Editorial: अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के अपने देश में आने वाले भारत के सामान पर 50 फीसदी के टैक्स से देश का कपड़ा, चमड़ा और डायमंड उद्योग बेहद खतरे में है. चमड़े के कारखानों में तकरीबन 50 लाख लोग काम करते हैं और 4,000 करोड़ रुपए का सामान बनाते हैं. इस में से एकचौथाई अमेरिका के व्यापारी खरीदते थे जिन्होंने अब और्डर देने बंद कर दिए हैं क्योंकि 50 फीसदी टैक्स भारतीय सामान पर देने की जगह वे वियतनाम, कंबोडिया, बंगलादेश से सस्ते में खरीदेंगे. डोनाल्ड ट्र्रंप ने यह सजा भारत को भारत सरकार के फैसलों पर दी है.

कानपुर, नोएडा, आगरा, तमिलनाडु ही नहीं, दूसरे छोटे राज्यों से भी चमड़े का जो सामान बनता था वह रुक गया है और 2,000 से ज्यादा कंपनियों में से कितनों का दिवाला इस चक्कर में पिट जाए पता नहीं.

दिल्ली में बैठे ऊंची जातियों के सवर्ण नेताओं को फर्क नहीं पड़ता कि जिस काम में ज्यादातर दलित कारीगर लगे हों वे ठप हो गए. उन्हें चिंता इस बात की है कि उन का अपना टैक्स न कम हो जाए जो वे ऐक्सपोर्ट में भी बीच की चीजों पर लगाते थे.

अमेरिका के और्डर अचानक बंद हो जाने से सैकड़ों कंपनियों के पास आज पैसे की तंगी हो गई है. वे न कर्मचारियों को बकाया पैसा दे पा रही हैं, न कर्ज पर ब्याज का भुगतान कर पा रही हैं. भारत सरकार को अपने गुरूर की फिक्र है कि विश्वगुरु देश को डोनाल्ड ट्रंप कैसे धमका सकता है और जिस तरह का व्यवहार नरेंद्र मोदी नोटबंदी, वोटबंदी, जीएसटी, घरबंदी, बुलडोजरी में करते रहे हैं, वैसा ही डोनाल्ड ट्रंप के साथ करने कीकोशिश कर रहे हैं.

डोनाल्ड ट्रंप को शिकायत चमड़े के सामान से नहीं या भारत के व्यापारियों से नहीं है, उन्हें शिकायत इस बात पर है कि भारत रूस से पैट्रोल क्यों खरीद रहा है, अमेरिका से आने वाले सामान पर टैक्स ज्यादा क्यों लगा रहा है, बजाय अपने बड़े खरीदार को सुनने के मोदी सरकार उस मंदिर के पुजारी की तरह बरताव कर रही है जो सोचता है कि वह किसी भगवान की मूर्ति का पुजारी नहीं, खुद भगवान है. अछूतों, चमड़े का काम करने वाले दलितों को तो सरकार वैसे भी पिछले जन्मों के कर्मों के फल भोगने वाला मानती है. कुछ और दिन वे भूखे रह गए तो क्या हो जाएगा?

अमेरिका सिर्फ एक चौथाई चमड़े का बना सामान खरीद रहा है पर यह न भूलें कि जब धंधा अचानक एकचौथाई कम हो जाए तो वह पूरे धंधे को ले डूबता है. पानी में तैरती किश्ती को डुबोने के लिए एक छोटा सा छेद ही काफी होता है.

अफसोस इस बात का है कि सरकार ने अपना घमंड ऊपर रखा है, 50 लाख मजदूरों की रोजीरोटी का खयाल नहीं रखा. दूसरे सामानों में और कितने बेरोजगार हुए हैं, यह तो अभी न पूछें.

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बिना जनगणना कराए अमित शाह का कहना कि भारत में मुसलिमों की गिनती बढ़ रही है, एकदम गैरजिम्मेदाराना बयान है जिस का मकसद सिर्फ हिंदूमुसलिम झगड़ा बढ़ाना है. यह हो सकता है कि आज भी एक औसत मुसलिम औरत के बच्चे ज्यादा हो रहे हैं पर जो आंकड़े मिलते हैं उन के हिसाब से अगर हिंदू औरतों के 2.1 बच्चे हो रहे हैं तो मुसलिम औरतों के 2.3.

