देश की राजधानी दिल्ली के जामियानगर में स्थित है जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी. उर्दू में जामिया का मतलब है यूनिवर्सिटी और मिलिया का मतलब है मिल्लत यानी समूह. ब्रिटिश शासन में स्थापित इस यूनिवर्सिटी को एक साल पहले भारत की बेस्ट यूनिवर्सिटी सर्वे में 8वां स्थान हासिल हुआ था.

इस यूनिवर्सिटी में देश के अलगअलग हिस्सों से छात्र तालीम हासिल करने आते हैं. युवा सद्दाम और बाबर उर्फ हैदर ने भी एक साल पहले यहां पढ़ने के लिए दाखिला लिया था. दोनों ही पढ़ने में होशियार थे.

सद्दाम और बाबर उत्तर प्रदेश के जिला मेरठ के थाना मुंडाली के गांव जिसौरा के रहने वाले थे. उन के गांव के कुछ और लड़के यूनिवर्सिटी में पढ़ते थे, इस लिहाज से उन्हें वहां दाखिला ले कर रहने में कोई दिक्कत नहीं हुई थी. 19 साल के बाबर और 18 साल के सद्दाम के पिता मोहम्मद मुन्नर और कलवा गांव के आर्थिक रूप से समृद्ध किसानों में थे.

वे चाहते थे कि बच्चे तालीम से ऊंचा दर्जा हासिल करें. बाबर डौक्टर बनना चाहता था और सद्दाम इंजीनियर. साप्ताहिक अवकाश पर सद्दाम और बाबर अपने घर आ जाया करते थे. 8 अप्रैल, 2017 को दोनों गांव आए थे. अगले दिन रविवार था. छुट्टी का पूरा दिन घर में बिता कर 10 तारीख की दोपहर करीब 3 बजे दोनों घर से दिल्ली के लिए रवाना हो गए थे.

दोनों के ही परिवारों में अच्छे संबंध थे. ऐसा पहली बार नहीं हुआ था कि वे दोनों दिल्ली एक साथ गए थे, बल्कि हर बार वे इसी तरह आतेजाते थे. हर बार दोनों दिल्ली पहुंच कर घर वालों को फोन कर के कमरे पर पहुंचने की बात बता देते थे.

लेकिन उस दिन ऐसा नहीं हुआ तो दोनों के ही घर वालों को चिंता हुई. यह चिंता इस बात से और भी बढ़ गई थी कि दोनों के मोबाइल स्विच्ड औफ बता रहे थे. हौस्टल में उन के साथ रहने वाले लड़कों से बात की गई तो उन्होंने बताया कि दोनों वहां पहुंचे ही नहीं हैं.

बाबर और सद्दाम को ज्यादा से ज्यादा 3 घंटे में अपने कमरे पर पहुंच जाना चाहिए था. देर रात तक दोनों कमरे पर नहीं पहुंचे तो आखिर कहां लापता हो गए. जब सद्दाम और बाबर के बारे में कुछ नहीं पता चला तो रात में ही उन के घर वाले दिल्ली पहुंच गए.

रास्ते में भी वे पूछताछ करते रहे कि कहीं कोई दुर्घटना तो नहीं हुई थी. लेकिन ऐसा कुछ पता नहीं चला. थकहार कर वे लौट गए. नातेरिश्तेदारों से भी पता किया गया, लेकिन कुछ पता नहीं चला. अगले दिन भी किसी की चिंता कम नहीं हुई, क्योंकि दोनों के मोबाइल अभी तक बंद थे.

सभी को रहरह कर अनहोनी की आशंका सता रही थी. कोई नहीं जानता था कि आखिर दोनों के साथ हुआ क्या है? दिन के 11 बज रहे थे, बाबर के पिता मुन्नर के पास फोन आया. मोबाइल स्क्रीन पर नंबर बाबर का ही दिखाई दिया था, इसलिए उन्होंने तुरंत फोन रिसीव किया, ‘‘हैलो बेटा, कहां हो तुम?’’

