UP Politics: उत्तर प्रदेश भारत की सब से ज्यादा आबादी वाला राज्य है. देश की कुल आबादी का 16.51 फीसदी यहीं बसता है. उत्तर प्रदेश की कुल आबादी तकरीबन 20 करोड़ है और इस में से तकरीबन 4 करोड़ आबादी मुसलिम है.

उत्तर प्रदेश की राजनीति में मुसलिम आबादी विधानसभा में ही नहीं, बल्कि लोकसभा चुनावों में भी हारजीत का गणित तय करती है. सियासी शतरंजी बिसात पर मुसलिम वोट बैंक की अहमियत को अनदेखा नहीं किया जा सकता है. इस में इसी आबादी से निकल कर आने वाले नेताओं का अहम रोल होता है.

एक समय था जब प्रदेश की सभी क्षेत्रीय पार्टियों में कई बड़े और धुरंधर मुसलिम नेता हुआ करते थे. मायावती की बहुजन समाज पार्टी में नसीमुद्दीन सिद्दीकी, मुकीम खान, यूसुफ मलिक और हाजी याकूब कुरैशी बड़े नाम थे.

मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी में आजम खान, मोहम्मद आजम कुरैशी, अबू आसिम आजमी और शफीकुर्रहमान बर्क के अलावा निर्दलीय चुनाव लड़ कर जीते हुए पार्टी के साथ जा मिलने वाले कद्दावर मुसलिम नेताओं में मुख्तार अंसारी, अतीक अहमद जैसे नाम थे, जिन का असर मुसलिम समाज पर बहुत ज्यादा था. वहीं, पीस पार्टी के डाक्टर अयूब और कांग्रेस में सलमान खुर्शीद जैसे नेता जब चुनाव प्रचार के लिए सड़क पर उतरते थे, तो बड़ी तादाद में मुसलिम वोटरों पर असर डालते थे.

प्रदेश की समाजवादी पार्टी तो मुसलिम प्रेम के लिए इतनी मशहूर थी कि मुलायम सिंह यादव को ‘मुल्ला मुलायम’ के नाम से पुकारा जाने लगा था. ईद और बकरीद के मौके पर वे बाकायदा कंधों पर चैक वाला रूमाल ओढ़ कर मुसलिमों से गले मिलते और ईद की बधाई देते थे.

भारतीय जनता पार्टी के सत्ता पर काबिज होने के बाद यह प्रेम और भाईचारे का मौसम पत?ाड़ में बदल गया. आएदिन मुसलिमों की लिंचिंग, मुसलिमों का ऐनकाउंटर, लव जिहाद या गौहत्या का आरोप लगा कर उन्हें जेलों में ठूंसने का सिलसिला शुरू हुआ और मुसलिमों में डर का माहौल बनने लगा.

इस के बाद शुरू हुआ मुसलिम नेताओं को जेल भेजने का कार्यक्रम. ईडी और सीबीआई का गलत इस्तेमाल कर के तमाम मुसलिम नेताओं को भाजपा सरकार ने जेलों में ठूंस दिया. मुख्तार अंसारी और उन के कुनबे को खत्म कर दिया गया. अतीक अहमद और उन के भाई को पुलिस की निगरानी में गोलियों से छलनी कर दिया गया. आजम खान जेल गए तो आज तक उन्हें बाहर निकलने का रास्ता नहीं मिला.

नसीमुद्दीन सिद्दीकी, जो कभी मायावती के सब से खास और एक धुरंधर नेता थे, अब कांग्रेस के साथ हैं और हीरो से जीरो हो चुके हैं. नई उभरती पीस पार्टी के मुखिया डाक्टर अयूब को भी अनेक आरोप लगा कर जेल भिजवा दिया गया और उन की सारी तेजी और जुनून वक्त के साथ फीका पड़ गया.

फिर भी प्रदेश की 4 करोड़ मुसलिम आबादी के वोट हर राजनीतिक पार्टी के लिए खास हैं, मगर इन्हें रिझाने के लिए आज जो कुछ गिनेचुने मुसलिम नेता राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पार्टियों में हैं, उन की शक्लें और नाम चुनाव के वक्त ही नजर आते हैं.

