Bihar Elections 2025: बिहार के चुनावों के लिए तैयार की गई मतदाता सूची में काफी नाम जोड़े गए हैं, काफी हटाए गए हैं. पर लगता है कि अब जो सूची तैयार हुई है वह बहुत गलत नहीं है. अब तो मतदान के दिन पता चलेगा, जब लोग वोट डालने जाएंगे और उन्हें अपना नाम नहीं मिलेगा.

नीतीश कुमार और केंद्र सरकार ने काफी कोशिश की थी कि मतदाता सूचियों में ऐसे बदलाव किए जाएं कि मतदान का फैसला उलटा हो सके. सरकार को मालूम है कि बिहार के लोग अपने हकों के लिए लड़ने वाले नहीं हैं. वे ज्यादातर जमींदारों की गुलामी के आदी रहे हैं और अंगरेजों के आने से पहले भी कभी खड़े नहीं हुए, इसीलिए 1700 के बाद जब ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपने पैर कोलकाता के सैंटर से उस समय सिर्फ ट्रेड करनेके लिए फैलाने शुरू किए, उन्होंने बिहारी मजदूर और बिहारी सैनिक रखे.

1757 में प्लासी की लड़ाई के बाद अंगरेजों की फौज में 70 फीसदी बिहारी राजपूत और ब्राह्मण हुआ करते थे जिन के बल पर उन्होंने धीरेधीरे पूरे भारत पर कब्जा किया. 1857 के बाद जरूर उन्होंने बिहारी ब्राह्मणों को सेना में रखना कम कर दिया था पर दूसरे गोरे व्यापारी बिहारियों को ही उन की सहने की आदत की वजह से रखते थे.

मौरीशस, फिजी, दक्षिण अफ्रीका, सूरीनाम में एग्रीमैंट कर के गए भारतीयों में से ज्यादातर यहीं के लोग थे, जिन्हें गिरमिटिया मजदूर कहा जाता था. जब मुंबई, अहमदाबाद में मिलें लगनी शुरू हुईं तो ढेरों बिहारी गए, क्योंकि वे हुक्म मानने वाले हुआ करते थे.

नीतीश कुमार जो तकरीबन 20 वर्षों से बिहार के मुख्यमंत्री हैं, इसीलिए सत्ता में हैं क्योंकि एक आम बिहारी की तरह वे जो मालिक है उस के साथ हो जाते रहे हैं. लालू प्रसाद यादव ने बिहारियों को हक दिलाने की कोशिश की पर फिर ऊंची जात वालों ने ऐसे फंदे फेंके कि उन्हें अपनी जिंदगी कचहरियों और जेलों में बितानी पड़ी.

मतदाता सूची में से लाखों नाम कट जाते तो वे चूं नहीं करते और इसीलिए ज्ञानेश कुमार जैसे अफसर को चुनाव आयुक्त की तरह लगाया गया जो पूरी तरह सरकार के साथ था.

यह तो राहुल गांधी की न्याय यात्रा और वोट चोरी का इलजाम था कि जो मतदाता सूची अब तैयार हुई है उस पर मोटेतौर पर कोई हंगामा नहीं मच रहा. 14 नवंबर को फैसला चाहे जो भी आए, यह तो दिखता है कि आम बिहारी का वोट का हक पक्का रहेगा. राहुल गांधी ने पूरे देश में वोट की कीमत भी बता दी है और चुनाव आयोग अब कानून की आड़ में खड़ा हो कर कहीं भी वोटों की काटाछांटी नहीं कर सकेगा.

संविधान की खैरियत इसी में है कि लोगों का वोटों का हक जान के जैसा रहे. सरकारें इसे छीनेंगी क्योंकि वे अब नहीं चाहतीं कि डैमोक्रेसी के नाम पर उन पर बंदिशें लगें. अब जो जीतता है वह डोनाल्ड ट्रंप की तरह महामहिम बनना चाहता है जो हर सुबह नए तुगलकी फरमान जारी कर सके. अमेरिका में न सही भारत में लगता है वोट का हक अब छीनना आसान नहीं रह गया है.

