भारतीय जनता पार्टी की लव जिहाद मुहिम देश की एकता के लिए खतरा होने के साथ युवाओं के अपने फैसले खुद करने पर धार्मिक अंकुश भी है. बाहर वालों को यह हक कभी नहीं मिल सकता कि वे किसी लड़के, किसी लड़की को एकदूसरे के प्रेम में डूबने व विवाह के बंधन में बंधने से रोकें सिर्फ इसलिए कि वे अलग अलग धर्मों के हैं.
केरल में भारतीय जनता पार्टी इसे चुनावी मुद्दा बना कर युवाओं के प्राकृतिक हक को छीन रही है. गली में, बस में, ट्रेन में, क्लास में या दफ्तर में जब कोई किसी को चाहने लगे तो वे एकदूसरे की कुंडली थोड़े ही मांगेंगे. हां, पंडे तो चाहेंगे ही कि कोई विवाह उन की मरजी और उन को दानदक्षिणा दिए बिना न हो. पर प्रेम तो शक्ल, व्यवहार और लगाव के कारण होता है, कुंडलियों के आधार पर नहीं.
आजकल भारतीय जनता पार्टी लव जिहाद का नारा मुसलिमों के लिए लगा रही है तो क्या पता, कल हिंदू सिख, हिंदू, बौद्ध और फिर दलित, पिछड़े, पिछड़े ब्राह्मण प्रेमों पर हाथ मारने लगें. वैलेंटाइन डे पर घूम रहे जोड़ों से धर्मरक्षक जब मारपीट करते हैं तो उन का अर्थ यही होता है कि बिना पंडों की मंजूरी के लड़कालड़की हाथ में हाथ डाले क्यों घूम रहे हैं.
गौरक्षकों से विवाहरक्षक बने ये धर्मरक्षक हर तरह के हक अपने हाथ में लेने लगे हैं. लखनऊ में एक देवी, जो खुद को भाजपा की छोटीमोटी नेता बताती हैं, ने भरे बाजार में एक लड़की पर थप्पड़ों की बौछार कर दी कि वह एक अनजान मुसलिम लड़के से क्यों बतिया रही थी और फिर टैलीविजन पर खुद का जम कर गुणगान कर रही थी कि उस ने महान काम किया है. मोहन भागवत ने एक तरह से इन रक्षकों को अभयदान दिया है. गाएं बचें या नहीं, युवाओं के हक जरूर खतरे में हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने केरल उच्च न्यायालय को सही फटकार लगाई है. वहां उच्च न्यायालय ने 24 साला युवती के विवाह की जांच के लिए एक वकील को नियुक्त कर डाला. लव जिहाद को कानूनी जामा पहनाने की कोशिश में कट्टरपंथियों का न्यायालयों का साथ मिलना बहुत ही दुखद है.
प्रेम विवाह देश की जरूरत हैं ताकि जाति और धर्म की खाइयां दूर हों और रीतिरिवाजों, दहेज, कन्याभू्रण हत्या जैसे मामले खत्म हों. 2017 में 1935 की हिटलरी वापस लाने के लिए की जा रही कोशिश युवाओं के मनमरजी के साथी चुनने के हक को छीनती है. यह हरगिज बरदाश्त नहीं होगा. सारी खुदाई एक तरफ, मनभायी सब तरफ का सिद्धांत अपनाना होगा.