22 जुलाई, 2017 की शाम को फिरोजाबाद के राजातालाब आर्किड ग्रीन के रहने वाले संजीव गुप्ता की पत्नी सारिका गुप्ता 2-3 लोगों के साथ टुंडला कोतवाली पहुंची तो कोतवाली प्रभारी अरुण कुमार सिंह हैरान ही नहीं हुए, बल्कि उन्हें किसी अनहोनी की आशंका भी हुई. क्योंकि वह सारिका गुप्ता को अच्छी तरह जानतेपहचानते थे. उस के पति संजीव गुप्ता शहर के जानेमाने व्यवसायी थे.

सारिका गुप्ता सीधे अरुण कुमार सिंह के पास पहुंची थी. उन्होंने उसे सामने पड़ी कुरसी पर बैठने के लिए कह कर आने की वजह पूछी तो उस ने जो बताया, सुन कर वह दंग ही नहीं रह गए, बल्कि परेशान भी हो उठे. उस ने बताया था कि साढ़े 5 बजे के करीब उस के पति संजीव गुप्ता अपने होटल सागर रत्ना से अपनी मीटिंग खत्म कर के सीधे घर आने वाले थे.

लेकिन अब तक वह न घर पहुंचे हैं और न ही उन का फोन मिल रहा है. जब भी उन्हें फोन किया जाता है, फोन बंद बताता है. इतना सब बता कर उस ने आशंका भी व्यक्त की कि कहीं उन का अपहरण तो नहीं हो गया है.

बहरहाल, अरुण कुमार सिंह ने सारिका से तहरीर ले कर उसे आश्वासन दिया कि पुलिस जल्दी ही उस के पति को ढूंढ निकालेगी. जबकि वह जानते थे कि यह काम इतना आसान नहीं है.

संजीव गुप्ता शहर का जानामाना नाम था. फिरोजाबाद शहर के राजातालाब इलाके की आर्किड ग्रीन में उस की शानदार कोठी थी, जहां कई महंगी कारें खड़ी रहती थीं. शहर के होटल सागर रत्ना में ही नहीं, कई स्कूलों में भी उस की हिस्सेदारी थी. इस के अलावा वह ब्याज पर पैसा उठाने के साथसाथ करोड़ों की कमेटी और सोसायटी चलाता था, जिस में शहर के ही नहीं, आसपास के शहरों के भी बड़ेबड़े लोग शेयर डालते थे.

ऐसे आदमी का गायब होना पुलिस के लिए परेशानी ही थी. पैसे वाला आदमी था, उस का अपहरण भी हो सकता था, इसलिए अरुण कुमार सिंह ने तुरंत इस बात की सूचना पुलिस अधिकारियों को दे दी. अपहरण की आशंका को ध्यान में रख कर तुरंत शहर की नाकाबंदी कराते हुए शहर भर की पुलिस को सतर्क कर दिया गया.

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रात भर पुलिस अपने हिसाब से संजीव गुप्ता की तलाश करती रही, लेकिन कुछ पता नहीं कर पाई. अगले दिन यानी 23 जुलाई को सारिका गुप्ता एक बार फिर कोतवाली पहुंची और शक के आधार पर नीता पांडेय, उस के पति प्रदीप पांडेय और अमित गुप्ता तथा कुछ अज्ञात लोगों के खिलाफ अपराध क्रमांक 641/2017 पर भादंवि की धारा 364ए, 506, 120बी के तहत नामजद मुकदमा दर्ज करा दिया.

उन्होंने पुलिस को अपने मोबाइल में 2 मैसेज भी दिखाए, जो उन के पति के ही फोन से आए थे. उन संदेशों में उन से संजीव गुप्ता की रिहाई के लिए सौ करोड़ की फिरौती मांगी गई थी. फिरौती न देने पर संजीव गुप्ता को मौत के घाट उतारने की धमकी दी गई थी.

यह मुकदमा दर्ज होने के बाद पुलिस ने संजीव गुप्ता के दोनों मोबाइल नंबरों को सर्विलांस पर लगवा दिए, साथ ही सुरक्षा की गरज से संजीव की कोठी पर पुलिस बल तैनात कर दिया गया. एसएसपी अजय कुमार पांडेय ने पुलिस की कई टीमें बना कर संजीव की तलाश में लगा दिया. इस के साथ एसटीएफ की भी एक टीम बना कर इस मामले में लगा दी गई थी.

