रतन सिंह की निगाहें पिछले कई दिनों से झुमरी पर लगी हुई थीं. वह जब भी उसे देखता, उस के मुंह से एक आह निकल जाती. झुमरी की खिलती जवानी ने उस के तनमन में एक हलचल सी मचा दी थी और वह उसे हासिल करने को बेताब हो उठा था.
वैसे भी रतन सिंह के लिए ऐसा करना कोई बड़ी बात न थी. वह गांव के दबंग गगन सिंह का एकलौता और बिगड़ैल बेटा था. कई जरूरतमंद लड़कियों को अपनी हवस का शिकार उस ने बनाया था. झुमरी तो वैसे भी निचली जाति की थी.
झुमरी 20वां वसंत पार कर चुकी एक खूबसूरत लड़की थी. गरीबी में पलीबढ़ी होने के बावजूद जवानी ने उस के रूप को यों निखारा था कि देखने वालों की निगाहें बरबस ही उस पर टिक जाती थीं. गोरा रंग, भरापूरा बदन, बड़ीबड़ी कजरारी आंखें और हिरनी सी मदमस्त चाल.
इस सब के बावजूद झुमरी में एक कमी थी. वह बोल नहीं सकती थी, पर उसे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता था. वह अपनेआप में मस्त रहने वाली लड़की थी.
झुमरी घर के कामों में अपनी मां की मदद करती और खेत के काम में अपने बापू की. उस के बापू तिलक के पास जमीन का एक छोटा सा टुकड़ा था, जिस के सहारे वह अपने परिवार को पालता था. वैसे भी उस का परिवार छोटा था. परिवार में पतिपत्नी और 2 बच्चे, झुमरी और शंकर थे. अपनी खेती से समय मिलने पर तिलक दूसरों के खेतों में भी मजदूरी का काम कर लिया करता था.
गरीबी में भी तिलक का परिवार खुश था. परंतु कभीकभी पतिपत्नी यह सोच कर चिंतित हो उठते थे कि उन की गूंगी बेटी को कौन अपनाएगा?
झुमरी इन सब बातों से बेखबर मजे में अपनी जिंदगी जी रही थी. वह दिमागी रूप से तेज थी और गांव के स्कूल से 10 वीं जमात तक पढ़ाई कर चुकी थी. उसे खेतखलिहान, बागबगीचों से प्यार था.
गांव के दक्षिणी छोर की अमराई में झुमरी अकसर शाम को आ बैठती और पेड़ों के झुरमुट में बैठे पक्षियों की आवाज सुना करती. कोयल की आवाज सुन कर उस का भी जी चाहता कि वह उस के सुर में सुर मिलाए, पर वह बोल नहीं सकती थी.
झुमरी की इस कमी को रतन सिंह ने अपनी ताकत समझा. उस ने पहले तो झुमरी को तरहतरह के लालच दे कर अपने प्रेमजाल में फांसना चाहा और जब इस में कामयाब न हुआ, तो जबरदस्ती उसे हासिल करने का मन बना लिया.
रात घिर आई थी. चारों तरफ अंधेरा हो चुका था. आज झुमरी को खेत से लौटने में देर हो गई थी. पिछले कई दिनों से उस की ताक में लगे रतन सिंह की नजर जब उस पर पड़ी, तो उस की आंखों में एक तेज चमक जाग उठी.
मौका अच्छा जान कर रतन सिंह उस के पीछे लग गया. एक तो अंधेरा, ऊपर से घर लौटने की जल्दी. झुमरी को इस बात का एहसास ही नहीं हुआ कि कोई उस के पीछे लगा हुआ है. वह चौंकी तब, जब अमराई में घुसते ही रतन सिंह उस का रास्ता रोक कर खड़ा हो गया.
‘‘मैं ने तुम्हारा प्यार पाने की बहुत कोशिश की…’’ रतन सिंह कामुक निगाहों से झुमरी के उभारों को घूरता हुआ बोला, ‘‘तुम्हें तरहतरह से रिझाया. तुम से प्रेम निवेदन किया, पर तू न मानी. आज अच्छा मौका है. आज मैं छक कर तेरी जवानी का रसपान करूंगा.’’
रतन सिंह का खतरनाक इरादा देख झुमरी के सारे तनबदन में डर की सिहरन दौड़ गई. उस ने रतन सिंह से बच कर निकल जाना चाहा, पर रतन सिंह ने उसे ऐसा नहीं करने दिया. उस ने झपट कर झुमरी को अपनी बांहों में भर लिया.
