Editorial: रेल मंत्री ने बड़ी शान से घोषणा की है कि दीवाली और छठ के मौके पर भारत में 12,000 स्पैशल ट्रेनें उन लोगों के लिए चलाई जाएंगी जो अपने घरों को जाना चाहते हैं. जिस देश में वैसे ही 22,000 ट्रेनें चलती हैं वहां 12,000 स्पैशल ट्रेनें आसमान से कैसे टपकेंगी, यह अतापता किए बिना दिए गए बयान को जुमला न कहा जाए तो क्या कहा जाए.

एक जमाना था जब ट्रेन का सफर करना होता था तब स्टेशन पर पहुंच कर टिकट ले कर आसानी से बैठा जा सकता था. आज महीनों पहले दलालों से जुगत भिड़ा कर टिकट का इंतजाम करना पड़ता है. इन बयानों से बहक कर जो स्टेशनों पर पहुंच जाते हैं उन में से हर साल 20-30 भगदड़ में मर जाते हैं क्योंकि प्लेटफौर्म और स्टेशन के बाहर इतनी जगह ही नहीं होती कि आनेजाने वालों को खड़े होने की भी जगह मिल सके.

इतने बड़े देश के लिए ट्रेनों का इंतजाम करना मुश्किल नहीं है. लोग इन्हीं ट्रेनों में लदपद कर सफर कर ही लेते हैं और एक से दूसरी जगह पहुंच ही जाते हैं पर उस में दिक्कतें क्यों हों. ये दिक्कतें इसलिए हैं कि रेल का हर कर्मचारी जनता पर एहसान करता नजर आता है जैसा मंत्रीजी करते हैं कि वे 12,000 स्पैशल ट्रेनें चलाने वाले हैं–जनता पर दया करने वाले हैं.

रेलें जरूरी हैं क्योंकि भारत जैसे बड़े देश में वे ही सब से तेज सस्ते तरीके हैं आनेजाने के. अफसोस यह है कि जब से हवाईजहाज शुरू हुए हैं, उन का रुतबा जीरो हो गया है. आज रेलें सिर्फ वोट पाने के लिए चलाई जा रही हैं ऐसा लगता है. वंदे भारत ट्रेनों को पैसे वालों के लिए बनवा दिया गया है पर देश के एक हिस्से के मजदूर और गरीब या तो बिना जाए मनमसोस कर रह जाते हैं या फिर धक्के खाते हैं.

बरसों से मुंबई की लोकल ट्रेनें पीक समय पर खचाखच भरी होती हैं पर रेलों के मंत्री दिनभर काम से थके
लोगों को घंटेभर की यात्रा को आसान बनाने के लिए तैयार नहीं हैं, वे ज्यादा, इतनी ज्यादा ट्रेनें चलाना ही नहीं चाहते कि हर कोई बैठ कर जा सके. देश के हर शहर में ऐसा है. जहां मैट्रो है वहां भीड़ कम है पर मैट्रो मुंबई की लोकल से कहीं ज्यादा महंगी है. दिल्ली में भी लोग मैट्रो की जगह 6 सवारियों वाले ईरिकशा में 10-12 बैठ कर सफर करने को मजबूर हैं.

यह सरकारों का दिवालियापन नहीं, कोरी गरूरता की निशानी है. सरकार सोचती है कि ट्रेन एक दान है जो वह जनता को देती हैं. जनता जो टिकट खरीदती है, टैक्स की शक्ल में जो पैसा देती है वह तो उस के जीने की कीमत है जो सरकार को वसूलने का हक है, बिना बदले में कुछ देने के. जो मिल गया, वह कृपा है, भीख है. स्पैशल ट्रेनें भीख के रूप में दी जाएंगी तो हल्ला करना तो बनता है और भीख लेने वाले हर साल की तरह हजारों की गिनती में हर स्टेशन पर जमा होंगे, हर ट्रेन में आटे की बोरियों की तरह भरे जाएंगे और घर पहुंच कर रेल भगवान के आका की पूजा करेंगे.

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देश में गरीबी का आलम देखने के लिए सरकारी आंकड़े देखना जरूरी नहीं है. सरकारी आंकड़े तो बहकाते हैं. जमीनी हालत यह है कि बिहार में, जहां कई दशकों से नीतीश कुमार का सुशासन चल रहा है, 5 जनों को बैठाने वाले ईरिकशा में ठुंस कर 10-12 लोगों को बैठाया जाता है. नालंदा से ये औरतें गंगा में नहा कर पाप धोने के लिए ईरिकशा में चली थीं. जब एक ट्रक ने उसे जबरदस्त तरीके से टक्कर मारी कि 7 की वहीं मौत हो गई और 2 ने अस्पताल में दम तोड़ दिया.

देशभर में सड़कों और रेलों का जाल बिछ रहा है और नरेंद्र मोदी अकसर उन के उद्घाटन करते दिखते हैं पर असलियत यह है कि अपना स्वर्ग सुधारने के नाम पर इतने बेचैन हो चुके लोग बेतरतीब बनी सड़कों, ओवरलोड वाहनों पर चल कर पहले ही स्वर्गवासी हो जाते हैं.

बिहार से ही नहीं सारे देश में तीर्थों में जाने वाले लोगों के मरने की खबरें अकसर आती रहती हैं. जब लोग तीर्थ पर निकलते हैं तो पंडेपुजारी उन्हें भरभर कर भेजते हैं ताकि उन्हें दानदक्षिणा में ज्यादा पैसा मिले, रास्ते की सुविधाओं पर खर्च न हो जाए. चार धाम यात्रा में हर साल सैकड़ों मौतें होती हैं पर फिर भी सरकार न इन्हें रोक रही है और न बेवकूफ जनता जाना बंद कर रही है.

तीर्थों में खासतौर पर खटारा बसों, रिकशाओं और टैक्सियों का इस्तेमाल किया जाता है. उन के रास्ते भी अकसर टूटे रहते हैं क्योंकि वहां ओवरलोडेड वाहन चलते हैं. तीर्थ में जाने वाला शिकायत भी कम करता है क्योंकि बदन को मिले कष्ट को भगवान की परीक्षा समझता है. तीर्थों पर लूटखसोट में पुलिस, सड़कें बनाने वाले ठेकेदार, सफाई करने वाले, किराए पर वाहन चलाने वाले सभी ग्राहक की बेहद फिक्र करने वाले नहीं होते हैं क्योंकि ग्राहकों को भजन और कीर्तन गाने से ही फुरसत नहीं होती. बीचबीच में जयकारा लगा कर वे समझते हैं कि सबकुछ ठीक हो रहा है.

अगस्त 2025 में ही अयोध्या जाने वाले तीर्थयात्रियों में 11 की मौत हो गई जब 15 लोगों से खचाखच भरी उन की 7 जनों के लिए बनी एसयूवी नहर में जा गिरी और सब डूब गए.

अप्रैल में लता मंगेशकर चौक पर अयोध्या में 2 जने मरे, 3 घायल हुए थे.

चार धाम यात्रा में जून में ही कम से कम 75 लोग पहले महीने में मारे गए थे.

देश की सड़कें और उन पर चलने वाले वाहन असल में उस नकली भगवान का काम करते रहते हैं जिसे मारने वाला बताया जाता है. भगवान चाहे न हो पर सड़कें बनाने वाले और खराब वाहन वाले हैं न जो मारने को तैयार बैठे हैं, मरे देश में. Editorial

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