पुलिस ने संजीव के मोबाइल फोन की लोकेशन के आधार पर अलीगढ़, दिल्ली, नोएडा, चंडीगढ़, जम्मूकश्मीर तक उस की खोज की, लेकिन कोई सफलता नहीं मिली. उस के मोबाइल का स्विच औफ रहता था, बस थोड़ी देर के लिए औन होता था. उसी के हिसाब से जो लोकेशन मिलती थी, पुलिस वहां पहुंच जाती थी.

24 जुलाई को सारिका के मोबाइल पर एक बार फिर संदेश आया कि कोठी पर पुलिस क्यों तैनात है, पुलिस को वहां से हटवाओ. सारिका ने यह संदेश पुलिस अधिकारियों को दिखाया तो कुछ पुलिस वालों को वहां से हटा दिया गया, लेकिन पूरी तरह से पुलिस नहीं हटाई गई.

संजीव गुप्ता को गायब हुए 3 दिन हो चुके थे. यह घटना शहर में चर्चा का विषय बनी हुई थी. ज्यादातर लोगों का कहना था कि संजीव का अपहरण नहीं हुआ, बल्कि वह खुद ही कहीं छिपा बैठा है. दूसरी ओर संजीव की पत्नी और भांजे विप्लव गुप्ता ने संजीव के अपहरण का आरोप नीता पांडेय पर लगाया ही नहीं था, बल्कि शक के आधार पर मुकदमा भी दर्ज करा दिया था.

नीता का पति प्रदीप पांडेय समाज कल्याण विभाग में वरिष्ठ लिपिक था. भाजपा का जिला संगठन ब्राह्मण समाज ही नहीं, सरकारी कर्मचारी भी प्रदीप पांडेय और नीता पांडेय के साथ थे. इसलिए पुलिस नीता पांडेय, उस के पति प्रदीप पांडेय और अनिल गुप्ता के खिलाफ कोई काररवाई नहीं कर पा रही थी.

पुलिस द्वारा की गई जांच के अनुसार, नीता पांडेय का आरओ और बोतलबंद पानी का व्यवसाय था. उन्होंने सन 2015 में संजीव गुप्ता से 15 लाख रुपए ब्याज पर लिए थे, जिस का ब्याज पहले ही काट कर संजीव ने उसे 10 लाख 80 हजार रुपए दिए थे. इस के बाद जबरदस्ती उस से 25 लाख रुपए की कमेटी डलवाई थी. बाद में ब्याज जोड़ कर वह उस से 60 लाख रुपए मांगने लगा था.

नीता ने इतना रुपया देने से मना किया तो संजीव जबरदस्ती वसूल करने की कोशिश करने लगा. मजबूर हो कर नीता ने 1 जुलाई, 2017 को भादंवि की धारा 406, 452, 504, 506 एवं 6 के तहत संजीव, दीपक और विप्लव गुप्ता के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया था. जबकि दोनों के बीच झगड़ा अप्रैल से ही चल रहा था.

यह मामला सुर्खियों में तब आया, जब नीता पांडेय ने जिलाधिकारी से संजीव गुप्ता द्वारा धमकी देने की शिकायत के साथ ब्याज पर पैसे उठाने की शिकायत कर दी थी. जिलाधिकारी ने एसपी (सिटी) और एसडीएम को इस मामले को सुलझाने का आदेश दिया था. लेकिन बुलाने पर भी संजीव समझौते के लिए नहीं आया.

धीरेधीरे नीता पांडेय और संजीव गुप्ता का विवाद इतना बढ़ गया कि यह प्रदेश के डीजीपी और मुख्यमंत्री तक पहुंच गया. ऐसे में कुछ और लोग नीता के साथ आ गए थे, जिन्हें कमेटी का अपना पैसा डूबता नजर आ रहा था. संजीव गुप्ता शहर का बड़ा आदमी ही नहीं, रसूख वाला भी था. उस के सामने हर किसी के आने की हिम्मत नहीं थी.

