इन दिनों सीरियल ‘‘महाकाली : अंत ही आरंभ है’’ में राक्षस के किरदार में नजर आ रहें लिलिपुट 1975 से बौलीवुड में अभिनेता व लेखक के रूप में सक्रिय होते हुए अपने शारीरिक कद के चलते कभी स्टार नहीं बन पाए. वह महज हास्य अभिनेता ही बनकर रह गए. जबकि बौलीवुड में उन्हे अमिताभ बच्चन के साथ काम करने का अवसर भी मिला, पर हर बार उनकी यह फिल्में बन नहीं पायी. इसे वह महज किस्मत का खेल मानते हैं.

जी हां! सबसे पहले सुभाष घई ने लिलिपुट को अमिताभ बच्चन के साथ अपनी एक फिल्म का मुख्य विलेन बनाया था. मगर यह फिल्म भी बनी नहीं. इसका जिक्र करते हुए लिलिपुट कहते हैं- ‘‘अमिताभ बच्चन के साथ मुख्य विलेन निभाने का सुभाष घई का जो आफर मिला था, उसकी बड़ी रोचक कहानी है. बात उस वक्त की है, जब मैं मुंबई आया था और मेरे संघर्ष के दिन चल रहे थे. उन दिनों में मेरा एक नाटक ‘दंगा’ काफी चर्चित हुआ था. इसमें मैं पांच अलग अलग किरदार निभाता था. इस नाटक को देखने के लिए सुभाष घई जी आए थें. वह नाटक देखकर काफी प्रभावित हुए.

नाटक खत्म होने के बाद मैं अपना मेकअप छुड़ाने लगा, पर उन्होंने मेरा इंतजार किया. मुलाकात हुई, बात हुई. उन दिनों हम आत्माराम जी के लिए फिल्म ‘शरारत’ लिख रहे थे, उन्हें पता था कि मेरे पास रहने के लिए जगह नहीं है. तो उन्होंने मुझे अपने आफिस में ही रहने की जगह दे दी थी. मैं सीरियल ‘इधर उधर’ भी लिख रहा था. रामानंद सागर जी के लिए भी काम कर रहा था. फुर्सत में हम ताश खेलते रहते थे. एक दिन सुभाष घई का फोन आया उन्होंने आफिस बुलाया. मैं काफी काम कर रहा था, फिर भी उस वक्त मेरे पास पैसे की तंगी थी. अंधेरी पूर्व से बांदरा जाना था. पैदल जाने पर पहुंचना मुश्किल था. बस या टैक्सी का किराया देने के पैसे नहीं थे. तभी मेरा एक गैर फिल्मी दोस्त मुझसे मिलने आया, उसके पास गाड़ी थी. उसे मैने बताया,तो उसने कहा कि चलो मैं छोड़ देता हूं. सुभाष घई के आफिस में मेरी अच्छी आवभगत हुई. जिससे मुझे आश्चर्य हुआ. उन दिनों मैं कुछ फिल्में लिखने के साथ ही रामानंद सागर की एक फिल्म, ‘चिंगारी’, ‘पत्तों की बाजी’ सहित पांच छह फिल्मों में अभिनय कर रहा था, जिनकी शूटिंग चल रही थी.’’

वह आगे कहते हैं- ‘‘मैं सुभाष घई से मिला, उन्होंने कहा कि सुना है कि बहुत व्यस्त हो. मेरी फिल्मों के नाम पूछे और कहा कि सारी फिल्में छोड़ दो. मैने उनसे कहा कि मेरी औकात तो नहीं है कि जिनकी फिल्मों की कुछ दिन शूटिंग की है, उन्हें मना कर दूं. पर जो फिल्में शुरू नहीं हुई है, उनके पास जाकर हाथ पांव जोड़कर उन्हें मना कर सकता हूं. तब सुभाष घई ने कहा कि, ठीक है, मैं सब संभाल लूंगा. उन्होंने कहा कि वह मुझे एक फिल्म में मुख्य विलेन का किरदार दे रहे हैं, जिसके हीरो अमिताभ बच्चन हैं. आप यह समझ ले कि उनकी बात सुनकर मैं बेहोश नहीं हुआ. पर वह चाहते थे कि उनकी फिल्म से पहले मेरी फिल्में रिलीज न हो.

मैंने अपने दोस्त की सलाह न मानते हुए सभी फिल्में छोड़ दी. पर मेरी किस्मत खराब थी कि वह फिल्म नहीं बनी. जबकि उनका आफर अच्छा था. मासिक खर्च, मकान व गाड़ी देने का वायदा किया था, पर उन्होंने साइन नहीं किया. लेकिन जिन फिल्मों की शूटिंग चल रही थी, उनकी शूटिंग करने से मना नहीं किया. एक दिन महबूब स्टूडियो में मिलने के लिए बुलाया. कई लोगों के सामने मेरे अभिनय की तारीफ की. फिर एक दिन आफिस बुलाकर कहा कि अमिताभ जी बीमार हो गए हैं, इसलिए फिल्म बंद कर रहा हूं. अब आप स्वतंत्र हैं. इस फिल्म में मेरा किरदार काफी जटिल था. उसे लंबे कद के इंसानों से नफरत होती है. बहुत ही कनिंग और तेज दिमाग वाला किरदार था.’’

इसके बाद लिलिपुट को अमिताभ बच्चन के साथ फिल्म ‘आलीशान’ मिली थी, पर दस दिन के बाद यह फिल्म भी बंद हो गयी. इसकी चर्चा करते हुए लिलिपुट कहते हैं- ‘‘फिर एक फिल्म ‘आलीशान’ जावेद अख्तर भाई ने दिलवायी. इसमें अमिताभ बच्चन के साथ मेरा पैरलल किरदार था. हमने फिल्मालय स्टूडियों में दस दिन शूटिंग भी की, पर यह फिल्म भी नहीं बनी. इसके बाद एक फिल्म और मिली थी, वह भी नही बनी. तब मैने अमिताभ बच्चन के लिए कहा था- ‘डोंट ट्राय टू अट्रैक्ट मी. ’मैने यह जोक अमिताभ बच्चन जी को भी सुनाया था. अब इसे आप किस्मत ही कहेंगे. जब किस्मत खराब हो, तो क्या करेंगे.’’

आप मानते हैं कि आपकी किस्मत खराब थी, पर कर्म का भी अपना महत्व होता है. और आप कर्म कर रहे थे. इस पर लिलिपुट ने कहा- ‘‘आपने सही कहा. तभी तो कई बार किस्मत भी इंसान से हार जाती है. मैं जहां भी जिस मुकाम पर हूं, वहां किस्मत ने ही पहुंचाया है. मेरा मानना है कि किस्मत और कर्म, पति पत्नी की तरह हैं. पति के बिना पत्नी का और पत्नी के बिना मर्द का गुजारा नहीं. वैसे ही कर्म और किस्मत का एक दूसरे के बिना गुजारा नहीं. यह लिलिपुट का दर्शन शास्त्र है. इतना ही नहीं मुझे अमिताभ बच्चन के साथ चौथा मौका फिल्म निर्देशक शाद अली ने फिल्म ‘बंटी और बबली’ में दिया था. तब मैने उनसे कहा था कि सोच लो, फिल्म बंद न हो जाए, पर यह फिल्म बनी और सफल हुई.’’

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