झुमरी ने चिल्लाना चाहा, पर उस के होंठों से शब्द न फूटे. झुमरी को रतन सिंह की आंखों में वासना की भूख नजर आई. रतन सिंह झुमरी को खींचता हुआ अमराई के बीचोंबीच ले आया और जबरदस्ती जमीन पर लिटा दिया. इस के पहले कि झुमरी उठे, वह उस पर सवार हो गया.
झुमरी उस के चंगुल से छूटने के लिए छटपटाने लगी. दूसरी ओर वासना में अंधा रतन सिंह उस के कपड़े नोचने लगा. उस ने अपने बदन का पूरा भार झुमरी के नाजुक बदन पर डाल दिया, फिर किसी भूखे भेडि़ए की तरह उसे रौंदने लगा.
झुमरी रो रही थी, तड़प रही थी, आंखों ही आंखों में फरियाद कर रही थी, लेकिन रतन सिंह ने उस की एक न सुनी और उसे तभी छोड़ा, जब अपनी वासना की आग बुझा ली.
ऐसा होते ही रतन सिंह उस के ऊपर से उठ गया. उस ने एक उचटती नजर झुमरी पर डाली. जब उस की निगाहें झुमरी की निगाहों से टकराईं, तो उस को एक झटका सा लगा.
झुमरी की आंखों में गुस्से की चिनगारियां फूट रही थीं, पर अभीअभी उस ने झुमरी के जवान जिस्म से लिपट कर जवानी का जो जाम चखा था, इसलिए उस ने झुमरी के गुस्से और नफरत की कोई परवाह नहीं की और उठ कर एक ओर चल पड़ा.
इस घटना ने झुमरी को झकझोर कर रख दिया था. वह 2 दिन तक अपने कमरे में पड़ी रही थी. झुमरी के मांबाप ने जब उस से इस की वजह पूछी, तो उस ने तबीयत खराब होने का बहाना बना दिया था.
कई बार झुमरी के दिमाग में यह बात आई थी कि वह इस के बारे में उन्हें बतला दे, पर यह सोच कर वह चुप रह गई थी कि उन से कहने से कोई फायदा नहीं. वे चाह कर भी रतन सिंह का कुछ बिगाड़ नहीं पाएंगे, उलटा रतन सिंह उन की जिंदगी को नरक बना देगा.
इस मामले में जो करना था, उसे ही करना था. रतन सिंह ने उस की इज्जत लूट ली थी और उसे इस के किए की सजा मिलनी ही चाहिए थी. पर कैसे? झुमरी ने इस बात को गहराई से सोचा, फिर उस के दिमाग में एक तरकीब आ गई.
रात आधी बीत चुकी थी. सारा गांव सो चुका था, पर झुमरी जाग रही थी. वह इस समय अमराई से थोड़ी दूर बांसवारी यानी बांसों के झुरमुट में खड़ी हाथों में कुदाल लिए एक गड्ढा खोद रही थी.
तकरीबन 2 घंटे तक वह गड्ढा खोदती रही, फिर हाथ में कटार लिए बांस के पेड़ों के पास पहुंची. उस ने कटार की मदद से बांस की पतलीपतली अनेक डालियां काटीं, फिर उन्हें गड्ढे के करीब ले आई.
डालियों को चिकना कर उन्हें बीच से चीर कर उन की कमाची बनाईं, फिर उन की चटाई बुनने लगी. अपनी इच्छानुसार चटाई बुनने में उसे तकरीबन 3 घंटे लग गए.
चटाई तैयार कर झुमरी ने उसे गड्ढे के मुंह पर रखा. चटाई ने तकरीबन एक मीटर दायरे के गड्ढे के मुंह को पूरी तरह ढक लिया. यह चटाई किसी आदमी का भार हरगिज सहन नहीं कर सकती थी.
सुबह होने में अभी चंद घंटे बचे थे. हालांकि बांसों के इस झुरमुट की ओर गांव वाले कम ही आते थे और दिन में यह सुनसान ही रहता था, फिर भी झुमरी कोई खतरा मोल लेना नहीं चाहती थी. उस ने जमीन पर बिखरे बांस के सूखे पत्तों को इकट्ठा कर उन का ढेर लगा दिया.