सपा सरकार के समय उस का अलग ही रुतबा था. लेकिन सत्ता बदलते ही उस का रुतबा जाता रहा. उस की कमेटी और सोसायटी का व्यवसाय शहर ही नहीं, अन्य शहरों तक फैला था, जिस की वजह से लगभग रोज ही होटल में पार्टियां होती रहती थीं, जिस में बड़ेबड़े लोग शामिल होते थे.

इसी संजीव गुप्ता की वापसी के लिए 100 करोड़ की फिरौती मांगी जा रही थी. यह हैरान करने वाली बात थी. पुलिस को भी इस बात पर विश्वास नहीं हो रहा था. 22 जुलाई की शाम को संजीव गायब हुआ था और 23 जुलाई की रात एक बज कर 40 मिनट पर 100 करोड़ की फिरौती का संदेश उस की पत्नी के फोन पर वाट्सऐप द्वारा आ गया था. यह भी संदेह पैदा करने वाली बात थी.

100 करोड़ की फिरौती की वजह से ही यह मामला राजधानी लखनऊ तक पहुंच गया था. विधान परिषद में भी मामला उठाया गया गया. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का सख्त आदेश था कि इस मामले को जल्द से जल्द सुलझाया जाए, इसीलिए इस मामले को सुलझाने में पुलिस जीजान से जुटी थी.

इसी का नतीजा था कि पुलिस को अपने सूत्रों से पता चला कि संजीव गुप्ता की कार अलीगढ़ के गभाना में खड़ी है. उस का मोबाइल फोन औन तो होता था, पर बहुत थोड़ी देर के लिए. फिर भी उस की जो लोकेशन मिलती थी, पुलिस उसी ओर भागती थी. अब तक की भागदौड़ से पुलिस को लगने लगा था कि यह अपहरण का मामला नहीं है. यह योजना बना कर किया गया अपहरण का नाटक है.

पुलिस ने नीता पांडेय से पूछताछ की तो उस ने कहा कि अगर सारिका गुप्ता को हिरासत में ले कर सख्ती से पूछताछ की जाए तो सारी सच्चाई सामने आ जाएगी. लेकिन पुलिस ऐसा करने से कतरा रही थी, क्योंकि ऐसा करने पर उस पर अंगुली उठ सकती थी. जबकि पुलिस पर इस मामले को सुलझाने का काफी दबाव था. अधिकारी भी मामले को सुलझाने में लगी टीमों पर दबाव बनाए हुए थे.

पुलिस ने संजीव के बारे में पता किया तो जानकारी मिली कि उस पर कमेटी और सोसायटी मैंबरों का करोड़ों का कर्ज था. पैसे वाले लोगों ने अपना चोरी का पैसा उस की कमेटी में लगा रखा था. उन्हें जब लगा कि उन का पैसा डूबने वाला है तो परेशान हो कर वे अपना पैसा उस से वापस मांगने लगे थे, जबकि उस के पास लौटाने के लिए पैसा नहीं था. उस ने कमेटी और सोसायटी का पैसा अपनी अय्याशी और शानोशौकत में उड़ा दिया था.

पुलिस जांच में एक आदमी ने बताया कि उस ने संजीव को 23 जुलाई को फिरोजाबाद में देखा था. इस से पुलिस को लगा कि संजीव का अपहरण नहीं हुआ है. वह अपहरण का नाटक कर रहा है. वह देश छोड़ कर भाग न जाए, पुलिस ने उस का पासपोर्ट जब्त कर लिया था.

पुलिस ने शहर के सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाली तो सारी पोल खुल गई. संजीव अपनी कार में अकेला ही नजर आ रहा था. गभाना में जहां उस की कार मिली थी, वहां एक पंक्चर बनाने वाले ने भी बताया था कि इस कार से एक ही आदमी उतरा था और कार लौक कर के वह चला गया था.

आखिर 28 जुलाई को एसटीएफ की टीम ने नाटकीय ढंग से संजीव गुप्ता को पानीपत के होटल स्वर्ण महल से बरामद कर लिया और फिरोजाबाद ला कर 29 जुलाई की सुबह एसएसपी अजय कुमार पांडेय के सामने पेश कर दिया. इस तरह संजीव गुप्ता की सकुशल बरामदगी से पुलिस ने राहत की सांस ली.

