उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव नजदीक होने की वजह से पुलिस प्रशासन काफी सख्त था. नतीजा यह हुआ कि अन्य राज्यों की सीमाओं से गुजरने वाले वाहनों पर खास नजर रखी जाने लगी. मीरजापुर के एसपी कलानिधि नैथानी ने भी अपने यहां सभी थानाप्रभारियों को सख्त निर्देश दे रखा था कि बाहर से आने वाले वाहनों पर सख्त नजर रखी जाए. 8 जनवरी, 2017 को यातायात प्रभारी देवेंद्र प्रताप सिंह मंगला सिंह, दिनेश यादव, गोविंद चौबे तथा भरूहना चौकीप्रभारी पंकज कुमार राय के साथ भरूहना चौराहे पर आनेजाने वाले वाहनों की जांच कर रहे थे. जांच के दौरान चुनार-वाराणसी की ओर से आने वाली एक इनोवा कार को रोका गया.

इस की वजह यह थी कि उस की नंबर प्लेट पर इस तरह मिट्टी लगाई गई थी ताकि उस का नंबर जल्दी से दिखाई न दे. सिपाहियों ने कार रुकवाई तो उस में ड्राइवर सहित 3 लोग सवार थे. सिपाहियों ने कार में पीछे झांका तो उस में 4-5 बड़ेबड़े कार्टून रखे दिखाई दिए.

सिपाहियों ने नंबर प्लेट की मिट्टी पैर से हटाई तो पता चला कि कार आंध्र प्रदेश की थी. उस में बैठे लोग संदिग्ध लगे तो पुलिस ने कार में बैठे लोगों से कार की डिक्की खोलने को कहा. जब उन लोगों ने डिक्की खोलने में आनाकानी की तो पुलिस का शक बढ़ गया. पुलिस को मामला कुछ गड़बड़ लगा.

मीरजापुर जनपद नक्सल प्रभावित सोनभद्र और चंदौली जिलों से सटा होने के साथसाथ मध्य प्रदेश, बिहार, झारखंड से ले कर छत्तीसगढ़ के नजदीक है, इसलिए मादक पदार्थों, विस्फोटक पदार्थों से ले कर वन्यजीवों की खाल, अवैध शस्त्र आदि के तस्कर इधर से गुजरते हैं.

इन्हीं बातों को ध्यान में रख कर पुलिस ने थोड़ी सख्ती से डिक्की खोलने को कहा तो ड्राइवर बोला, ‘‘साहब, उस में कुछ खास नहीं है. थोड़ा घरेलू सामान है, जिसे हम घर ले जा रहे हैं.’’

‘‘घरेलू सामान है तो दिखाने में क्या हर्ज है. चलो, तुम डिक्की नहीं खोलना चाहते तो हमीं खोल कर देख लेते हैं.’’ कार के पास खड़े एक सिपाही ने कहा ही नहीं, बल्कि आगे बढ़ कर उस ने डिक्की खोल भी दी. इसी के साथ उस ने कार के पिछले हिस्से में रखे कार्टूनों में से जैसे ही एक कार्टून पर पड़ा बोरा उठाया, अंदर से शेर के गुर्राने जैसी आवाज आई. सिपाही डर कर पीछे हट गया.

जानवर के गुर्राने की आवाज वाहनों की जांच में लगे अन्य पुलिसकर्मियों और अधिकारियों ने ही नहीं, वहां खड़े तमाशा देख रहे अन्य लोगों ने भी सुन ली थी. इसलिए पुलिस अधिकारी जहां कार के करीब पहुंच गए, वहीं तमाशबीन भी नजदीक आ गए थे.

पुलिस अधिकारियों ने जब सभी कार्टूनों पर पड़ा बोरा हटाया तो अंदर जो दिखाई दिया, उसे देख कर सब के सब हैरान रह गए. सभी कार्टूनों में पिंजरे रखे थे, जिन में दुर्लभ प्रजाति के जानवर बंद थे. पुलिस उन्हें गौर से देख रही थी कि तभी मौका पा कर गाड़ी में सवार 3 लोगों में से 2 लोग कार की चाबी ले कर भाग निकले. संयोग से एक आदमी पुलिस के हाथ लग गया.

दुर्लभ वन्यजीवों के साथ एक आदमी के पकड़े जाने की सूचना देवेंद्र प्रताप सिंह ने एसपी कलानिधि नैथानी को देने के साथ पुलिस लाइन से क्रेन मंगवा भी ली. क्रेन की मदद से इनोवा कार संख्या एपी28डी सी-3173 को पुलिस लाइन ले जाया गया.

