उत्तर कोरिया के सनकी, सिरफिरे, बमबारी में तेजी दिखाने वाले तीसरी पीढ़ी के युवा तानाशाह किम जोंग उन से यह आशा नहीं थी कि पहले वे ट्रेन से बीजिंग जाएंगे और उस के तुरंत बाद दक्षिण कोरिया पहुंच जाएंगे और वह भी बेहद परिपक्वता व गांभीर्य के साथ.
द्वितीय विश्वयुद्ध में कोरिया जापान के अधीन आ गया था पर 1945 में जापान की पराजय के बाद रूस व अमेरिका ने कोरिया को अकारण 2 भागों में बांट दिया था. एक का नेता बने किम इल सुंग और दूसरे के ली बिओम सियोक. दोनों ने कोरिया को एक करने की कोशिश की पर उत्तर कोरिया चीन व रूस समर्थक कोरिया चाहता था जबकि दक्षिण कोरिया अमेरिका समर्थक.
1953 में बंद हुई लड़ाई के बाद दोनों के बीच वाकयुद्ध चालू है और किम इल सुंग की तीसरी पीढ़ी के किम जोंग उन ने भी परंपरा को कायम रखा. उत्तर कोरिया इस बीच गुप्तरूप से दुनियाभर से हथियार खरीदता रहा और आणविक बम भी बनाता रहा. उस की आणविक क्षमता व अब तक की नीति के चलते तीसरा विश्वयुद्ध छिड़ने के खौफ से दुनिया भयभीत रही है.
पिछले कुछ महीनों में या तो डोनाल्ड ट्रंप की धमकियों के कारण या फिर चीन के बेहद कुशल डिप्लोमैट शासक शी जिनपिंग के समझाने पर उत्तर कोरिया ने अपने तेवर ही ढीले नहीं किए, किम ने नया इतिहास भी रच डाला.
वे उत्तर कोरिया व दक्षिण कोरिया की सीमा तक गए और पैदल चल कर दक्षिण कोरिया में पहला कदम रखा, जहां दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून जे इन इंतजार कर रहे थे. चौंकाने वाली बात यह रही कि बिगडै़ल किम जोंग उन ने हाथ मिलाने के बाद मून को 9 इंच की सीमा की पटरी पार कर उत्तर कोरिया में आने को कहा. वहां दोनों नेताओं ने हाथ मिलाए, फोटो खिंचवाए.
किम जोंग उन ने शांति संधि पर हस्ताक्षर करने के बाद मून से न केवल हाथ मिलाया, बल्कि उन के गले लग कर उन का अभिवादन भी किया. ये दोनों काम स्क्रिप्टेड नहीं थे यानी पहले से तय नहीं थे, लेकिन बेहद संतोष व आशा वाले हैं.
कोरियाई विभाजन क्या समाप्त होगा, यह कहना तो गलत होगा पर दुनिया एक संभावित खतरे से दूर हो गई है. उत्तर कोरिया बेहद गरीब है, लगभग भारत जैसा, जबकि दक्षिण कोरिया जापान जैसा समृद्ध है. बहरहाल, कई बार सिरफिरे नेता भी इतिहास रच डालते हैं, यह किम जोंग उन ने साबित किया है. किम ने यह भी मान लिया है कि एक भूभाग में रहने वालों को एकदूसरे के दुश्मन होने से समस्या का हल नहीं निकलता, जैसे पश्चिम जरमनी, पूर्व जरमनी या भारत, पाकिस्तान. भारत व पाकिस्तान के भूखे देशवासियों का अरबोंखरबों रुपया हर साल सेना पर खर्च होता है जबकि दोनों जानते हैं कि न एकदूसरे को हरा सकते हैं और न हरा कर कुछ पा ही सकते हैं.
उत्तर कोरिया को इतने साल कम्युनिस्ट धर्म ने अलग रखा. अगर उत्तर कोरिया में लोकतंत्र जल्दी आ जाता तो वह कहीं का कहीं होता. अब 65 साल पीछे रहने के बाद वह दक्षिण कोरिया से हमेशा पिछड़ा रहेगा पर मरे नेताओं को कब्र से निकाल कर तो सजा दी नहीं जा सकती.