उन्हें झटका तब लगा, जब दूसरी ओर से बाबर के बजाय किसी अन्य की गुर्राहट भरी आवाज उभरी, ‘‘ज्यादा परेशान होने की जरूरत नहीं है मियां, बाबर हमारे कब्जे में है.’’

गुर्राहट भरी आवाज सुन कर मुन्नर के पैरों तले से जमीन खिसक गई. डरते हुए उन्होंने पूछा, ‘‘तुम कौन बोल रहे हो भाई?’’

‘‘यह जान कर तुम क्या करोगे? बस इतना समझ लो कि हम अच्छे लोग नहीं हैं. तुम्हारा बेटा हमारे कब्जे में हैं. उसे सकुशल वापस पाना चाहते हो तो फटाफट 80 लाख रुपयों का इंतजाम कर लो. अगर ऐसा नहीं किया तो अंजाम भुगतने को तैयार रहो.’’

‘‘लेकिन…’’ मुन्नर ने कुछ कहना चाहा तो फोन करने वाले ने सख्त लहजे में कहा, ‘‘हमें ज्यादा सवाल सुनने की आदत नहीं है. रकम भी हम ने सोचसमझ कर मांगी है. अब यह तुम्हें तय करना है कि बेटा चाहिए या दौलत?’’

इस के बाद एक लंबी सांस ले कर फोन करने वाले ने आगे कहा, ‘‘और हां, किसी तरह की चालाकी करने की कोशिश मत करना, वरना बेटा नहीं, उस के शरीर के टुकड़े मिलेंगे. तुम रकम का इंतजाम करो, हम तुम्हें दोबारा फोन करेंगे.’’

इतना कह कर उस ने फोन काट दिया. फोन करने वाला कौन था? यह तो वह नहीं जानते थे, लेकिन उस की बातों में ऐसी धमक थी, जिस ने मुन्नर को अंदर तक दहला कर रख दिया था. वह समझ गए कि सद्दाम और बाबर का फिरौती के लिए किसी ने अपहरण कर लिया है.

मुन्नर सद्दाम के पिता से मिलने उन के घर पहुंचे तो वह सिर थामे बैठे थे. क्योंकि तब तक उन के पास भी 80 लाख रुपए की फिरौती के लिए उन के बेटे के ही मोबाइल से फोन आ चुका था. घर वालों ने मोबाइल नंबरों पर पलट कर फोन करने की कोशिश की, लेकिन वे स्विच्ड औफ हो चुके थे. घर वालों ने देर किए बगैर इस की सूचना पुलिस को देना उचित समझा.

बाबर और सद्दाम के पिता कुछ लोगों को साथ ले कर एसपी (देहात) श्रवण कुमार सिंह से जा कर मिले और उन्हें घटना के बारे में बताया. श्रवण कुमार सिंह के आदेश पर थाना मुंडाली में अज्ञात लोगों के खिलाफ दोनों छात्रों सद्दाम और बाबर के अपहरण का मुकदमा दर्ज कर लिया गया. मामला गंभीर था, इसलिए पुलिस तुरंत काररवाई में लग गई. थानाप्रभारी अजब सिंह ने तुरंत इस मामले की जांच शुरू कर दी.

एसएसपी जे. रविंद्र गौड़ ने श्रवण कुमार सिंह के निर्देशन और सीओ विनोद सिरोही के नेतृत्व में पुलिस टीमें गठित कर अपहरण के खुलासे के लिए लगा दीं. विनोद सिरोही पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पहले भी तैनात रहे हैं, इसलिए अपराध और अपराधियों पर उन की गहरी पकड़ थी. अगले दिन एक पुलिस टीम दिल्ली रवाना हुई, जहां दोनों छात्रों के साथियों अब्दुल कादिर और मेहरात से पूछताछ की गई.

लेकिन उन से कोई सुराग नहीं मिला. इस बीच पुलिस ने दोनों छात्रों के मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स और अंतिम लोकेशन हासिल कर ली थी. मोबाइल नंबरों के रिकौर्ड के अनुसार, सद्दाम और बाबर की लापता होने वाले दिन की अंतिम लोकेशन नोएडा शहर की पाई गई थी. फिरौती के लिए जो फोन किए गए थे, वे नोएडा से ही किए गए थे.

