Long Hindi Story: दिल्ली में कई साल से रहते हुए भी हसामुद्दीन इस शहर को ठीक ढंग से देख नहीं पाया था. कभी प्लान करता, तो पैसे न होते, जब पैसे होते, तो कारखाने की छुट्टी न होती. जब छुट्टी होती, तो कुछ घरेलू काम पड़ जाता था.
लेकिन उस शनिवार को हसामुद्दीन अपने कमरे से यह सोच कर निकला था कि आज तो कनाट प्लेस में घूमनाफिरना होगा. उस की इच्छा तो मैट्रो से जाने की हुई थी, लेकिन किराया ज्यादा होने की वजह से वह डीटीसी की नारंगी क्लस्टर बस में ही चढ़ गया, जो टर्मिनल से ही भर चुकी थी. फिर भी उसे सब से पीछे वाली एक सीट मिल गई थी.
उसी समय 2 लड़के पिछले दरवाजे की सीढि़यों पर आ कर बैठ गए. टर्मिनल से चलने तक बस में और ज्यादा भीड़ हो गई थी.
कई आदमी हसामुद्दीन के सामने खड़े थे. उस ने ‘पत्ते शाह बाबा’ को याद किया और कहा, ‘‘अगर सीट न मिलती तो आज खड़े हो कर ही जाना पड़ता.’’
जब बस अगले बस स्टौप पर रुकी, तो वहां से एक ट्रांसजैंडर पिछले दरवाजे से बस में चढ़ी, जो काफी पतली थी. उस का चेहरा लंबा और गोरा रंग था.
उस ने ‘हायहाय’ कहते हुए अपनी हथेलियों से 2 बार ताली बजाई. उस के माथे पर लाल गोल टीका लगा था. नाक में नथ और कान में झुमकी थी.
उस का साधारण सा सूटसलवार था. उस की क्लीन शेव, जो गहरे हरे रंग की थी, को चेहरे पर लगी सफेद क्रीम ने छिपा रखा था. उस ने अपने बाल ऊपर कर के टाइट बांधे हुए थे, जिन में गर्द भी भरा था और रूसी भी नजर आ रही थी.
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