राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग की उपाध्यक्ष और भारतीय जनता पार्टी की सांसद अनुसुइया उइके अपनी टीम समेत कुछ आदिवासी इलाकों का दौरा कर के भोपाल आईं, तो झल्लाई हुईं और बेहद गुस्से में थीं.

मीडिया के सामने उन्होंने बिना किसी लिहाज के अपनी ही सरकार को आड़े हाथ लिया. उन्होंने कहा कि आदिवासियों की हालत बहुत ही चिंताजनक है. उन की भलाई के लिए चलाई जा रही सरकारी योजनाओं में भारी भ्रष्टाचार हो रहा है. आदिवासी इलाकों के स्कूलों में पढ़ाने के लिए टीचर नहीं हैं और सब से ज्यादा चिंता और खतरे की बात आदिवासियों को पीने के लिए साफ पानी न मिलना है.

इत्तिफाक से उसी दिन सुप्रीम कोर्ट का एक अहम फैसला उज्जैन में बने महाकाल मंदिर को ले कर यह आया था कि अब महाकाल का अभिषेक आरओ के पानी से ही किया जाएगा, क्योंकि साधारण पानी से अभिषेक करने पर शंकर की पिंडी यानी मूर्ति को नुकसान पहुंच रहा है.

अपने फैसले में सब से बड़ी अदालत ने मूर्तिपूजा यानी अभिषेक के कई नियम भी बना दिए हैं, जिस से शिवलिंग को नुकसान न पहुंचे.

इन दोनों खबरों से यह बात उजागर होती है कि देश को आदिवासियों से ज्यादा पत्थर की मूर्तियों की चिंता है, जो पंडेपुजारियों की आमदनी का एक बड़ा जरीया है और शिवलिंग की उस से भी ज्यादा चिंता है कि उस के अभिषेक को ले कर कानून बनाए जा रहे हैं. आदिवासी गंदा पानी पीपी कर बीमार हो कर मरते रहें, यह चिंता की बात नहीं है.

आजादी के इतने साल बाद भी आदिवासी समदाय को पढ़ाईलिखाई की सहूलियतें नहीं हैं. उन के इलाकों में डाक्टर नहीं हैं और लोकतंत्र और राजनीति को शर्मसार कर देने वाली सचाई यह है कि वे गंदे नालों और कुओं का पानी पीने को मजबूर हैं, जिस पर किसी सरकार या अदालत का ध्यान नहीं जाता.

ऐसा सिर्फ इसलिए है कि आदिवासी सरल और सीधे हैं. उन्हें संविधान में लिखे अपने बुनियादी हकों की भी सही जानकारी नहीं है. दरअसल, यह एक गहरी साजिश है कि इस तबके को पिछड़ा ही रखा जाए और उस के भले के नाम पर खरबों रुपए की योजनाएं बना कर उन से पैसा बनाया जाए, जिस का फायदा अफसर, नेता, मंत्री सब उठाते हैं.

अनुसुइया उइके का गुस्सा जायज है, जिस पर खुद कोर्ट को पहल करते हुए सरकार से पूछना चाहिए कि ऐसा क्यों है कि आदिवासी गंदा पानी पीने को मजबूर हैं?

जागरूक लोगों को भी सोचना चाहिए कि किसी शिवलिंग का अभिषेक आरओ के पानी से हो, इस से पहले इस पिछड़े और अपढ़ तबके को इंसाफ और बुनियादी सहूलियतें दिलाने के लिए मुहिम छेड़ी जाए, नहीं तो फिर नक्सलवादी हिंसा करेंगे, जिस पर हायहाय तो सब करेंगे, लेकिन आदिवासी समाज के फायदे की बात गायब हो जाएगी.

कोई भी पूजापाठ या मूर्तिपूजा देशवासियों से ज्यादा अहम नहीं है, लेकिन ऐसा हो रहा है, तो विकास किस का और कैसा हो रहा है, यह बताने की जरूरत नहीं है. चूंकि आदिवासी समाज खुद को हिंदू नहीं मानता है, इसलिए भी उस की अनदेखी हो रही है और उसे जानबूझ कर शिकार बनाया जा रहा है.

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