अपहर्त्ताओं तक पहुंचने के लिए पुलिस के पास मोबाइल ही एकमात्र जरिया था. अपहर्त्ता काफी चालाक थे. वे बात करने के लिए सद्दाम और बाबर के ही मोबाइल फोन का इस्तेमाल कर रहे थे. पुलिस टीमें संदिग्ध स्थानों के लिए रवाना हो गई थीं.

12 अप्रैल की सुबह अपहर्त्ता ने मुन्नर को एक बार फिर फोन किया. इस बार फोन किसी अन्य नंबर से किया गया था. उस ने सीधे मतलब की बात कही, ‘‘रकम तैयार रखना, डील होते ही तुम्हारे बच्चों को छोड़ दिया जाएगा.’’

‘‘हम तैयार हैं, बताओ रकम कहां पहुंचानी है?’’

‘‘इस बारे में हम तुम्हें दोपहर को फोन कर के बताएंगे.’’ कह कर अपहर्त्ता ने फोन काट दिया.

यह नंबर भी पुलिस को दे दिया गया था. 4 दिन बीत चुके थे, लेकिन पुलिस को कोई सफलता नहीं मिली. अपहर्त्ता फोन कर के तुरंत मोबाइल फोन बंद कर देते थे, इसलिए पुलिस को उन की सटीक लोकेशन नहीं मिल पा रही थी. लेकिन यह जरूर पता चल गया था कि मोबाइल फोन से जो फोन किए जा रहे हैं, वे नोएडा के सैक्टर-63 से किए जा रहे हैं.

पुलिस ने बाबर के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स खंगाली तो उस में एक नंबर ऐसा मिला, जिस पर उस की लापता होने से पहले बातें हुई थीं. उस नंबर के बारे में पता किया गया तो वह नंबर नोएडा के छिजारसी गांव के रहने वाले मौलाना अयूब का निकला. उस के बारे में पता किया गया तो पता चला कि वह एक मदरसे में बच्चों को दीनी तालीम दिया करता था, साथ ही वह तंत्रमंत्र भी करता था.

अयूब उसी जिसौरा गांव का रहने वाला था, जहां के बाबर और सद्दाम रहने वाले थे. कुछ सालों पहले अयूब नोएडा जा कर बस गया था. उस के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवा कर चैक की गई तो पता चला कि उस का संपर्क हैदर नामक एक युवक से था.

इस के बाद पुलिस ने हैदर के बारे में पता किया तो पता चला कि वह भी जिसौरा गांव का ही रहने वाला था. वह गाजियाबाद में टैंपो चलाता था. खास बात यह थी कि अयूब और हैदर की लोकेशन सद्दाम और बाबर के लापता होने वाली शाम को एक साथ थी.

इन सभी तथ्यों के हाथ में आने से पुलिस समझ गई कि दोनों छात्रों के लापता होने के तार अयूब और हैदर से जुड़े हुए हैं. युवकों के बारे में पता न चलने से गांव के लोगों में नाराजगी बढ़ रही थी. इस बात की जानकारी होने पर सीओ विनोद सिरोही ने गांव जा कर लोगों की नाराजगी को शांत कर के उन्हें पुलिस की काररवाई से अवगत कराया.

15 अप्रैल को एक पुलिस टीम अयूब की तलाश में निकल पड़ी. छिजारसी गांव नोएडा के सैक्टर-63 में ही आता था. पुलिस टीम ने नोएडा पुलिस की मदद से उसे हिरासत में ले लिया. पहले तो उस ने धर्म का डर दिखा कर पुलिस को धमकाने की कोशिश की, लेकिन सबूतों के आगे उस ने हथियार डाल दिए.

पुलिस दोनों लड़कों को सकुशल बरामद करना चाहती थी. जब अयूब से उन के बारे में पूछताछ की गई तो उस ने हाथ जोड़ कर कहा, ‘‘साहब, वे दोनों अब नहीं हैं.’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘मुझे माफ कर दीजिए साहब, मैं ने और हैदर ने उन की हत्या कर के शव फेंक दिए हैं.’’