20 करोड़ की आबादी वाले मुसलिमों के 2024 के अनुमानों के हिसाब से तकरीबन 66 लाख बच्चे पैदा हुए और हिंदुओं के 2 करोड़. मुसलिम बच्चों के पैदा होने की गिनती भी लगातार गिर रही है क्योंकि मुसलिम औरतें भी अब घरों में बंद रह कर बच्चे पालना नहीं चाहतीं, वे आजाद हो कर घूमना चाहती हैं.

नैशनल फैमिली हैल्थ सर्वे के हिसाब से 2015 में हिंदुओं की गिनती 105 करोड़ थी और मुसलिमों की 18 करोड़, 60 लाख. 2021 तक हिंदुओं की गिनती 7 करोड़ बढ़ कर 112 करोड़ हो गईर् और मुसलिमों की गिनती 1 करोड़, 40 लाख बढ़ कर 20 करोड़ हो गई यानी हिंदुओं की गिनती मुसलिमों से 3-4 गुना तेजी से बढ़ रही है पर आंकड़ों को घुमाफिरा कर अमित शाह फालतू का डर फैला रहे हैं. सरकार इसीलिए जनगणना को टाल रही है कि कहीं उस की पोल न खुल जाए.

एक तरह से मुसलिम औरत बुरके के अलावा हिंदू औरत से ज्यादा आजाद है क्योंकि उसे हर दूसरेतीसरे दिन व्रत, पूजापाठ, मंदिर में लाइनों में नहीं खड़ा होना पड़ता. उसे घंटों घर में कीर्तन, भजन में समय नहीं लगाना पड़ता. उसे बुरके का जहर तो पीना पड़ता है पर नंगे पांव सिर पर कलश रख कर मंदिरों से मंदिरों पैदल तो नहीं जाना पड़ता. वह सब के साथ बैठ कर खाने का हक रखती है, हिंदू औरतों की तरह पति को खिला कर ही खाने को मजबूर नहीं है.

मुसलिम आबादी बढ़ रही है इस के लिए दूसरे देशों से आने वाले घुसपैठियों को दोष देना देश के साथ एकदम बेईमानी है. पाकिस्तान के साथ देश की सीमा पर चप्पेचप्पे पर पहरेदारी है और वहां से लोग नहीं आ सकते, जबकि पाकिस्तान धर्म के चलते हर साल बदहाली की ओर बढ़ रहा है. और फिर पाकिस्तान से आने वाले वैसे भी अपने साथ औरतों को तो नहीं ला सकते और आबादी तो औरतों से ही बढ़ती है, आदमियों से नहीं.

बंगलादेश में अब भी कामधंधा भारत से ज्यादा है जबकि एक साल से वहां सरकार की अलटापलटी हुई है. मोहम्मद यूनुस, जो नोबेल पुरस्कार पाने वाला अर्थशास्त्री है, जानता है कि देश को कैसे चलाया जाता है.

वहां के लोग यूरोपअमेरिका जा रहे हैं, खाली हाथ वे भारत नहीं आ रहे क्योंकि भारत में तो खुद भुखमरी का हाल यह है कि 85 करोड़ को 5 किलो अनाज मुफ्त देना पड़ता है ताकि वे मरे नहीं. ऐसे भारत में छिपछिपा कर कौन आना चाहेगा.

अमित शाह अगर कह रहे हैं कि देश में घुसपैठिए आ रहे हैं तो यह गृह मंत्रालय पर एक बड़ा आरोप है निकम्मेपन का. भारत की बौर्डर सिक्योरिटी क्या कर रही है कि वह बाहर वालों को आने दे रही है. अब नेपाल, भूटान, चीन, म्यांमार से तो मुसलिम आने वाले नहीं हैं क्योंकि इन देशों में या तो हिंदू जनता है या बौद्ध.

वोटों की खातिर हिंदूमुसलिम झगड़ों में जनता को उल झाने का मतलब है उन से काम के मौके छीनना. सरकार बेरोजगारी, गंदगी, बेईमानी, रिश्वतखोरी, ठगी पर ध्यान दे, फालतू में धर्म का एजेंडा न बेचे. यह काम पंडों, मुल्लाओं को करने दें. Editorial

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