Bihar Politics: बिहार की राजनीति हमेशा से जातपांत, सामाजिक न्याय और राजनीतिक दलों की खींचतान पर टिकी रही है. चुनाव आते ही विकास के वादे किए जाते हैं, लेकिन नतीजे ज्यादातर जातीय समीकरणों और वोट बैंक पर ही तय होते हैं.
खासकर रिजर्व्ड सीटें यानी दलित और आदिवासी समाज के लिए सुरक्षित 40 विधानसभा सीटें चुनावी राजनीति का असली रणक्षेत्र होती हैं. इन्हीं सीटों पर जीतहार से तय होता है कि सत्ता की चाबी किस गठबंधन के हाथ में जाएगी.
साल 2020 के बिहार विधानसभा चुनावों ने इस बात को साफ कर दिया था कि इन 40 सीटों की अहमियत कितनी खास है. उस चुनाव में राजग और महागठबंधन के बीच रिजर्व्ड सीटों पर बेहद करीबी मुकाबला हुआ था. यही वजह है कि साल 2025 के विधानसभा चुनावों की तैयारी में दोनों गठबंधन अपनी पूरी ताकत इन सीटों पर झांकने वाले हैं.
जातीय समीकरण की जड़ें
बिहार का राजनीतिक इतिहास सामाजिक न्याय और जातीय समीकरणों की राजनीति से गहराई से जुड़ा है. 70 के दशक के आखिर और 80 के दशक में जब कर्पूरी ठाकुर जैसे नेताओं ने पिछड़ों को रिजर्वेशन दिलाने की पहल की.
इस के बाद लालू प्रसाद यादव की अगुआई में 90 के दशक में ‘माय समीकरण’ (मुसलिमयादव) का नारा जोरदार तरीके से उभरा. इस दौरान दलित और अति पिछड़ा वर्ग भी इस राजनीति से जुड़ने लगे. दूसरी ओर, भाजपा और जद (यू) ने सवर्ण, अति पिछड़ा और दलित वोट बैंक को साधने की रणनीति अपनाई.
आज हालत यह है कि किसी भी चुनाव में यादव और मुसलिम वोटर महागठबंधन की बुनियाद बनते हैं, जबकि अति पिछड़े और सवर्ण वोट बैंक राजग के साथ रहते हैं. दलित और महादलित वोट बैंक को ले कर दोनों गठबंधनों में सब से ज्यादा खींचतान रहती है.
राजनीतिक अहमियत
बिहार विधानसभा की कुल 243 सीटों में से 40 सीटें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए रिजर्व्ड हैं. इन में 38 सीटें अनुसूचित जाति और 2 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए रिजर्व्ड हैं. इतिहास बताता है कि बिहार में सरकार बनाने की कुंजी अकसर इन सीटों से ही निकलती है.
साल 2010 का विधानसभा चुनाव : राजग ने इन सीटों पर भारी कामयाबी पाई थी.
साल 2015 का विधानसभा चुनाव : महागठबंधन (जद (यू), राजद और कांग्रेस) ने इन सीटों पर मजबूत पकड़ बनाई थी.
साल 2020 का विधानसभा चुनाव : राजग और महागठबंधन के बीच बेहद करीबी मुकाबला हुआ था.
साल 2020 में बिहार विधानसभा चुनाव में इन 40 सीटों पर नतीजे चौंकाने वाले रहे. भाजपा को 11 सीटें मिलीं. जद (यू) को 7 सीटें मिलीं. राजग की सहयोगी वीआईपी पार्टी को 1 सीट. वहीं महागठबंधन में राजद को 9 सीटें. कांग्रेस को 2 सीटें. भाकपा (माले) को 10 सीटें. इस तरह राजग को कुल 19 सीटें मिलीं, जबकि महागठबंधन ने 21 सीटों पर कब्जा किया.
बिहार की राजनीति का असली संतुलन पिछड़ों और महादलितों पर टिका है. महादलित में पासवान, मुसहर, मांझ, भुइयां जैसी जातियां आती हैं. नीतीश कुमार ने महादलित को अलग पहचान दे कर योजनाओं का फायदा पहुंचाया.
अति पिछड़ा वर्ग में तकरीबन 110 जातियां इस वर्ग में आती हैं. राजग ने इन्हें संगठित करने में बड़ा रोल निभाया है.
पसमांदा मुसलिम में पिछड़े और दलित मुसलमान. राजद और कांग्रेस पर ज्यादा भरोसा करते हैं, लेकिन हाल के सालों में भाजपा ने भी इन के बीच पैठ बनाने की कोशिशें शुरू की हैं, पर इस का असर नहीं देखा जा रहा है.
दलित राजनीति की विरासत
रामविलास पासवान का नाम बिहार की दलित राजनीति में दर्ज है. लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के जरीए उन्होंने दलित वोट खासकर पासवान जाति के वोट को अपने तरफ कर लिया.
उन के न रहने के बाद चिराग पासवान ने दलित राजनीति को ‘मौडर्न’ अंदाज देने की कोशिश की है. साल 2020 में लोजपा (रामविलास) ने राजग से अलग हो कर चुनाव लड़ा था, लेकिन भाजपा से नजदीकियां बनाए रखीं. चिराग पासवान की पकड़ भी दलितों में पासवान जाति पर ही खास है. दूसरी दलित जातियां इन के साथ नहीं हैं.
राजग की रणनीति
एनडीए (भाजपा, जद (यू) और लोजपा) का टारगेट दलित और अति पिछड़ा वोट बैंक को मजबूत बनाए रखना है. भाजपा दलित समाज में ‘गांवगांव तक पहुंच’ बनाने पर काम कर रही है. जद (यू) ‘महादलित योजना’ और ‘आरक्षण के विस्तार’ के जरीए समर्थन जुटा रही है.
चिराग पासवान का युवा और आक्रामक तेवर राजग के लिए दलित नौजवानों में आकर्षण पैदा कर सकता है खासकर पासवान जाति तो पूरी मुस्तैदी से इन के साथ है.
महागठबंधन की रणनीति
महागठबंधन (राजद, कांग्रेस और वाम दल) का आधार यादव और मुसलिम वोट बैंक है. लेकिन सत्ता तक पहुंचने के लिए इन्हें दलित और अति पिछड़े वोटों की भी जरूरत है.
तेजस्वी यादव की अगुआई में राजद दलितों को ‘समान अवसर’ और ‘नौकरीरोजगार’ का वादा कर रही है.
माकपा (माले) गांवदेहात में दलितमजदूर वर्ग को संगठित कर रही है. कांग्रेस फिर से अपने परंपरागत दलित वोट बैंक को वापस लाने की कोशिश में है.
बिहार विधानसभा की 40 रिजर्व्ड सीटें केवल चुनावी गणित का हिस्सा नहीं हैं, बल्कि ये समाजशास्त्रीय और राजनीतिक संघर्ष की धुरी हैं.
राजग और महागठबंधन दोनों को पता है कि इन सीटों पर मिली कामयाबी ही सरकार बनाने की कुंजी होगी. साल 2025 का चुनाव दलितपिछड़े समाज की आवाज से यह तय करेगा कि बिहार किस दिशा में आगे बढ़ेगा. Bihar Politics