उत्तरप्रदेश के सहारनपुर जिले में सुलग रही जातीय आग बुझ नहीं रही है. पिछले 12 दिनों जिले के एक के बाद एक 3 गांव हिंसा, आगजनी, तोड़फोड़ की चपेट में आ चुके हैं. कथित प्रशासनिक सतर्कता के बावजूद 2 लोग मारे जा चुके हैं और दो दर्जन से अधिक घायल हैं. हिंसा प्रभावित इलाकों में दहशत इस कदर हावी है कि पुलिस जवानों की गश्त के बावजूद लोग डरे हुए हैं.
मौजूदा विवाद की शुरुआत 5 मई को शब्बीरपुर गांव में अंबेडकर की प्रतिमा लगाए जाने से हुई. इस गांव के ठाकुर समुदाय ने आपत्ति जताते हुए कहा कि इस के लिए प्रशासन से अनुमति नहीं ली गई. विवाद में दलितों के घर फूंक दिए गए और विरोध में आए पक्ष के एक युवक की मौत हो गई. इस के बाद नजदीक के गांव शिमलाना में ठाकुर समुदाय के लोगों द्वारा महाराणा प्रताप जयंती कार्यक्रम का जुलूस निकाला जा रहा था तो दलित युवकों ने विरोध किया. यहां से पूरा मामला जातीय हिंसा में बदल गया.
जुलूस को ले कर बात बढी तो ठाकुर समुदाय के लोगों ने दलितों के यहां तोड़फोड़ की. धीरेधीरे हिंसा की आग मिर्जापुर और बड़गांव में भी पहुंच गई. इस दौरान भीम आर्मी सामने आई और हजारों दलितों ने प्रशासन के खिलाफ ठाकुरों का पक्ष लेने का आरोप लगाते हुए 21 मई को दिल्ली के जंतर मंतर पर इकट्ठा हो कर प्रदर्शन किया. दो साल पहले बनी भीम आर्मी के नेता चंद्रशेखर आजाद ने शब्बीरपुर में दलितों पर हमले के विरोध में रैली आयोजित की थी. भीड़ ने दलितों के 25 घर जला दिए थे.
दिल्ली में रैली के दो दिन बाद इसी गांव में ठाकुर समुदाय ने दलितों पर फिर हमला कर दिया. इस हिंसा में करीब 20 दलित जख्मी हो गए और सरसवा गांव का 25 साल का आशीष मेघराज नाम का युवक मारा गया. उसे सहारनपुर जिला अस्पताल में मृत घोषित कर दिया गया. मुख्य चिकित्सा अधिकारी बीएस सोढी ने बताया कि मेघराज को चाकू का गहरा घाव लगा था. दलित घायलों को ले कर कई एंबुलेंस गाड़ियां आईं . अस्पताल के बाहर बड़ी तादाद में गांव के दलित लोगों ने इकट्ठा हो कर हमले का विरोध जताया.
23 मई को बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती शब्बीरपुर गांव गईं, जहां दलितों के घर जला दिए गए थे. वह पीड़ित लोगों से मिलीं. उन्होंने रैली की. इस रैली में शब्बीरपुर समेत सहारनपुर के कई गांवों के लोग आए थे. रैली में शामिल कई लोगों ने बताया कि शब्बीरपुर और सहारनपुर के बीच कई जगह उन पर हमले किए गए.
अस्पताल के दो इमरजेंसी वार्डों में घायलों का इलाज चल रहा है. लाडवा गांव के भीम आर्मी के एक सदस्य शिवम खेवडिया के अनुसार दोनों वार्डों में भर्ती कम से कम 8 दलितों पर हमले हुए. इन में से एक वार्ड में भर्ती सहारनपुर जिले के हलालपुर गांव के टिंकु कुमार से मुलाकात हुई. उसे कई जगह चोटें आई हैं और सिर पर घाव है. उस ने बताया कि उसे कई टांके लगे हैं. वह मायावती का भाषण सुनने अपने दो दोस्तों के साथ मोटरसाइकिल पर गया था. जब वे वापस लौट रहे थे तब ठाकुरों के लोगों ने उन पर हमला कर दिया. उन्हें अंभेता चंद गांव के पास रोका गया और लाठियों से बुरी तरह मारनेपीटने लगे. वे लोग ‘महाराणा प्रताप की जय’ और ‘वंदेमातरम’ के नारे लगा रहे थे.
टिंकु कुमार के बेड के पास उस का दोस्त नरसिंह भी सिर में चोट और चेहरे पर घाव से पीड़ित था. नरसिंह ने बताया कि उस के मुंह पर मुक्के मारे गए. उस के पिता राजकुमार बेड के पास बैठे थे. वह रैली में नहीं गए थे. राजकुमार ने बताया कि उन्होंने बेटे को चेताया कि वह रैली में नहीं जाए. वह किसी अनहोनी से पहले ही भयभीत थे.
