श्री चाटुकार चरन सरोज रज, निज मनु मुकुर सुधारि. बरनउं चाटुकार बिमल जसु जो दायक फल चारि.
बुद्धिहीन खुद को जानिके सुमिरौं चाटुकार कुमार. संबल, साहब का प्यार देहु मोहिं, मैं हूं निपट गंवार.

मतलब, इस जगत के सभी क्लास के चाटुकारो, आप पर कुछ लिखने से पहले आप को मेरा कोटिकोटि प्रणाम. उम्मीद है कि आप मुझे इस गुस्ताखी के लिए माफ करेंगे.

आप पर मैं तो क्या, व्यासजी होते तो भी लिखने से पहले सौ बार दंडबैठक निकाल लेते. उस के बाद भी आप पर लिखने की शायद ही हिम्मत कर पाते. यह तो मेरा गुरूर है कि हजार शब्दों का मजाक लिखने वाला टुच्चा सा दिशाहीन, दशाहीन आप पर लिखने की हिमाकत कर रहा है.

आप मेरी इस गुस्ताखी को माफ करेंगे, क्योंकि आप पर लिखना तो जैसे केतु पर थूकना है. पर क्या करूं, अगर चार दिन न लिखूं, तो उपवास रखने के बाद भी 5वें दिन लिखे बिना मुझे कब्ज हो जाती है. और आप तो जानते ही हो कि कब्ज हर बीमारी की जड़ है.

हे कणकण में समाए चाटुकारो, मेरी आप से कोई दुश्मनी नहीं है. आदमी में जरा भी अक्ल हो, तो वह सब से सीना तान कर दुश्मनी ले सकता है, पर आप से सपने में भी दुश्मनी ले तो जब तक इस धरती पर जन्ममरण का चक्कर चलता रहे, तब तक वह नरक में ही रहे, चाहे कितने ही व्रत या तीर्थ क्यों न कर ले. मेरे प्रिय चाटुकारो, साहब जितना आप से प्यार करते हैं, उतना तो अपनी बीवी से भी नहीं करते होंगे. मैं तो बस अपनी कब्ज को दूर रखने के लिए आप पर लिख रहा हूं.

आप काम न करने वाले को साहब की नजरों में चढ़ा सकते हो, तो दिनरात जिंदगीभर दफ्तर में काम करने वाले किसी शख्स को आप एक ही धक्के में नजर से गिरवा सकते हो. हे वंदनीय चाटुकारो, इस संसार में

2 तरह के जीव हैं. एक तो वे, जो अपना काम करने के बाद भी दफ्तर में साहब से जूते खाते हैं, तो दूसरे वे, जो आठों पहर चौबीसों घंटे साहब की चाटुकारी करते हुए हाथ पर हाथ धरे बड़े मजे के साथ छप्पन भोगों का लुत्फ उठाते हैं. आप के पास चाटुकारी के ऐसेऐसे हथियार हैं कि आप के सामने इंद्र भी लड़ने आ जाएं, तो भी आप का बाल न बांका कर सकें.

आप की जबान में इतनी मिठास होती है, जितनी दिनरात फूल पर मंडराने के बाद शहद इकट्ठा करने वाली मधुमक्खी के शहद में भी नहीं होती. साहब के पैरों में आप अपने अंगअंग को इस तरह तोड़मरोड़ कर रख देते हो कि बड़े से बड़ा नट भी आप के इस हुनर को देख कर आप के आगे सिर झुकाने को मजबूर हो उठे.

हे साहबों के प्रिय चाटुकारो, आप की हर युग में चांदी रही है. दस भुवनों में कोई खुश हो या न हो, पर आप हर भुवन में औरों को धुआं देने, दिलवाने के बाद हमेशा खुश रहे हो. इस धरती पर हर युग बदला. सतयुग गया, तो त्रेता आया. त्रेता गया, तो द्वापर आया. द्वापर गया, तो कलियुग आया. पर हे चाटुकारो, आप हर युग में रहे.

अब मेरे युग को ही देखिए. मेरे दफ्तर में चपरासी हथेली पर तंबाकू रगड़ता छोटे क्लर्क की चाटुकारी में मस्त है, तो छोटे बाबू बड़े बाबू की चाटुकारी में उन के आसपास सारी फाइलें बंद किए जुटे हैं. फाइलें तो बाद में भी होती रहेंगी, पर अगर चाटुकारी का यह मौका हाथ से छूट गया, तो पता नहीं फिर कब मिले? असल में भूखे को बिना रोटी खाए नींद आ सकती है, पर चाटुकार जिस दिन साहब की चाटुकारी न करे, वह रातभर करवटें ही बदलता रहता है.

साहब की चाटुकारी करने में बड़े बाबू घर के सारे काम छोड़ कर जुटे हैं, तो साहब मंत्रीजी की चाटुकारी में. वे उन की चाटुकारी से खुश हो जाएं, तो स्वर्ग सा सुख भोगते रहें. मंत्रीजी दिनरात मुख्यमंत्री की चाटुकारी में लगे हैं. मुख्यमंत्री खुश रहें, तो क्या मजाल कि कोई उन को कुछ भी करने से रोक सके.

मुख्यमंत्री राजधानी के चक्कर लगा रहे हैं. हाईकमान की चाटुकारी करतेकरते जीभ का थूक है कि औरों से उधार पर ला रहे हैं. हाईकमान खुश, तो बाकी सब जाएं भाड़ में. हे मेरे परम पूजनीय चाटुकारो, आप हर लोक का सच हैं, बाकी सब झूठ है. आप ने अपनी चाटुकारी हरकतों से हर दफ्तर में अपने से ऊपर के हर बौस को हराभरा रखा है. अब आप की तारीफ में और क्या लिखूं–चाटुकार अनंत, चाटुकारी अनंता… साहब चरन, साहब खुश करन, चाटुकारी मूरति रूप. चाटुकारी का भंडार लिए हर मन बसो, हे साहब के धूप.

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