अयूब की हैवानियत भरी बातें सुन कर पुलिस सकते में आ गई. पुलिस ने लाशों के बारे में पूछा तो उस ने बताया, ‘‘हम ने दोनों लाशें ले जा कर गाजियाबाद जिले की डासना-मसूरी नहर में फेंक दी थीं.’’

पुलिस अयूब को ले कर तुरंत वहां पहुंची, जहां उन्होंने लाशें फेंकी थीं. उस की निशानदेही पर पुलिस ने झाडि़यों में अटकी सद्दाम और बाबर की लाशें बरामद कर लीं. उन के घर वालों को इस बात की सूचना दी गई तो उन के यहां कोहराम मच गया. मौके पर पहुंच कर उन्होंने लाशों की शिनाख्त कर दी.

पुलिस ने घटनास्थल की काररवाई निपटा कर लाशों को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. हत्या की बात से जिसौरा गांव में तनाव फैल गया, जिस की वजह से गांव में पुलिस बल तैनात करना पड़ा. पुलिस ने दूसरे आरोपी हैदर की तलाश शुरू की, लेकिन वह हाथ नहीं आया.

पुलिस ने अयूब से विस्तार से पूछताछ की तो दोनों लड़कों की हत्या की जो कहानी निकल कर सामने आई, वह चौंकाने वाली थी. धर्म की आड़ में कमाई के लिए ढोंग रचने वाले अयूब के चेहरे से तो नकाब उतरा ही, साथ ही हैदर की भी हकीकत खुल गई.

हैदर ने अपनी प्रेमिका से बाबर को दूर करने के लिए मौत की ऐसी खौफनाक साजिश रची, जिस में अयूब भी शामिल हो गया था. तंत्रमंत्र पर बाबर का नासमझी भरा अंधविश्वास उसे मौत की चौखट तक ले गया. उसी के साथ निर्दोष सद्दाम भी मारा गया. इस तरह नासमझी में 2 घरों के चिराग बुझ गए.

दरअसल, टैंपो चालक हैदर का गांव की ही एक लड़की से प्रेमप्रसंग चल रहा था. दोनों का प्यार परवान चढ़ रहा था कि उसी बीच हैदर को पता चला कि उस की प्रेमिका का बाबर से भी चक्कर चल रहा है. इस से उस का दिमाग घूम गया. उस ने अपने स्तर से इस बारे में पता किया तो बात सच निकली.

हैदर को यह बात काफी नागवार गुजरी. उस ने अपनी प्रेमिका को भी समझाया और बाबर को भी. उस का सोचना था कि दोनों अब कभी बात नहीं करेंगे, लेकिन उस की यह खुशफहमी जल्द ही खत्म हो गई, जब उसे पता चला कि उस की बातों का दोनों पर कोई असर नहीं हुआ है. हैदर लड़की पर अपना हक समझने लगा था. उसे यह कतई मंजूर नहीं था कि वह किसी और से बातें करे, इसलिए एक दिन उस ने बाबर को समझाते हुए कहा, ‘‘बाबर, मैं नहीं चाहता कि तुम मेरी होने वाली बीवी से बात करो.’’

‘‘तुम क्या उस से निकाह करने वाले हो?’’

‘‘हां.’’

‘‘तो फिर मुझे रोकने से अच्छा है कि उसे समझाओ. अब मुझ से कोई बात करेगा तो मैं भला कैसे मना कर सकता हूं.’’

‘‘जो भी हो, मैं तुम्हें समझा रहा हूं. अगर तुम नहीं माने तो अंजाम अच्छा नहीं होगा.’’ हैदर ने धमकी भरे लहजे में कहा तो दोनों में बहस हो गई.

दूसरी ओर हैदर ने प्रेमिका से बात की तो वह मुकर गई. हैदर उस पर भरोसा करता था. उस का अहित करने की वह सोच भी नहीं सकता था. वक्त के साथ हैदर के दिमाग में यह बात घर कर गई कि हो न हो, उस की प्रेमिका को बाबर ही अपने जाल में फंसा रहा हो. उसे इस बात का भी डर सता रहा था कि अगर उस ने कुछ नहीं किया तो उसे एक दिन प्रेमिका से हाथ धोना पड़ेगा.