इस काम से निबट कर झुमरी ने बांस की चटाई से गड्ढे का मुंह ढका, पर उस पर पत्तों को इस तरह डाल दिया, ताकि चटाई पूरी तरह ढक जाए और किसी को वहां गड्ढा होने का एहसास न हो. गड्ढे से निकली मिट्टी को उस ने अपने साथ लाई टोकरी में भर कर गड्ढे से थोड़ी दूर डाल दिया.
काम खत्म कर झुमरी ने एक निगाह अपने अब तक के काम पर डाली, फिर अपने साथ लाए बड़े से थैले में अपना सारा सामान भरा और थैला कंधे पर लाद कर घर की ओर चल पड़ी.
7 दिनों तक झुमरी का यह काम चलता रहा. इतने दिन में उस ने 7 फुट गहरा गड्ढा तैयार कर लिया था. गड्ढे में उतरने और चढ़ने के लिए वह अपने साथ घर से लाई सीढ़ी का इस्तेमाल करती थी. काम पूरा कर उस ने पत्ते डाले, फिर अपने अगले काम को अंजाम देने के बारे में सोचती.
रतन सिंह ने झुमरी की इज्जत लूट तो ली थी, परंतु अब वह इस बात से डरा हुआ था कि कहीं झुमरी इस बात का जिक्र अपने मांबाप से न कर दे और कोई हंगामा न खड़ा हो जाए. परंतु जब 10 दिन से ज्यादा हो गए और कुछ नहीं हुआ, तो उस ने राहत की सांस ली. अब उसे रात की तनहाई में वो पल याद आते, जब उस ने झुमरी के जवान जिस्म से अपनी वासना की आग बुझाई थी. जब भी ऐसा होता, उस का बदन कामना की आग में झुलसने लगता था.
इस बीच रतन सिंह ने 1-2 बार झुमरी को अपने खेत की ओर जाते या आते देखा था, परंतु उस के सामने जाने की उस की हिम्मत न हुई थी. पर उस दिन अचानक रतन सिंह का सामना झुमरी से हो गया. वह विचारों में खोया अमराई की ओर जा रहा था कि झुमरी उस के सामने आ खड़ी हुई. उसे यों अपने सामने देख एकबारगी तो रतन सिंह बौखला गया था और झुमरी को देखने लगा था.
झुमरी कुछ देर तक खामोशी से उसे देखती रही, फिर उस के होंठों पर एक दिलकश मुसकान उभर उठी. उसे इस तरह मुसकराते देख रतन सिंह ने राहत की सांस ली और एकटक झुमरी के खूबसूरत चेहरे और भरेभरे बदन को देखने लगा.
इस के बावजूद जब झुमरी मुसकराती रही, तो रतन सिंह बोला, ‘‘झुमरी, उस दिन जो हुआ, उस का तुम ने बुरा तो नहीं माना?’’
झुमरी ने न में सिर हिलाया.
‘‘सच…’’ कहते हुए रतन सिंह ने उस की हथेली कस कर थाम ली, ‘‘इस का मतलब यह है कि तू फिर वह सब करना चाहती है?’’ बदले में झुमरी खुल कर मुसकराई, फिर हौले से अपना हाथ छुड़ा कर एक ओर भाग गई.
उस की इस हरकत पर रतन सिंह के तनमन में एक हलचल मच गई और उस की आंखों के सामने वो पल उभर आए, जब उस ने झुमरी की खिलती जवानी का रसपान किया था. झुमरी को फिर से पाने की लालसा में रतन सिंह उस के इर्दगिर्द मंडराने लगा. झुमरी भी अपनी मनमोहक अदाओं से उस की कामनाओं को हवा दे रही थी.
झुमरी ने एक दिन इशारोंइशारों में रतन सिंह से यह वादा कर लिया कि वह पूरे चांद की आधी रात को उस से अमराई में मिलेगी. आकाश में पूर्णिमा का चांद हंस रहा था. उस की चांदनी चारों ओर बिखरी हुई थी. ऐसे में रतन सिंह बड़ी बेकरारी से एक पेड़ के तने पर बैठा झुमरी का इंतजार कर रहा था.
झुमरी ने आधी रात को यहीं पर उस से मिलने का वादा किया था, परंतु वह अब तक नहीं आई थी. जैसेजैसे समय बीत रहा था, वैसेवैसे रतन सिंह की बेकरारी बढ़ रही थी. अचानक रतन सिंह को अपने पीछे किसी के खड़े होने की आहट मिली. उस ने पलट कर देखा, तो उस का दिल धक से रह गया. वह झटके से उठ खड़ा हुआ. उस के सामने झुमरी खड़ी थी. उस ने भड़कीले कपड़े पहन रखे थे, जिस से उस की जवानी फटी पड़ रही थी.