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खेलों में हारजीत चलती रहती है पर जिस तरह से भारतपाकिस्तान के 3 मैच एशिया कप में लगभग बराबरी पर खत्म हुए उस से साफ है कि इस मामले में दोनों टीमें एकदूसरे के खिलाफ नहीं, एकदूसरे के साथ लाखों जुआ और सट्टा लगाने वालों के लिए खेल रही थीं. 14 सितंबर को हुए मैच में तो भारत की टीम ढंग से खेली पर 21 सितंबर को केवल डेढ़ ओवर आगे रह कर, फाइनल में केवल 3 बौल आगे रह कर दोनों टीमों ने सट्टेबाजों को करोड़ों नहीं, अरबों का फायदा दिलाया था.

भारत और पाकिस्तान अब सिर्फ क्रिकेट खेलते हैं. वह भी 22 लोगों को खिलाते हैं और बाकी तो जुआ खेलते हैं. इस जुए में कि भारत जीतेगा कि पाकिस्तान जीतेगा, इस बौल में कैच आउट होगा या चौका लगेगा, इस बैट्समैन के 10 रन बनेंगे या 50 पर जबरदस्त शर्तें लगती हैं. लाखों को किक मिलती है जो अच्छे से अच्छे खेल में नहीं मिलती.

टीवी पर मैच देखना भारतीय जनता का सब से बड़ा खेल है. मोबाइल पर रील्स देखने के बाद भारत और पाकिस्तान के युवा कुछ करते हैं तो भारतपाकिस्तान का मैच देखते हैं जो कुंभ की तरह कभीकभार ही होते हैं. एशिया कप के आयोजकों ने सम झ लिया था इसीलिए उन्होंने दोनों को 3-3 बार खिलवाया जो साफ है कि एक स्कीम के हिसाब से हुआ.

सट्टेबाजी हर जगह होती है पर यहां अब खेलों के नाम पर सिर्फ सट्टेबाजी बची है. एथलैटिक्स और कुश्ती में जहां भारतीय खिलाड़ी मैडल ले आते हैं, न दर्शक होते हैं, न मैच फिक्सिंग होती है. सट्टेबाजी का तो सवाल ही नहीं उठता.

इस सट्टेबाजी में इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी लगे हुए थे क्योंकि भारत की टीम के जीतने पर उन्होंने उसे ‘आपरेशन सिंदूर’ से जोड़ते हुए बधाई दे दी. इंटरनैशनल क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड असल में वैसे ही भारत सरकार की एक यूनिट है और सारे फैसले भारत को देख कर लिए जाते हैं क्योंकि क्रिकेट में पैसा तो भारत के दर्शक ही देते हैं. टीवी राइट्स अरबों में बिकते हैं क्योंकि विज्ञापन करने वालों को पता है कि भारतीय बदहाल युवा कामधाम छोड़ कर इन्हें जरूर देखेंगे और वहां वे अपना पानमसाला जबरदस्त तरीके से बेचते हैं.

एशिया कप हो, वर्ल्ड कप हो, टी 20 हो, वनडे हो यह तमाशा चलता रहता है क्योंकि यह एक जगह है जहां से पाकिस्तान के बहाने हिंदुस्तान के मुसलमानों को कहने का मौका मिलता है कि दिखा दिया न, तुम्हारी औकात क्या है.

फुटबाल, टैनिस, फील्ड गेम्स, तैराकी, जिमनास्टिक जैसे बीसियों खेलों में भारत व पाकिस्तान की टीमें कहीं नजर नहीं आएंगी. पहले जिस हौकी पर ब्रिटिश इंडिया के समय से कब्जा था वह खेल भी 20-25 साल पहले हाथ से निकल गया क्योंकि वहां फिक्सिंग नहीं होती, सट्टा नहीं लगता. एशिया कप में भारत और पाकिस्तान दोनों की क्रिकेट टीमें जीती हैं, दोनों के खिलाडि़यों ने न जाने कहांकहां कमाया होगा. Bihar Elections 2025

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