देश में जो भी अमीरी दिख रही है, वह साफसाफ गरीबों, मेहनतकश किसानों, छोटेमझोले व्यापारियों व उद्योगपतियों से लूटपाट कर जमा किए गए पैसों की है. 10-15 करोड़ के फ्लैट, 100 करोड़ के मकान, पर्सनल जैट, फाइवस्टार कल्चर, करोड़ों के जेवर पहने बीवियां अमीरों की सूझबूझ की देन कम, उन के संपर्कों की देन ज्यादा हैं. इस देश में सत्ताधारियों की आय जनता को कुछ नया, अनूठा, विलक्षण देने की नीयत नहीं है, बल्कि उसे लूटने के नए, अभिनव, उलझे हुए तरीके ढूंढ़ने की है.
देश में शुद्ध अमीर वे हैं जो जानते हैं कि अमीरी का रास्ता धर्म या राजनीति की देन है. नीरव मोदी, मेहुल चोकसी, विक्रम कोठारी, सुब्रत राय, यूनिटैक, किंगफिशर, आईपीएल, 2जी स्कैम, कौमनवैल्थ स्कैम, कोल स्कैम, व्यापमं स्कैम सभी घरघर मोदी की तरह घरघर की पहचान बने हुए हैं. दरअसल, सत्ता और श्रद्धा दोनों का पूरा उपयोग कर के गैरकानूनी तरीके से पैसा बनाया जा रहा है, जनता को कुछ दे कर नहीं.
आम उत्पादक या व्यापारी सीमित पैसा ही कमा पाता है इस देश में. उस पर सरकार, बैंकों, इंस्पैक्टरों की इस बुरी तरह जकड़न रहती है कि वह न कुछ नया कर पाता है न संभल पाता है. उस के पास न नेताओं पर उड़ाने के लिए कुछ होता है, न बाबाओं पर. इन को मोटी आमदनी खास तिकड़मबाजों के माध्यम से होती है जो सिस्टम को अपने हिसाब से चला कर जनता की कमाई लूट लेते हैं. अगर 4-5 वर्षों में 100-200 में से एकदो पकड़े भी जाएं तो इसे आवश्यक रिस्क फैक्टर मान कर भुला दिया जाता है. मिलिट्री की भाषा में इसे कोलैट्रल डैमेज कहा जाता है. यह सिस्टम के उपयोग की खराबी नहीं, यह किसी के गड़्ढे में भूल से गिर जाने का मामला है.
वित्त मंत्री, प्रधानमंत्री चाहे चुप रहें, उपदेशात्मक या धमकीभरे शब्दों में कुछ कह दें, इस देश में यह चलता रहेगा क्योंकि हमारी संस्कृति में लूट, बेईमानी और भेदभाव रगरग में भरा है. यहां पूजा उन्हीं की होती है जो प्रपंचों से विजय पाते हैं. उन्हीं के नाम पर झगड़ा हो रहा है. हाल के ऐसे नाम पौराणिक युग के नामों की तरह के ही हैं.
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