जब झुमरी ने रतन सिंह को आंखें फाड़े अपनी ओर देखा पाया, तो उत्तेजक ढंग से अपने होंठों पर जीभ फेरी. उस की इस अदा ने रतन सिंह को और भी बेताब कर दिया.
रतन सिंह ने झटपट झुमरी को अपनी बांहों में समेट लेना चाहा, लेकिन झुमरी छिटक कर दूर हो गई. ‘‘झुमरी, मेरे पास आओ. मेरे तनबदन में आग लगी है, इसे अपने प्यार की बरसात से शांत कर दो,’’ रतन सिंह बेचैन होते हुए बोला.
झुमरी ने इशारे से रतन सिंह को खुद को पकड़ लेने की चुनौती दी. रतन सिंह उस की ओर दौड़ा, तो झुमरी ने भी दौड़ लगा दी. अगले पल हालत यह थी कि झुमरी किसी मस्त हिरनी की तरह भाग रही थी और रतन सिंह उसे पकड़ने के लिए उस के पीछे दौड़ रहा था.
झुमरी अमराई से निकली, फिर बांस के झुरमुट की ओर भागी. वह उस गड्ढे की ओर भाग रही थी, जिसे उस ने कई दिनों की कड़ी मेहनत से तैयार किया था. वह जैसे ही गड्ढे के नजदीक आई, एक लंबी छलांग भरी और गड्ढे की ओर पहुंच गई.
झुमरी के हुस्न में पागल, गड्ढे से अनजान रतन सिंह अचानक गड्ढे में गिर गया. उस के मुंह से घुटीघुटी सी चीख निकली. कुछ देर तक तो रतन सिंह कुछ समझ ही नहीं पाया कि क्या हो गया है. वह बौखलाया हुआ गड्ढे में गिरा इधरउधर झांक रहा था, पर जैसे ही उस के होशोहवास दुरुस्त हुए, वह जोरजोर से झुमरी को मदद के लिए पुकारने लगा. परंतु उधर से कोई मदद नहीं आई.
झुमरी की ओर से निराश रतन सिंह खुद ही गड्ढे से बाहर निकलने की कोशिश करने लगा. उस ने अपने दोनों हाथ ऊपर उठा कर गड्ढे के किनारे को पकड़ना चाहा, परंतु वह उस की पहुंच से दूर था.
रतन सिंह ने उछल कर बाहर निकलने की 2-4 बार नाकाम कोशिश की. आखिरकार वह गड्ढे का छोर पकड़ने में कामयाब हो गया. उस ने अपने बदन को सिकोड़ कर अपना सिर ऊपर उठाया. उस का सिर थोड़ा ऊपर आया, तभी उस की नजर झुमरी पर पड़ी. उस के हाथों में कुदाल थी और उस की आंखों से नफरत की चिनगारियां फूट रही थीं.
इस के पहले कि रतन सिंह कुछ समझता, झुमरी ने कुदाल का भरपूर वार उस के सिर पर किया. रतन सिंह की दिल दहलाने वाली चीख से वह सुनसान इलाका दहल उठा. उस का सिर फट गया था और खून की धारा फूट पड़ी थी. गड्ढे का किनारा रतन सिंह के हाथ से छूट गया और वह गिर पड़ा था.
गड्ढे में गिरते ही रतन सिंह ने अपना सिर थाम लिया. उस की आंखों के आगे अंधेरा छाने लगा था और उस पर बेहोशी छाने लगी थी. उस के दिमाग में एक विचार बिजली की तरह कौंधा कि यह झुमरी का फैलाया हुआ जाल था, जिस में फंसा कर वह उसे मार डालना चाहती है.
तभी रतन सिंह के सिर पर ढेर सारी मिट्टी आ गिरी. उस ने अपनी बंद होती आंखें उठा कर ऊपर की ओर देखा, तो झुमरी टोकरी लिए वहां खड़ी थी. अगले ही पल वह बेहोशी के अंधेरों में गुम होता चला गया.
झुमरी ने मिट्टी से पूरा गड्ढा भर दिया, फिर उस पर पत्तियां डाल कर उठ खड़ी हुई. उस ने सिर उठा कर ऊपर देखा. आकाश में पूर्णिमा का चांद हंस रहा था. थोड़ी देर बाद झुमरी कंधे पर थैला लादे अपने घर को लौट रही थी.