पुलिस की मेहनत तो सफल हो गई थी, पर उस की अपहरण की कहानी पर किसी को विश्वास नहीं था. संजीव गुप्ता ने कहा कि एसटीएफ और एसएसपी साहब ने उसे बचा लिया. अपनी बात कहते हुए वह कभी रोने लगता था तो कभी हंसने लगता था. उस के बताए अनुसार, जब वह मीटिंग खत्म कर के होटल सागर रत्ना से निकला और बाहर खड़ी कार में बैठा तो पीछे छिप कर बैठे एक युवक ने उस की पीठ पर पिस्टल सटा कर चुपचाप गाड़ी चलाते रहने को कहा.

रास्ते में 2-3 लोग और बैठ गए. उन्होंने उस का फोन ले कर उस की पत्नी को 100 करोड़ की फिरौती का संदेश भेजा. लेकिन वह अपनी इस बात पर टिका नहीं रह सका. बारबार बयान बदलता रहा. पुलिस को पहले से ही उस पर शक था, बयान बदलने से शक और बढ़ गया. इस के बावजूद पुलिस तय नहीं कर पा रही थी कि उस के साथ क्या किया जाए? अब तक उस की मदद के लिए तमाम लोग आ गए थे.

पुलिस के पास अभी संजीव के खिलाफ पुख्ता सबूत नहीं थे, इसलिए सबूतों के अभाव में पुलिस ने उस के खिलाफ कोई काररवाई न करते हुए उसे उस के घर वालों के हवाले कर दिया. पुलिस की यह हरकत लोगों को नागवार गुजरी, क्योंकि सभी जानते थे कि संजीव का अपहरण नहीं हुआ था. उस ने खुद ही अपने अपहरण का नाटक किया था.

सब से ज्यादा विरोध तो नीता पांडेय ने किया. उस ने संजीव से जान का खतरा बताते हुए उसे जेल भेजने की गुहार लगाई. संजीव को पुलिस ने घर भेज दिया तो वही नहीं, उस के घर वाले भी खुश थे कि उन का कोई कुछ नहीं बिगाड़ पाया. लेकिन पुलिस की स्थिति संदिग्ध होने लगी थी, इसलिए पुलिस अभी चुप नहीं बैठी थी.

अगले दिन आईजी मथुरा अशोक जैन फिरोजाबाद आए तो स्थिति बदलने लगी. पुलिस को होटल सागर रत्ना के गार्ड ने बताया था कि उस दिन संजीव गुप्ता ने उस होटल में कोई मीटिंग नहीं की थी. एक आदमी ने बताया था कि संजीव उस दिन अकेला ही कार में था. होटल के बाहर लगे सीसीटीवी कैमरे की फुटेज में भी संजीव अकेला ही कार में दिखाई दिया था.

एसटीएफ टीम ने उस कार को भी ढूंढ निकाला, जिस में संजीव जम्मू में अकेला घूमता रहा था. 22 जुलाई यानी संजीव के लापता होने वाले दिन उस की लोकेशन एटा, अलीगढ़ की मिली थी. 24 जुलाई को वह जम्मू में था. एसटीएफ टीम जब वहां होटल में पहुंची तो वह वहां से निकल चुका था. इस तरह के सारे सबूत जुटा कर पुलिस ने उस के खिलाफ काररवाई करने का मन बना लिया.

अब तक संजीव गुप्ता और सारिका गुप्ता की स्थिति काफी बदल चुकी थी. जो लोग उन की मदद के लिए खड़े रहते थे, अब उन्होंने दूरियां बना ली थीं. लोगों ने उन के नंबर ब्लौक कर दिए थे. लोग इस अपहरण के ड्रामे से हैरान थे, इसलिए लोग अब किसी तरह के पचड़े में नहीं पड़ना चाहते थे.

31 जुलाई की शाम को इंसपेक्टर अरुण कुमार सिंह संजीव गुप्ता की कोठी पर पहुंचे और संजीव गुप्ता तथा सारिका गुप्ता से अलगअलग पूछताछ की. संजीव और उस के घर वालों ने तो समझा था कि सब ठीक हो गया है, पुलिस को उन्होंने गुमराह कर दिया है, पर ऐसा नहीं था.

