फिल्म ‘क्यों, हो गया ना…’ से कैरियर की शुरुआत करने वाली अभिनेत्री काजल अग्रवाल मुंबई के एक व्यवसायी परिवार से है. काजल ने कभी सोचा भी नहीं था कि वह अभिनेत्री बनेगी. जब वह 10वीं कक्षा में थी तो उसे ‘क्यों, हो गया ना…’ फिल्म में अभिनय का मौका मिला. फिल्म में उस की भूमिका छोटी थी. औफर मिलने की वजह यह थी कि वह उस फिल्म के कास्टिंग डायरैक्टर को जानती थी. उसे लास्ट मिनट में शूटिंग हेतु बुलाया गया था, क्योंकि और कोई उस भूमिका के लिए उन्हें नहीं मिल रहा था. वहां गई तो वह अमिताभ बच्चन से मिली और अपना अभिनय पूरा कर फिर पढ़ाई पर ध्यान देने लगी.

उस ने पत्रकारिता में स्नातक की डिग्री प्राप्त की और एमबीए करना चाहती थी. पढ़ाई के दौरान उस ने एक कंपनी में इंटर्नशिप की, जहां एक फोटोग्राफर ने उस का फोटो खींचा और कई जगह भेज दिया. इस के बाद उसे औफर्स मिलने लगे और वह फिल्मों की ओर मुड़ी. उस ने हिंदी में कम तमिल और तेलुगू में करीब 46 फिल्में कीं. अत्यंत स्पष्टभाषी और सौम्य चेहरे की धनी काजल अग्रवाल ने अपनी हिंदी फिल्म ‘दो लफ्जों की कहानी’ के बारे में बताया.

पेश हैं, उन से हुई बातचीत के खास अंश :

इस फिल्म में आप ने एक दृष्टिहीन युवती की भूमिका निभाई कितना मुश्किल था इसे निभाना?

मेरी आंखें इतनी बड़ी हैं कि इन में मेरा दृष्टिहीन युवती की भूमिका निभाना मुश्किल था, क्योंकि सबकुछ मुझे दिखता है. ऐसे में न देखने का अभिनय करना बहुत ही मुश्किल था, लेकिन मैं ने इसे निभाने के लिए काफी वर्कशौप किए, कई किताबें पढ़ीं, फिल्में देखीं. विजुअली इंपेयर्ड स्कूल में गई, वहां मैं ने देखा कि बच्चे दृष्टिहीन थे, पर वे लाचार नहीं थे. वे अपनी जिंदगी से खुश थे. यही भाव मुझे फिल्म में भी लाना था. ऐसे में मेरे लिए उन के अंदर की भावना को समझना आवश्यक था.

फिल्म में आप की क्या भूमिका है?

मैं ने इस फिल्म में एक चुलबुली और मासूम युवती का किरदार निभाया जो किसी वजह से अकेली रह जाती है. फिर उस की लाइफ में एक व्यक्ति आता है जिस से उसे प्यार हो जाता है. यह एक अत्यंत भावुक प्रेम कहानी है.

निर्देशक दीपक तिजोरी के साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा?

दीपक तिजोरी निर्देशक के साथसाथ एक अभिनेता भी हैं, इसलिए किसी भी कठिन दृश्य को वे आसान बना देते हैं. उन के छोटेछोटे टिप्स अभिनय करने में मुझे मदद कर रहे थे.

फिल्म में कठिन दृश्य क्या था? आप को कितनी बार रीटेक देना पड़ा?

मैं दृष्टिहीन युवती हूं, लेकिन एक बार मुझ पर हमला होता है, उस समय मेरा लवर मुझे बचाता है. मेरी नौकरी चली जाती है. ऐसे में मेरा टूट जाना, तनाव, रोना आदि सब को एकसाथ दिखाना बहुत कठिन था. 2-3 टेक के बाद दृश्य ओके हो गए.

यह फिल्म आप को कैसे मिली?

मैं निर्देशक की पहली चौइस थी. उन्होंने शायद मुझे दक्षिण की फिल्मों में काम करते हुए देखा है. मैं ने तमिल व तेलुगू भाषा में 46 फिल्में की हैं. इस फिल्म के लिए निर्देशक को एक नाजुक और कमजोर दिखने वाली हीरोइन चाहिए थी. इसलिए उन्होंने मुझे औफर दिया. मुझे फिल्म की कहानी बहुत पसंद आई थी.

आप को हिंदी फिल्मों में काम कम मिला, इस की वजह क्या रही?

मैं ने हिंदी फिल्मों से कैरियर की शुरुआत की थी, पर दक्षिण में अच्छा औफर मिला और मैं वहां चली गई. वहां जाने के बाद यहां काम करना मुश्किल हो रहा था, क्योंकि हर फिल्म की कमिटमैंट होती है और हर फिल्म के निर्माण में 2-3 महीने लगते हैं. दोनों में बैलेंस बनाना मुश्किल होता है. तमिलतेलुगू हो या हिंदी, मैं अपने हिसाब से फिल्में चुनती हूं.

फिल्म में अंतरंग सीन हैं इन्हें करने में कितना सहज होती हैं?

अंतरंग सीन इस फिल्म में जरूरी हैं. एक ब्लाइंड लड़की किसी को छू कर ही अपने इमोशंस बता सकती है. यह दृश्य फिल्म को हौट या व्यवसाय की दृष्टि से नहीं फिल्माया गया है. इसलिए मैं ने उसे किया.

किसी फिल्म को चुनते वक्त किन बातों का खास ध्यान रखती हैं?

मैं स्टोरी और स्क्रिप्ट को ज्यादा महत्त्व देती हूं.

हिंदी फिल्म इंडस्ट्री और साउथ की फिल्म इंडस्ट्री में क्या अंतर पाती हैं?

मुझे दोनों ही इंडस्ट्री अच्छी लगती हैं, क्योंकि मुझे हमेशा अच्छे लोगों का साथ मिला. आज हिंदी फिल्म इंडस्ट्री भी काफी अनुशासित हो चुकी है. नई जनरेशन काम कर रही है साथ ही प्रोडक्शन वैल्यू को आज महत्त्व दिया जाने लगा है, ताकि समय पर फिल्में पूरी हों और प्रोडक्शन मूल्य न बढ़े. सब लोग आजकल प्रोफैशनल हो चुके हैं. निश्चित समय के बाद आज हर कोई फ्री हो कर घर जाना चाहता है.

आप का ‘ब्यूटी सीक्रेट’ क्या है?

मुंबई, बेंगलुरु, चेन्नई, दिल्ली जैसे बड़े शहरों में त्वचा का खास ध्यान रखना पड़ता है. धूप, धूल, और प्रदूषण से त्वचा बेजान हो जाती है. ऐसे में अधिक तरल पदार्थों का सेवन करना, हैल्दी डाइट लेना, त्वचा को हमेशा साफ रखना जरूरी है.

इस के अलावा मैं नियमित वर्कआउट करती हूं. मैं बैलेंस रख कर खाना खाती हूं और कोशिश करती हूं कि मेरी नींद कंप्लीट हो. साथ ही किसी बात को ज्यादा नहीं सोचती.

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