उत्तर प्रदेश में भाजपा के पास मात्र 4 मुसलिम चेहरे हैं, जिस में पहले नंबर पर हैं दानिश आजाद अंसारी, जो उत्तर प्रदेश के राज्य मंत्री (अल्पसंख्यक कल्याण, मुसलिम वक्फ और हज) और विधानपरिषद सदस्य हैं. दूसरे नंबर पर हैं मोहसिन रजा जो पहले इसी महकमे के राज्य मंत्री थे, और विधानपरिषद में भी रहे.

तारिक मंसूर एएमयू के कुलपति रह चुके हैं जिन्हें विधानपरिषद में मनोनीत किया गया.

बुक्कल नवाब शिया मुसलिम नेता और विधानपरिषद सदस्य हैं. मगर इन चारों नेताओं में वह दम नहीं दिखता कि मुसलिम समाज आसानी से इन की ओर खिंच आए. मात्र दानिश आजाद अंसारी का ही थोड़ाबहुत असर पसमांदा मुसलिमों के बीच है.

उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के पास 6 मुसलिम नेता हैं, जिन में से 1-2 को छोड़ कर बाकी नामों से आम जनता अनजान सी है. नदीम जावेद पूर्व विधायक (जौनपुर, 2012-17) और आल इंडिया माइनौरिटी कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष रहे हैं. वहीं जफर अली नकवी पूर्व लोकसभा सदस्य (लखीमपुर खीरी, 2009-14) हैं.

रूही जुबेरी अल्पसंख्यक कोश और उत्तर प्रदेश कांग्रेस कार्यकारिणी की सदस्य हैं. इमरान मसूद जरूर सहारनपुर के कद्दावर चेहरा माने जाते हैं और इन का अपने क्षेत्र पर काफी असर है. अहमद हमीद बागपत से आते हैं जो राष्ट्रीय लोकदल से कांग्रेस में आए हैं. वहीं शहनवाज आलम आल इंडिया कांग्रेस अल्पसंख्यक विंग के प्रमुख हैं.

साल 2017 में बहुजन समाज पार्टी के पास कुल 19 विधायक थे, जिन में से 5 मुसलिम विधायक थे. मगर 2022 में इस का आंकड़ा गिरा और मुसलिम विधायकों की तादाद घट कर मामूली रह गई.

आज बसपा के पास कोई भी असरदार मुसलिम नेता नहीं है. जो छोटेमोटे नेता हैं उन की गिनती 5 से भी कम है. 2021-22 के दौरान बसपा के कुछ प्रमुख मुसलिम नेता, जैसे कादिर राणा, नूर सलीम राणा, माजिद अली आदि ने समाजवादी पार्टी या राष्ट्रीय लोकदल का दामन थाम लिया था.

हालांकि, बसपा स्थानीय निकायों और चुनावी उम्मीदवारों के रूप में मुसलिम प्रतिनिधित्व को बढ़ा रही है, लेकिन उच्च स्तरीय नेतृत्व की तादाद तकरीबन न के बराबर है. बसपा के अनेक नेता पिछले सालों में पार्टी छोड़ चुके हैं.

उत्तर प्रदेश में सपा के मुसलिम प्रतिनिधित्व को 2 हिस्सों में देख सकते हैं, विधानसभा और लोकसभा सांसद. साल 2022 के विधानसभा चुनाव में सपा से कुल 34 मुसलिम विधायक चुने गए थे. इन में से 32 विधायक अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली सपा के थे. बाकी 1-1 विधायक राष्ट्रीय लोकदल और ओमप्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के थे.

सपा के पास फिलहाल राज्य में 32 मुसलिम विधायक हैं, जिन में इकरा हसन (कैराना), मोहिबुल्लाह नदवी (रामपुर), जिया उर रहमान (संभल) और अफजल अंसारी (गाजीपुर) ही कुछ कद्दावर नेताओं की श्रेणी में गिने जाते हैं.

हाल के चुनावों पर नजर डालें तो मुसलिमों का झुकाव फिर से सपा की ओर बढ़ा है. पर भाजपा भी ‘सब का साथ सब का विकास’ की नीति के तहत सीमित मुसलिम प्रतिनिधित्व देने की कोशिश कर रही है.

लेकिन हकीकत यह है कि वोट बैंक की राजनीति में मुसलिम नेता अब केवल प्रतीकात्मक भूमिका में रह गए हैं. UP Politics

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