1 अगस्त, 2017 को पुलिस ने संजीव गुप्ता, सारिका गुप्ता, उस के भांजे विप्लव गुप्ता तथा सारिका के भाई सागर गुप्ता को हिरासत में ले कर थाने ले आई. अधिकारियों के सामने जब इन से अलगअलग पूछताछ शुरू हुई तो पुलिस की सख्ती के आगे सभी टूट गए और उन की जुबान खुल गई. संजीव को जब सीसीटीवी कैमरों की फुटेज दिखाई गई तो वह फूटफूट कर रोने लगा.

संजीव ने पुलिस को सारी कहानी सचसच बता दी. उस ने बताया कि लेनदारों तथा नीता पांडेय से छुटकारा पाने के लिए उस ने अपनी पत्नी सारिका, भांजे विप्लव और साले सागर के साथ मिल कर अपने अपहरण की योजना बनाई थी. नीता पांडेय और उस के पति को फंसा कर वह विदेश भाग जाना चाहता था.

पूछताछ के बाद पुलिस ने संजीव के बयानों के आधार पर सारिका, विप्लव और सागर के खिलाफ भादंवि की धारा 419, 420, 467, 468, 469, 471, 500, 507, 120बी, 34, 182, 186 और 187 के तहत मुकदमा दर्ज कर चारों को जेल भेज दिया. इस पूछताछ में संजीव गुप्ता ने जो बताया, उस के अनुसार, कहानी कुछ इस प्रकार थी.

संजीव गुप्ता बड़ेबड़े सपने देखने वाला नौजवान था. फर्श पर रह कर वह अर्श छूना चाहता था. कभी शहर की एक तंग गली में उस का चूडि़यों का छोटा सा गोदाम था. लेकिन वह रंगबिरंगी चूडि़यों के बीच जिंदगी के गोलगोल रंगीन सपने बुन रहा था. वह सपने ही नहीं देख रहा था, बल्कि धीरेधीरे उन सपनों को हकीकत का जामा भी पहनाने लगा था. पर इस के लिए उसे पैसों की जरूरत थी.

उस ने फिरोजाबाद ही नहीं, आगरा, मथुरा के बड़ेबड़े व्यापारियों से संपर्क बनाए और कमेटी और किटी का काम शुरू किया. लोग उस की कमेटी और किटी में बड़ीबड़ी रकम लगाने लगे. इसी पैसे को वह ब्याज पर उठाने लगा. बाजार में उस का लाखों रुपए ब्याज पर उठ गया. मजे की बात यह थी कि वह ब्याज के रुपए काट कर लोगों को रुपए उधार देता था.

समय पर किस्त न आने से संजीव अलग से ब्याज लेता था. धीरेधीरे वह बड़ा आदमी बनने लगा. पैसा आया तो वह अन्य धंधों में पैसे लगाने लगा. कमेटी में जो लोग पैसा डालते थे, वह दो नंबर का था. संजीव का सारा काम भी 2 नंबर का होता था, इसलिए हर कोई एकदूसरे की चोरी छिपाए रहा. पैसा आया तो संजीव गुप्ता के खर्चे बढ़ने लगे.

लोगों के पैसों से संजीव ने प्रौपर्टी तो बनाई ही, बड़ीबड़ी कारें भी खरीदीं. लेकिन बाद में लोग अपने पैसे मांगने लगे. अब उसे घाटा भी होने लगा था, जिस से लोगों को अपना पैसा डूबता नजर आया. फिर तो वह उस पर पैसा लौटाने के लिए दबाव डालने लगे. लोगों के दबाव से परेशान संजीव गुप्ता नीता पांडेय से 60 लाख रुपए मांगने लगा तो परेशान हो कर नीता ने उस पर मुकदमा कर दिया.

संजीव अब परेशान रहने लगा था. इस परेशानी से छुटकारा पाने के लिए उस ने एक योजना बनाई, जिस में उस ने पत्नी सारिका, भांजे विप्लव और साले सागर गुप्ता को शामिल किया. अगर संजीव की योजना सफल हो गई होती तो नीता पांडेय और उस के पति प्रदीप पांडेय जेल में होते और वह विदेश में मौज कर रहा होता.