ठंडे दिमाग से सोचा जाए तो किसी भी मसले का हल निकल आता है, लेकिन हैदर ऐसी फितरत का इंसान नहीं था. कई दिनों की दिमागी उधेड़बुन के बाद उस ने बाबर को ही रास्ते से हटाने का फैसला कर लिया.

बाबर की बातें तांत्रिक अयूब से भी हुआ करती थीं. इस बात की जानकारी हैदर को थी. अयूब से उस के भी अच्छे रिश्ते थे. उस की प्रेमिका की बातें कई बार अयूब ने ही उसे बताई थीं, इसलिए हैदर ने अयूब के जरिए ही बाबर को रास्ते से हटाने की सोची.

मौलाना अयूब लोगों को इंसानियत का पाठ पढ़ाने का ढोंग करता था, धर्म की आड़ में तंत्रमंत्र के बल पर सभी समस्याओं से छुटकारा दिलाने का दावा करता था. अंधविश्वासियों की चूंकि समाज में कोई कमी नहीं है, इसलिए उस का यह धंधा ठीकठाक चल रहा था. एक दिन हैदर अयूब के पास पहुंचा. अयूब ने आने की वजह पूछी तो उस ने कहा, ‘‘अयूब भाई, मैं एक काम में आप की मदद चाहता हूं.’’

‘‘कैसी मदद?’’

‘‘एक लड़के को रास्ते से हटाना है. इस काम में तुम मेरी बेहतर मदद कर सकते हो.’’

‘‘कैसी बात कर रहे हो हैदर मियां?’’ हैदर की बात सुन कर अयूब एकदम से चौंका तो हैदर ने हंसते हुए कहा, ‘‘इस में इतना चौंकने की क्या बात है? कब तक तुम लोगों के लिए ताबीज बना कर हजार, 5 सौ रुपए कमाते रहोगे. मैं तुम्हें 10 लाख रुपए के साथ एक प्लौट भी दिला दूंगा. मैं जानता हूं कि तुम किराए पर रहते हो. ऐसे में तो तुम अपना घर बनाने से रहे. सोच लो, मौका बारबार नहीं आता.’’

हैदर की इस बात पर अयूब सोच में डूब गया. उस का दिया लालच वाकई मोटा था. थोड़ी ही देर में अयूब धर्म और इंसानियत को भूल गया. उस ने साथ देने का वादा किया तो हैदर ने उसे बाबर का नाम बता दिया.

‘‘तुम उसे क्यों मारना चाहते हो?’’

‘‘वह मेरी प्रेमिका को हथियाने की कोशिश कर रहा है, इसलिए उस का मरना जरूरी है.’’

इस के बाद हैदर और अयूब ने बाबर की हत्या कर उस के घर वालों से फिरौती वसूलने की योजना बनाई. इसी योजना के तहत अयूब ने 9 अप्रैल की शाम बाबर को फोन किया, ‘‘बाबर, मेरे पास एक ऐसी आयतों की ताबीज है, जिस लड़की का भी नाम ले कर पहनोगे, वह हमेशा के लिए तुम्हारी दीवानी हो जाएगी.’’

‘‘सच?’’

‘‘हां, अगर तुम्हें वह ताबीज चाहिए तो मैं तुम्हें वह ताबीज दे सकता हूं. लेकिन एक शर्त होगी.’’

‘‘क्या?’’ बाबर ने उत्सुकता से पूछा तो उस ने राजदाराना अंदाज में कहा, ‘‘इस के बारे में तुम किसी से जिक्र नहीं करोगे. एक बात और, उसे मेरे पास आ कर ही लेना होगा.’’

‘‘ठीक है, मैं गांव आया हूं. मुझे कल जामिया जाना है. तुम्हारे पास से होता हुआ चला जाऊंगा.’’