सूचना पा कर डीएफओ के.के. पांडेय, सीओ (नगर) बृजेश कुमार तथा क्राइम ब्रांच प्रभारी विजय प्रताप सिंह भी पुलिस लाइन पहुंच गए. देखतेदेखते शेर जैसे दिखने वाले दुर्लभ जीव के बरामद होने की सूचना पूरे शहर में फैल गई.

इस के बाद पुलिस लाइन के आसपास की सड़कों पर भीड़ लगने लगी. सूचना पा कर एसपी कलानिधि नैथानी, एएसपी आशुतोष शुक्ल, सीओ बी.के. त्रिपाठी भी पुलिस लाइन पहुंच गए थे. अधिकारियों की उपस्थिति में कार से पिंजरे बाहर निकाले गए. कार की तलाशी में 32 बोर का एक रिवौल्वर और कुछ कारतूस भी बरामद हुए.

इस सब से साफ हो गया कि यह दुर्लभ प्रजाति के जानवरों की तस्करी का मामला है. पुलिस ने इन जानवरों के साथ जिस आदमी को पकड़ा था, उस का नाम अब्दुल आरिफ था. वह हैदराबाद का रहने वाला था. पूछताछ में पता चला कि उस के फरार हुए साथियों के नाम फहीम और इमरान थे.

अगले दिन एसपी कलानिधि नैथानी और वन अधिकारियों की उपस्थिति में पकड़े गए वन्यजीव तस्कर अब्दुल आरिफ से विस्तार से पूछताछ की गई. इस पूछताछ में उस ने वन्यजीवों की तस्करी से जुड़ी चौंकाने वाली जो कहानी सुनाई, वह कुछ इस प्रकार थी—

आंध्र प्रदेश के जिला हैदराबाद के थाना कालापत्थर का एक गांव है ताड़वन. इसी गांव में मोहम्मद अब्दुल वाशिद अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी के अलावा 3 बेटे और 2 बेटियां थीं. अब्दुल वाशिद ने समय से सभी बच्चों की शादी कर के अपनी जिम्मेदारी से मुक्ति पा ली थी.

शादियां हुईं तो परिवार बढ़ा, परिवार बढ़ा तो खर्चे भी बढ़े. ऐसे में अब्दुल वाशिद के 2 बेटे हैदराबाद जा कर रोजीरोजगार से लग गए. लेकिन सब से छोटे बेटे अब्दुल आरिफ को छोटेमोटे कामों से जैसे नफरत थी. वह हमेशा बड़ा आदमी बनने और करोड़ों में खेलने के सपने देखता था. यही वजह थी कि लोग उसे शेखचिल्ली कहने लगे थे.

इसी सब के चलते उस की मुलाकात फिरोज से हुई. दोनों की सोच एक जैसी थी, इसलिए जल्दी ही उन में दोस्ती हो गई. काम की बात चली तो फिरोज ने कहा, ‘‘मेरा कहा मानो तो मैं तुम्हें एक काम बताऊं. उस में थोड़ा रिस्क तो है, लेकिन पैसा बहुत है. अगर चालाकी से काम किया जाएगा तो रिस्क भी खत्म हो जाएगा.’’

‘‘पहले काम तो बताओ. बिना रिस्क के वैसे भी पैसा कहां मिलता है. अगर मोटी कमाई करनी है तो रिस्क तो उठाना ही पड़ेगा.’’ आरिफ ने कहा.

‘‘काम कोई खास मेहनत का नहीं है, उस में सिर्फ सावधानी की जरूरत है. काम करने लगोगे तो पैसों की बरसात होने लगेगी.’’ फिरोज ने कहा.

‘‘यार पहेलियां मत बुझाओ, काम बताओ. मैं पैसों के लिए कुछ भी कर सकता हूं.’’ आरिफ ने उत्तेजित हो कर कहा.

‘‘काम कोई मुश्किल नहीं है, सिर्फ जंगली जानवरों को कार से ले आना है.’’

‘‘तुम कह रहे हो कि काम कोई मुश्किल वाला नहीं है. मैं जंगली जानवरों को कैसे पकड़ कर लाऊंगा?’’ आरिफ ने हैरानी से कहा.

‘‘जंगली जानवरों को तुम्हें पकड़ना नहीं है. पकड़ेगा कोई और, तुम्हें सिर्फ एक जगह से दूसरी जगह कार से पहुंचाना है. इस के लिए तुम्हें आनेजाने के खर्च के साथसाथ जानवर जरूरत की जगह पहुंचाने के लिए मोटी रकम मिलेगी.’’ फिरोज ने कहा.