योजना के अनुसार, संजीव ने सारिका की बहन के बेटे विप्लव गुप्ता तथा साले सागर को फिरोजाबाद बुला लिया. सागर सीए भी था और वकील भी. संजीव ने सागर को अपने ऊपर सूदखोरी के चल रहे मुकदमे की पैरवी के लिए बुलाया था, लेकिन आने पर अपने अपहरण की पटकथा लिखवा डाली.

सारिका किटी पार्टियों की शान मानी जाती थी. कमेटी और किटी में रुपए डालने के लिए सदस्यों को पटाने का काम वही करती थी. कमेटी चलाने की जिम्मेदारी भी उसी की थी. पति के अपहरण के इस ड्रामे में मुख्य भूमिका उसी की थी.

संजीव ने अपने अपहरण का तानाबाना काफी मजबूती से बुना था, पर पुलिस की मुस्तैदी और दूरदर्शिता के कारण उस का ड्रामा सफल नहीं हुआ. पत्रकारों के सामने संजीव, सारिका, विप्लव और सागर को पेश कर के एसएसपी अजय कुमार पांडेय ने बताया कि संजीव अपनी कार को ऐसे रास्तों से अलीगढ़ गया, जिन पर कोई टोलनाका नहीं था.

इसी वजह से वह सीसीटीवी कैमरों की नजर में नहीं आ सका. अलीगढ़ के गभाना टोल प्लाजा के पहले ही उस ने अपनी कार हाईवे के किनारे खड़ी कर के लौक कर दी और बस से दिल्ली के आईएसबीटी बसअड्डे पहुंचा. वहां से चंडीगढ़, मोहाली होते हुए 24 जुलाई को वह जम्मू पहुंच गया.

वहां से वह मनाली गया और 25 से 27 जुलाई तक वहीं रहा. वह रोहतांग भी गया, जहां से मनाली आ गया. मनाली से देहरादून होते हुए 28 जुलाई को वह पानीपत आया, जहां स्वर्ण होटल पहुंचा और योजना के अनुसार अपने अपहरण की कहानी होटल के कर्मचारियों को सुनाई.

दूसरी ओर सारिका ने कई बार सूटकेस ले कर कोठी से बाहर निकलने की कोशिश की, लेकिन पुलिस के पहरे की वजह से वह जा नहीं सकी. यह भी उस का एक ड्रामा था. अगर वह निकल जाती तो लोगों से कहा जाता कि सौ करोड़ की फिरौती दे कर वह पति को छुड़ा कर लाई है.

संजीव एक तीर से कई निशाने साधना चाहता था. अपहरण की आड़ में नीता पांडेय और उस के पति को जेल भिजवा कर उन से छुटकारा पाना चाहता था. सौ करोड़ की फिरौती दे कर आने के नाम पर वह कमेटी के कर्ज से छुटकारा पाना चाहता था. क्योंकि लोगों को उस से सहानुभूति हो जाती.

पर सच्चाई सामने आ जाने से संजीव की योजना पर पानी फिर गया. इस की वजह थी ज्यादा लालच. उस ने सौ करोड़ की जो फिरौती की बात की थी, उस पर किसी ने विश्वास नहीं किया.  जिन धाराओं में संजीव और सारिका को जेल भेजा गया है, उन का जेल से बाहर आना मुश्किल है. शानदार कोठी में रहने वाले पता नहीं कब तक जेल की कोठरी में रहेंगे.

संजीव के वकील ने उन की जमानत के लिए अदालत में अरजी लगा कर जमानत की काफी कोशिश की, लेकिन सरकारी वकील की दलीलें सुन कर न्यायाधीश श्री पी.के. सिंह ने जमानत की अरजी खारिज कर दी. एसटीएफ ने जिस तरह इस मामले का खुलासा किया, किसी को उम्मीद नहीं थी. उन की इस काररवाई से खुश हो कर एसएसपी अजय कुमार पांडेय ने उन्हें प्रशस्तिपत्र के साथ 15 हजार रुपए का नकद इनाम दिया है.

इंसपेक्टर अरुण कुमार सिंह का तबादला हो गया है. उन की जगह पर नए कोतवाली प्रभारी भानुप्रताप सिंह आए हैं. वह संजीव गुप्ता और उस के साथियों को रिमांड पर ले कर एक बार फिर पूछताछ करना चाहते हैं.

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