‘‘मैं तब फर्स्ट ईयर में पढ़ती थी. जयपुर के महेश नगर इलाके से शाम तकरीबन साढ़े 6 बजे मैं पैदल ही घर से ट्यूशन के लिए निकली. आगे जहां लोगों की कम चहल पहल थी वहां पहुंची, तो मैं ने देखा कि सामने एक आदमी मुझे इशारा कर रहा था. वह साइन लैंग्वेज में कुछ कह रहा था. मैं ने पलट कर पीछे देखा तो एक अन्य आदमी भी मुझे फौलो करता नजर आया.
‘‘जब तक मैं समझ पाती कि दोनों एक दूसरे से मेरे बारे में ही बात कर रहे हैं, तब तक उन दोनों ने आ कर मुझे जकड़ लिया और करीब 20 कदम दूर खड़ी एक कार तक घसीटते हुए ले गए. जब वे मुझे कार में धकेल रहे थे तो मैं ने उसी समय एक व्यक्ति को किक मार कर नीचे गिरा दिया और कार से बाहर निकल गई. ऐसे में कार में बैठे 3 और बदमाश मुझे पकड़ कर वहीं मारपीट करने लगे.
‘‘मारपीट व छीना झपटी के दौरान मेरा बैग नीचे गिर गया और उस में रखा चाकू बाहर आ गया. उन लोगों की नजर चाकू पर नहीं पड़ी, लेकिन मैंने बैग के बाहर गिरे चाकू को देख लिया था. ऐसे में उन की मार खाकर मैं ने सड़क पर गिरने का नाटक किया और चाकू उठा कर हिम्मत से उन की तरफ लहरा दिया. मेरे हाथ में चाकू देख कर वे सकपका गए और एकदम पीछे हट गए. मैं मौका देख कर वहां से भाग निकली.
‘‘इस घटनाक्रम को वहां दूर खड़े 8-10 लोग देख रहे थे. मुझे भागता देख उन्हें सारा माजरा समझ आ गया और वे तुरंत कार के पास आ कर बदमाशों से सवाल जवाब करने लगे और मामला गड़बड़ देख उन्होंने बदमाशों की धुनाई करनी शुरू कर दी. उन लोगों की मदद से मैं घर पहुंची. घर पहुंच कर मैंने पेरैंट्स को सारी बातें बताईं और परिजनों के साथ थाने गई, जिस से पुलिस ने आगे की तहकीकात शुरू की.’’
जयपुर के महेश नगर थाना क्षेत्र में रहने वाली माधवी ने अपनी आपबीती सुनाते हुए आगे बताया, ‘‘दिल्ली गैंगरेप की घटना के बाद मैं ने अपने बैग में चाकू रखना शुरू कर दिया था. मैं अपनी ओर से सभी युवतियों को यह कहना चाहती हूं कि स्प्रे, मिर्च पाउडर व चाकू जैसी चीजें हर युवती को खुद की हिफाजत के लिए अपने पास जरूर रखनी चाहिए.’’
सभ्य समाज में हथियारों का कोई काम नहीं है. यह जिम्मेदारी पुलिस और प्रशासन की है कि वह समाज के लोगों में भरोसा और माहौल में शांति बनाए रखे, लेकिन ऐसा हो नहीं रहा. भरोसा इस कदर उठ चुका है कि युवतियां अपने बचाव के लिए हथियार रखने को मजबूर हैं. युवतियां बदमाशों के खिलाफ अपने कोमल हाथों में हथियार थाम रही हैं.
दिल्ली गैंगरेप की घटना के बाद लाखों लोगों के विरोध और अपराधियों को सख्त सजा देने की मांग के बाद भी समाज के उन लोगों की सोच पर इन सब का कोई असर नहीं हुआ, जो युवतियों को महज शारीरिक हवस को पूरा करने की नजर से देखते हैं. आज भी देशभर में रोज दर्जनों ऐसे मामले सामने आ रहे हैं, जहां युवतियों का अपहरण कर बलात्कार किया जा रहा है. बढ़ते अपराध पर रोक लगाने में नाकामी से भी अब युवतियां हताश हो चुकी हैं. ऐसे में वे खुद की हिफाजत के लिए खुद आगे आने व हथियार उठाने को मजबूर हैं.
समाज में तेजी से आ रहे इस बदलाव को देखते हुए क्या अब यह समझ लेना चाहिए कि युवतियों को अपनी हिफाजत के लिए खुद ही हथियार उठाने होंगे? अगर ऐसा है तो देश में पुलिस का क्या काम है? क्या युवतियों के पास हथियार उठाने के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं है? युवतियां हथियार न उठाएं, तो खुद की हिफाजत के लिए क्या करें?