सरसावा कस्बे का बालेश कुमार भी इसी वार्ड में भर्ती था. उस ने बताया कि उस पर चंदरपुर के पास हमला हुआ. मैं रैली से वापस जा रहा था. उसी समय लोगों के एक ग्रुप ने हमला कर दिया. वे मुझे पीटने लगे और मुझ पर चाकू से हमला करने की कोशिश की. दूसरे इमरजेंसी वार्ड में इलाज करा रहे शब्बीरपुर गांव के इंदरपाल [50] ने बताया कि करीब 10 लोगों के एक समूह ने उन पर हमला किया, जो उन के ही गांव के थे. वह 5 मई के हमले में हुए नुकसान के कारण मायावती को सुनने गया था. मेरे परिवार ने और दोस्तों ने हमले में सब कुछ खो दिया. अब हम चाहते हैं कि हमारी नेता मायावती मदद और मुआवजे के लिए प्रशासन पर दबाव बनाए.
अस्पताल के बाहर पुलिस पर गुस्साए प्रदर्शनकारी ‘यूपी पुलिस हाय हाय’ और ‘योगी सरकार, नहीं चलेगी’ के नारे लगा रहे हैं. शाम के समय प्रदर्शनकारियों की भीड़ बढ रही है. पुलिस उन्हें रोकने की कोशिश कर रही है पर प्रदर्शनकारी और घायलों के दोस्त लोग इमरजेंसी वार्ड में घुस रहे हैं. पुलिस उन्हें इमरजेंसी वार्ड से बाहर निकाल रही है. एक गुस्साया दलित जोर से चिल्ला रहा है, ‘तुम साले भगवा पुलिस ने ठाकुरों की मदद की है इस में.’ भीम आर्मी के कई सदस्य वार्ड में घुसने की असफल कोशिश कर रहे हैं. दलितों के घेरे को एक आदमी संबोधित कर कहने लगा, ‘अगर कोई वीडियो बनाते हुए देख लिया तो फोन तोड़ दो उस का.’ भीड़ में शामिल भीम आर्मी के एक व्यक्ति ने मेरा फोन एक तरफ करते हुए कहा कि कृपया समझिए, आप मीडिया के लोग हमें वीडियो में नक्सलवादी बताते हैं.
भीम आर्मी के खेवडिया कहते हैं कि मई से सहारनपुर की घटनाओं को ले कर मीडिया पुलिस के बताए अनुसार पक्षपात रवैया अपना रहा है. आप देख सकते हैं अस्पताल के बाहर क्या हो रहा है. अस्पताल के बार एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि हिंसा इसलिए भड़की क्योंकि रैली में जा रहे दलित लोग हाथों में पत्थर ले कर विरोधी समुदाय के घरों में फेंक रहे थे. जब यह खबर ठाकुरों के पास पहुंची तो वे इकट्ठे हो कर रैली से लौट रहे लोगों पर हमला करने लगे. उन्होंने अपना बदला लिया.
सहारनपुर के बीएसपी कार्यकर्ता दीपक कुमार कहते हैं कि पुलिस हमले की झूठी अफवाह फैला रही है. सहारनपुर के अन्याय से दलित समुदाय गुस्साया हुआ जरूर था पर उन में से किसी ने भी बहनजी की रैली के मौके पर किसी पर पत्थर फेंकने की मूर्खता नहीं की. दीपक कुमार ने कहा कि मायावती जब राज्य की मुख्यमंत्री थीं तब पुलिस इतनी मनुवादी नहीं थी. पुलिस मनुस्मृति की इतनी अनुयायी नहीं थी पर मौजूदा सरकार के अंतर्गत है.
बीएसपी का एक अन्य कार्यकर्ता कहता है कि आज के बाद मुझे लग रहा है कि पिछड़ी जातियों को इकट्ठा कर के इस स्थिति में बदलाव हो सकता है. दलित बहुजन को इकट्ठा करने का काम केवल भीम आर्मी कर रही है. भीम आर्मी के सुखविंदर कहते हैं कि कब तक हम बर्दाश्त करेंगे. हर समय हम यहां जातिवाद की सच्चाई सुनते हैं और अपने हक के लिए खड़े होते हैं. ये ठाकुर हम पर फिर हमला करते हैं. भीम आर्मी के लोग दिल्ली केंद्र सरकार से अपील करने गए थे कि वह सहारनपुर की हिंसा को रोके.
हिंदुत्व राजनीति के परिणाम सामाजिक संबंधों में इस वीभत्स तरीक से घटित होते दिख रहे हैं. इस तरह भाजपा की हिंदुत्व की सोशल इंजीनियरिंग की राजनीति विभाजनकारी साबित हो रही है जो न सामाजिक एकता न सामंजस्य स्थापित कर पा रही है.