बाबर आने के लिए तैयार हुआ तो अयूब ने यह बात हैदर को बता दी. अगले दिन शाम के वक्त बाबर अपने साथी सद्दाम के साथ छिजारसी पहुंचा. हैदर वहां पहले से ही मौजूद था. हैदर को देख कर हालांकि बाबर को झटका लगा, लेकिन उस ने उस के साथ दोस्ताना व्यवहार करते हुए कहा, ‘‘हैदर, तुम यहां..?’’

‘‘मैं अयूब भाई से यूं ही मिलने चला आया था.’’ हैदर ने कहा.

बाबर उम्र के लिहाज से इतना समझदार नहीं था कि उन की चाल को समझ पाता. सद्दाम सिर्फ दोस्ती की वजह से उस के साथ आया था. कुछ देर की बातचीत के बाद अयूब ने बाबर और सद्दाम को कोल्डड्रिंक पीने के लिए दी. कोल्डड्रिंक पी कर दोनों बेहोश हो गए. अयूब ने उस में पहले से ही नशीली दवा मिला रखी थी.

बाबर और सद्दाम के बेहोश होते ही हैदर और अयूब ने मिल कर उन की गला दबा कर हत्या कर दी. तब तक रात हो चुकी थी. उन के मोबाइल उन्होंने स्विच औफ कर दिए. इस के बाद दोनों की लाशों को चादरों में बांध कर टैंपो में रखा और गाजियाबाद के मसूरी की ओर चल पड़े.

रास्ते में कई जगह उन्हें पीसीआर वैन और पुलिस की गाडि़यां मिलीं, लेकिन संयोग से टैंपो को किसी ने चैक नहीं किया. मसूरी नहर की पटरी पर सुनसान जगह देख कर हैदर ने टैंपो रोका. इस के बाद दोनों ने मिल कर लाशों को नहर में फेंक दिया. लेकिन जल्दबाजी में लाशें झाडि़यों में अटक गई थीं, जबकि उन्होंने सोचा था कि लाशें नहर में बह गई होंगी. अंधेरा होने की वजह से वे देख नहीं सके थे.

लाशों को ठिकाने लगा कर दोनों छिजारसी चले गए. अगले दिन अयूब ने आवाज बदल कर बारीबारी से बाबर और सद्दाम के घर वालों को फिरौती के लिए फोन कर के मोबाइल बंद कर दिए. हैदर को लगा कि बारबार उन के नंबर इस्तेमाल करना ठीक नहीं है, इसलिए वह फर्जी पते पर नया सिमकार्ड खरीद लाया, जिस से बाद में दोनों लड़कों के घर वालों को फोन किए जाते रहे.

हैदर और अयूब को पूरी उम्मीद थी कि अपने बेटों के बदले घर वाले फिरौती जरूर देंगे, जिस से उन की किस्मत बदल जाएगी. लेकिन उन की सारी चालाकी धरी की धरी रह गई थी.

विस्तार से पूछताछ के बाद पुलिस ने अयूब को अदालत में मैट्रोपौलिटन मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश कर के जेल भेज दिया. पोस्टमार्टम के बाद बाबर और सद्दाम के शवों को घर वालों के हवाले कर दिया गया था. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, दोनों की मौत गला दबाने से हुई थी. गमगीन माहौल में दोनों लड़कों के शवों को पुलिस की मौजूदगी में दफना दिया गया.

20 अप्रैल को पुलिस ने फरार चल रहे हैदर को भी गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में उस ने भी अपना गुनाह कबूल कर लिया था. पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे भी अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया. हैदर ने जो कदम उठाया, वह कोई नासमझी नहीं, बल्कि जानबूझ कर उठाया गया सरासर गलत कदम था. 2 युवाओं की जान ले कर वह खुद भी नहीं बच सका.

वहीं धर्म का पाठ पढ़ाने वाले अयूब ने भी लालच में आ कर गलत राह पकड़ ली. जबकि उस ने हैदर को समझा कर सही राह दिखाई होती तो शायद यह नौबत न आती. लालच में आ कर वह खुद भी 2 हत्याओं का गुनहगार बन गया. कथा लिखे जाने तक दोनों आरोपियों की जमानत नहीं हो सकी थी. पुलिस उन के खिलाफ आरोपपत्र तैयार कर रही थी.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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