Bihar Elections 2025, लेखक - शकील प्रेम

बिहार के विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस दोनों एससी, एसटी और मुसलिम वोटों को जमा करने के लिए हाथपैर मार रही हैं. पर ये समाज जानते हैं कि वे सताए हुए हैं, उन से जम कर भेदभाव होता है, उन्हें कदमकदम पर बेइज्जत किया जाता है, उन के पढ़ने, साथ बैठ कर खाने के हक, रोटीबेटी के संबंध बनाने में हजारों रुकावटें हैं, फिर भी तकरीबन बहुमत में होते हुए भी वे बेबस हैं, बेचारे हैं, गरीब हैं, गंदे घरों में मैला पानी पीते हैं. सिर्फ वोटों के समय उन की पूछ होती है.

एससी व मुसलिम समाज में नेताओं और बुद्धिजीवियों की कमी नहीं है. नेता तो थोक के भाव में हैं. खुद को मसीहा कहने वाले भी हैं और साहित्य का भी अंबार लगा है, फिर भी यह समाज दलित, गरीब, कमजोर और लाचार बना हुआ है. क्यों?

एससी, एसटी और मुसलिम वर्ग का अगर कोई किसी बड़ी पोस्ट पर पहुंच भी जाए तो उसे या तो मोहरा बन कर रहना होगा वरना उसे बुरी तरह बेइज्जत कर के अलगथलग कर दिया जाएगा.

क्या है असली वजह

दलित समाज, जिसे संवैधानिक तौर पर शैड्यूल कास्ट यानी एससी (अनुसूचित जाति) के रूप में वर्गीकृत किया गया है, की आबादी तकरीबन 17 फीसदी है. एससी वर्ग को राष्ट्रीय स्तर पर 15 फीसदी संवैधानिक आरक्षण मिला हुआ है. तकरीबन पूरा एससी समाज ही आरक्षण के दायरे में है और यह आरक्षण राजनीति, पढ़ाईलिखाई और सरकारी नौकरियों के लिए दिया गया है. सरकारी शिक्षण संस्थानों जैसे आईआईटी, आईआईएम में एससी वर्ग के लिए 15 फीसदी सीटें आरक्षित हैं.

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