फिल्मों में काम करने का सपना तो सभी का होता है, पर इस के लिए जरूरी है कि सही दिशा में पूरी मेहनत की जाए. बक्सर, बिहार की रहने वाली रितु सिंह के पिता अपनी नौकरी के चलते उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में रहे. ऐसे में रितु की पढ़ाई गोरखपुर में हुई. सब से अच्छी बात यह रही कि वे दोनों ही जगह भोजपुरी बोली के करीब रहीं. रितु सिंह को बचपन से ही डांस करने का शौक था. डांस के दौरान उन्हें ऐक्टिंग का शौक हुआ. उन्होंने ऐक्टिंग सीखने के लिए लखनऊ की भारतेंदु नाट्य अकादमी में पढ़ाई की. इस बीच उन को भोजपुरी की पहली फिल्म ‘दिलदार सांवरिया’ में काम करने का मौका मिला. इस फिल्म में उन के काम की खूब तारीफ की गई. इस के बाद रितु सिंह का भोजपुरी फिल्मों में काम करने का सिलसिला चल निकला.

3 साल पहले रितु सिंह सपनों की नगरी मुंबई आ गईं. अब तक 11 फिल्में कर चुकी रितु सिंह को हिंदी टैलीविजन सीरियलों में काम करना पसंद है. पेश हैं, उन के साथ की गई बातचीत के खास अंश:

आप के पिताजी पुलिस में हैं. आप परिवार की एकलौती लड़की हैं. फिल्मों में कैरियर बनाने को ले कर आप के सामने किसी तरह की कोई परेशानी तो नहीं आई?

 जी नहीं. मुझे बचपन से ही डांस करना बहुत पसंद है. यह बात मेरे मातापिता को पता थी. जब फिल्मों में काम करने का औफर मिला, तो मैं ने अपने घर वालों को बताया. वे तुरंत ही राजी हो गए.

भोजपुरी फिल्मों में डांस और गीतों की बड़ी अहमियत है. इन फिल्मों में कहानी से ज्यादा समय डांस और गीतों को दिया जाता है. कोई खास वजह?

 यह बात तो सही है. भोजपुरी फिल्मों में गीत ज्यादा होते हैं. वैसे, अब पहले के मुकाबले काफी कुछ कम हो गए हैं. पहले जहां भोजपुरी फिल्मों में 11 से 12 गीत होते थे, अब 6 से 7 गीत होते हैं.

इस की वजह यही है कि लोकगीत भोजपुरी फिल्मों का दिल है. दर्शक लोकगीतों को सब से ज्यादा पसंद करते हैं. वैसे, अब इन फिल्मों में कहानी को ज्यादा अहमियत दी जाने लगी है.

बहुत से भोजपुरी गीतों को बेहूदा कहा जाता है. आप इस की क्या वजह मानती हैं?

 लोकधुनों पर बने गीत कई बार दो मतलब के होते हैं. इस को बेहूदा मान लिया जाता है. वैसे देखा जाए तो लोकगीतों का यही रंग सुनने वालों को पसंद भी आता है. दर्शक इस को बेहूदा भी नहीं मानते हैं.

लेकिन यह भी सच है कि भोजपुरी फिल्मों से ज्यादा खुलापन हिंदी फिल्मों में होता है. भोजपुरी फिल्मों के ज्यादातर दर्शक गंवई समाज से होते हैं. उन को यही सब पसंद आता है.

आज के समय में जो नईनवेली लड़कियां भोजपुरी फिल्मों में हीरोइन बनने के लिए आ रही हैं, उन को कैसे तैयारी करनी चाहिए?

 फिल्मों में काम करने का कोई शौर्टकट रास्ता नहीं है. अब वक्त बदल गया है. फिल्म हो या टैलीविजन शो, सभी अपने कलाकारों का आडिशन करते हैं. बिना आडिशन दिए किसी को नहीं चुनते.

नए लोगों को चाहिए कि वे पूरी तैयारी से आएं. अपना सब्र न खोएं और आडिशन देते रहें. खुद से अच्छाबुरा परखें. अपने परिवार को सच जरूर बताते रहें.

अब ऐक्टिंग में पहले से ज्यादा स्कोप है. फिल्मों के अलावा एंकरिंग, टैलीविजन सीरियल भी हैं. मैं ने भी खाली समय में कई टैलीविजन शो में एंकरिंग की है, जिन से मेरी अलग पहचान भी बनी.

भोजपुरी फिल्मों की हीरोइनों की जीरो साइज फिगर पसंद नहीं की जाती है. आप की नजर में इस की कोई खास वजह है क्या?

 पहले एक दौर था, जब भोजपुरी या कहें तो बाकी बोलियों की फिल्मों में भी भरेपूरे बदन की हीरोइनें पसंद की जाती थीं, पर अब हर जगह फिट हीरोइन को ही लोग पसंद कर रहे हैं.

इस की अहम वजह यह भी है कि अब भोजपुरी फिल्मों के दर्शक बदल रहे हैं. दर्शकों के साथसाथ फिल्मों में भी तमाम तरह के बदलाव हो रहे हैं.

अब कहानी के साथसाथ हीरोइन के पहनावे, उस के बोलने के तरीके, उस की फिगर वगैरह पर खासा ध्यान दिया जाता है.

आप को और क्याक्या काम करने पसंद हैं?

 मुझे मोटरसाइकिल चलाना काफी पसंद है. फिल्म ‘धूम’ की तरह मैं भी किसी फिल्म में मोटरसाइकिल चलाना चाहती हूं.

मुझे ड्रैस डिजाइनिंग का भी शौक है. मुझे खाने में भिंडी की सब्जी, रोटी और दही बहुत पसंद है.

इस के अलावा मैं पत्रिकाएं भी पढ़ती हूं. ‘सरस सलिल’ पत्रिका मैं ने बहुत पढ़ी है. इस के लेख व कहानियां मुझे रोचक लगते हैं.

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