गौरतलब है कि दिल्ली में हुए गैंगरेप हादसे के बाद युवतियों ने हथियार रखने की जरूरत पर जोर दिया है. आंकड़ों पर नजर दौड़ाई जाए तो जयपुर में 2011 से कमिश्नरेट लागू होने के बाद से अब तक 2,368 महिलाएं आर्म लाइसैंस के लिए अप्लाई कर चुकी हैं, जिन में से 648 को लाइसैंस मिल भी चुका है. वहीं देश के दूसरे शहरों में भी आर्म लाइसैंस के लिए अप्लाई करने वाली महिलाओं की तादाद में पिछले 2-3 साल में तेजी से बढ़ोतरी हुई है.
सैल्फ डिफैंस ट्रेनर रिचा गौड़ बताती हैं कि पिछले 2 साल में मार्शल आर्ट व कराटे में युवतियों की भागीदारी 70 फीसदी तक बढ़ी है. मैं राजस्थान पुलिस एकेडमी समेत कई शिक्षण संस्थानों में युवतियों को सैल्फ डिफैंस की ट्रेनिंग दे रही हूं. हम कुल 4 युवतियों ने मिल कर सैल्फ डिफैंस ट्रेनिंग की शुरुआत की थी, आज हमारे ग्रुप से 65 युवतियां जुड़ी हुई हैं, जो ट्रेनर के रूप में युवतियों को ट्रेनिंग दे रही हैं.
जयपुर की पुलिस अफसर शिल्पा चौधरी का कहना है, ‘‘खुद की रक्षा के लिए हथियार से ज्यादा आत्मविश्वास की जरूरत होती है. युवतियों को सैल्फ प्रोटैक्शन के लिए खुद को तैयार करना है, तो उन्हें सैल्फ डिफैंस ट्रेनिंग लेनी चाहिए. कराटे और मार्शल आर्ट सीखना चाहिए, ताकि मुसीबत के समय वे खुद की रक्षा कर सकें. पर मालूम रहे कि 4 इंच से बड़ा चाकू या कोई हथियार रखना गैरकानूनी है.’’
पिस्टल शूटर राजश्री चूड़ावत का कहना है, ‘‘शूटर होने के कारण मेरा सैल्फ कौन्फिडैंस हमेशा बेहतर रहता है. हालांकि जिस पिस्टल से हम शूट करते हैं, वह पिस्टल बदमाशों पर फायर करने के काम नहीं आती, लेकिन फिर भी कहीं अकेले जाते हैं तो मन में सुरक्षा की भावना रहती है. कम से कम इस पिस्टल से बदमाशों को डराने का काम तो किया ही जा सकता है. हालांकि अभी तक कोई ऐसा हादसा मेरे साथ नहीं हुआ कि पिस्टल दिखाने की जरूरत पड़ी हो, लेकिन कभी ऐसा मौका पड़ेगा तो मैं चूकूंगी नहीं. कहीं भी रेप जैसे मामले सामने आते हैं, तो मेरा खून खौल उठता है. हालिया हालात को देखते हुए युवतियों के लिए सैल्फ प्रोटैक्शन बहुत जरूरी है.’’
इस मामले में रिटायर जिला और सैशन जज अजय कुमार सिन्हा का कहना है, ‘‘सरकार और पुलिस प्रशासन युवतियों को सुरक्षा देने में नाकामयाब हैं. यही वजह है कि युवतियों को आज कोमल हाथों में हथियार थामने पर मजबूर होना पड़ रहा है. युवतियों का पुलिस प्रशासन से भरोसा उठ रहा है. मेरा मानना है कि हथियार रखने के बजाय युवतियों को सैल्फ डिफैंस की ट्रेनिंग लेनी चाहिए.’’
राजस्थान यूनिवर्सिटी में समाजशास्त्र के प्रोफैसर सोहन शर्मा का कहना है कि युवतियों को समाज में हमेशा से ही सभ्य, शालीन और शांत स्वभाव का माना जाता रहा है, लेकिन अब आने वाले समय में यह सोच बदल जाएगी. इस का जिम्मेदार भी समाज खुद ही होगा. घर के बाहर ही नहीं, घर के भीतर भी युवतियां सुरक्षित नहीं हैं. तमाम तरह के रिश्ते भी आज के दौर में तारतार हो रहे हैं. ऐसे में युवतियां खुद की हिफाजत के लिए हथियार उठाने को विवश हो रही हैं.