरज के घर पहुंचा और जब वह आदमकद आईने के सामने खड़ा हो कर कपड़े बदलते हुए अपनेआप को देख रहा था, तभी उस की पत्नी पास आ कर खड़ी हो कर उसे प्यार से देखने लगी.

सूरज ने उस से कहा, ‘‘आदमकद कोई नहीं है. न मैं, न तुम और न वे.’’

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