फिरोज द्वारा बताया गया यह काम अब्दुल आरिफ को पसंद आ गया तो वह काम करने को तैयार हो गया. इस के बाद फिरोज ने उस की मुलाकात मोहम्मद अब्दुल रहमान से करा दी. वह कालापत्थर के अलीबाग के रहने वाले अब्दुल अजीज का बेटा था. बातचीत के बाद आरिफ काम पर लग गया.

रहमान ने ही आरिफ को फहीम और इमरान के साथ पटना के रहने वाले डब्लू के यहां भेजा. आरिफ और उस के साथी उस इनोवा कार पर वाराणसी से सवार हुए थे. उस कार में जानवर हैं, इस की गंध किसी को न मिले, इस के लिए उस में तेज सुगंध वाला परफ्यूम छिड़क दिया गया था.

इन वन्यजीवों को बिहार से हैदराबाद तक पहुंचाने के लिए आरिफ को 50 हजार रुपए के अलावा रास्ते का पूरा खर्च दिया जाता. इस के अलावा प्रति जानवर 6 हजार रुपए इनाम भी मिलता. लेकिन आरिफ पुलिस को यह नहीं बता सका कि इन जानवरों का क्या किया जाएगा.

पूछताछ के बाद वन्यजीवों को वनविभाग को सौंप दिया गया. आरिफ के बयान के आधार पर देहात कोतवाली में उस के अलावा रहमान, इमरान, डब्लू और फहीम के खिलाफ भादंवि की धारा 9/51, 40, 39डी, 43, 48ए वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत मुकदमा दर्ज कर के आरिफ को अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

अब्दुल आरिफ तो पकड़ा गया था, लेकिन उस के साथी फरार हो गए थे. एसपी कलानिधि नैथानी उन्हें भी पकड़ना चाहते थे. उन्हें उन के मोबाइल नंबर आरिफ से मिल गए थे. इसलिए उन्हें पकड़ने के लिए स्वाट, सर्विलांस तथा देहात कोतवाली पुलिस की संयुक्त टीम बना कर उन के पीछे लगा दी गई थी.

इस का नतीजा यह निकला कि 18 जनवरी को भरूहना चौकीप्रभारी पंकज कुमार राय ने आरिफ के साथी फहीम को मीरजापुर रेलवे स्टेशन से पकड़ लिया. पूछताछ के बाद उसे भी जेल भेज दिया गया.

फहीम और आरिफ से पूछताछ में जो जानकारी मिली, उस के अनुसार ये जो जानवर ले जा रहे थे, उन्हें बंगाल के जंगलों से पकड़ा गया था. हैदराबाद इस तरह के जानवरों का बड़ा बाजार है. बिहार और बंगाल के जंगलों से पकड़े गए वन्यजीवों का उपयोग शक्तिवर्धक दवा बनाने में किया जाता है.

इन्हें पकड़ने के लिए पूरा एक रैकेट काम करता है. कुछ वनकर्मियों से भी इन की मिलीभगत होती है. इस रैकेट के बारे में किसी को भी पूरी जानकारी नहीं होती. हर व्यक्ति का काम बंटा होता है और हर आदमी को सिर्फ अपने काम के बारे में जानकारी होती है.

गिरफ्तार आरिफ और फहीम से 6 दुर्लभ प्रजाति के वन्यजीव बरामद हुए थे. इन में 5 कैरेकल कैट (जंगली बिल्ली) तथा 1 लैपर्ड कैट का बच्चा था. इन्हें न्यायालय के आदेश पर लखनऊ स्थित नवाब वाजिद अली शाह प्राणी उद्यान भेज दिया गया था.

इन जंगली जानवरों को हैदराबाद से पानी के जहाज से अन्य देशों में भेजा जाना था. वन्यजीव तस्करों का नेटवर्क भारत ही नहीं, नेपाल तक फैला है. तस्कर अपने एजेंटों के माध्यम से दुर्लभ और खूंखार जानवरों को खरीद कर लाखों कमाते हैं.

खूंखार जंगली जावरों को 10 लाख से एक करोड़ रुपए तक में बेचा जाता है. अब तक ये शेर, कैरेकल (एक प्रकार की जंगली बिल्ली), चीता, तेंदुआ सहित कई अन्य जानवरों की तस्करी कर चुके हैं.

तस्करों के पास से बरामद जंगली बिल्लियां दुर्लभ प्रजाति की थीं. उन की संख्या देश भर में 200 से भी कम है. पता चला है कि कुछ निजी चिडि़याघर चलाने वाले भी ऐसे जानवरों को खरीद कर अपने यहां रखते हैं. इस के लिए वे तस्करों को लाखों रुपए देते हैं.

– कथा पुलिस व मीडिया सूत्रों पर आधारित

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